जन्माष्टमी पूजा विधि और पूजा सामग्री
जन्माष्टमी पूजा विधि और इससे जुड़ी सभी बातें विस्तार से पढ़ें। नियम से किया गया जन्माष्टमी पूजन सभी इच्छित फलों को प्रदान करता है। भगवान श्री कृष्ण स्वयं परब्रह्म हैं तथा चराचर के स्वामी हैं। उनकी कृपा मंगल का आगार है। यहाँ पढ़ें जन्माष्टमी पूजा विधि और व्रत विधि शास्त्रानुसार।
शास्त्रीय रूप से जन्माष्टमी की पूजा विधि इस प्रकार है–
- भाद्रपद मास की कृष्ण जन्माष्टमी को जन्माष्टमी पूजा विधि-पूर्वक व्रत करें। उसमें ब्रह्मचर्य आदि का पालन करते हुए भगवान् केशव हरि का स्थापन करें।
- श्रीकृष्णजी की मूर्ति सोने की बनाकर कलश के ऊपर चन्दन, अगर, धूप, पुष्प, कमल के पुष्पों एवं श्रीकृष्ण को वस्त्र से वेष्टित कर विधिवत् अर्चन करें।
- गुरुच, छोटी पीपल और सोंठ को श्रीकृष्ण के आगे अलग-अलग रखें और दस रूपों (दस अवतारों) का तथा देवकी का स्थापन करें।
- हरि के सान्निध्य में मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध और कल्की– ये दस अवतारों, गोपिका, यशोदा, वसुदेव, नन्द, बलदेव, देवकी, गायों, वत्स, कालिया, यमुना नदी, गोपगण और गोप पुत्र गणों का पूजन करें और आठवें वर्ष की समाप्ति पर उद्यापन करें।
- यथाशक्ति विधान द्वारा सोने या अन्य धातु की प्रतिमा बनाएँ। ‘मत्स्य कूर्म’ इस मन्त्र से मनुष्य सविधि अर्चन करें।
- अन्त में श्री कृष्ण की आरती का गायन करें।
- आचार्य, ब्रह्मा और आठ ऋत्विजों का वरण करें। प्रतिदिन ब्राह्मण को दक्षिणा और भोजन द्वारा प्रसन्न करें।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत कब और कैसे?
अष्टमी श्रावणे मासि कृष्ण पक्षे यदा भवेत्।
कृष्णजन्माष्टमी ज्ञेया महापातक नाशिनी॥ (स्कन्दपुराण)
“व्रते शुक्लादिरेव च” इस वचन के अनुसार श्रावण शब्द से भाद्र कृष्णपक्ष की अष्टमी कृष्ण जन्माष्टमी मानी जाती है। इसके दो प्रकार हैं– 1. कृष्ण जन्माष्टमी और 2. कृष्ण जयन्ती। केवल अष्टमी जन्माष्टमी तथा रोहिणी पुता जयन्ती कहलाती है।
कृष्णाष्टम्यां भवेद्यत्र कलैका रोहिणी यदि।
जयन्ती नाम सा प्रोक्ता उपोष्या सा प्रयत्नतः॥ (अग्निपुराण)
“कर्मणो यस्य यः कालस्तत्कालव्यापिणी तिथिः” इस वचन के अनुसार समं योगे तु रोहिण्या निशीथे राजसत्तम। समजायत गोविन्दो बालरूपी चतुर्भुज॥ इस अग्निपुराणोक्ति से यह अर्द्धरात्रिव्यापिनी ही ग्राह्य है। यदि पहले दिन अर्धरात्रिव्यापिनी हो और दूसरे दिन रोहिणी हो, किन्तु अर्द्धरात्रि में न हो, तो पहले ही दिन जन्माष्टमी पूजा विधि का पालन व्रत सहित करना चाहिए।
कृष्ण जयन्ती व्रत में रोहिणी का विशेष माहात्म्य होने से अर्धरात्रि में न होने पर भी दूसरे ही दिन व्रत होगा। जब रोहिणी का योग किसी वर्ष इस अष्टमी को न मिले, तो जन्माष्टमी व्रत एक ही होगा।
जन्माष्टमी पूजा सामग्री
जन्माष्टमी का व्रत करने से पूर्व जन्माष्टमी पूजा सामग्री की व्यवस्था कर लेनी चाहिए। ऐसा करने से पूजा निर्विघ्न सम्पन्न होने में कोई अड़चन नहीं आती है। जन्माष्टमी पूजा सामग्री निम्नवत् है–
- भगवान् श्रीकृष्ण की धातु प्रतिमा
- कलश
- चन्दन
- अगरबत्ती
- धूप-बत्ती
- कमल आदि फूल
- गुरुच
- छोटी पीपल
- सोंठ