धर्म

हित चौरासी – Shri Hit Chaurasi

हित चौरासी (Hit Chaurasi) में 84 पद हैं। इन पदों में, हित हरिवंश महाप्रभु भगवान कृष्ण और राधा के प्रेम को विभिन्न दृष्टिकोणों से व्यक्त करते हैं। वे कृष्ण के रूप, गुण, और लीलाओं का वर्णन करते हैं, और राधा के प्रेम और भक्ति का भी वर्णन करते हैं। हित चौरासी का पाठ आमतौर पर भक्ति संगीत के साथ किया जाता है। यह ग्रंथ भक्तों को भगवान कृष्ण के प्रेम में डूबने और उनके आनंद का अनुभव करने में मदद करता है।

जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे, भावे मोहि जोई सोई सोई करे प्यारे
मोको तो भावती ठौर प्यारे के नैनन में, प्यारो भयो चाहे मेरे नैनन के तारे
मेरे तन मन प्राण हु ते प्रीतम प्रिय, अपने कोटिक प्राण प्रीतम मोसो हारे
जय श्रीहित हरिवंश हंस हंसिनी सांवल गौर, कहो कौन करे जल तरंगिनी न्यारे॥1॥

प्यारे बोली भामिनी, आजु नीकी जामिनी भेंटि नवीन मेघ सौं दामिनी ।
मोहन रसिक राइ री माई तासौं जु मान करै, ऐसी कौन कामिनी ।
(जैे श्री) हित हरिवंश श्रवन सुनत प्यारी राधिका, रमन सौं मिली गज गामिनी ॥2॥

प्रात समै दोऊ रस लंपट, सुरत जुद्ध जय जुत अति फूल।
श्रम-वारिज घन बिंदु वदन पर, भूषण अंगहिं अंग विकूल।
कछु रह्यौ तिलक सिथिल अलकावालि, वदन कमल मानौं अलि भूल।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन रँग रँगि रहे, नैंन बैंन कटि सिथिल दुकुल ॥3॥

आजु तौ जुवती तेरौ वदन आनंद भरयौ, पिय के संगम के सूचत सुख चैन।
आलस बलित बोल, सुरंग रँगे कपोल, विथकित अरुन उनींदे दोउ नैंन॥
रुचिर तिलक लेस, किरत कुसुम केस;सिर सीमंत भूषित मानौं तैं न।
करुना करि उदार राखत कछु न सार;दसन वसन लागत जब दैन॥
काहे कौं दुरत भीरु पलटे प्रीतम चीरु, बस किये स्याम सिखै सत मैंन।
गलित उरसि माल, सिथिल किंकनी जाल, (जै श्री) हित हरिवंश लता गृह सैंन ॥4॥

आजु प्रभात लता मंदिर में, सुख वरषत अति हरषि जुगल वर।
गौर स्याम अभिराम रंग भरे, लटकि लटकि पग धरत अवनि पर ।
कुच कुमकुम रंजित मालावलि, सुरत नाथ श्रीस्याम धाम धर ।
प्रिया प्रेम के अंक अलंकृत, विचित्र चतुर सिरोमनि निजु कर ।
दंपति अति मुदित कल, गान करत मन हरत परस्पर।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रंससि परायन, गायन अलि सुर देत मधुर तर ॥5॥

कौन चतुर जुवती प्रिया, जाहि मिलन लाल चोर है रैंन ।
दुरवत क्योंअब दूरै सुनि प्यारे, रंग में गहले चैन में नैन ॥
उर नख चंद विराने पट, अटपटाे से बैन ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधापति प्रमथीत मैंन ॥6॥

आजु निकुंज मंजु में खेलत, नवल किसोर नवीन किसोरी ।
अति अनुपम अनुराग परसपर, सुनि अभूत भूतल पर जोरी ॥
विद्रुम फटिक विविध निर्मित धर, नव कर्पूर पराग न थोरी ।
कौंमल किसलय सैंन सुपेसल, तापर स्याम निवेसित गोरी ॥
मिथुन हास परिहास परायन, पीक कपोल कमल पर झोरी ।
गौर स्याम भुज कलह मनोहर, नीवी बंधन मोचत डोरी ॥
हरि उर मुकुर बिलोकि अपनपी, विभ्रम विकल मान जुत भोरी ।
चिबुक सुचारु प्रलोइ प्रवोधत, पिय प्रतिबिंब जनाइ निहोरी ॥
‘नेति नेति’ बचनामृत सुनि सुनि, ललितादिक देखतिं दुरि चोरी ।
(जै श्री) हित हरिवंश करत कर धूनन, प्रनय कोप मालावलि तोरी ॥7॥

अति ही अरुन तेरे नयन नलिन री ।
आलस जुत इतरात रंगमगे, भये निशि जागर मषिन मलिन री ॥
सिथिल पलक में उठति गोलक गति, बिंध्यौ मोंहन मृग सकत चलि न री ।
(जै श्री)हित हरिवंश हंस कल गामिनि,संभ्रम देत भ्रमरनि अलिन री ॥8॥
बनी श्रीराधा मोहन की जोरी ।

इंद्र नील मनि स्याम मनोहर, सात कुंभ तनु गोरी ॥
भाल बिसाल तिलक हरि, कामिनी चिकुर चन्द्र बिच रोरी ।
गज नाइक प्रभु चाल, गयंदनी – गति बृषभानु किसोरी ॥
नील निचोल जुवती, मोहन पट – पीत अरुन सिर खोरी
(जै श्री ) हित हरिवंश रसिक राधा पति, सूरत रंग में बोरी ॥9॥

आजु नागरी किसोर, भाँवती विचित्र जोर,
कहा कहौं अंग अंग परम माधुरी ।
करत केलि कंठ मेलि बाहु दंड गंड – गंड,
परस, सरस रास लास मंडली जुरी ॥
स्याम – सुंदरी विहार, बाँसुरी मृदंग तार,
मधुर घोष नूपुरादि किंकिनी चुरी ।
(जै श्री)देखत हरिवंश आलि, निर्तनी सुघंग चलि,
वारी फेरी देत प्राँन देह सौं दुरी॥10॥

मंजुल कल कुंज देस, राधा हरि विसद वेस, राका नभ कुमुद – बंधु, सरद जामिनी ।
सांँवल दुति कनक अंग, विहरत मिलि एक संग ;नीरद मनी नील मध्य, लसत दामिनी ॥
अरुन पीत नव दुकुल, अनुपम अनुराग मूल ; सौरभ जुत सीत अनिल, मंद गामिनी ।
किसलय दल रचित सैन, बोलत पिय चाटु बैंन ; मान सहित प्रति पद, प्रतिकूल कामिनी ॥
मोहन मन मथत मार, परसत कुच नीवी हार ; येपथ जुत नेति – नेति, बदति भामिनी ।
“नरवाहन” प्रभु सुकेलि, वहु विधि भर, भरत झेलि, सौरत रस रूप नदी जगत पावनी ॥11॥

चलहि राधिके सुजान, तेरे हित सुख निधान ; रास रच्यौ स्याम तट कलिंद नंदिनी ।
निर्तत जुवती समूह, राग रंग अति कुतूह ; बाजत रस मूल मुरलिका अनन्दिनी ॥
बंसीवट निकट जहाँ, परम रमनि भूमि तहाँ ; सकल सुखद मलय बहै वायु मंदिनी ।
जाती ईषद बिकास, कानन अतिसै सुवास ; राका निसि सरद मास, विमल चंदिनि ॥
नरवाहन प्रभु निहारी, लोचन भरि घोष नारि, नख सिख सौंदर्य काम दुख निकंदिनी ।
विलसहि भुज ग्रीव मेलि भामिनि सुख सिंधु झेलि ; नव निकुंज स्याम केलि जगत बंदिनी॥12॥

नंद के लाल हरयौं मन मोर। हौं अपने मोतिनु लर पोवति, काँकरी डारि गयो सखि भोर ॥
बंक बिलोकनि चाल छबीली, रसिक सिरोमनि नंद किसोर ।
कहि कैसें मन रहत श्रवन सुनि, सरस मधुर मुरली की घोर ॥
इंदु गोबिंद वदन के कारन, चितवन कौं भये नैंन चकोर।
(जै श्री )हित हरिवंश रसिक रस जुवती तू लै मिलि सखि प्राण अँकोर ॥13॥

अधर अरुन तेरे कैसे कैं दुराऊँ ?
रवि ससि संक भजन किये अपबस, अदभुत रंगनि कुसुम बनाऊँ॥
सुभ कौसेय कसिव कौस्तुभ मनि, पंकज सुतनि लेे अंगनि लुपाऊँ।
हरषित इंदु तजत जैसे जलधर, सो भ्रम ढूँढि कहाँ हों पाऊँ॥
अंबु न दंभ कछू नहीं व्यापत, हिमकर तपे ताहि कैसे कैं बुझाऊँ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक नवरँग पिय भृकुटि भौंह तेरे खंजन लराऊँ॥14॥

