स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी अखण्डानन्द को लिखित (1895)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी अखण्डानन्द को लिखा गया पत्र)
द्वारा ई. टी. स्टर्डी,
हाई व्यू, कैवरशम,
रीडिंग, इंग्लैण्ड,
१८९५
स्नेहास्पद,
तुम्हारे पत्र से सविशेष समाचार ज्ञात हुए। तुम्हारा संकल्प अत्यन्त सुन्दर है, किन्तु तुम लोगों में organisation (संगठन) की शक्ति का एकदम अभाव है। वही अभाव सब अनर्थों का मूल है। मिल-जुलकर कार्य करने के लिए कोई भी तैयार नहीं है। Organisation के लिए सबसे पहले obedience (आज्ञा-पालन) की आवश्यकता है, इच्छा हुई तो कुछ किया, अन्यथा चुपचाप – इस तरह कोई कार्य नहीं होता है। Plodding industry and perserverance (धैर्य के साथ परिश्रम तथा लगन) चाहिए। Regular correspondence (नियमित पत्रव्यवहार) अर्थात् तुम लोग क्या कर रहे हो तथा उसका फल क्या हो रहा है, इसका पूरा विवरण हर महीने अथवा महीने में दो बार मुझे लिखकर भेजोगे। यहाँ (इंग्लैण्ड) के लिए एक ऐसे संन्यासी की आवश्यकता है, जो अग्रेंजी तथा संस्कृत अच्छी तरह से जानता हो। मुझे शीघ्र ही यहाँ से अमेरिका जाना है, और मेरी अनुपस्थिति में यहाँ पर उसको कार्य करना होगा। शरत् और शशि, इन दोनों के सिवाय और कोई मेरी नजर में नहीं आ रहा है। शरत् को मैं रूपया भेज चुका हूँ तथा पत्र के देखते ही उसे रवाना होने के लिए मैंने लिखा है। राजा जी को भी मैं यह लिख चुका हूँ कि वे बम्बईस्थित अपने agent (एजेण्ट) के द्वारा शरत् को अच्छी तरह से जहाज में बिठाने की व्यवस्था करें। यदि हो सके, तो ख्याल कर तुम उसके साथ एक बोरी मूँग, चना तथा अरहर की दाल तथा कुछ मेथी भेजना, पत्र लिखते समय मुझे इन वस्तुओं की याद नहीं रही। प. नारायणदास, मा. शंकरलाल, ओझा जी, डॉक्टर तथा अन्यान्य सभी लोगों से मेरी प्रीति कहना। क्या गोपी की आँख की दवा यहाँ मिल जायगी? सर्वत्र ‘पेटेन्ट’ दवाओं में धोकाधड़ी चलती है। उससे तथा अन्यान्य शिष्यवर्गों से मेरा आशीर्वाद कहना। यज्ञेश्वर बाबू ने मेरठ में कोई सभा स्थापित की है, वे हम लोगों के साथ मिलकर कार्य करना चाहते हैं। सुना है कि उनकी कोई पत्रिका भी है; काली को वहाँ भेज दो, यदि हो सके, तो वहाँ जाकर वह एक केन्द्र स्थापित करे और ऐसा प्रयत्न करे कि हिन्दी में उस पत्रिका का प्रकाशन हो। बीच बीच में मैं कुछ रूपया भेजता रहूँगा। काली मेरठ जाकर वहाँ की यथार्थ स्थिति ज्यों ही मुझे लिखेगा, मैं कुछ रूपया भेज दूँगा। अजमेर में एक केन्द्र स्थापित करने का प्रयत्न करना। सहारनपुर में पं० अग्निहोत्री जी ने कोई सभा स्थापित की है। उन लोगों ने मुझे एक पत्र भी लिखा है। उन लोगों के साथ correspondence (पत्र-व्यवहार) करते रहना। सबके साथ मेल-जोल रखना। work, work (कार्य, कार्य।) इस तरह केन्द्र स्थापित करते रहो। कलकत्ता तथा मद्रास में केन्द्र पहले से है ही, यदि मेरठ और अजमेर में सम्भव हो सके, तो बहुत ही अच्छा होगा। धीरे धीरे इस प्रकार विभिन्न स्थानों में केन्द्र स्थापित करते रहो। यहाँ पर मुझे पत्रादि इस पते पर भेजना – द्वारा श्री ई. टी. स्टर्डी, हाई व्यू, कैवरशम, रीडिंग, इंग्लैण्ड। मेरा अमेरिका का पता इस प्रकार है – द्वारा कुमारी फिलिप्स १९ पश्चिम ३८वाँ रास्ता, न्यूयार्क। क्रमशः दुनिया में छा जाना होगा। सर्वप्रथम आज्ञा-पालन आवश्यक है। अग्नि में कूदने के लिए तैयार रहना चाहिए – तब कहीं कार्य होता है।… उसी प्रकार राजपूताने के गाँव गाँव में सभा स्थापित करो।
किमधिकमिति,
विवेकानन्द