दशा माता की कहानी व व्रत कथा – Dasha Mata Ki Kahani
दशा माता की कहानी (दशा माता की कथा) का हिन्दू धर्म में विशेष महत्व है। मान्यता है कि इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति का बुरा समय जल्दी दूर चला जाता है और अच्छा समय वापस आ जाता है। कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति की दशा ख़राब चल रही होती है तो उसके सभी कार्य में रुकावट और बाधाएं आने लगती हैं। इसीलिए दशा माता का व्रत करके मां दशा को बुरे समय को शीघ्र दूर करने के लिए मनाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रत्येक सुहागन या विधवा स्त्री को घर की दशा सुधारने एवं सुख समृद्धि लाने के लिए दशा माता का व्रत (दशा माता की कहानी) एवं पूजन करना चाहिए।
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दशा माता की व्रत विधि
दशा माता का व्रत एवं पूजन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को किया जाता है। व्रत और पूजन के साथ-साथ दशा माता की कहानी पढ़ने और सुनने का भी अत्यधिक महत्व है। इस व्रत में होली के दूसरे दिन से पूजन प्रारंभ करके दसवे दिन समापन किया जाता है। व्रत करने वाली स्त्री प्रातः स्नानादि करके पूजन सामग्री एकत्रित करके पूजा करती है और दशा माता की कथा पढ़ती है।
पूजन विधि कुछ इस प्रकार है: सबसे पहले घर की कोई स्वच्छ दीवार चुनकर उस पर स्वास्तिक बनाएं। तत्पश्चात स्वस्तिक के पास मेहँदी एवं कुमकुम से १०-१० बिंदियां बनाएं। स्वस्तिक की गणेश जी एवं १० बिंदिओं की दशा माता के रूप में धूप, दीप, नैवेद्य, अगरबत्ती, चावल, सुपारी, मौली, रोली इत्यादि से पूजन करें। तत्पश्चात १ सफ़ेद धागा लेकर उसको हल्दी से रंग लें और उसमे १० गठान बना लें। इसे दशा माता की बेल कहते हैं, जिसका पूजन करके गले में धारण किया जाता है। इस धागे को पूरे साल गले में धारण करने का विधान है। अगले वर्ष पूजन करके ही धागा उतारते हैं और दूसरा धागा पहनते हैं। पूजन के अंत में दशा माता की कहानी पढ़ी जाती है। व्रत करने वाली स्त्रियां दिन में एक समय ही भोजन करती हैं।
जानें दशा माता की कहानी
दशा माता की कहानी में बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं, परन्तु राजा नल और रानी दमयंती की कहानी मुख्य्तः पढ़ी जाती है। यहाँ हम राजा नल और दमयंती की प्रचलित कहानी का विवेचन करेंगे।
दशा माता की कथा कुछ इस प्रकार है: एक समय की बात है, नरवलकोट नामक राज्य में राजा नल और रानी दमयंती अपने २ पुत्रों, पुत्रवधुओं और पौत्रों के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनके राज्य में प्रजा भी धन धान्य से संपन्न और सुखी थी। एक दिन राजमहल में एक ब्राह्मणी आई और रानी से बोली- हे रानी! दशा का डोरा ले लो, इसकी पूजा करके अपने गले में बाँध लेना जिससे आपके घर में सुख समृद्धि बनी रहेगी। ऐसा सुनकर रानी ने डोरा ले लिया और विधि अनुसार पूजन करके अपने गले में बांध लिया। एक दिन राजा का ध्यान रानी के गले में बंधे उस डोरे पर गया और उन्होंने आश्चर्य से पूछा- रानी आपने इतने हीरे जवाहरात के बीच में ये मामूली सा धागा क्यों पहन रखा है। और रानी के कुछ बोलने से पहले ही राजा ने धागे को तोड़कर ज़मीन पर फेंक दिया। रानी ने दौड़कर धागे को उठाया और उसे पानी में घोलकर पी गई। उन्होंने रुष्ट होकर राजा से कहा- हे राजा! ये दशा माता का धागा था, आपको इसका अपमान नहीं करना चाहिए था। राजा ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया।
