स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (22 दिसम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
२२ दिसम्बर, १८९९
प्रिय धीरा माता,
आज कलकत्ते के एक पत्र से विदित हुआ कि आपके भेजे हुए ‘चेक’ वहाँ पहुँच गये हैं; उस पत्र में अनेक धन्यवाद तथा कृतज्ञता प्रकट की गयी है।
लन्दन की कुमारी सूटर ने छपे हुए पत्र के द्वारा मुझे नव वर्ष का अभिवादन भेजा है। मेरा विश्वास है कि आपने उनको जो हिसाब भेजा है। अब तक उन्हें वह मिल गया होगा। आपके पते पर सारदानन्द के नाम जो पत्र आये हों, उन्हें भेज देने की कृपा करें।
हाल में मेरा शरीर अस्वस्थ हो गया था; इसलिए शरीर मलनेवाले डॉक्टर ने रगड़ रगड़कर मेरे शरीर से कई इंच चमड़ा उठा डाला है! अभी तक मैं उसकी वेदना अुनभव कर रहा हूँ। निवेदिता का एक अत्यन्त आशाप्रद पत्र मुझे मिला है। पॅसाडेना में मैं पूर्ण परिश्रम कर रहा हूँ एवं मुझे आशा है कि यहाँ पर मेरा कार्य कुछ अंशों में सफल होगा। यहाँ पर कुछ लोग अत्यन्त उत्साही हैं। इस देश में ‘राजयोग’ पुस्तक वास्तव में बहुत ही सफल सिद्ध हुई है। मानसिक दशा की ओर से यथार्थ में मैं पूर्ण रूप से अच्छा हूँ; इस समय मुझे जो शान्ति प्राप्त है, वह पहले कभी भी मुझे प्राप्त नहीं हुई थी। जैसे कि उदाहरणस्वरूप कहा जा सकता है कि वक्तृता देने से मेरी नींद में किसी प्रकार की हानि नहीं होती है। यह निश्चय ही एक प्रकार का लाभ है। कुछ कुछ लिखने का कार्य भी कर रहा हूँ। यहाँ की वक्तृताओं को एक संकेतलिपिक ने ‘नोट’ किया था। यहाँ लोग इनको प्रकाशित कराना चाहते हैं।
‘जो’ के पास स्वामी ‘स’ ने जो पत्र लिखा है, उससे पता चला कि मठ में सब कुशलपूर्वक हैं एवं कार्य भी अच्छी तरह से चल रहा है। जैसा कि सदा होता रहा है, योजनाएँ भी क्रमशः कार्य में परिणत हो रही हैं। किन्तु मेरा कथन तो यही है कि ‘सब कुछ माँ ही जानती हैं।’ वे मुझे मुक्ति प्रदान करें तथा अपने कार्य के लिए किसी दूसरे व्यक्ति को चुन लें। हाँ, एक बात और है और वह यह कि गीता में फलाकांक्षा छोड़कर कार्य करने का जो उपदेश दिया गया है, उसके ठीक ठीक मानसिक अभ्यास का यथार्थ उपाय क्या है – यह मैंने आविष्कृत कर लिया है। ध्यान, मनःसंयोग तथा एकाग्रता के साधन के सम्बन्ध में मुझे ऐसा ज्ञान प्राप्त हआ है कि उसके अभ्यास से सब प्रकार के कष्ट-उद्वेगों से हम छुटकारा पा सकते हैं। मन को अपनी इच्छानुसार किसी स्थल पर केन्द्रित कर रखने के कौशल के सिवाय यह और कुछ नहीं है। अस्तु, आपकी अपनी दशा क्या है – बेचारी धीरा माता! माँ बनने में यही संकट है, यही दण्ड है! हम लोग केवल अपनी ही बातें सोचते हैं, माता के लिए कभी चिन्तित नहीं होते। आप किस प्रकार हैं, आपकी स्थिति कैसी है? आपकी पुत्री तथा श्रीमती ब्रिग्स के क्या समाचार हैं?
तुरीयानन्द सम्भवतः अब तक स्वस्थ हो उठा होगा एवं कार्य में जुट गया होगा। बेचारे के भाग्य में केवल कष्ट है! किन्तु आप इस पर ध्यान न देना। यातनाओं के भोगने में भी एक प्रकार का आनन्द है, यदि वे दूसरों के लिए हों। क्या यह ठीक नहीं? श्रीमती लेगेट कुशलपूर्वक हैं; ‘जो’ भी ठीक हैं; और वे कह रही हैं कि मैं भी ठीक ही हूँ। हो सकता है कि उनकी बातें ठीक हों। अस्तु, मैं कार्य करता हुआ चला जा रहा हूँ और कार्यों में सलग्न रहता हुआ ही मरना चाहता हूँ – अवश्य ही यदि माँ की यही इच्छा हो। मैं संतुष्ट हूँ।
आपकी चिरसन्तान,
विवेकानन्द