अपनी बात मोसौं कहि री भामिनी,औंगी मौंगी रहति गरब की माती।
हों तोसों कहत हारी सुनी री राधिका प्यारी निसि कौ रंग क्यों न कहति लजाती॥
गलित कुसुम बैंनी सुनी री सारँग नैंनी, छूटी लट, अचरा वदति, अरसाती।
अधर निरंग रँग रच्यौ री कपोलनि, जुवति चलति गज गति अरुझाती॥
रहसि रमी छबीले रसन बसन ढीले, सिथिल कसनि कंचुकी उर राती॥
सखी सौं सुनी श्रावन बचन मुदित मन, चलि हरिवंश भवन मुसिकाती॥15॥

आज मेरे कहैं चलौ मृगनैंनी।
गावत सरस जुबति मंडल में, पिय सौं मिलैं पिक बैंनी॥
परम प्रवीन कोक विद्या में, अभिनय निपुन लाग गति लैंनी।
रूप रासि सुनी नवल किसोरी, पलु पलु घटति चाँदनी रैंनी॥
(जै श्री ) हित हरिवंश चली अति आतुर, राधा रमण सुरत सुख दैंनी।
रहसि रभसि आलिंगन चुंबन, मदन कोटि कुल भई कुचैंनी ।16॥

आजु देखि व्रज सुन्दरी मोहन बनी केलि।
अंस अंस बाहु दै किसोर जोर रूप रासि, मनौं तमाल अरुझि रही सरस कनक बेलि॥
नव निकुंज भ्रमर गुंज, मंजु घोष प्रेम पुंज, गान करत मोर पिकनि अपने सुर सौं मेलि।
मदन मुदित अंग अंग, बीच बीच सुरत रंग, पलु पलु हरिवंश पिवत नैंन चषक झेलि॥17॥
सुनि मेरो वचन छबीली राधा। तैं पायौ रस सिंधु अगाधा॥
तूँ वृषवानु गोप की बेटी। मोहनलाल रसिक हँसि भेंटी॥
जाहि विरंचि उमापति नाये। तापै तैं वन फूल बिनाये॥
जौ रस नेति नेति श्रुति भाख्यौ। ताकौ तैं अधर सुधा रस चाख्यौ॥
तेरो रूप कहत नहिं आवै। (जै श्री) हित हरिवंश कछुक जस गावै ॥18॥

खेलत रास रसिक ब्रजमंडन। जुवतिन अंस दियें भुज दंडन॥
सरद विमल नभ चंद विराजै। मधुर मधुर मुरली कल बाजै॥
अति राजत घन स्याम तमाला। कंचन वेलि बनीं ब्रज बाला॥
बाजत ताल मृदंग उपंगा। गान मथत मन कोटि अनंगा॥
भूषन बहुत विविध रँग सारी। अंग सुघंग दिखावतिं नारी॥
बरषत कुसुम मुदित सुर जोषा। सुनियत दिवि दुंदुभि कल घोषा॥
(जै श्री) हित हरिवंश मगन मन स्यामा। राधा रमन सकल सुख धामा॥ 19॥

मोहनलाल के रस माती। बधू गुपति गोवति कत मोसौं, प्रथम नेह सकुचाती॥
देखी सँभार पीत पट ऊपर कहाँ चूनरी राती।
टूटी लर लटकति मोतिनु की नख विधु अंकित छाती॥
अधर बिंब खंडित, मषि मंडित गंड, चलति अरुझाती।
अरुन नैंन घुँमत आलस जुत कुसुम गलित लट पाती॥
आजु रहसि मोंहन सब लूटी विविध, आपनी थाती।
(जै श्री) हित हरिवंश वचन सुनी भामिनि भवन चली मुसकाती॥20॥

तेरे नैंन करत दोउ चारी।
अति कुलकात समात नहीं कहुँ मिले हैं कुंज विहारी॥
विथुरी माँग कुसुम गिरि गिरि परैं, लटकि रही लट न्यारी।
उर नख रेख प्रकट देखियत हैं, कहा दुरावति प्यारी॥
परी है पीक सुभग गंडनि पर, अधर निरँग सुकुमारी।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिकनी भामिनि, आलस अँग अँग भारी॥21॥

नैंननिं पर वारौं कोटिक खंजन।
चंचल चपल अरुन अनियारे, अग्र भाग बन्यौ अंजन॥
रुचिर मनोहर बंक बिलोकनि, सुरत समर दल गंजन।
(जै श्री)हित हरिवंश कहत न बनै छबि, सुख समुद्र मन रंजन॥ 22॥

राधा प्यारी तेरे नैंन सलोल।
तौं निजु भजन कनक तन जोवन, लियौ मनोहर मोल॥
अधर निरंग अलक लट छूटी, रंजित पीक कपोल।
तूँ रस मगन भई नहिं जानत, ऊपर पीत निचोल॥
कुच जुग पर नख रेख प्रकट मानौं,संकर सिर ससि टोल।
(जै श्री) हित हरिवंश कहत कछू भामिनि, अति आलस सौं बोल॥ 23॥

आजु गोपाल रास रस खेलत, पुलिन कलपतरु तीर री सजनी।
सरद विमल नभ चंद विराजत, रोचक त्रिविध समीर री सजनी॥
चंपक बकुल मालती मुकुलित, मत्त मुदित पिक कीर री सजनी।
देसी सुघंग राग रँग नीकौ, ब्रज जुवतिनु की भीर री सजनी॥
मघवा मुदित निसान बजायौ, व्रत छाँड़यौ मुनि धीर री सजनी।

(जै श्री)हित हरिवंश मगन मन स्यामा, हरति मदन घन पीर री सजनी॥ 24॥
आजू निकी बनी श्री राधिका नागरी
ब्रज जुवति जूथ में रूप अरु चतुरई, सील सिंगार गुन सबनितें आगरी॥
कमल दक्षिण भुजा बाम भुज अंस सखि, गाँवती सरस मिलि मधुर सुर राग री।
सकल विद्या विदित रहसि ‘हरिवंश हित’, मिलत नव कुंज वर स्याम बड़ भाग री॥ 25॥

मोहनी मदन गोपाल की बाँसुरी।
माधुरी श्रवन पुट सुनत सुनु राधिके, करत रतिराज के ताप कौ नासुरी॥
सरद राका रजनी विपिन वृंदा सजनि, अनिल अति मंद सीतल सहित बासु री।
परम पावन पुलिन भृंग सेवत नलिन, कल्पतरु तीर बलवीर कृत रासु री॥
सकल मंडल भलीं तुम जु हरि सौं मिलीं, बनी वर वनित उपमा कहौं कासु री।
तुम जु कंचन तनी लाल मरकत मनी, उभय कल हंस ‘हरिवंश’ बलि दासुरी॥ 26॥

मधुरितु वृन्दावन आनन्द न थोर। राजत नागरि नव कुसल किशोर॥
जूथिका जुगल रूप मञ्जरी रसाल। विथकित अलि मधु माधवी गुलाल॥
चंपक बकुल कुल विविध सरोज। केतकि मेदनि मद मुदित मनोज॥
रोचक रुचिर बहै त्रिविध समीर। मुकुलित नूत नदित पिक कीर॥
पावन पुलिन घन मंजुल निकुंज। किसलय सैन रचित सुख पुंज॥
मंजीर मुरज डफ मुरली मृदंग। बाजत उपंग बीना वर मुख चंग॥
मृगमद मलयज कुंकुम अबीर। बंदन अगरसत सुरँगित चीर॥
गावत सुंदरी हरी सरस धमारि। पुलकित खग मृग बहत न वारि॥
(जै श्री) हित हरिवंश हंस हंसिनी समाज। ऐसे ही करौ मिलि जुग जुग राज॥ 27॥

राधे देखि वन की बात।
रितु बसंत अनंत मुकुलित कुसुम अरु फल पात॥
बैंनू धुनि नंदलाल बोली, सुनिव क्यौं अर सात।
करत कतव विलंब भामिनि वृथा औसर जात॥
लाल मरकत मनि छबीलौ तुम जु कंचन गात।
बनी (श्री) हित हरिवंश जोरी उभै गुन गन मात॥ 28॥

ब्रज नव तरुनी कदंब मुकुट मनि स्यामा आजु बनी।
नख सिख लौं अंग अंग माधुरी मोहे स्याम धनी॥
यौं राजत कबरी गुंथित कच कनक कंज वदनी।
चिकुर चंद्रिकनि बीच अरध बिधु मानौं ग्रसित फनी॥
सौभग रस सिर स्त्रवत पनारी पिय सीमंत ठनी।
भृकुटि काम कोदंड नैंन सर कज्जल रेख अनी॥
तरल तिलक तांटक गंड पर नासा जलज मनी।
दसन कुंद सरसाधर पल्लव प्रीतम मन समनी॥
चिबुक मध्य अति चारु सहज सखि साँवल बिंदु कनी।
प्रीतम प्रान रतन संपुट कुच कंचुकि कसिब तनी॥
भुज मृनाल वल हरत वलय जुत परस सरस श्रवनी।
स्याम सीस तरु मनौं मिडवारी रची रुचिर रवनी॥
नाभि गम्भीर मीन मोहन मन खेलत कौं हृदनी।
कृस कटि पृथु नितंब किंकिनि वृत कदलि खंभ जघनी॥
पद अंबुज जावक जुत भूषन प्रीतम उर अवनी।
नव नव भाइ विलोभि भाम इभ विहरत वर कारिनी॥
(जै श्री) हित हरिवंश प्रसंसिता स्यामा कीरति विसद घनी।
गावत श्रवननि सुनत सुखाकर विस्व दुरित दवनी॥ 29॥