एक दिन जब राजा नल सो रहे थे, तो उन्होंने स्वप्न में एक बूढ़ी माता को महल में आते हुए और माता लक्ष्मी को महल से जाते हुए देखा। राजा ने प्रातः होते ही सारा स्वप्न रानी दमयंती को कह सुनाया। रानी बोलीं महाराज आपने हमारी अच्छी दशा को जाते हुए और बुरी दशा को आते हुए देखा है, इसीलिए हे महाराज! अब हमें यहां नहीं रुकना चाहिए। दोनों ने फैसला करके अपनी बहुओं को पीहर भेज दिया और पुत्रों को राजा भील के पास छोड़कर १ पौत्र को लेकर देश छोड़कर चले गए।
कुछ समय चलने के पश्चात राजा नल के सेठ मित्र का गांव आया। दूतों ने राजा नल के आगमन की खबर सेठ को सुनाई और बताया की राजा, रानी और उनका पोता सब फटेहाल पैदल आ रहे हैं। यह सुनकर सेठ ने दूतों से कहा- हवेली में सेठानी और बहुएं क्या सोचेंगी कि कैसा दोस्त है मेरा, इसीलिए उनको बाहर वाले कमरे में ठहरा दो। जिस कमरे में राजा नल और रानी दमयंती को ठहराया गया था, वहाँ मोर की तस्वीर की खूंटी पर सेठानी का नौलक्खा हार टंगा था। देखते ही देखते वह तस्वीर का मोर, हार को निगल गया। यह देखकर रानी दमयंती ने राजा से कहा- महाराज! यहाँ से तुरंत चलिए, नहीं तो सेठानी हम पर चोरी का इलज़ाम लगा देंगी। राजा रानी अपने पोते के साथ, किसी को बिना बताये आधी रात को ही वहाँ से चले गए।
फिर कुछ दूर चलने के बाद राजा नल की बहन का गाँव आया। राजा ने अपनी बहन तक अपने आने की ख़बर पहुंचाई। बहन के पूछने पर ख़बरी ने बताया- राजा रानी और उनका १ पोता खराब हालत में पैदल आ रहे हैं। ऐसा सुनकर बहन ने यह कहकर कि ‘घर में सास और देवरानी क्या सोचेंगे’, उनको पीपल के पेड़ के नीचे ठहराने बोल दिया। कुछ देर बाद, बहन १ थाली में मूंग और चावल लेकर अपने भाई से मिलने आई। राजा नल के हाथ लगाते ही मूंग और चावल कीड़े में बदल गए। यह देखकर रानी दमयंती आगे बढ़ीं और ज़मीन पर गड्ढा खोदकर उस कीड़े से भरी थाली को उसमे गाड़ दिया। फिर राजा, रानी और उनका पोता वहां से चले गए।
आगे चले तो उनको १ नदी मिली और उन्होंने वहाँ रुकने का फैसला किया। राजा नल ने तीतर मारकर रानी को दिया और कहा- हे रानी! मैं पोते के साथ नदी से स्नान करके आता हूँ, तब तक आप तीतर पका देना। जब राजा वापस आये तो रानी ने बड़े आश्चर्य से कहा कि पके हुए तीतर भी हांडी में से उड़ गये और राजा ने भी दुखी स्वर में रानी को बताया कि मुझसे पोता नदी में बह गया। दोनों दुखी होकर विलाप करते हुए वहाँ से भी चले गए।
