वासुपूज्य चालीसा – Bhagwan Vasupujya Chalisa
वासुपूज्य चालीसा का नित्य पाठ सभी कर्मों के बंधन से छुटकारा दिलाने वाला है। भगवान् वासुपूज्य जैन धर्म के बारहवें तीर्थंकर हैं। उनका ध्यान बहुत सुखकारी है। जो भी उन्हें अपने हृदय में स्थापित कर वासुपूज्य चालीसा को पढ़ता है, उसे वह सब कुछ मिलता है जिसकी उसने कामना की हो। इस चालीसा का पाठ हृदय को भी शुद्ध करने वाला माना गया है। पढ़ें वासुपूज्य चालीसा–
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भगवान वासु पूज्य का चिह्न – भैंसा
वासु पूज्य महाराज का चालीसा सुखकार।
विनय प्रेम से बाँचिये करके ध्यान विचार॥
जय श्री वासुपूज्य सुखकारी,
दीन दयाल बाल ब्रह्मचारी।
अद्भुत चम्पापुर रजधानी,
धर्मी न्यायी ज्ञानी दानी।
वसू पूज्य यहाँ के राजा,
करते राज काज निष्काजा।
आपस में सब प्रेम बढ़ाते,
बारह शुद्ध भावना भाते।
गऊ शेर आपस में मिलते,
तीनों मौसम सुख में कटते।
सब्जी फल घी दूध हो घर घर,
आते जाते मुनी निरन्तर।
वस्तु समय पर होती सारी,
जहाँ न हों चोरी बीमारी।
जिन मन्दिर पर ध्वजा फहरायें,
घन्टे घरनावल झन्नायें।
शोभित अतिशय मई प्रतिमायें,
मन वैराग्य देख छा जायें।
पूजन, दर्शन नव्हन कराये,
करें आरती दीप जलायें।
राग रागनी गायन गायें,
तरह तरह के साज बजायें।
कोई अलौकिक नृत्य दिखायें,
श्रावक भक्ति में भर जायें।
होती निशदिन शास्त्र सभायें,
पद्मासन करते स्वाध्यायें।
विषय कषायें पाप नसायें,
संयम नियम विवेक सुहायें।
रागद्वेष अभिमान नशाते,
गृहस्थी त्यागी धर्म निभाते।
मिटें परिग्रह सब तृष्णायें,
अनेकान्त दश धर्म रमायें।
छठ अषाढ़ बदी उर आये,
विजया रानी भाग्य जगायें।
सुन रानी से सोलह सुपने,
राजा मन में लगे हरषने।
तीर्थंकर लें जन्म तुम्हारे,
होंगे अब उद्धार हमारे।
तीनों वक्त नित रत्न बरसते,
विजया माँ के आँगन भरते।
साढ़े दस करोड़ थी गिनती,
परजा अपनी झोली भरती।
फागुन चौदस बदि जन्माये,
सुरपति अद्भुत जिन गुण गाये।
मति श्रुत अवधि ज्ञान भंडारी,
चालिस गुण सब अतिशय धारी।
नाटक ताण्डव नृत्य दिखाये,
नव भव प्रभुजी के दरशाये।
पाण्डु शिला पर नव्हन करायें,
वस्त्रभूषन वदन सजाये।
सब जग उत्सव हर्ष मनायें,
नारी नर सुर झूला झुलायें।
बीते सुख में दिन बचपन के,
हुए अठारह लाख वर्ष के।
आप बारहवें हो तीर्थंकर,
भैंसा चिन्ह आपका जिनवर।
धनुष पचास वदन केशरिया,
निस्पृह पर उपकार करइया।
दर्शन पूजा जप तप करते,
आत्म चिन्तवन में नित रमते।
गुर – मुनियों का आदर करते,
पाप विषय भोगों से बचते।
शादी अपनी नहीं कराई,
हारे तात मात समझाई।
मात पिता राज तज दीने,
दीक्षा ले दुद्धर तप कीने।
माघ सुदी दोयज दिन आया,
केवलज्ञान आपने पाया।
समोशरण सुर रचे जहाँ पर,
छासठ उसमें रहते गणधर।
वासु पूज्य की खिरती वाणी,
जिसको गणधरवों ने जानी।
मुख से उनके वो निकली थी,
सब जीवों ने वह समझी थी।
आपा आप आप प्रगटाया,
निज गुण ज्ञान भान चमकाया।
मग भूलों को राह दिखाई,
रत्नत्रय की जोत जलाई।
आतम गुण अनुभव करवाया,
‘सुमत’ जैन मत जग फैलाया।
सुदी भादवा चौदश आई,
चम्पा नगरी मुक्ती पाई।
आयु बहत्तर लाख वर्ष की,
बीती सारी हर्ष धर्म की।
और चोरानवें थे श्री मुनिवर,
पहुँच गये वो भी सब शिवपुर।
तभी वहाँ इन्दर सुर आये,
उत्सव मिल निर्वाण मनाये।
देह उड़ी कर्पूर समाना,
मधुर सुगन्धी फैला नाना।