देखत नव निकुंज सुनु सजनी लागत है अति चारु।
माधविका केतकी लता ले रच्यौ मदन आंगारु॥
सरद मास राका निसि सीतल मंद सुगंध समीर।
परिमल लुब्ध मधुव्रत विथकित नदित कोकिला कीर॥
वहु विध रङ्ग मृदुल किसलय दल निर्मित पिय सखि सेज।
भाजन कनक विविध मधु पूरित धरे धरनी पर हेज॥
तापर कुसल किसोर किसोरी करत हास परिहास।
प्रीतम पानि उरज वर परसत प्रिया दुरावति वास॥
कामिनि कुटिल भृकुटि अवलोकत दिन प्रतिपद प्रतिकूल।
आतुर अति अनुराग विवस हरि धाइ धरत भुज मूल॥
नगर नीवी बन्धन मोचत एंचत नील निचोल।
बधू कपट हठ कोपि कहत कल नेति नेति मधु बोल॥
परिरंभन विपरित रति वितरत सरस सुरत निजु केलि।
इंद्रनील मनिनय तरु मानौं लसन कनक की बेली॥
रति रन मिथुन ललाट पटल पर श्रम जल सीकर संग।
ललितादिक अंचल झकझोरति मन अनुराग अभंग॥
(जै श्री) हित हरिवंश जथामति बरनत कृष्ण रसामृत सार।
श्रवन सुनत प्रापक रति राधा पद अंबुज सुकुमार॥30॥

आजु अति राजत दम्पति भोर।
सुरत रंग के रस में भीनें नागरि नवल किशोर॥
अंसनि पर भुज दियें विलोकत इंदु वदन विवि ओर।
करत पान रस मत्त परसपर लोचन तृषित चकोर॥
छूटी लटनि लाल मन करष्यौ ये याके चित चोर।
परिरंभन चुंबन मिलि गावत सुर मंदर कल घोर॥
पग डगमगत चलत बन विहरन रुचिर कुंज घन खोर।
(जै श्री) हित हरिवंश लाल ललना मिलि हियौ सिरावत मोर॥31॥

आजु बन क्रीडत स्यामा स्याम॥
सुभग बनी निसि सरद चाँदनी, रुचिर कुंज अभिराम॥
खंडत अधर करत पारिरंभन, ऐचत जघन दुकूल।
उर नख पात तिरीछी चितवन, दंपति रस सम तूल॥
वे भुज पीन पयोधर परसत, वाम दृशा पिय हार।
वसननि पीक अलक आकरषत, समर श्रमित सत मार॥
पलु पलु प्रवल चौंप रस लंपट, अति सुंदर सुकुमार।
(जै श्री) हित हरिवंश आजु तृन टूटत हौं बलि विसद विहार॥32॥

आजु बन राजत जुगल किसोर।
नंद नँदन वृषभानु नंदिनी उठे उनीदें भोर॥
डगमगात पग परत सिथिल गति परसत नख ससि छोर।
दसन बसन खंडित मषि मंडित गंड तिलक कछु थोर॥
दुरत न कच करजनि के रोकें अरुन नैन अलि चोर।
(जै श्री) हित हरिवंश सँभार न तन मन सुरत समुद्र झकोर॥33॥

बन की कुंजनि कुंजनि डोलनि।
निकसत निपट साँकरी बीथिनु, परसत नाँहि निचोलनि॥
प्रात काल रजनी सब जागे, सूचत सुख दृग लोलनि।
आलसवंत अरुन अति व्याकुल, कछु उपजत गति गोलनि॥
निर्तनि भृकुटि वदन अंबुज मृदु, सरस हास मधु बोलनि।
अति आसक्त लाल अलि लंपट, बस कीने बिनु मोलनि॥
विलुलित सिथिल श्याम छूटी लट, राजत रुचिर कपोलनि।
रति विपरित चुंबन परिरंभन, चिबुक चारु टक टोलनि॥
कबहुँ श्रमित किसलय सिज्या पर, मुख अंचल झकझोलनि।
दिन हरिवंश दासि हिय सींचत, वारिधि केलि कलोलनि॥34॥

झूलत दोऊ नवल किसोर।
रजनी जनित रंग सुख सुचत अंग अंग उठि भोर॥
अति अनुराग भरे मिलि गावत सुर मंदर कल घोर।
बीच बीच प्रीतम चित चोरति प्रिया नैंन की कोर॥
अबला अति सुकुमारि डरत मन वर हिंडोर झँकोर।
पुलकि पुलकि प्रीतम उर लागति दे नव उरज अँकोर॥
अरुझी विमल माल कंकन सौं कुंडल सौं कच डोर।
वेपथ जुत क्यों बनै विवेचत आनँद बढ़यौ न थोर॥
निरखि निरखि फूलतीं ललितादिक विवि मुख चंद चकोर।
दे असीस हरिवंश प्रसंसत करि अंचल की छोर॥35॥

आजु बन नीकौ रास बनायौ।
पुलिन पवित्र सुभग जमुना तट मोहन बैंनु बजायौ॥
कल कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि खग मृग सचु पायौ।
जुवतिनु मंडल मध्य स्याम घन सारँग राग जमायौ॥
ताल मृदङ्ग उपंग मुरज डफ मिलि रससिंधु बढ़ायौ।
विविध विशद वृषभानु नंदिनी अंग सुघंग दिखायौ॥
अभिनय निपुन लटकि लट लोचन भृकुटि अनंग नचायौ।
ताता थेई ताथेई धरत नौतन गति पति ब्रजराज रिझायौ॥
सकल उदार नृपति चूड़ामनि सुख वारिद वरषायौ।
परिरंभन चुंबन आलिंगन उचित जुवति जन पायौ॥
वरसत कुसुम मुदित नभ नाइक इन्द्र निसान बजायौ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक राधा पति जस वितान जग छायौ॥ 36॥

चलहि किन मानिनि कुंज कुटीर।
तो बिनु कुँवरि कोटि बनिता जुत, मथत मदन की पीर॥
गदगद सुर विरहाकुल पुलकित, स्रवत विलोचन नीर।
क्वासि क्वासि वृषभानु नंदिनी, विलपत विपिन अधीर॥
बंसी विसिख, व्याल मालावलि, पंचानन पिक कीर।
मलयज गरल, हुतासन मारुत, साखा मृग रिपु चीर ॥
(जै श्री) हित हरिवंश परम कोमल चित, चपल चली पिय तीर।
सुनि भयभीत बज को पंजर, सुरत सूर रन वीर ॥37॥

चलहि उठि गहरु करति कत, निकुंज बुलावत लाल।
हा राधा राधिका पुकारत, निरखि मदन गज ढाल॥
करत सहाइ सरद ससि मारुत, फुटि मिली उर माल।
दुर्गम तकत समर अति कातर, करहि न पिय प्रतिपाल॥
(जै श्री) हित हरिवंश चली अति आतुर, श्रवन सुनत तेहि काल।
लै राखे गिरि कुच बिच सुंदर, सुरत – सूर ब्रज बाल॥ 38॥

खेल्यो लाल चाहत रवन।
रचि रचि अपने हाथ सँवारयौ निकुंज भवन॥
रजनी सरद मंद सौरभ सौं सीतल पवन।
तो बिनु कुँवरि काम की बेदन मेटब कवन॥
चलहि न चपल बाल मृगनैनी तजिब मवन।
(जै श्री) हित हरिवंश मिलब प्यारे की आरति दवन॥39॥

बैठे लाल निकुंज भवन।
रजनी रुचिर मल्लिका मुकुलित त्रिविध पवन॥
तूँ सखी काम केलि मन मोहन मदन दवन।
वृथा गहरु कत करति कृसोदरी कारन कवन॥
चपल चली तन की सुधि बिसरी सुनत श्रवन।
(जै श्री) हित हरिवंश मिले रस लंपट राधिका रवन॥40॥

प्रीति की रीति रंगिलोइ जानै।
जद्यपि सकल लोक चूड़ामनि दीन अपनपौ मानै॥
जमुना पुलिन निकुंज भवन में मान मानिनी ठानै।
निकट नवीन कोटि कामिनि कुल धीरज मनहिं न आनै॥
नस्वर नेह चपल मधुकर ज्यों आँन आँन सौं बानै।
(जै श्री) हित हरिवंश चतुर सोई लालहिं छाड़ि मैंड पहिचानै॥41॥

प्रीति न काहु की कानि बिचारै।
मारग अपमारग विथकित मन को अनुसरत निवारै॥
ज्यौं सरिता साँवन जल उमगत सनमुख सिंधु सिधारै।
ज्यौं नादहि मन दियें कुरंगनि प्रगट पारधी मारै॥
(जै श्री) हित हरिवंश हिलग सारँग ज्यौं सलभ सरीरहि जारै।
नाइक निपून नवल मोहन बिनु कौन अपनपौ हारै॥42॥

