महाराजा अग्रसेन की आरती – Maharaja Agrasen Ki Aarti
महाराजा अग्रसेन की आरती (Maharaja Agrasen Ki Aarti) आपके समक्ष प्रस्तुत करते हुए हमें अत्यन्त हर्ष का अनुभव हो रहा है। वे अग्रोहा के महान शासक थे और उनका यह शासन इतिहास में स्वर्णाक्षरों से दर्ज है। उनका काल राम-राज्य की ही तरह संपन्नता का काल था। कुछ लोग महाराजा अग्रसेन को प्रथम समाजवादी शासक भी कहते हैं। महाराजा अग्रसेन की आरती उन्हीं महान सम्राट को समर्पित है। 108 वर्षों तक राज्य करने वाले महाराज अग्रसेन जीवन-मूल्यों के संरक्षक व संवर्धक थे। उनका यश अमित है और आज भी उन्हें याद किया जाता है। पढ़ें महाराजा अग्रसेन की आरती–
जय श्री अग्र हरे, स्वामी जय श्री अग्र हरे।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें ॥
जय श्री
आश्विन शुक्ल एकं, नृप वल्लभ जय।
अग्र वंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे॥
जय श्री
केसरिया थ्वज फहरे, छात्र चवंर धारे।
झांझ, नफीरी नौबत बाजत तब द्वारे ॥
जय श्री!
अग्रोहा राजधानी, इंद्र शरण आये।
गोत्र अट्ठारह अनुपम, चारण गुंड गाये॥
जय श्री
सत्य, अहिंसा पालक, न्याय, नीति, समता।
ईंट, रूपए की रीति, प्रकट करे ममता॥
जय श्री
ब्रहम्मा, विष्णु, शंकर, वर सिंहनी दीन्हा।
कुल देवी महामाया, वैश्य करम कीन्हा॥
जय श्री
अग्रसेन जी की आरती, जो कोई नर गाये।
कहत त्रिलोक विनय से सुख संम्पति पाए॥
जय श्री
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर महाराजा अग्रसेन की आरती (Maharaja Agrasen Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें महाराजा अग्रसेन की आरती रोमन में–
Maharaja Agrasen Ki Aarti
jaya śrī agra hare, svāmī jaya śrī agra hare।
koṭi koṭi nata mastaka, sādara namana kareṃ ॥
jaya śrī
āśvina śukla ekaṃ, nṛpa vallabha jaya।
agra vaṃśa saṃsthāpaka, nāgavaṃśa byāhe॥
jaya śrī
kesariyā thvaja phahare, chātra cavaṃra dhāre।
jhāṃjha, naphīrī naubata bājata taba dvāre ॥
jaya śrī!
agrohā rājadhānī, iṃdra śaraṇa āye।
gotra aṭṭhāraha anupama, cāraṇa guṃḍa gāye॥
jaya śrī
satya, ahiṃsā pālaka, nyāya, nīti, samatā।
īṃṭa, rūpae kī rīti, prakaṭa kare mamatā॥
jaya śrī
brahammā, viṣṇu, śaṃkara, vara siṃhanī dīnhā।
kula devī mahāmāyā, vaiśya karama kīnhā॥
jaya śrī
agrasena jī kī āratī, jo koī nara gāye।
kahata triloka vinaya se sukha saṃmpati pāe॥
jaya śrī