धर्म

अजितनाथ चालीसा – Bhagwan Ajitnath Chalisa

अजितनाथ चालीसा सभी पाप-ताप से मुक्ति देने वाली है। जैन धर्म के द्वितीय तीर्थंकर भगवान अजितनाथ का जन्म अयोध्या में हुआ था। इस चालीसा में उनके पवित्र चरित का वर्णन है। जो भी श्रद्धा-भक्ति के साथ नित्य इस चालीसा का पाठ करता है, उसके रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं तथा उसकी सारी मुरादें पूरी होती हैं। पढ़ें अजितनाथ चालीसा–

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भगवान अजितनाथ का चिह्न – हाथी

श्री आदिनाथ को शीश नवाकर,
माता सरस्वती को ध्याय।
शुरु करुँ श्री अजितनाथ का,
चालीसा स्व-पर सुखदाय॥

जय श्री अजितनाथ जिनराज।
पावन चिह्न धरें ‘गजराज’॥
नगर अयोध्या करते राज।
जितशत्रु नामक महाराज॥

विजयसेना उनकी महारानी।
देखें सोलह स्वप्न ललामी॥
दिव्य विमान विजय से चयकर।
जननी उदर बसे प्रभु आकर॥

शुक्ला दशमी माघ मास की।
जन्म जयन्ती अजित नाथ की॥
इन्द्र प्रभु को शीशधार कर।
गए सुमेरु हर्षित होकर॥

नीर क्षीर सागर से लाकर।
न्हवन करें भक्ति में भरकर॥
वस्त्राभूषण दिव्य पहनाए।
वापस लौट अयोध्या आए॥

अजितनाथ की शोभा न्यारी।
वर्ण स्वर्ण सम कान्तिधारी॥
बीता बचपन जब हितकारी।
हुआ ब्याह तब मंगलकारी॥

कर्मबन्ध नहीं हो भोगों में।
अन्तर्दृष्टि थी योगों में॥
चंचल चपला देवी नभ में।
हुआ वैराग्य निरन्तर मन में॥

राजपाट निज सुत को देकर।
हुए दिगम्बर दीक्षा लेकर॥
छ: दिन बाद हुआ आहार।
करें श्रेष्ठि ब्रह्मा सत्कार॥

किये पंच अचरज देवों ने।
पुण्योपार्जन किया सभी ने॥
बारह वर्ष तपस्या कीनी।
दिव्यज्ञान की सिद्धि नवीनी॥

धनपति ने इन्द्राज्ञा पाकर।
रच दिया समोशरण हर्षाकर॥
सभा विशाल लगी जिनवर की।
दिव्यध्वनि खिरती प्रभुवर की॥

वाद – विवाद मिटाने हेतु।
अनेकान्त का बाँधा सेतु॥
हैं सापेक्ष यहाँ सब तत्व।
अन्योन्याश्रित है उन सत्व॥

सब जीवों में हैं जो आतम।
वे भी हो सकते शुद्धात्म॥
ध्यान अग्नि का ताप मिले जब।
केवल ज्ञान की ज्योति जले तब॥

मोक्ष मार्ग तो बहुत सरल है।
लेकिन राही हुए विरल हैं॥
हीरा तो सब ले नहीं पावें।
सब्जी-भाजी भीड़ धरावें॥

दिव्यध्वनि सुन कर जिनवर की।
खिली कली जन-जन के मन की॥
प्राप्ति कर सम्यग्दर्शन की।
बगिया महकी भव्य जनों की॥

हिंसक पशु भी समता धारें।
जन्म-जन्म का बैर निवारें॥
पूर्ण प्रभावना हुई धर्म की।
भावना शुद्ध हुई भविजन की॥

दूर-दूर तक हुआ विहार।
सदाचार का हुआ प्रचार॥
एक माह की उम्र रही जब।
गए शिखर सम्मेद प्रभु तब॥

अखण्ड मौन मुद्रा की धारण।
कर्म अघाति हेतु निवारण॥
शुक्ल ध्यान का हुआ प्रताप।
लोक शिखर पर पहुँचे आप॥