अति नागरि वृषभानु किसोरी।
सुनि दूतिका चपल मृगनैनी, आकरषत चितवन चित गोरी॥
श्रीफल उरज कंचन सी देही, कटि केहरि गुन सिंधु झकोरी।
बैंनी भुजंग चन्द्र सत वदनी, कदलि जंघ जलचर गति चोरी॥
सुनि ‘हरिवंश’ आजु रजनी मुख, बन मिलाइ मेरी निज जोरी।
जद्यपि मान समेत भामिनी, सुनि कत रहत भली जिय भोरी॥43॥

चलि सुंदरि बोली वृंदावन।
कामिनि कंठ लागि किन राजहि, तूँ दामिनि मोहन नौतन घन॥
कंचुकी सुरंग विविध रँग सारी, नख जुग ऊन बने तरे तन॥
ये सब उचित नवल मोहन कौं, श्रीफल कुच जोवन आगम धन॥
अतिसै प्रीति हुती अंतरगत, (जैश्री) हित हरिवंश चली मुकुलित मन।
निविड़ निकुंज मिले रस सागर, जीते सत रति राज सुरत रन॥44॥

आवति श्रीवृषभानु दुलारी।
रूप रासि अति चतुर सिरोमनि अंग अंग सुकुमारी॥
प्रथम उबटि मज्जन करि सज्जित नील बरन तन सारी।
गुंथित अलक तिलक कृत सुंदर सैंदूर माँग सँवारी॥
मृगज समान नैंन अंजन जुत रुचिर रेख अनुसारी।
जटित लवंग ललित नासा पर दसनावलि कृत कारी॥
श्रीफल उरज कँसूभी कंचुकि कसि ऊपर हार छबि न्यारी।
कृस कटि उदर गँभीर नाभि पुट जघन नितंबनि भारी॥
मनौं मृनाल भूषन भूषित भुज स्याम अंस पर डारी।
(जै श्री) हित हरिवंश जुगल करिनी गज विहरत वन पिय प्यारी॥45॥

विपिन घन कुंज रति केलि भुज मेलि रूचि,
स्याम स्यामा मिले सरद की जमिनी।
हृदै अति फूल समतूल पिय नागरी,
करिनि करि मत्त मनौं विवध गुन रामिनी॥
सरस गति हास परिहास आवेस बस,
दलित दल मदन बल कोक रस कामिनी।
(जै श्री) हित हरिवंश सुनि लाल लावन्य भिदे,
प्रिया अति सूर सुख सुरत संग्रामिनी॥46॥

वन की लीला लालहिं भावै।
पत्र प्रसून बीच प्रतिबिंबहिं नख सिख प्रिया जनावै॥
सकुच न सकत प्रकट परिरंभन अलि लंपट दुरि धावै।
संभ्रम देति कुलकि कल कामिनि रति रन कलह मचावै॥
उलटी सबै समझि नैंननि में अंजन रेख बनावै।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रीति रीति बस सजनी स्याम कहावै॥47॥

बनी वृषभानु नंदिनी आजु।
भूषन वसन विविध पहिरे तन पिय मोहन हित साजु॥
हाव भाव लावन्य भृकुटि लट हरति जुवति जन पाजु।
ताल भेद औघर सुर सूचत नूपुर किंकिनि बाजु॥
नव निकुंज अभिराम स्याम सँग नीकौ बन्यौ समाजु।
(जै श्री) हित हरिवंश विलास रास जुत जोरी अविचल राजु॥48॥

देखि सखी राधा पिय केलि।
ये दोउ खोरि खरिक गिरि गहवर, विहरत कुँवर कंठ भुज मेलि॥
ये दोउ नवल किसोर रूप निधि, विटप तमाल कनक मनौ बेलि।
अधर अदन चुंबन परिरंभन, तन पुलकित आनँद रस झेलि॥
पट बंधन कंचुकि कुच परसत, कोप कपट निरखत कर पेलि।
(जै श्री) हित हरिवंश लाल रस लंपट, धाइ धरत उर बीच सँकेलि॥49॥

नवल नागरि नवल नागर किसोर मिलि, कुञ्ज कौंमल कमल दलनि सिज्या रची।
गौर स्यामल अंग रुचिर तापर मिले, सरस मनि नील मनौं मृदुल कंचन खची॥
सुरत नीबी निबंध हेत पिय, मानिनी – प्रिया की भुजनि में कलह मोंहन मची।
सुभग श्रीफल उरज पानि परसत, रोष – हुंकार गर्व दृग भंगि भामिनि लची॥
कोक कोटिक रभस रहसि ‘हरिवंश हित’, विविध कल माधुरी किमपि नाँहिन बची।
प्रनयमय रसिक ललितादि लोचन चषक, पिवत मकरंद सुख रासि अंतर सची॥50॥

दान दै री नवल किसोरी।
माँगत लाल लाड़िलौ नागर, प्रगट भई दिन दिन की चोरी॥
नव नारंग कनक हीरावलि, विद्रुम सरस जलज मनि गोरी।
पूरित रस पीयूष जुगल घट, कमल कदलि खंजन की जोरी॥
तोपैं सकल सौंज दामिनि की, कत सतराति कुटिल दृग भोरी।
नूपुर रव किंकिनी पिसुन घर, ‘हित हरिवंश’ कहत नहिं थोरी॥51॥

देखौ माई सुंदरता की सीवाँ।
व्रज नव तरुनि कदंब नागरी, निरखि करतिं अधग्रिवाँ॥
जो कोउ कोटि कोटि कलप लगि जीवै रसना कोटिक पावै।
तऊ रुचिर वदनारबिंद की सोभा कहत न आवै॥
देव लोक भूलोक रसातल सुनि कवि कुल मति डरिये।
सहज माधुरी अंग अंग की कहि कासौं पटतरिये॥
(जै श्री) हित हरिवंश प्रताप रूप गुन वय बल स्याम उजागर।
जाकी भ्रू विलास बस पसुरिव दिन विथकित रस सागर॥52॥

देखौ माई अबला के बल रासि।
अति गज मत्त निरकुंस मोहन ; निरखि बँधे लट पासि॥
अबहीं पंगु भई मन की गति ; बिनु उद्यम अनियास।
तबकी कहा कहौं जब प्रिय प्रति ; चाहति भृकुटि बिलास॥
कच संजमन व्याज भुज दरसति ; मुसकनि वदन विकास।
हा हरिवंश अनीति रीति हित ; कत डारति तन त्रास॥53॥

नयौ नेह नव रंग नयौ रस, नवल स्याम वृषभानु किसोरी।
नव पीतांबर नवल चूनरी; नई नई बूँदनि भींजत गोरी॥
नव ‘वृंदावन हरित मनोहर नव चातक बोलत मोर मोरी।
नव मुरली जु मलार नई गति; श्रवन सुनत आये घन घोरी॥
नव भूषन नव मुकुट विराजत; नई नई उरप लेत थोरी थोरी।
(जै श्री) हित हरिवंश असीस देत मुख चिरजीवौ भूतल यह जोरी॥54॥

आजु दोउ दामिनि मिलि बहसीं।
विच लै स्याम घटा अति नौंतन, ताके रंग रसीं॥
एक चमकि चहुँ ओर सखी री, अपने सुभाइ लसी।
आई एक सरस गहनी में, दुहुँ भुज बीच बसी॥
अंबुज नील उमै विधु राजत, तिनकी चलन खसी।
(जै श्री) हित हरिवंश लोभ भेटन मन, पूरन सरद ससी॥55॥

हौं बलि जाऊँ नागरी स्याम।
ऐसौं ही रंग करौ निसि वासर, वृंदा विर्पिन कुटी अभिराम॥
हास विलास सुरत रस सिंचन, पसुपति दग्ध जिवावत काम।
(जै श्री) हित हरिवंश लोल लोचन अली, करहु न सफल सकल सुख धाम॥56॥

प्रथम जथामति प्रनऊँ (श्री) वृंदावन अति रम्य।
श्रीराधिका कृपा बिनु सबके मननि अगम्य॥
वर जमुना जल सींचन दिनहीं सरद बसंत।
विविध भाँति सुमनसि के सौरभ अलिकुल मंत॥
अरुन नूत पल्लव पर कूँजत कोकिल कीर।
निर्तनि करत सिखी कुल अति आनंद अधीर॥
बहत पवन रुचि दायक सीतल मंद सुगंध।
अरुन नील सित मुकुलित जहँ तहँ पूषन बंध ।
अति कमनीय विराजत मंदिर नवल निकुंज।
सेवत सगन प्रीतिजुत दिन मीनध्वज पुंज॥
रसिक रासि जहँ खेलत स्यामा स्याम किसोर।
उभे बाहु परिरंजित उठे उनींदे भोर॥
कनक कपिस पट सोभित सुभग साँवरे अंग।
नील वसन कामिनि उर कंचुकि कसुँभी सुरंग।॥।
ताल रबाब मुरज उफ बाजत मधुर मृदंग।
सरस उकति गति सूचत वर बँसुरी मुख चंग॥
दोउ मिलि चाँचरि गावत गौरी राग अलापि।
मानस मृग बल वेधत भृकुटि धनुष दृग चापि॥
दोऊ कर तारिनु पटकत लटकत इत उत जात।
हो हो होरी बोलत अति आनंद कुलकात॥
रसिक लाल पर मेलति कामिनि बंधन धूरि।
पिय पिचकारिनु छिरकत तकि तकि कुंकुम पूरि॥
कबहुँ कबहुँ चंदन तरु निर्मित तरल हिंडोल।
चढ़ि दोऊ जन झूलत फूलत करत किलो॥
वर हिंडोर झँकोरनी कामिनि अधिक डरात।
पुलकि पुलकि वेपथ अँग प्रीतम उर लपटात॥
हित चिंतक निजु चेरिनु उर आनँद न समात।
निरखि निपट नैंननि सुख तृन तोरतिं वलि जात॥
अति उदार विवि सुंदर सुरत सूर सुकुमार।
(जै श्री) हित हरिवंश करौ दिन दोऊ अचल विहार॥57॥

