शांतिनाथ चालीसा – Bhagwan Shantinath Chalisa
शांतिनाथ चालीसा का पाठ मोक्षदायक है। जो व्यक्ति श्रद्धाभाव से भगवान शांतिनाथ चालीसा का पाठ करता है, उसे सांसारिक वैभव की प्राप्ति होती है और साथ ही उसका हृदय पवित्र हो जाता है। यही पवित्र हृदय आगे आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति करता है और संसार-चक्र से मुक्त हो जाता है। चालीस दिन तक चालीस बार इसका पाठ चित्त को प्रसन्नता से भर देता है, सभी शंकाओं और भय का विनाश करता है और बल-विद्या-वैभव देने वाला है–
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भगवान शान्तिनाथ का चिह्न – हिरण
शान्तिनाथ महाराज का, चालीसा सुखकार।
मोक्ष प्राप्ति के ही लिए, कहूँ सुनो चितधार।
चालीसा चालीस दिन तक, कह चालीस बार।
बढ़े जगत सम्पन, ‘सुमत’ अनुपम शुद्ध विचार।
चौपाई
शान्तिनाथ तुम शांतिनायक,
पञ्चम चक्री जग सुखदायक।
तुम्हीं सोलहवें हो तीर्थंकर,
पूजें देव भूप सुर गणधर।
पञ्चाचार गुणों के धारी,
कर्म रहित आठों गुणकारी।
तुमने मोक्ष मार्ग दर्शाया,
निज गुण ज्ञान भानु प्रकटाया।
स्याद्वाद विज्ञान उचारा,
आप तिरे औरन को तारा।
ऐसे जिन को नमस्कार कर,
चहूँ सुमत शान्ति नौका पर।
सूक्ष्म सी कुछ गाथा गाता,
हस्तिनागपुर जग विख्याता।
विश्व सेन ऐरा पितु, माता,
सुर तिहु काल रत्न वर्षाता।
साढ़े दस करोड नित गिरते.
ऐरा माँ के आँगन भरते।
पन्द्रह माह तक हुई लुटाई,
ले जा भर भर लोग लुगाई।
भादों बदी सप्तमी गर्भाते,
उत्तम सोलह स्वप्न आते।
सुर चारों कायों के आये,
नाटक गायन नृत्य दिखाये।
सेवा में जो रहीं देवियाँ,
रखती खुश माँ को दिन रतियाँ।
जन्म सेठ बदी चौदश के दिन,
घन्टे. अनहद बजे गगन घन।
तीनों ज्ञान लोक सुखदाता,
मंगल सकल हर्ष गुण लाता।
इन्द्र देव सुर सेवा करते,
विद्या कला ज्ञान गुण बढ़ते।
अंग-अंग सुन्दर मनमोहन,
रत्न जडित तन वस्त्राभूषण।
बल विक्रम यश वैभव काजा,
जीते छहों खण्ड के राजा।
न्याय वान दानी उपकारी,
परजा हर्षित निर्भय सारी।
दीन अनाथ दुखी नहीं कोई,
होती उत्तम वस्तु सोई।
ऊँचे आप आठ सौ गज थे,
वदन स्वर्ण अरु चिह्न हिरण थे।
शक्ति ऐसी थी जिस्मानी,
वरी हजार छानवें रानी।
लख चौरासी हाथी रथ थे,
घोड़े कोड़ अठारह शुभ थे।
सहस पचास भूप के राजन,
अरबों सेवा में सेवक जन।
तीन करोड़ थी सुन्दर गइयाँ,
इच्छा पूर्ण करें नौ निधियाँ।
चौदह रत्न व चक्र सुदर्शन,
उत्तम भोग वस्तुएँ अनगिन।
थीं अड़तालीस कोड़ ध्वजायें,
कुण्डल चन्द्र सूर्य सम छाये।
अमृत गर्भ नाम का भोजन,
लाजवाब ऊँचा सिंहासन।
लाखों मन्दिर भवन सुसज्जित,
नार सहित तुम जिनमें शोभित।
जितना सुख था शान्तिनाथ को,
अनुभव होता ज्ञानवान को।
चलें जीव जो त्याग धर्म पर मिलें,
ठाठ उनको ये सुखकर।
पच्चिस सहस वर्ष सुख पाकर,
उमड़ा त्याग हितकर तुमपर।
जग तुमने क्षणभंगुर जाना,
वैभव सब सुपने सम माना।
ज्ञानोदय जो हुआ तुम्हारा,
पाये शिवपुर भी संसारा।
कामी मनुज काम को त्यागें,
पापी पाप कर्म से भागें।
सुत नारायण तख्त बिठाया,
तिलक चढ़ा अभिषेक कराया।
नाथ आपको बिठा पालकी,
देव चले ले राह गगन की।
इत उत इन्दर चवर दुरावें,
मंगल गाते वन पहुँचावे।
भेष दिगम्बर अपना कीना,
केश लोच पन मुष्ठी कोना।
