मेरा देश महान निबंध हिंदी में
“मेरा देश महान” निबंध हिंदी में आपके सामने प्रस्तुत है। इसमें लेखक ने देश के लिए जीने और बलिदान देने की बात कही है। यह ऋषि-मुनियों का देश है। यह महापुरुषों का देश है। यहाँ के कण-कण में पावित्र्य का वास है। यह निबंध उसी की ओर ध्यान आकर्षित करता है। पढ़ें “मेरा देश महान” निबंध हिंदी में–
प्राण जीवन की पहचान
मेरा देश महान है। यह देश मेरे प्राणों में बसता है। प्राण जीवन की पहचान है, इसलिए प्राण-रक्षार्थ प्राणी अपनी सामर्थ्यानुसार सब उपाय और प्रबन्ध करता है। सम्पूर्ण जीवन ‘प्रिय प्राणों’ की सेवा में अर्पित कर देता है। अथर्ववेद भी प्राण को प्रणाम करते हुए कहता है, ‘प्राणाय नमो यस्य सर्वमिदं वशे’ अर्थात् जिसके अधीन यह सब कुछ है, उस प्राण को प्रणाम है।
पुत्र रूप जन और माता रूप भूमि के मिलन से ही देश की सृष्टि होती है। इसमें जब अपनत्व का अमृत घुलता है तो देश अपना और हमारा बन जाता है। हमारा देश अर्थात् हमारी मातृभूमि, पितृभूमि तथा पुण्यभूमि। जिस भूमि में माता का मातृत्व, पिता का पितृत्व और पुण्य की पुनीतता का प्रसाद हो, वह वन्दनीय है।
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देश जीवन से भी प्रिय
जो श्रेष्ठ, सुन्दर अथवा आकर्षक होने के कारण प्रेमपूर्ण भाव का अधिकारी हो, वह प्यारा है। जिसके प्रति बहुत अधिक प्रेम, मोह या स्नेह हो, वह प्यारा है। प्यार प्राणों की प्रतिमूर्ति है, पुण्यलता की प्रत्यात्मा है और नेत्रों के लिए देवता।
जब देश पर आक्रमण होता है, तब देश-भक्त वीरों के लिए जीवन का मूल्य समाप्त हो जाता है। विजेता जब देश में लूट-मार करता है, तब जीवन-शक्ति जवाब दे देती है और रही सुख-समृद्धि की बात–“पराधीन सपनेहि सुख नाहिं।” पराधीनता में उस प्रिय जीवन का विसर्जन भी स्वेच्छा से असम्भव है। रामायण महाकाव्य के सुन्दरकाण्ड में महर्षि वाल्मीकि लिखते हैं, ‘न शक्यं यत् परित्यकतु मात्मच्छेन्देन जीवितम्।’ तब इस जीवन का मोह कैसा? देश की तुलना में अधिक प्यार कैसे?
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देश पर बलिदान होने वालों का सम्मान
देश पर प्राण न्यौछावर करने वालों का सम्मान ‘शहीद’ या ‘ हुतात्मा’ कहकर किया जाता है। देश उसकी मृत्यु पर गर्व करता है। उसकी चिता पर हर वर्ष मेले लगाता है। पुण्य- तिथि मनाकर उसको स्मरण किया जाता है। प्रतिमा लगाकर, सड़कों, कॉलोनियों, नगरों, शहरों तथा विभिन्न संस्थाओं के साथ उनका नाम जोड़कर उनकी कीर्ति सुरक्षित रखी जाती है। इतिहास उन्हें अमरता प्रदान करता है। इसलिए सोहनलाल ट्विवेदी कहते हैं–“हों जहाँ बलि शीश अगणित, एक सिर मेरा मिला लो।” और माखनलाल चतुर्वेदी पुष्प के माध्यम से अपनी अभिलाषा प्रकट करते हुए कहते हैं–
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ में देना तुम फेंक।
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जावें वीर अनेक॥
हमारा देश हमें प्राणों से प्रिय क्यों न हो? हमने इसकी गोद में जन्म लिया है। इसकी धूल में लोट-पोट कर बड़े हुए और ‘धूल भरे हीरे’ कहलाए। इसने जीवन के सभी इहलौकिक सुख प्रदान किए तथा अन्त में इसने अपने ही तत्त्वों में विलीन कर आत्म-रूप बना लिया। इस प्रकार जगत् में जन्म लेने, क्रीडा-कर्म, पालन और उपसंहार तक का सम्पूर्ण श्रेय देश को है। इसलिए मेरा देश महान है।
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सच्चाई भी यह है कि संस्कृति की महत्ता, सभ्यता की श्रेष्ठता, कला की उत्कृष्टता, जीवन मूल्यों की उत्तमता तथा प्रकृति का वरदान हमारे देश को ही प्राप्त है। इसीलिए प्रसाद जी गाते हैं–“अरुण यह मधुमय देश हमारा।” कहा भी गया है, “सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा।” पंत के कंठ से फूटा, “ज्योति भूमि, जय भारत देश।” तो निराला का स्वर गूँजा–
भारती, जय विजय करे।
स्वर्ण-शस्य कमल धरे॥
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मेरा भारत देश महान
देश के सम्मुख जीवन को हेय समझने वाले देश-भक्तों की शृंखला अनन्त है। इसका आदि है, अन्त नहीं। महाराणा प्रताप ने दर-दर की ठोकरें खाईं तो बन्दा वैरागी ने गर्म लोहे की सलाखों से सीना छलनी करवा लिया। मतिराम ने अपना मस्तक आरे से चिरवा लिया। गुरु गोविन्द सिंह ने अपने चारों बच्चे बलि चढ़ा दिए। झाँसी की रानी, तात्याटोपे, नाना साहब ने रक्त की होली खेली। सुभाषचन्द्र बोस, मदनलाल ढींगरा विदेशों में शहीद हुए। भगतसिंह, सुखदेव, बिस्मिल आदि नौजवान फाँसी के तख्ते पर झूल गए। स्वातन्त्र्य वीर विनायक दामोदर सावरकर ने दो जन्म का कारावास एक ही जन्म में काटा। लाला लाजपतराय साइमन कमीशन की बलि चढ़े। लाखों की तरुणाई जेल की अंधेरी कोठरियों में प्रज्ज्जलित हुई। लाखों भारतीय अंग्रेजों की संगीनों के सामने छाती पर गोली खाकर अमर हुए। इतना ही नहीं, आपात-काल के अन्धेरे को सैकड़ों ने अपने प्राणों की ज्योति से ज्योतित किया। उनके मन में एक ही तड़पन थी–
तेरा वैभव अमर रहे माँ,
हम दिन चार रहें न रहें।
हमारा देश हमारी जन्म-स्थली और क्रीडा-स्थली है। हमारे जीवन का पालनहार है। प्राणों की पहचान है। जीवन का संस्कारक है। हमारे प्राणों का आत्म-रूप पुंज है। इसलिए देश के सम्मुख सब कुछ गौण है। मेरा देश महान है। हमारे प्राणों की सार्थकता देश-प्रेम में है।
प्राण क्या है देश के हित के लिए।
देश खोकर जो जिए तो क्या जिए॥ – कामताप्रसाद गुप्त
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bharat mata ki jai. vey nice .