तेरे हित लैंन आई, बन ते स्याम पठाई: हरति कामिनि घन कदन काम कौ।
काहे कौं करत बाधा, सुनि री चतुर राधा; भैंटि कैं मैंटि री माई प्रगट जगत भौं॥
देख रजनी नीकी, रचना रुचिर पी की; पुलिन नलिन नव उदित रौंहिनी धौ।
तू तौ अब सयानी; तैं मेरी एकौ न मानी; हौं तोसौं कहत हारी जुवति जुगति सौं॥
मोंहनलाल छबीलौ, अपने रंग रंगीलौ; मोहत विहंग पसु मधुर मुरली रौ।
वे तो अब गनत तन जीवन जौवन तब; (जै श्री) हित हरिवंश हरि भजहि भामिनि जौ॥58॥

यह जु एक मन बहुत ठौर करि, कहु कौनें सचु पायौ।
जहँ तहँ विपति जार जुवती लौं, प्रगट पिंगला गायौ।
द्वै तुरंग पर जोरि चढ़त हठि, परत कौन पै धायौ।
कहिधौं कौन अंक पर राखै, जो गनिका सुत जायौ॥
(जै श्री) हित हरिवंश प्रपंच बंच सब काल व्याल कौ खायौ।
यह जिय जानि स्याम स्यामा पद कमल संगि सिर नायौ॥59॥

कहा कहौं इन नैननि की बात।
ये अलि प्रिया वदन अंबुज रस अटके अनत न जात॥
जब जब रुकत पलक संपुट लट अति आतुर अकुलात।
लंपट लव निमेष अंतर ते अलप कलप सत सात॥
श्रुति पर कंज दृगंजन कुच बिच मृग मद हवै् न समात।
(जै श्री) हित हरिवंश नाभि सर जलचर जाँचत साँवल गात॥60॥

आजु सखी बन में जु बने प्रंभु नाचते हैं ब्रज मंडन।
वैस किसोर जुवति अंसुन पर दियैं विमल भुज दंडन॥
कोंमल कुटिल अलक सुठि सोभित अबलंबित जुग गंडन।
मानहु मधुप थकित रस लंपट नील कमल के खंडन॥
हास विलास हरत सबकौ मन काम समूह विहंडन।
।श्री) हित हरिवंश करत अपनौ जस प्रकट अखिल ब्रह्मंडन॥61॥

खेलत रास दुलहिनी दूलहु।
सुनहु न सखी सहित ललितादिक, निरखि निरखि नैंननि किन फूलहु॥
अति कल मधुर महा मौंहन धुनि, उपजत हंस सुता के कूलहु।
थेई थेई वचन मिथुन मुख निसरत, सुनि सुनि देह दसा किन भुलहु॥
मृदु पद न्यास उठत कुंकुम रज, अदभूत बहत समीर दुकूलहु।
कबहुँ स्याम स्यामा दसनांचल- कच कुच हार छुवत भुज मूलहु॥
अति लावन्य, रूप, अभिनय, गुन, नाहिन कोटि काम समतूलहु।
भृकुटि विलास हास रस बरषत (जै श्री) हित हरिवंश प्रेम रस झूलहु॥62॥

मोहन मदन त्रिभंगी। मोहन मुनि मन रंगी॥
मोहन मुनि सघन प्रगट परमानँद गुन गंभीर गुपाला।
सीस किरीट श्रवण मनि कुंडल उर मंडित बन माला॥
पीतांबर तन धातु विचित्रित कल किंकिनि कटि चंगी।
नख मनि तरनि चरन सरसीरूह मोहन मदन त्रिभंगी॥
मोहन बैंनु बजावै। इहिं रव नारि बुलावै॥
आईं ब्रज नारि सुनत बंसी रव गृह पति बंधु विसारे।
दरसन मदन गुपाल मनोहर मनसिज ताप निवारे॥
हरषित बदन बैंक अवलोकन सरस मधुर धुनि गाव।
मधुमय श्याम समान अधर धरे मोहन बैंनु बजावे॥
रास रचा बन माँही। विमल कलप तरु छाँहीं॥
विमल कलपतरु तीर सुपेशल सरद रैंन वर चंदा।
सीतल मंद सुगंध पवन बहै तहाँ खेलत नंद नंदा॥
अदभुत ताल मृदंग मनोहर किंकिनि शब्द कराहीं।
जमुना पुलिन रसिक रस सागर रास रच्यो बन माँहि॥
देखत मधुकर केली। मोहे खग मृग बेली॥
मोहे मृगधैंनु सहित सुर सुंदरि प्रेम मगन पट छूटे।
उडगन चकित थकित ससि मंडल कोटि मदन मन लूटे॥
अधर पान परिरंभन अति रस आनँद मगन सहेली।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक सचु पावत देखत मधुकर केली॥63॥

बैंनु माई बाजै बंसीवट।
सदा बसंत रहत वृंदावन पुलिन पवित्र सुभग यमुना तट॥
जटित क्रीट मकराकृत कुंडल मुखारविंद भँवर मानौं लट।
दसननि कुंद कली छवि लज्जित लज्जित कनक समान पीत पट॥
मुनि मन ध्यान धरत नहिं पावत करत विनोद संग बालक भट।
दास अनन्य भजन रस कारन हित हरिवंश प्रकट लीला नट॥64॥
मूल-मदन मदन धन निकुंज खेलत हरि, राका रुचिर सरद रजनी।
यमुना पुलिन तट सुरतरु के निकट, रचित रास चलि मिलि सजनी॥
वाजत मृदु मृदंग नाचत सबै सुधंग; तैं न श्रवन सुन्यौ बैंनु बजनी।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रभु राधिका रमन, मोकौं भावै माई जगत भगत भजनी॥65॥

विहरत दोऊ प्रीतम कुंज।
अनुपम गौर स्याम तन सोभा वन वरषत सुख पुंज॥
अद्भुत खेत महा मनमथ कौ दुंदुभि भूषन राव।
जूझत सुभट परस्पर अँग अँग उपजत कोटिक भाव॥
भर संग्राम अमित अति अबला निद्रायत काले नैन।
पिय के अंक निसंक तंक तन आलस जुत कृत सैंन
लालन मिस आतुर पिय परसद उरु नाभि ऊरजात।
अद्भुत छटा विलोकि अवनि पर विथकित वेपथ गात॥
नागरि निरखि मदन विष व्यापित दियौ सुधाधर धीर।
सत्वर उठे महामधु पीवत मिलत मीन मिव नीर॥
अवहीं मैं मुख मध्य विलोके बिंबाधर सु रसाल।
जागृत त्यौं भ्रम भयौ परयौ मन सत मनसिज कुल जाल॥
सकृदपि मयि अधरामृत मुपनय सुंदरि सहज सनेह।
तव पद पंकज को निजु मंदिर पालय सखि मम देह॥
प्रिया कहति कहु कहाँ हुते पिय नव निकुंज वर राज।
सुंदर वचन वचन कत वितरत रति लंपट बिनु काज॥
इतनौं श्रवन सुनत मानिनि मुख अंतर रहयौ न धीर।
मति कातर विरहज दुख व्यापित बहुतर स्वास समीर॥
(जै श्री) हित हरिवंश भुजनि आकरषे लै राखे उर माँझ।
मिथुन मिलत जू कछुक सुख उपज्यौ त्रुटि लव मिव भई साँझ॥66॥

रुचिर राजत वधू कानन किसोरी।
सरस षोडस कियें, तिलक मृगमद दियें,
मृगज लोचन उबटि अंग सिर खोरी॥
गंड पंडीर मंडित चिकुर चंद्रिका,
मेदिनि कबरि गुंथित सुरंग डोरी।
श्रवण ताटंक कै. चिबुक पर बिंदु दै,
कसूँभी कंचुकी दुरै उरज फल कोरी॥
वलय कंकन दोति, नखन जावक जोति,
उदर गुन रेख पट नील कटि थोरी।
सुभग जघन स्थली क्वनित किंकिनि भली,
कोक संगीत रस सिंधु झक झोरी॥
विविध लीला रचित रहसि हरिवंश हित;
रसिक सिरमौर राधा रमन जोरी।
भृकुटि निर्जित मदन मंद सस्मित वदन,
किये रस विवस घन स्याम पिय गोरी॥67॥