पूर्ण हुआ उपवास छठा जब,
शुद्धाहार चले लेने तब।
कर तीनों वैराग चिन्तवन,
चारों ज्ञान किये सम्पादन।
चार हाथ पग लखतें चलते,
षट् कायिक की रक्षा करते।
मनहर मीठे वचन उचरते,
प्राणिमात्र का दुखड़ा हरते।
नाशवान काया यह प्यारी,
इससे ही यह रिश्तेदारी।
इससे मात पिता सुत नारी,
इसके कारण फिरें दुखहारी।
गर यह तन ही प्यारा लगता,
तरह तरह का रहेगा मिलता।
तज नेहा काया गाया का,
हो भरतार मोक्ष दारा का।
विषय भोग सब दुख का कारण,
त्याग धर्म ही शिव के साधन।
निधि लक्ष्मी जो कोई त्यागे,
उसके पीछे पीछे भागे।
प्रेम रूप जो इसे बुलावे,
उसके पास कभी नही आवे।
करने को जग का निस्तारा,
छहों खण्ड का राज विसारा।
देवी देव सुरासुर आये,
उत्तम तप कल्याण मनाये।
पूजन नृत्य करें नत मस्तक,
गाई महिमा प्रेम पूर्वक।
करते तुम आहार लहाँ पर,
देव रतन वर्षाते उस घर।
जिस घर दान पात्र को मिलता,
घर वह नित्य फूलता-फलता।
आठों गुण सिद्धों केध्या कर,
दशों धर्म चित्त काय तपाकर।
केवल ज्ञान आपने पाया,
लाखों प्राणी पार लगाया।
समवशरण में ध्वनि विराई,
प्राणि मात्र समझ में आई।
समवशरण प्रभु का जहाँ जाता,
कोस चौरासी तक सुख पाता।
फूल फलादिक मेवा आती,
हरी भरी खेती लहराती।
सेवा में छत्त्सि थे गणधार,
महिमा मुझसे क्या हो वर्णन।
नकुल सर्प अरु हरि से प्राणी,
प्रेम सहित मिल पीते पानी।
आप चतुर्मुख विराजमान थे,
मोक्ष मार्ग को दिव्यवान थे।
करते आप विहार गगन में,
अन्तरिक्ष थे समवशरण में।
तीनों जग आनन्दित कीने,
हित उपदेश हजारों दीने।
पौने लाख वर्ष हित कीना,
उम्र रही जब एक महीना।
श्री सम्मेद शिखर पर आए,
अजर अमर पद तुमने पाये।
निष्पृह कर उद्धार जगत के,
गये मोक्ष तुम लाख वर्ष के।
आंक सकें क्या छवी ज्ञान की,
जोत सूर्य सम अटल आपकी।
बहे सिन्धु सम गुण की धारा,
रहें ‘सुमत’ चित नाम तुम्हारा।
सोरठा
नित चालीसहिं बार पाठ करे चालीस दिन।
खेये सुगन्ध सुसार शांतिनाथ के सामने॥
होवे चित्त प्रसन्न, भय चिंता शंका मिटे।
पाप होय सब हन्न बल विद्या वैभव बढ़े॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं शांतिनाथाय नमः।
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर शांतिनाथ चालीसा (Bhagwan Shantinath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें शांतिनाथ चालीसा रोमन में–
Read Bhagwan Shantinath Chalisa
śāntinātha mahārāja kā, cālīsā sukhakāra।
mokṣa prāpti ke hī lie, kahū~ suno citadhāra।
cālīsā cālīsa dina taka, kaha cālīsa bāra।
baḍha़e jagata sampana, ‘sumata’ anupama śuddha vicāra।
caupāī॥
śāntinātha tuma śā~tināyaka,
pañcama cakrī jaga sukhadāyaka।
tumhīṃ solahaveṃ ho tīrthaṃkara,
pūjeṃ deva bhūpa sura gaṇadhara।
pañcācāra guṇoṃ ke dhārī,
karma rahita āṭhoṃ guṇakārī।
tumane mokṣa mārga darśāyā,
nija guṇa jñāna bhānu prakaṭāyā।
syādvāda vijñāna ucārā,
āpa tire aurana ko tārā।
aise jina ko namaskāra kara,
cahū~ sumata śānti naukā para।
sūkṣma sī kucha gāthā gātā,
hastināgapura jaga vikhyātā।
viśva sena airā pitu, mātā,
sura tihu kāla ratna varṣātā।
sāḍha़e dasa karoḍa nita girate.
