स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (3 जुलाई, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)
हाई व्यू,कैवरशम्, रीडिंग
३ जुलाई, १८९६
प्रिय शशि,
इस पत्र को देखते ही काली ( स्वामी अभेदानन्द) को इंग्लैण्ड रवाना कर देना। पहले पत्र में ही तुम्हें सब कुछ लिख चुका हूँ। कलकत्ते के मैसर्स ग्रिण्डले कम्पनी के पास उसका द्वितीय श्रेणी का मार्ग-व्यय तथा वस्त्रादि खरीदने के लिए आवश्यक धन भी भेजा जा चुका है। अधिक वस्त्रादि की आवश्यकता नहीं है।
काली को अपने साथ कुछ पुस्तकें लानी होंगी। मेरे पास केवल ऋग्वेद-संहिता है। यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्वन् संहिताएँ एवं शतपथादि जितने भी ‘ब्राह्मण’ प्राप्त हो सकें तथा कुछ सूत्र एवं यास्क के निरुक्त यदि उपलब्ध हों तो इन ग्रन्थों को वह अपने ही साथ लेता आये। अर्थात् इन पुस्तकों की मुझे आवश्यकता है। उनको काठ के बक्स में भरकर लाने की व्यवस्था करे।
शरत् के आने में जैसा विलम्ब हुआ था, वैसा नहीं होना चाहिए; काली फौरन आये। शरत् अमेरिकन रवाना हो चुका है, क्योंकि यहाँ पर उसकी कोई आवश्यकता नहीं रह गयी। कहने का मतलब यह कि वह छः महीने की देर करके आया और फिर जब वह आया, उस समय मैं खुद ही यहाँ पहुँच चुका था। काली के बारे में यह बात नहीं होनी चाहिए। शरत् के आने के समय जैसे चिठ्ठी खो जाने से गड़बड़ी हुई थी, अबकी बार वैसे ही कहीं चिट्ठी न खो जाय। शीघ्रता से उसे भेज देना।
सस्नेह,
विवेकानन्द