रास में रसिक मोहन बने भामिनी।
सुभग पावन पुलिन सरस सौरभ नलिन,
मत्त मधुकर निकर सरद की जामिनी॥
त्रिविध रोचक पवन ताप दिनमनि दवन,
तहाँ ठाढ़े रमन संग सत कामिनी।
ताल बीना मृदंग सरस नाचत सुधंग;
एक ते एक संगीत की स्वामिनी॥
राग रागिनि जमी विपिन वरसत अमी,
अधर बिंबनि रमी मुरलि अभिरामिनी।
लाग कट्टर उरप सप्त सुर सौं सुलप
लेति सुंदर सुघर राधिका नामिनी॥
तत्त थेई थेई करत गांव नौतन धरत,
पलटि डगमग ढरति मत्त गज गामिनी।
धाइ नवरंग धरी उरसि राजत खरी;
उभय कल हंस हरिवंश घन दामिनी॥68॥

मोहिनी मोहन रंगे प्रेम सुरंग,
मंत्र मुदित कल नाचत सुधगे।
सकल कला प्रवीन कल्यान रागिनी लीन,
कहत न बनै माधुरी अंग अंगे॥
तरनि तनया तीर त्रिविध सखी समीर।
मानौं मुनी व्रत धरयौ कपोती कोकिला कीर॥
नागरि नव किशोर मिथुन मनसि चोर।
सरस गावत दोऊ मंजुल मंदर घोर॥
कंकन किंकिनि धुनि मुखर नूपुरनि सुनि।
(जै श्री) हित हरिवंश रस वरषत नव तरुनी ॥69॥

आजु सँभारत नाँहिन गोरी।
फूली फिर मत्त करिनी ज्यौं सुरत समुद्र झकोरी॥
आलस वलित अरुन धूसर मषि प्रगट करत दृग चोरी।
पिय पर करुन अमी रस बरषत अधर अरुनता थोरी॥
बाँधत भृंगं उरज अंबुज पर अलकनि बंध किसोरी।
संगम किरचि किरचि कंचुकि बँध सिथिल भई कटि डोरी॥
देति असीस निरखि जुवती जन जिनकें प्रीति न थोरी।
(जै श्री) हित हरिवंश विपिन भूतल पर संतत अविचल जोरी॥70॥

स्याम सँग राधिका रास मंडल बनी।
बीच नंदलाल ब्रजवाल चंपक वरन,
ज्यौंव घन तडित बिच कनक मरकत मनी॥
लेति गति मान तत्त थेई हस्तक भेद,
स रे ग म प ध नि ये सप्त सुर नंदिनी।
निर्त रस पहिर पट नील प्रगटित छबी,
वदन जनु जलद में मकर की चंदिनी॥
राग रागिनि तान मान संगीत मत,
थकित राकेश नाम सरद की जामिनी।
(जै श्री) हित हरिवंश प्रभु हंस कटि केहरी,
दूरि कृत मदन मद मत्त गज गामिनी॥71॥

सुंदर पुलिन सुभग सुख दाइक।
नव नव घन अनुराग परस्पर खेलत कुँवर नागरी नांइक।
सीतल हंस सुता रस बिचिनु परसि पवन सीकर मृदु वरषत।
वर मंदार कमल चंपक कुल सौरभ सरसि मिथुन मन हरषत।
सकल सुधंग विलास परावधि नाचत नवल मिले सुर गावत।
मृगज मयूर मराल भ्रमर पिक अदभुत कोटि मदन सिर नावत।
निर्मित कुसुम सैंन मधु पूरित भजन कनक निकुंज विराजत।
रजनी मुख सुख रासि परस्पर सुरत समर दोऊ दल साजत॥
विट कुल नृपति किसोरी कर धृत, बुधि बल नीबी बंधन मोचत।
‘नेति नेति’ वचनामृत बोलत प्रनय कोप प्रीतम नहिं सोचत ।
(जै श्री) हित हरिवंश रसिक ललितादिक लता भवन रंध्रनि अवलोकत।
अनुपम सुख भर भरित विवस असु आनँद वारि कंठ दृग रोकत॥72॥

खंजन मीन मृगज मद मेंटत, कहा कहौं नैननिं की बातैं।
सनी सुंदरी कहाँ लौं सिखईं, मोहन बसीकरन की घातैं।
बंक निसंक चपल अनियारे, अरुन स्याम सित रचे कहाँ तैं।
डरत न हरत परयौ सर्वसु मृदु मधुमिव मादिक दृग पातैं॥
नैंकु प्रसन्न दृष्टि पूरन करि, नहिं मोतन चितयौ प्रमदा तैं।
(जै श्री) हित हरिवंश हंस कल गामिनि, भावै सो करहु प्रेम के नातैं॥73॥

काहे कौं मान बढ़ावतु है बालक मृग लोचनि।
हौंब डरनि कछु कहि न सकति इक बात सँकोचनी ।
मत्त मुरली अंतर तव गावत जागृत सैंन तवाकृति सोचनि।
(जै श्री) हित हरिवंश महा मोहन पिय आतुर विट विरहज दुख मोचनि ॥74॥

हौं जु कहति इक बात सखी, सुनि काहे कौं डारत?
प्रानरमन सौं क्यौंऽब करत, आगस बिनु आरत॥
पिय चितवत तुव चंद वदन तन, तूँ अधमुख निजु चरन निहारति।
वे मृदु चिबुक प्रलोइ प्रबोधत, तूँ भामिनि कर सौं कर टारति॥
विबस अधीर विरह अति कतर सर औसर कछुवै न विचारति।
(जै श्री) हित हरिवंश रहसि प्रीतम मिलि, तृषित नैंन काहे न प्रतिपारति॥75॥

नागरीं निकुंज ऐंन किसलय दल रचित सैंन,
कोक कला कुसल कुँवरि अति उदार री।
सुरत रंग अंग अंग हाव भाव भृकुटि भंग,
माधुरी तरंग मथत कोटि मार री।
मुखर नूपुरनि सुभाव किंकनी विचित्र राव,
विरमि विरमि नाथ वदत वर विहार री।
लाड़िली किशोर राज हंस हंसिनी समाज,
सींचत हरिवंश नैंन सुरस सार री॥76॥

लटकति फिरति जुवति रस फूली।
लता भवन में सरस सकल निसि, पिय सँग सुरत हिंडोरे झूली॥
जद्दपि अति अनुराग रसासव पान विवस नाहिंन गति भूली।
आलस वलित नैंन विगलित लट, उर पर कछुक कंचुकी खूली॥
मरगजी माल सिथिल कटि बंधन, चित्रित कज्जल पीक दुकूली।
(जै श्री) हित हरिवंश मदन सर जरजर , विथकित स्याम सँजीवन मूली॥77॥

सुधंग नाचत नवल किसोरी।
थेई थेई कहति चहति प्रीतम दिसि, वदन चंद मनौं त्रिषित चकोरी॥
तान बंधान मान में नागरि देखत स्याम कहत हो हो होरी।
(जै श्री) हित हरिवंश माधुरी अँग अँग, बरवस लियौ मोहन चित चोरी॥78॥

रहसि रहसि मोहन पिय के संग री, लड़ैती अति रस लटकति।
सरस सुधंग अंग में नागरि, थेई थेई कहति अवनि पद पटकति॥
कोक कला कुल जानि सिरोमनि, अभिनय कुटिल भृकुटियनि मटकति।
विवस भये प्रीतम अलि लंपट, निरखि करज नासा पुट चटकति ॥
गुन गनु रसिक राइ चूड़ामनि रिझवति पदिक हार पट झटकति।
(जै श्री) हित हरिवंश निकट दासीजन, लोचन चषक रसासव गटकति॥79॥

वल्लवी सु कनक वल्लरी तमाल स्याम संग,
लागि रही अंग अंग मनोभिरामिनी।
वदन जोति मनौं मयंक अलका तिलक छबि कलंक,
छपति स्याम अंक मनौं जलद दामिनी॥
विगत वास हेम खंभ मनौं भुवंग वैनी दंड,
पिय के कंठ प्रेम पुंज कुंज कामिनी।
(जै श्री) सोभित हरिवंश नाथ साथ सुरत आलस वंत,
उरज कनक कलस राधिका सुनामिनी॥80॥

वृषभानु नंदिनी मधुर कल गावै।
विकट औंघर तान चर्चरी ताल सौं, नंदनंदन मनसि मोद उपजावै॥
प्रथम मज्जन चारु चीर कज्जल तिलक, श्रवण कुंडल वदन चंदनि लजावै।
सुभग नकबेसरी रतन हाटक जरी, अधर बंधूक दसन कुंद चमकावै॥
वलय कंकन चारु उरसि राजत हारु, कटिव किंकिनी चरन नूपुर बजावै।
हंस कल गामिनी मथति मद कामिनी, नखनि मदयंतिका रंग रुचि द्यावे ॥
निर्त्त सागर रभसि रहसि नागरि नवल, चंद चाली विविध भेदनि जनावै।
कोक विद्या विदित भाइ अभिनय निपुन, भू विलासनि मकर केतनि नचावै॥
निविड़ कानन भवन बाहु रंजित रवन, सरस आलाप सुख पुंज बरसावै।
उभै संगम सिंधु सुरत पूषन बधु, द्रवत मकरंद हरिवंश अली पावै॥81॥