airā mā~ ke ā~gana bharate।
pandraha māha taka huī luṭāī,
le jā bhara bhara loga lugāī।
bhādoṃ badī saptamī garbhāte,
uttama solaha svapna āte।
sura cāroṃ kāyoṃ ke āye,
nāṭaka gāyana nṛtya dikhāye।
sevā meṃ jo rahīṃ deviyā~,
rakhatī khuśa mā~ ko dina ratiyā~।
janma seṭha badī caudaśa ke dina,
ghanṭe. anahada baje gagana ghana।
tīnoṃ jñāna loka sukhadātā,
maṃgala sakala harṣa guṇa lātā।
indra deva sura sevā karate,
vidyā kalā jñāna guṇa baḍha़te।
aṃga-aṃga sundara manamohana,
ratna jaḍita tana vastrābhūṣaṇa।
bala vikrama yaśa vaibhava kājā,
jīte chahoṃ khaṇḍa ke rājā।
nyāya vāna dānī upakārī,
parajā harṣita nirbhaya sārī।
dīna anātha dukhī nahīṃ koī,
hotī uttama vastu soī।
ū~ce āpa āṭha sau gaja the,
vadana svarṇa aru cihna hiraṇa the।
śakti aisī thī jismānī,
varī hajāra chānaveṃ rānī।
lakha caurāsī hāthī ratha the,
ghoḍa़e koḍa़ aṭhāraha śubha the।
sahasa pacāsa bhūpa ke rājana,
araboṃ sevā meṃ sevaka jana।
tīna karoḍa़ thī sundara gaiyā~,
icchā pūrṇa kareṃ nau nidhiyā~।
caudaha ratna va cakra sudarśana,
uttama bhoga vastue~ anagina।
thīṃ aḍa़tālīsa koḍa़ dhvajāyeṃ,
kuṇḍala candra sūrya sama chāye।
amṛta garbha nāma kā bhojana,
lājavāba ū~cā siṃhāsana।
lākhoṃ mandira bhavana susajjita,
nāra sahita tuma jinameṃ śobhita।
jitanā sukha thā śāntinātha ko,
anubhava hotā jñānavāna ko।
caleṃ jīva jo tyāga dharma para mileṃ,
ṭhāṭha unako ye sukhakara।
paccisa sahasa varṣa sukha pākara,
umaḍa़ā tyāga hitakara tumapara।
jaga tumane kṣaṇabhaṃgura jānā,
vaibhava saba supane sama mānā।
jñānodaya jo huā tumhārā,
pāye śivapura bhī saṃsārā।
kāmī manuja kāma ko tyāgeṃ,
pāpī pāpa karma se bhāgeṃ।
suta nārāyaṇa takhta biṭhāyā,
tilaka caḍha़ā abhiṣeka karāyā।
nātha āpako biṭhā pālakī,
deva cale le rāha gagana kī।
ita uta indara cavara durāveṃ,
maṃgala gāte vana pahu~cāve।
bheṣa digambara apanā kīnā,
keśa loca pana muṣṭhī konā।
pūrṇa huā upavāsa chaṭhā jaba,
śuddhāhāra cale lene taba।
kara tīnoṃ vairāga cintavana,
cāroṃ jñāna kiye sampādana।
cāra hātha paga lakhateṃ calate,
ṣaṭ kāyika kī rakṣā karate।
manahara mīṭhe vacana ucarate,
prāṇimātra kā dukhaḍa़ā harate।
nāśavāna kāyā yaha pyārī,
isase hī yaha riśtedārī।
isase māta pitā suta nārī,
isake kāraṇa phireṃ dukhahārī।
gara yaha tana hī pyārā lagatā,
taraha taraha kā rahegā milatā।
taja nehā kāyā gāyā kā,
ho bharatāra mokṣa dārā kā।
viṣaya bhoga saba dukha kā kāraṇa,
tyāga dharma hī śiva ke sādhana।
nidhi lakṣmī jo koī tyāge,
usake pīche pīche bhāge।
prema rūpa jo ise bulāve,
usake pāsa kabhī nahī āve।
karane ko jaga kā nistārā,
chahoṃ khaṇḍa kā rāja visārā।
devī deva surāsura āye,
uttama tapa kalyāṇa manāye।
pūjana nṛtya kareṃ nata mastaka,
gāī mahimā prema pūrvaka।
karate tuma āhāra lahā~ para,
deva ratana varṣāte usa ghara।
jisa ghara dāna pātra ko milatā,
ghara vaha nitya phūlatā-phalatā।
āṭhoṃ guṇa siddhoṃ kedhyā kara,