फैलाई रत्नों की माला,
चारों दिश चमके उजियाला।
कहै ‘सुमत’ क्या गुण जिन राई,
तुम पर्वत हो मैं हूँ राई।
जब ही भक्ती भाव हुआ है,
चम्पापुर का ध्यान किया है।
लगी आश मै भी कभी जाऊँ,
वासु पूज्य के दर्शन पाऊँ।
सोरठा
खेये धूप सुगन्ध, वासु पूज्य प्रभु ध्यान के।
कर्म भार सब तार, रूप स्वरूप निहार के॥
मति जो मन में होय, रहें वैसी हो गति आय के।
करो सुमत रसपान, सरल निजातम पाय के॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री वासुपूज्याय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर वासुपूज्य चालीसा (Vasupujya chalisa) चालीसा को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें वासुपूज्य चालीसा रोमन में–
Read Vasupujya chalisa
vāsu pūjya mahārāja kā cālīsā sukhakāra।
vinaya prema se bā~ciye karake dhyāna vicāra॥
jaya śrī vāsu pūjya sukhakārī,
dīna dayāla bāla brahmacārī।
adbhuta campāpura rajadhānī,
dharmī nyāyī jñānī dānī।
vasū pūjya yahā~ ke rājā,
karate rāja kāja niṣkājā।
āpasa meṃ saba prema baḍha़āte,
bāraha śuddha bhāvanā bhāte।
gaū śera āpasa meṃ milate,
tīnoṃ mausama sukha meṃ kaṭate।
sabjī phala ghī dūdha ho ghara ghara,
āte jāte munī nirantara।
vastu samaya para hotī sārī,
jahā~ na hoṃ corī bīmārī।
jina mandira para dhvajā phaharāyeṃ,
ghanṭe gharanāvala jhannāyeṃ।
śobhita atiśaya maī pratimāyeṃ,
mana vairāgya dekha chā jāyeṃ।
pūjana, darśana navhana karāye,
kareṃ āratī dīpa jalāyeṃ।
rāga rāganī gāyana gāyeṃ,
taraha taraha ke sāja bajāyeṃ।
koī alaukika nṛtya dikhāyeṃ,
śrāvaka bhakti meṃ bhara jāyeṃ।
hotī niśadina śāstra sabhāyeṃ,
padmāsana karate svādhyāyeṃ।
viṣaya kaṣāyeṃ pāpa nasāyeṃ,
saṃyama niyama viveka suhāyeṃ।
rāgadveṣa abhimāna naśāte,
gṛhasthī tyāgī dharma nibhāte।
miṭeṃ parigraha saba tṛṣṇāyeṃ,
anekānta daśa dharma ramāyeṃ।
chaṭha aṣāḍha़ badī ura āye,
vijayā rānī bhāgya jagāyeṃ।
suna rānī se solaha supane,
rājā mana meṃ lage haraṣane।
tīrthaṃkara leṃ janma tumhāre,
hoṃge aba uddhāra hamāre।
tīnoṃ vakta nita ratna barasate,
vijayā mā~ ke ā~gana bharate।
sāḍha़e dasa karoḍa़ thī ginatī,
parajā apanī jholī bharatī।
phāguna caudasa badi janmāye,
surapati adbhuta jina guṇa gāye।
mati śruta avadhi jñāna bhaṃḍārī,
cālisa guṇa saba atiśaya dhārī।
nāṭaka tāṇḍava nṛtya dikhāye,
nava bhava prabhujī ke daraśāye।
pāṇḍu śilā para navhana karāyeṃ,
vastrabhūṣana vadana sajāye।
saba jaga utsava harṣa manāyeṃ,
nārī nara sura jhūlā jhulāyeṃ।
bīte sukha meṃ dina bacapana ke,
hue aṭhāraha lākha varṣa ke।
āpa bārahaveṃ ho tīrthaṃkara,
bhaiṃsā cinha āpakā jinavara।
dhanuṣa pacāsa vadana keśariyā,
nispṛha para upakāra karaiyā।
darśana pūjā japa tapa karate,
ātma cintavana meṃ nita ramate।
gura – muniyoṃ kā ādara karate,
pāpa viṣaya bhogoṃ se bacate।
śādī apanī nahīṃ karāī,
hāre tāta māta samajhāī।
māta pitā rāja taja dīne,
dīkṣā le duddhara tapa kīne।
māgha sudī doyaja dina āyā,
kevalajñāna āpane pāyā।
samośaraṇa sura race jahā~ para,