नागरता की राशि किसोरी।
नव नागर कुल मौलि साँवरी, वर बस कियो चितै मुख मोरी॥
रूप रुचिर अंग अंग माधुरी, विनु भूषन भूषित ब्रज गोरी।
छिन छिन कुसल सुधंग अंग में, कोक रमस रस सिंधु झकोरी।
चंचल रसिक मधुप मौंहन मन. राखे कनक कमल कुच कोरी।
प्रीतम नैंन जुगल खंजन खग, बाँधे विविध निबंध डोरी।
अवनी उदर नाभि सरसी में, मनौं कछुक मदिक मधु घोरी।
(जै श्री) हित हरिवंश पिवत सुंदर वर, सींव सुदृढ़ निगमनि की तोरी॥82॥

छाँड़िदैं मानिनी मान मन धरिबौ।
प्रनत सुंदर सुघर प्रानवल्लभ नवल,
वचन आधीन सौं इतौ कत करिबौं। ।
जपत हरि विवस तव नाम प्रतिपद विमल,
मनसि तव ध्यान ते निमिष नहिं टरिबौ।
घटति पलु पलु सुभग सरद की जामीनी,
भामिनी सरस अनुराग दिसि ढरिबौ॥
हौं जु कहति निजु बात सुनो मनि सखि,
सुमुखि बिनु काज घन विरह दुख भरी वै।
मिलत हरिवंश हित’ कुंज किसलय सयन,
करत कल केलि सुख सिंधु में तिरिबौ॥83॥

आजुब देखियत है हो प्यारी रंग भरी।
मोपै न दुरति चोरी वृषभानु की किशोरी;
सिथिल कटि की डोरी,नंद के लालन सौं सुरत लरी॥
मोतियन लर टूटी चिकुर चंद्रिका छूटी
रहसि रसिक लूटी गंडनि पीक परी।
नैननि आलस बस अधर बिंब निरस;
पुलक प्रेम परस हित हरिवंश री राजत खरी॥84॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर हित चौरासी को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह Hit Chaurasi रोमन में–

Read Shri Hit Chaurasi

joī joī pyāro kare soī mohi bhāve, bhāve mohi joī soī soī kare pyāre
moko to bhāvatī ṭhaura pyāre ke nainana meṃ, pyāro bhayo cāhe mere nainana ke tāre
mere tana mana prāṇa hu te prītama priya, apane koṭika prāṇa prītama moso hāre
jaya śrīhita harivaṃśa haṃsa haṃsinī sāṃvala gaura, kaho kauna kare jala taraṃginī nyāre॥1॥

pyāre bolī bhāminī, āju nīkī jāminī bheṃṭi navīna megha sauṃ dāminī ।
mohana rasika rāi rī māī tāsauṃ ju māna karai, aisī kauna kāminī ।
(jaie śrī) hita harivaṃśa śravana sunata pyārī rādhikā, ramana sauṃ milī gaja gāminī ॥2॥

prāta samai doū rasa laṃpaṭa, surata juddha jaya juta ati phūla।
śrama-vārija ghana biṃdu vadana para, bhūṣaṇa aṃgahiṃ aṃga vikūla।
kachu rahyau tilaka sithila alakāvāli, vadana kamala mānauṃ ali bhūla।
(jai śrī) hita harivaṃśa madana ra~ga ra~gi rahe, naiṃna baiṃna kaṭi sithila dukula ॥3॥

āju tau juvatī terau vadana ānaṃda bharayau, piya ke saṃgama ke sūcata sukha caina।
ālasa balita bola, suraṃga ra~ge kapola, vithakita aruna unīṃde dou naiṃna॥
rucira tilaka lesa, kirata kusuma kesa;sira sīmaṃta bhūṣita mānauṃ taiṃ na।
karunā kari udāra rākhata kachu na sāra;dasana vasana lāgata jaba daina॥
kāhe kauṃ durata bhīru palaṭe prītama cīru, basa kiye syāma sikhai sata maiṃna।
galita urasi māla, sithila kiṃkanī jāla, (jai śrī) hita harivaṃśa latā gṛha saiṃna ॥4॥

āju prabhāta latā maṃdira meṃ, sukha varaṣata ati haraṣi jugala vara।
gaura syāma abhirāma raṃga bhare, laṭaki laṭaki paga dharata avani para ।
kuca kumakuma raṃjita mālāvali, surata nātha śrīsyāma dhāma dhara ।
priyā prema ke aṃka alaṃkṛta, vicitra catura siromani niju kara ।
daṃpati ati mudita kala, gāna karata mana harata paraspara।
(jai śrī) hita harivaṃśa praṃsasi parāyana, gāyana ali sura deta madhura tara ॥5॥

kauna catura juvatī priyā, jāhi milana lāla cora hai raiṃna ।
duravata kyoṃaba dūrai suni pyāre, raṃga meṃ gahale caina meṃ naina ॥
ura nakha caṃda virāne paṭa, aṭapaṭāe se baina ।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasika rādhāpati pramathīta maiṃna ॥6॥

āju nikuṃja maṃju meṃ khelata, navala kisora navīna kisorī ।
ati anupama anurāga parasapara, suni abhūta bhūtala para jorī ॥
vidruma phaṭika vividha nirmita dhara, nava karpūra parāga na thorī ।
kauṃmala kisalaya saiṃna supesala, tāpara syāma nivesita gorī ॥
mithuna hāsa parihāsa parāyana, pīka kapola kamala para jhorī ।
gaura syāma bhuja kalaha manohara, nīvī baṃdhana mocata ḍorī ॥
hari ura mukura biloki apanapī, vibhrama vikala māna juta bhorī ।
cibuka sucāru praloi pravodhata, piya pratibiṃba janāi nihorī ॥
‘neti neti’ bacanāmṛta suni suni, lalitādika dekhatiṃ duri corī ।
(jai śrī) hita harivaṃśa karata kara dhūnana, pranaya kopa mālāvali torī ॥7॥

ati hī aruna tere nayana nalina rī ।
ālasa juta itarāta raṃgamage, bhaye niśi jāgara maṣina malina rī ॥
sithila palaka meṃ uṭhati golaka gati, biṃdhyau moṃhana mṛga sakata cali na rī ।
(jai śrī)hita harivaṃśa haṃsa kala gāmini,saṃbhrama deta bhramarani alina rī ॥8॥
banī śrīrādhā mohana kī jorī ।

iṃdra nīla mani syāma manohara, sāta kuṃbha tanu gorī ॥
bhāla bisāla tilaka hari, kāminī cikura candra bica rorī ।
gaja nāika prabhu cāla, gayaṃdanī – gati bṛṣabhānu kisorī ॥
nīla nicola juvatī, mohana paṭa – pīta aruna sira khorī
(jai śrī ) hita harivaṃśa rasika rādhā pati, sūrata raṃga meṃ borī ॥9॥

āju nāgarī kisora, bhā~vatī vicitra jora,
kahā kahauṃ aṃga aṃga parama mādhurī ।
karata keli kaṃṭha meli bāhu daṃḍa gaṃḍa – gaṃḍa,
parasa, sarasa rāsa lāsa maṃḍalī jurī ॥
syāma – suṃdarī vihāra, bā~surī mṛdaṃga tāra,
madhura ghoṣa nūpurādi kiṃkinī curī ।
(jai śrī)dekhata harivaṃśa āli, nirtanī sughaṃga cali,
vārī pherī deta prā~na deha sauṃ durī॥10॥

maṃjula kala kuṃja desa, rādhā hari visada vesa, rākā nabha kumuda – baṃdhu, sarada jāminī ।
sāṃ~vala duti kanaka aṃga, viharata mili eka saṃga ;nīrada manī nīla madhya, lasata dāminī ॥
aruna pīta nava dukula, anupama anurāga mūla ; saurabha juta sīta anila, maṃda gāminī ।
kisalaya dala racita saina, bolata piya cāṭu baiṃna ; māna sahita prati pada, pratikūla kāminī ॥
mohana mana mathata māra, parasata kuca nīvī hāra ; yepatha juta neti – neti, badati bhāminī ।
“naravāhana” prabhu sukeli, vahu vidhi bhara, bharata jheli, saurata rasa rūpa nadī jagata pāvanī ॥11॥

calahi rādhike sujāna, tere hita sukha nidhāna ; rāsa racyau syāma taṭa kaliṃda naṃdinī ।
nirtata juvatī samūha, rāga raṃga ati kutūha ; bājata rasa mūla muralikā anandinī ॥
baṃsīvaṭa nikaṭa jahā~, parama ramani bhūmi tahā~ ; sakala sukhada malaya bahai vāyu maṃdinī ।
jātī īṣada bikāsa, kānana atisai suvāsa ; rākā nisi sarada māsa, vimala caṃdini ॥
naravāhana prabhu nihārī, locana bhari ghoṣa nāri, nakha sikha sauṃdarya kāma dukha nikaṃdinī ।
vilasahi bhuja grīva meli bhāmini sukha siṃdhu jheli ; nava nikuṃja syāma keli jagata baṃdinī॥12॥

naṃda ke lāla harayauṃ mana mora । hauṃ apane motinu lara povati, kā~karī ḍāri gayo sakhi bhora ॥
baṃka bilokani cāla chabīlī, rasika siromani naṃda kisora ।
kahi kaiseṃ mana rahata śravana suni, sarasa madhura muralī kī ghora ॥
iṃdu gobiṃda vadana ke kārana, citavana kauṃ bhaye naiṃna cakora ।
(jai śrī )hita harivaṃśa rasika rasa juvatī tū lai mili sakhi prāṇa a~kora ॥13॥

