स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (30 मार्च, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)
१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
३० मार्च, १९००
प्रिय ‘जो’,
पुस्तकें शीघ्र भेजने के लिए तुम्हें अनेक धन्यवाद। मुझे विश्वास है कि ये शीघ्र ही बिक जायँगी। मालूम होता है, अपनी योजनाएँ बदलने में तुम मुझसे भी गयी बीती हो। अभी तक ‘प्रबुद्ध भारत’ क्यों नही आया, यह मैं नहीं समझ पा रहा हूँ। मुझे डर है कि मेरी डाक के पत्रादि कहीं इधर-उधर चक्कर खा रहे होंगे।
मैं ख़ूब परिश्रम कर रहा हूँ, कुछ धन भी एकत्र कर रहा हूँ और मेरा स्वास्थ्य भी पहले से ठीक है। सुबह से लेकर शाम तक परिश्रम करना; तदुपरान्त भरपेट भोजन के बाद रात के १२ बजे बिस्तर का आश्रय लेना – और समूचा रास्ता पैदल चलकर शहर में घूम आना एवं साथ ही साथ स्वास्थ्य की उन्नति!
श्रीमती मेल्टन तो फिर वहीं हैं। उनसे मेरा स्नेह कहना – कहोगी न? तुरीयानन्द का पैर क्या अभी तक ठीक नहीं हुआ है?
श्रीमती बुल की इच्छानुसार मैंने निवेदिता के पत्र उन्हें भेज दिये हैं। श्रीमती लेगेट ने निवेदिता
को कुछ दान दिया है, यह जानकर मुझे अत्यन्त ख़ुशी हुई। जैसे भी हो, सभी कार्यों में हमें सुविधा अवश्य प्राप्त होगी – और ऐसा होना अवश्यम्भावी है; क्योंकि कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं है।
यदि सुविधा हुई तो दो-एक सप्ताह और यहाँ पर रहने का विचार है; बाद में ‘स्टॉकटन’ नामक एक समीपवर्तीं स्थान में जाना है। उसके बाद का मुझे पता नहीं है। चाहे असुविधा भले ही हो, फिर भी दिन किसी प्रकार से कट रहे हैं। मैं पूर्ण शान्ति में हूँ, कोई झंझट नहीं है। और कामकाज जैसे चलता रहता है, वैसा ही चल रहा है। मेरा स्नेह जानना।
विवेकानन्द
पुनश्च – कुमारी वाल्डो ‘कर्मयोग’ के परिवर्धन आदि सहित सम्पादन का उत्तरदायित्व सम्भालने के योग्य हैं। आदि।
वि.