‘सिद्धवर कूट’ की भारी महिमा।
गाते सब प्रभु की गुण-गरिमा॥

विजित किए श्री अजित ने,
अष्ट कर्म बलवान।
निहित आत्मगुण अमित हैं,
‘अरुणा’ सुख की खान॥

जाप – ॐ ह्रीं अर्हं श्री अजितनाथाय नमः

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर अजितनाथ चालीसा (Bhagwan Ajitnath Chalisa) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें अजितनाथ चालीसा रोमन में–

Read Ajitnath Chalisa

śrī ādinātha ko śīśa navākara,
mātā sarasvatī ko dhyāya।
śuru karu~ śrī ajitanātha kā,
cālīsā sva-para sukhadāya॥

jaya śrī ajitanātha jinarāja।
pāvana cihna dhareṃ ‘gajarāja’॥
nagara ayodhyā karate rāja।
jitaśatru nāmaka mahārāja॥

vijayasenā unakī mahārānī।
dekheṃ solaha svapna lalāmī॥
divya vimāna vijaya se cayakara।
jananī udara base prabhu ākara॥

śuklā daśamī māgha māsa kī।
janma jayantī ajita nātha kī॥
indra prabhu ko śīśadhāra kara।
gae sumeru harṣita hokara॥

nīra kṣīra sāgara se lākara।
nhavana kareṃ bhakti meṃ bharakara॥
vastrābhūṣaṇa divya pahanāe।
vāpasa lauṭa ayodhyā āe॥

ajitanātha kī śobhā nyārī।
varṇa svarṇa sama kāntidhārī॥
bītā bacapana jaba hitakārī।
huā byāha taba maṃgalakārī॥

karmabandha nahīṃ ho bhogoṃ meṃ।
antardṛṣṭi thī yogoṃ meṃ॥
caṃcala capalā devī nabha meṃ।
huā vairāgya nirantara mana meṃ॥

rājapāṭa nija suta ko dekara।
hue digambara dīkṣā lekara॥
cha: dina bāda huā āhāra।
kareṃ śreṣṭhi brahmā satkāra॥

kiye paṃca acaraja devoṃ ne।
puṇyopārjana kiyā sabhī ne॥
bāraha varṣa tapasyā kīnī।
divyajñāna kī siddhi navīnī॥

dhanapati ne indrājñā pākara।
raca diyā samośaraṇa harṣākara॥
sabhā viśāla lagī jinavara kī।
divyadhvani khiratī prabhuvara kī॥

vāda – vivāda miṭāne hetu।
anekānta kā bā~dhā setu॥
haiṃ sāpekṣa yahā~ saba tatva।
anyonyāśrita hai una satva॥

saba jīvoṃ meṃ haiṃ jo ātama।
ve bhī ho sakate śuddhātma॥
dhyāna agni kā tāpa mile jaba।
kevala jñāna kī jyoti jale taba॥

mokṣa mārga to bahuta sarala hai।
lekina rāhī hue virala haiṃ॥
hīrā to saba le nahīṃ pāveṃ।
sabjī-bhājī bhīḍa़ dharāveṃ॥

divyadhvani suna kara jinavara kī।
khilī kalī jana-jana ke mana kī॥
prāpti kara samyagdarśana kī।
bagiyā mahakī bhavya janoṃ kī॥

hiṃsaka paśu bhī samatā dhāreṃ।
janma-janma kā baira nivāreṃ॥
pūrṇa prabhāvanā huī dharma kī।
bhāvanā śuddha huī bhavijana kī॥

dūra-dūra taka huā vihāra।
sadācāra kā huā pracāra॥
eka māha kī umra rahī jaba।
gae śikhara sammeda prabhu taba॥

akhaṇḍa mauna mudrā kī dhāraṇa।
karma aghāti hetu nivāraṇa॥
śukla dhyāna kā huā pratāpa।
loka śikhara para pahu~ce āpa॥

‘siddhavara kūṭa’ kī bhārī mahimā।
gāte saba prabhu kī guṇa-garimā॥

vijita kie śrī ajita ne,
aṣṭa karma balavāna।
nihita ātmaguṇa amita haiṃ,
‘aruṇā’ sukha kī khāna॥

jāpa – oṃ hrīṃ arhaṃ śrī ajitanāthāya namaḥ

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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