daśoṃ dharma citta kāya tapākara।
kevala jñāna āpane pāyā,
lākhoṃ prāṇī pāra lagāyā।
samavaśaraṇa meṃ dhvani virāī,
prāṇi mātra samajha meṃ āī।
samavaśaraṇa prabhu kā jahā~ jātā,
kosa caurāsī taka sukha pātā।
phūla phalādika mevā ātī,
harī bharī khetī laharātī।
sevā meṃ chattsi the gaṇadhāra,
mahimā mujhase kyā ho varṇana।
nakula sarpa aru hari se prāṇī,
prema sahita mila pīte pānī।
āpa caturmukha virājamāna the,
mokṣa mārga ko divyavāna the।
karate āpa vihāra gagana meṃ,
antarikṣa the samavaśaraṇa meṃ।
tīnoṃ jaga ānandita kīne,
hita upadeśa hajāroṃ dīne।
paune lākha varṣa hita kīnā,
umra rahī jaba eka mahīnā।
śrī sammeda śikhara para āe,
ajara amara pada tumane pāye।
niṣpṛha kara uddhāra jagata ke,
gaye mokṣa tuma lākha varṣa ke।
āṃka sakeṃ kyā chavī jñāna kī,
jota sūrya sama aṭala āpakī।
bahe sindhu sama guṇa kī dhārā,
raheṃ ‘sumata’ cita nāma tumhārā।
soraṭhā
nita cālīsahiṃ bāra pāṭha kare cālīsa dina।
kheye sugandha susāra śāṃtinātha ke sāmane॥
hove citta prasanna, bhaya ciṃtā śaṃkā miṭe।
pāpa hoya saba hanna bala vidyā vaibhava baḍha़e॥
jāpa:- oṃ hīṃ aha~ śāṃtināthāya namaḥ।
हिंदीपथ पर शांतिनाथ चालीसा (Shantinath chalisa) आप हिंदी में कभी भी पढ़ सकते हैं। हम आपके लिए शांति नाथ चालीसा (Shantinath bhagwan chalisa) का pdf भी उपलब्ध है। इसका पीडीएफ डाउनलोड करके आप अपने डिवाइस में सेव करके या प्रिंट करवा के भी रख सकते हैं। आइये जानते हैं भगवान शांतिनाथ से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य।
- श्री शांतिनाथ भगवान जैन धर्म के सोलहवे तीर्थंकर थे।
- इनका जन्म ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि एवं भरणी नक्षत्र में हुआ था। इन्होंने हस्तिनापुर के इक्ष्वाकु वंश में जन्म लिया था।
- शांतिनाथ जी के पिता का नाम विश्वसेन एवं माता का नाम ऐरावती था।
- इनके शरीर का वर्ण सुनहरा (सुवर्ण) था।
- इनका चिन्ह हिरन है, जो हमें यह शिक्षा देता है कि जीवन में कभी भी चापलूसी और चिकनी चुपड़ी बातों में नहीं फसना चाहिए।
- भगवान शांतिनाथ ने लोगों को यह संदेश दिया था कि अगर तनाव से मुक्ति चाहते हैं तो हमेशा सादा और सरल जीवन जियें। एवं दूसरों के कल्याण में मन लगाएं।
- इनका उपदेश था कि धन, दौलत सब दुःख का कारण है, इसीलिए इनको त्याग कर धर्म का मार्ग अपनाना चाहिए।
- प्रभु श्री शांतिनाथ ने ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को दीक्षा प्राप्त की थी।
- शांति नाथ जी प्रभु ने बारह महीने छद्मस्थ अवस्था में साधना की और पौष शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को कैवल्य प्राप्त किया।
- इन्होंने धर्म तीर्थ की स्थापना की और तीर्थंकर पद पर विराजमान हुए।
- ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को इन्होने सम्मेद शिखर पर मोक्ष की प्राप्ति की।
यहाँ हमने बात की जैन धर्म के प्रमुख श्री शांतिनाथ भगवान के बारे में। जैन धर्म में इनकी पूजा का विशेष विधान है। साथ ही श्री शांतिनाथ चालीसा का पाठ भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ये व्यक्ति के सभी कष्टों को हर लेता है। हिंदी में अन्य रोचक जानकारियों के लिए हिंदीपथ पर बने रहें।