आगे चलकर १ गाँव में उनको सूना बाग दिखा और उन्होंने वहाँ विश्राम करने का फैसला किया। जब बाग की मालिन वहाँ आई, तो उसने देखा कि सूखे बंजर बाग़ में कोंपले फूट रही हैं। मालिन की नज़र राजा और रानी पर पड़ी और पूछने लगी- तुम लोग कौन हो। राजा ने उत्तर दिया, कि हम मुसाफिर हैं और रहने की जगह ढूंढ रहे हैं। यह सुनकर मालिन ने उनको वहीं रहकर बाग़ की रक्षा करने के लिए कहा। राजा और रानी वहाँ अपने दिन व्यतीत करने लगे। दिन बीतते गए और होली का दिन आ गया। उस दिन जब राजा नल कुएं से पानी भर रहे थे तो बार- बार उनकी बाल्टी में सूत की कोकड़ी और हल्दी की गाँठ आ रही थी और वो बार- बार उसको वापस कुएं में फेंकते जा रहे थे। रानी ने जब राजा को ऐसे करते हुए देखा तो पूछा- हे स्वामी! आप ये क्या कर रहे हैं, तब राजा ने रानी को उसका कारण बताया। राजा की बात सुनकर रानी ने कहा कि अगली बार जब आपकी बाल्टी में सूत की कोकड़ी और हल्दी की गाँठ आए तो उसको मुझे दे दीजिये। राजा यह सुनकर नाराज़ हुए और बोले- रानी आपकी ही वजह से आज हमारी ये दशा हुई है और आप फिर से वही सब करना चाहती हैं। परन्तु जब बाल्टी में वापस वही वस्तुएं आईं तो राजा ने उन्हें रानी को सौंप दिया। रानी ने होलिका दहन के दिन होली को झाल दिखाकर अगले दिन दशा माता का व्रत किया और डोरा लिया।
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दशा माता की कथा के अनुसार फिर समय बीतता गया, एक दिन राजा रानी के पास गए और बोले हे रानी! नगर के राजा ने स्वयंवर रखा है, मैं वहां जाऊंगा, इसीलिए आप मेरे कपडे धो दीजिये। राजा की बात सुनकर रानी बोलीं- महाराज! इस दशा में भी आप वहाँ जाना चाहते हैं। इस पर राजा ने उत्तर दिया कि रानी, मेरी दशा ख़राब है परन्तु दिल तो राजाओं का ही है। राजा नल स्वयंवर में पहुंचे और राजकुमारी ने सभी राजाओं और राजकुमारों को छोड़कर राजा नल के गले में वरमाला डाल दिया। वहाँ मौजूद सभी लोग हैरान रह गए, तब विद्वानों की सलाह से राजकुमारी को १ बार फिर अपना वर चुनने को कहा गया। परन्तु इस बार फिर राजकुमारी ने राजा नल को ही अपना वर चुना। यह देख नगर के राजा क्रोधित होकर बोले- मैं इस माली से अपनी पुत्री का विवाह नहीं करूंगा। तब सभी ने विचार विमर्श कर १ प्रतियोगिता रखी, जिसमें सभी राजाओं और राजकुमारों को शिकार करना होगा और जिसका शिकार सबसे अच्छा होगा, उसका विवाह राजकुमारी से हो जायेगा।
सभी राजा और राजकुमार प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए तैयार हो गए। राजा नल को बूढ़ा घोड़ा और जंग लगी तलवार दी गई। उन्होंने घोड़े को १ थपकी मारी और कहा कि अगर मैं असली राजपूत हूँ तो धारदार तलवार हो जाये और जवान घोडा हो जाये और ऐसा ही हुआ। कुछ समय पश्चात् सारे राजा और राजकुमार अपने-अपने शिकार के साथ राजमहल पहुंचे। किसी के भी शिकार से नगर के राजा संतुष्ट नहीं हुए और सिपाहियों को उस माली को ढूँढ़के लाने को कहा। राजा की आज्ञा से सिपाही जंगल में पहुंचे तो देखा की राजा नल पेड़ के नीचे सो रहे थे, शिकारियों ने उन्हें जगाकर शिकार के बारे में पूछा। राजा नल ने शिकारियों को उत्तर दिया- मेरा शिकार (शेर की खाल) पेड़ पर टंगा है, ले जाओ।