chāsaṭha usameṃ rahate gaṇadhara।
vāsu pūjya kī khiratī vāṇī,
jisako gaṇadharavoṃ ne jānī।
mukha se unake vo nikalī thī,
saba jīvoṃ ne vaha samajhī thī।
āpā āpa āpa pragaṭāyā,
nija guṇa jñāna bhāna camakāyā।
maga bhūloṃ ko rāha dikhāī,
ratnatraya kī jota jalāī।
ātama guṇa anubhava karavāyā,
‘sumata’ jaina mata jaga phailāyā।
sudī bhādavā caudaśa āī,
campā nagarī muktī pāī।
āyu bahattara lākha varṣa kī,
bītī sārī harṣa dharma kī।
aura corānaveṃ the śrī munivara,
pahu~ca gaye vo bhī saba śivapura।
tabhī vahā~ indara sura āye,
utsava mila nirvāṇa manāye।
deha uḍa़ī karpūra samānā,
madhura sugandhī phailā nānā।
phailāī ratnoṃ kī mālā,
cāroṃ diśa camake ujiyālā।
kahai ‘sumata’ kyā guṇa jina rāī,
tuma parvata ho maiṃ hū~ rāī।
jaba hī bhaktī bhāva huā hai,
campāpura kā dhyāna kiyā hai।
lagī āśa mai bhī kabhī jāū~,
vāsu pūjya ke darśana pāū~।
soraṭhā
kheye dhūpa sugandha, vāsu pūjya prabhu dhyāna ke।
karma bhāra saba tāra, rūpa svarūpa nihāra ke॥
mati jo mana meṃ hoya, raheṃ vaisī ho gati āya ke।
karo sumata rasapāna, sarala nijātama pāya ke॥
jāpa:- oṃ hrīṃ aha~ śrī vāsupūjyāya namaḥ
हिंदीपथ पर वासुपूज्य चालीसा (Vasupujya chalisa) आप हिंदी में कभी भी पढ़ सकते हैं। यहां आप वासु पूज्य चालीसा (Vasupujya bhagwan chalisa) का pdf भी download कर सकते हैं। इसका पीडीएफ डाउनलोड करके आप अपने डिवाइस में सेव करके या प्रिंट करवा के भी रख सकते हैं। आइये जानते हैं भगवान वासुपूज्य से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य।
- भगवान वासुपूज्य जी का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को हुआ था।
- इनका जन्म चम्पापुरी के राजपरिवार में हुआ था।
- प्रभु वासुपूज्य के पिता का नाम राजा वासुपूज्य एवं माता का नाम जयावती था।
- वासुपूज्य प्रभु के देह का रंग लाल एवं इनका प्रतीक चिन्ह भैंसा था।
- इनके शरीर की ऊंचाई 70 धनुष (210 मी) थी।
- भगवान वासुपूज्य जी की कुल आयु 72 लाख वर्ष थी।
- इन्होंने फाल्गुन कृष्ण पक्ष के दिन चम्पापुरी में दीक्षा ग्रहण की थी।
- वासुपूज्य भगवान चार ज्ञान से युक्त थे, जो इस प्रकार हैं: मनःपर्व ज्ञान, अवधिज्ञान, श्रुत ज्ञान, और मति ज्ञान।
- कुल एक वर्ष तक साधना करने के पश्चात् वासुपूज्य जी को माघ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को कैवल्य की प्राप्ति हुई थी।
- तत्पश्चात इन्होंने चार तीर्थों की स्थापना की और तीर्थंकर पद से नवाज़े गए।
- इनके संघ में कुल 66 गणधर थे।
- प्रभु के यक्ष का नाम षण्मुख और यक्षिणी का नाम गांधारी था।
- ये मुख्यतः लोगों को सत्य और अहिंसा का उपदेश देते थे।
- अंत में भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को वासुपूज्य जी ने निर्वाण प्राप्त किया था।
यहाँ हमने बात की जैन धर्म के प्रमुख श्री वासुपूज्य भगवान के बारे में। जैन धर्म में इनकी पूजा का विशेष विधान है। साथ ही श्री वासुपूज्य चालीसा का पाठ भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ये व्यक्ति के सभी कष्टों को हर लेता है। हिंदी में अन्य रोचक जानकारियों के लिए हिंदीपथ पर बने रहें।