स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी मेरी हेल को लिखित
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी मेरी हेल को लिखा गया पत्र)
प्रिय बहन,
मुझे भय है कि तुम रूष्ट हो और इसीलिए तुमने मेरे किसी भी पत्र का उत्तर नहीं दिया। अब मैं लक्षशः क्षमा माँगता हूँ। बड़े भाग्य से मुझे योगिया कपड़ा मिल गया और जितनी जल्दी हो सकेगा, मैं एक कोट बनवा लूँगा। मुझे यह सुनकर प्रसन्नता हुई कि तुमने श्रीमती बुल से भेंट की। वे एक बहुत ही भद्र महिला और दयालु मित्र हैं। बहन, घर में, संस्कृत की दो बहुत पतली पतली पुस्तिकाएँ हैं। यदि तुम्हें कोई कठिनाई न हो, तो उन्हें कृपया भेज दो। भारत से पुस्तकें सुरक्षित पहुँच गयीं और मुझे उनके लिए कोई चुँगी नहीं देनी पड़ी। मुझे आश्चर्य है कि कम्बल अभी तक क्यों नहीं आये। मैं मदर टेम्पिल से फिर भेंट करने नहीं जा सका। मुझे समय नहीं मिला। जो कुछ भी समय मिलता है, मैं उसे पुस्तकालय में व्यतीत करता हूँ। तुम सब लोगों के प्रति शाश्वत स्नेह और कृतज्ञता के साथ –
तुम्हारा सदा स्नेही भाई,
विवेकानन्द
पुनश्च–गत कुछ दिन छोड़कर श्री ह्वो नियमित रूप से कक्षा में आते हैं। कुमारी ह्वो से मेरा प्यार कहना।
वि.