शिकार देखकर नगर के राजा खुश हो गए और बोले- ये है असल राजपूत का शिकार। फिर नगर के राजा ने ख़ुशी-ख़ुशी अपनी पुत्री का विवाह माली (राजा नल) के साथ कर दिया। राजा नल अपनी नई रानी को लेकर बाग़ में आ गए, रानी दमयंती ने छोटी रानी का स्वागत किया।
एक दिन जब दोनों रानी बाग़ में बैठी हुईं थीं, तो रानी दमयंती छोटी रानी से बोलीं- रानी आज तो अपने नगर में बिजली चमक रही है। रानी दमयंती की बात सुनकर छोटी रानी आश्चर्य से बोलीं- दीदी, अपना नगर भी है? रानी दमयंती ने उत्तर स्वरूप छोटी रानी को सारा हाल कह सुनाया। छोटी रानी ने अपने पिता के पास जाकर सारी बात बताई। नगर के राजा ने यह वृत्तांत सुनकर राजा नल से क्षमा मांगी और बहुत से हीरे, जवाहरात, और घोड़े इत्यादि देकर उनको अपने नगर के लिए रवाना किया।
चलते-चलते रास्ते में नदी के किनारे उनको १ धोबन मिली, जिसके पास राजा नल का पोता था। धोबन ने राजा रानी को पोता सौंपते हुए कहा कि, ये मुझे नदी के किनारे मिला था। राजा ने ख़ुश होकर धोबन को बहुत से हीरे जवाहरात दिए और पोते को लेकर वहाँ से चले गए।
कुछ दूर आगे चले तो राजा की बहन का गाँव आया, राजा ने बहन तक अपने आने की खबर पहुंचाई। बहन ने दूत से पूछा कि, वे लोग कैसे आ रहे हैं, तो दूत बोला- इस बार बहुत से हीरे जवाहरात लेकर धन धान्य के साथ आ रहे हैं। इस पर बहन बोली कि उन्हें मेरे महल में ले लाओ। जब रानी दमयंती को ये ख़बर मिली तो वो बहन से बोलीं- नहीं बाई जी, हम तो उसी पीपल के पेड़ के नीचे ही रुकेंगे। कुछ देर बाद बहन बहुत से पकवान और मिष्ठान आदि बनाकर ले आई। यह देखकर रानी दमयंती ने आगे बढ़कर ज़मीन पर जो चावल और मूंग गड़ाए थे, वो निकाल लिए, उन्होंने देखा कि वो हीरे मोती में बदल चुके हैं। रानी दमयंती ने सारे हीरे जवाहरात अपनी ननद को दे दिये और बोलीं, ये लो बाईजी आपकी अमानत, और बहन को हीरे जवाहरात देकर वहाँ से चले गए।
कुछ दूर चलने पर राजा के मित्र सेठ का गाँव आया। सेठ को जब इसकी सूचना मिली तो सेठ ने दूत से पूछा कि, वे लोग कैसे आ रहे हैं। दूत बोला- इस बार बहुत से हीरे जवाहरात और धन धान्य के साथ आ रहे हैं। दूत की बात सुनकर सेठ बोला कि, उन्हें हवेली में ले आओ। राजा नल को इसकी खबर मिली तो बोले हम तो बाहर वाले कमरे में ही रुकेंगे। सेठानी फ़ौरन उनके लिए हलवा बनाकर ले आई। रानी दमयंती ने हलवा उठाकर मोर की तस्वीर के मुँह में डाल दिया और मोर ने सेठानी का नौलक्खा हार वापस बाहर फेंक दिया। रानी दमयंती ने सेठानी को हार देते हुए कहा कि हमारी दशा ख़राब थी, परन्तु नीयत ख़राब नहीं थी। ऐसा कहकर राजा-रानी, छोटी रानी और पोते के साथ वहाँ से चले गए।
रास्ते में उन्होंने भील राजा के पास से अपने पुत्रों को लिया और अपने नगर की ओर आगे बढ़ने लगे। जब नगरवासियों ने राजा नल को अपने परिवार सहित नगर में प्रवेश करते देखा तो बहुत खुश हुए, और गाजे बाजे और ढोल नगाड़ों के साथ उनका स्वागत किया। राजा रानी अपने पूरे परिवार के साथ पहले की तरह रहने लगे और सुखी जीवन व्यतीत करने लगे।
जैसे दशा माता ने राजा नल और रानी दमयंती की बुरी दशा को अच्छी दशा में बदल दिया, वैसे ही इस दशा माता की कहानी पढ़ने और सुनने वाले हर व्यक्ति पर माँ अपनी कृपा बनाये रखें।