धर्मस्वामी विवेकानंद

राजयोग पर षष्ठ पाठ – स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद कृत योग-विषयक इस पुस्तक के शेष पाठ पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – राजयोग के छः पाठ

Rajyog Par Shashtha Paath: Swami Vivekananda

सुषुम्ना : सुषुम्ना का ध्यान करना अत्यन्त लाभदायक है। तुम इसका चित्र अपने भाव-चक्षुओं के सामने लाओ, यह सर्वोत्तम विधि है। तत्पश्चात् देर तक उसका ध्यान करो। सुषुम्ना एक अति सूक्ष्म, ज्योतिर्मय सूत्र-सदृश है। मेरुदण्ड के मध्य से जानेवाला यह चेतन मार्ग, मुक्ति का द्वार है। इसी में से होते हुए हमें कुण्डलिनी को ऊपर ले जाना होगा।

योगियों की भाषा में सुषुम्ना के दोनों छोरों पर दो कमल हैं। नीचेवाला कमल कुण्डलिनी के त्रिकोण को आच्छादित किये हुए है और ऊपरवाला ब्रह्मरन्ध्र में है। इन दोनों के बीच और भी पाँच कमल हैं, जो इस मार्ग के विभिन्न सोपान हैं। इनके नाम यथाक्रम इस प्रकार हैं –

सप्तम – सहस्रार।
षष्ठ – आज्ञा – नेत्रों के मध्य।
पंचम – विशुद्ध – कण्ठ के नीचे।
चतुर्थ – अनाहत – हृदय के समीप।
तृतीय – मणिपूर – नाभिदेश में।
द्वितीय – स्वाधिष्ठान – उदर के नीचे।
प्रथम – मूलाधार – मेरुदण्ड के नीचे।

प्रथम कुण्डलिनी को जगाना चाहिए, फिर उसे यथाक्रम एक कमल से दूसरे कमल की ओर ऊपर ले जाते हुए अन्त में मस्तिष्क में पहुँचाना चाहिए। प्रत्येक सोपान मन का एक नूतन स्तर है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!