स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री हरिपद मित्र को लिखित (17 सितम्बर, 1898)
(स्वामी विवेकानंद का श्री हरिपद मित्र को लिखा गया पत्र)
श्रीनगर, काश्मीर
१७ सितम्बर, १८९८
कल्याणीय,
तुम्हारे पत्र तथा ‘तार’ से सब समाचार विदित हुए। प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि तुम निर्विघ्न सिन्धी भाषा की परीक्षा में उत्तीर्ण हो।
बीच में मेरी तबियत खराब हो जाने के कारण कुछ विलम्ब हो गया, नहीं तो इसी सप्ताह के अन्दर पंजाब जाने की अभिलाषा थी। इस समय बंगाल में गर्मी अधिक होने के कारण डॉक्टर जाने को मना कर रहे हैं। अक्तूबर के अन्तिम सप्ताह तक सम्भवतः मैं कराची पहुँचूँगा। इस समय मैं एक प्रकार से ठीक हूँ। मेरे साथ इस बार कोई भी नहीं है। सिर्फ दो अमेरिकन महिलाएँ हैं। सम्भवतः लाहोर में मैं उनका साथ छोड़ दूँगा। कलकत्ता अथवा राजपूताने में वे मेरी प्रतीक्षा करेंगी। कच्छ, भुज, भावनगर, लिमड़ी तथा बड़ौदा होकर सम्भवतः मैं कलकत्ता पहुँचूँगा। नवम्बर अथवा दिसम्बर माह में चीन तथा जापान होकर अमेरिका जाना है – इस समय मेरी ऐसी इच्छा है, आगे प्रभु की इच्छा। यहाँ पर मेरा सम्पूर्ण खर्च उक्त दो अमेरिकन महिलाएँ दे रही हैं और कराची तक का किराया भी उनसे लेने का विचार है। यदि तुम्हें सुविधा हो तो ५०, रुपये ‘तार’ से श्री ऋषिवर मुकर्जी, चीफ़ जज, काश्मीर स्टेट श्रीनगर के पते पर भेज देना। इससे मेरी एक बड़ी सहायता हो जायेगी, क्योंकि हाल ही में बीमारी के कारण कुछ रुपये व्यर्थ में खर्च करने पड़े हैं एवं सर्वदा विदेशी शिष्यों से आर्थिक सहायता माँगने में लज्जा प्रतीत होती है।
सदा शुभाकांक्षी,
विवेकानन्द