धर्म

प्रदोष व्रत की विधि


प्रदोष व्रत की विधि (Pradosh Vrat Vidhi) जानना बहुत आवश्यक है। बिना सही रीति के किया गया प्रदोष व्रत वह फल नहीं देता, जिसकी अपेक्षा होती है। अतः यह अनिवार्य है कि इसके विधि-विधान को पूरी तरह समझकर फिर ही त्रयोदशी व्रत किया जाए। आइए, देखते हैं क्या है प्रदोष व्रत की विधि–

  1. ‘प्रदोषो रजनी-मुखम्’ के अनुसार सायंकाल के बाद और रात्रि आने के पूर्व दोनों के बीच का जो समय है उसे प्रदोष कहते हैं, प्रदोष व्रत की विधि के अनुसार उपवास करने वाले को उसी समय भगवान शंकर का पूजन करना चाहिये।
  2. प्रदोष व्रत करने वाले को त्रयोदशी के दिन दिनभर भोजन नहीं करना चाहिये। शाम के समय जब सूर्यास्त में तीन घड़ी का समय शेष रह जाए, तब स्नानादि कर्मों से निवृत्त होकर श्वेत वस्त्र धारण कर तत्पश्चात् संध्यावन्दन करने के बाद शिवजी का पूजन प्रारम्भ करें।
  3. पूजा के स्थान को स्वच्छ जल से धोकर वहाँ मण्डप बनाएँ, वहाँ पाँच रंगों के पुष्पों से पद्म पुष्प की आकृति बनाकर कुश का आसन बिछायें, आसन पर पूर्वाभिमुख बैठें। इसके बाद भगवान महेश्वर का ध्यान करें।

भिन्न-भिन्न वारों के अनुसार प्रदोष व्रत कथा पढ़ने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – प्रदोष व्रत कथा

ध्यान का स्वरूप

करोड़ों चन्द्रमा के समान कान्तिवान, त्रिनेत्रधारी, मस्तक पर चन्द्रमा का आभूषण धारण करने वाले पिंगलवर्ण के जटाजूटधारी, नीले कण्ठ तथा अनेक रूद्राक्ष मालाओं से सुशोभित, वरदहस्त, त्रिशूलधारी, नागों के कुण्डल पहने, व्याघ्र-चर्म धारण किए हुए, रत्नजड़ित सिंहासन पर विराजमान शिवजी का ध्यान करना चाहिये।

व्रत के उद्यापन की विधि

प्रातः स्नानादि कार्य से निवृत्त होकर रंगीन वस्त्रों से मण्डप बनावें। फिर उस मण्डप में शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित करके विधिवत पूजन करें।

तदन्तर शिव पार्वती के उद्देश्य से खीर से अग्नि में हवन करना चाहिए। हवन करते समय “ॐ उमा सहित शिवाय नमः” मन्त्र से 108 बार आहुति देनी चाहिये। इसी प्रकार “ॐ नमः शिवाय” के उच्चारण से शंकर जी के निमित्त आहुति प्रदान करें।

हवन के अन्त में किसी धार्मिक व्यक्ति को सामर्थ्य के अनुसार दान देना चाहिये। ऐसा करने के बाद ब्राह्मण को भोजन दक्षिणा से सन्तुष्ट करना चाहिये। व्रत पूर्ण हो ऐसा वाक्य ब्राह्मणों द्वारा कहलवाना चाहिये। ब्राह्मणों की आज्ञा पाकर अपने बन्धुबान्धवों की साथ में लेकर मन में भगवान शंकर का स्मरण करते हुए व्रती को भोजन करना चाहिये।

इस प्रकार उद्यापन करने से व्रती पुत्र-पौत्रादि से युक्त होता है तथा आरोग्य लाभ करता है। इसके अतिरिक्त वह अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है एवं सम्पूर्ण पापों से मुक्त हो जाता है। ऐसा स्कन्द पुराण के अन्तर्गत प्रदोष व्रत की विधि में कहा गया है।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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