adhara aruna tere kaise kaiṃ durāū~ ?
ravi sasi saṃka bhajana kiye apabasa, adabhuta raṃgani kusuma banāū~॥
subha kauseya kasiva kaustubha mani, paṃkaja sutani lee aṃgani lupāū~।
haraṣita iṃdu tajata jaise jaladhara, so bhrama ḍhū~ḍhi kahā~ hoṃ pāū~॥
aṃbu na daṃbha kachū nahīṃ vyāpata, himakara tape tāhi kaise kaiṃ bujhāū~।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasika navara~ga piya bhṛkuṭi bhauṃha tere khaṃjana larāū~॥14॥

apanī bāta mosauṃ kahi rī bhāminī,auṃgī mauṃgī rahati garaba kī mātī।
hoṃ tosoṃ kahata hārī sunī rī rādhikā pyārī nisi kau raṃga kyoṃ na kahati lajātī॥
galita kusuma baiṃnī sunī rī sāra~ga naiṃnī, chūṭī laṭa, acarā vadati, arasātī।
adhara niraṃga ra~ga racyau rī kapolani, juvati calati gaja gati arujhātī॥
rahasi ramī chabīle rasana basana ḍhīle, sithila kasani kaṃcukī ura rātī॥
sakhī sauṃ sunī śrāvana bacana mudita mana, cali harivaṃśa bhavana musikātī॥15॥

āja mere kahaiṃ calau mṛganaiṃnī।
gāvata sarasa jubati maṃḍala meṃ, piya sauṃ milaiṃ pika baiṃnī॥
parama pravīna koka vidyā meṃ, abhinaya nipuna lāga gati laiṃnī।
rūpa rāsi sunī navala kisorī, palu palu ghaṭati cā~danī raiṃnī॥
(jai śrī ) hita harivaṃśa calī ati ātura, rādhā ramaṇa surata sukha daiṃnī।
rahasi rabhasi āliṃgana cuṃbana, madana koṭi kula bhaī kucaiṃnī ।16॥

āju dekhi vraja sundarī mohana banī keli।
aṃsa aṃsa bāhu dai kisora jora rūpa rāsi, manauṃ tamāla arujhi rahī sarasa kanaka beli॥
nava nikuṃja bhramara guṃja, maṃju ghoṣa prema puṃja, gāna karata mora pikani apane sura sauṃ meli।
madana mudita aṃga aṃga, bīca bīca surata raṃga, palu palu harivaṃśa pivata naiṃna caṣaka jheli॥17॥
suni mero vacana chabīlī rādhā। taiṃ pāyau rasa siṃdhu agādhā॥
tū~ vṛṣavānu gopa kī beṭī। mohanalāla rasika ha~si bheṃṭī॥
jāhi viraṃci umāpati nāye। tāpai taiṃ vana phūla bināye॥
jau rasa neti neti śruti bhākhyau। tākau taiṃ adhara sudhā rasa cākhyau॥
tero rūpa kahata nahiṃ āvai। (jai śrī) hita harivaṃśa kachuka jasa gāvai ॥18॥

khelata rāsa rasika brajamaṃḍana। juvatina aṃsa diyeṃ bhuja daṃḍana॥
sarada vimala nabha caṃda virājai। madhura madhura muralī kala bājai॥
ati rājata ghana syāma tamālā। kaṃcana veli banīṃ braja bālā॥
bājata tāla mṛdaṃga upaṃgā। gāna mathata mana koṭi anaṃgā॥
bhūṣana bahuta vividha ra~ga sārī। aṃga sughaṃga dikhāvatiṃ nārī॥
baraṣata kusuma mudita sura joṣā। suniyata divi duṃdubhi kala ghoṣā॥
(jai śrī) hita harivaṃśa magana mana syāmā। rādhā ramana sakala sukha dhāmā॥ 19॥

mohanalāla ke rasa mātī। badhū gupati govati kata mosauṃ, prathama neha sakucātī॥
dekhī sa~bhāra pīta paṭa ūpara kahā~ cūnarī rātī।
ṭūṭī lara laṭakati motinu kī nakha vidhu aṃkita chātī॥
adhara biṃba khaṃḍita, maṣi maṃḍita gaṃḍa, calati arujhātī।
aruna naiṃna ghu~mata ālasa juta kusuma galita laṭa pātī॥
āju rahasi moṃhana saba lūṭī vividha, āpanī thātī।
(jai śrī) hita harivaṃśa vacana sunī bhāmini bhavana calī musakātī॥20॥

tere naiṃna karata dou cārī।
ati kulakāta samāta nahīṃ kahu~ mile haiṃ kuṃja vihārī॥
vithurī mā~ga kusuma giri giri paraiṃ, laṭaki rahī laṭa nyārī।
ura nakha rekha prakaṭa dekhiyata haiṃ, kahā durāvati pyārī॥
parī hai pīka subhaga gaṃḍani para, adhara nira~ga sukumārī।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasikanī bhāmini, ālasa a~ga a~ga bhārī॥21॥

naiṃnaniṃ para vārauṃ koṭika khaṃjana।
caṃcala capala aruna aniyāre, agra bhāga banyau aṃjana॥
rucira manohara baṃka bilokani, surata samara dala gaṃjana।
(jai śrī)hita harivaṃśa kahata na banai chabi, sukha samudra mana raṃjana॥ 22॥

rādhā pyārī tere naiṃna salola।
tauṃ niju bhajana kanaka tana jovana, liyau manohara mola॥
adhara niraṃga alaka laṭa chūṭī, raṃjita pīka kapola।
tū~ rasa magana bhaī nahiṃ jānata, ūpara pīta nicola॥
kuca juga para nakha rekha prakaṭa mānauṃ,saṃkara sira sasi ṭola।
(jai śrī) hita harivaṃśa kahata kachū bhāmini, ati ālasa sauṃ bola॥ 23॥

āju gopāla rāsa rasa khelata, pulina kalapataru tīra rī sajanī।
sarada vimala nabha caṃda virājata, rocaka trividha samīra rī sajanī॥
caṃpaka bakula mālatī mukulita, matta mudita pika kīra rī sajanī।
desī sughaṃga rāga ra~ga nīkau, braja juvatinu kī bhīra rī sajanī॥
maghavā mudita nisāna bajāyau, vrata chā~ड़yau muni dhīra rī sajanī।

(jai śrī)hita harivaṃśa magana mana syāmā, harati madana ghana pīra rī sajanī॥ 24॥
ājū nikī banī śrī rādhikā nāgarī
braja juvati jūtha meṃ rūpa aru caturaī, sīla siṃgāra guna sabaniteṃ āgarī॥
kamala dakṣiṇa bhujā bāma bhuja aṃsa sakhi, gā~vatī sarasa mili madhura sura rāga rī।
sakala vidyā vidita rahasi ‘harivaṃśa hita’, milata nava kuṃja vara syāma baड़ bhāga rī॥ 25॥

mohanī madana gopāla kī bā~surī।
mādhurī śravana puṭa sunata sunu rādhike, karata ratirāja ke tāpa kau nāsurī॥
sarada rākā rajanī vipina vṛṃdā sajani, anila ati maṃda sītala sahita bāsu rī।
parama pāvana pulina bhṛṃga sevata nalina, kalpataru tīra balavīra kṛta rāsu rī॥
sakala maṃḍala bhalīṃ tuma ju hari sauṃ milīṃ, banī vara vanita upamā kahauṃ kāsu rī।
tuma ju kaṃcana tanī lāla marakata manī, ubhaya kala haṃsa ‘harivaṃśa’ bali dāsurī॥ 26॥

madhuritu vṛndāvana ānanda na thora। rājata nāgari nava kusala kiśora॥
jūthikā jugala rūpa mañjarī rasāla। vithakita ali madhu mādhavī gulāla॥
caṃpaka bakula kula vividha saroja। ketaki medani mada mudita manoja॥
rocaka rucira bahai trividha samīra। mukulita nūta nadita pika kīra॥
pāvana pulina ghana maṃjula nikuṃja। kisalaya saina racita sukha puṃja॥
maṃjīra muraja ḍapha muralī mṛdaṃga। bājata upaṃga bīnā vara mukha caṃga॥
mṛgamada malayaja kuṃkuma abīra। baṃdana agarasata sura~gita cīra॥
gāvata suṃdarī harī sarasa dhamāri। pulakita khaga mṛga bahata na vāri॥
(jai śrī) hita harivaṃśa haṃsa haṃsinī samāja। aise hī karau mili juga juga rāja॥ 27॥

rādhe dekhi vana kī bāta।
ritu basaṃta anaṃta mukulita kusuma aru phala pāta॥
baiṃnū dhuni naṃdalāla bolī, suniva kyauṃ ara sāta।
karata katava vilaṃba bhāmini vṛthā ausara jāta॥
lāla marakata mani chabīlau tuma ju kaṃcana gāta।
banī (śrī) hita harivaṃśa jorī ubhai guna gana māta॥ 28॥

braja nava tarunī kadaṃba mukuṭa mani syāmā āju banī।
nakha sikha lauṃ aṃga aṃga mādhurī mohe syāma dhanī॥
yauṃ rājata kabarī guṃthita kaca kanaka kaṃja vadanī।
cikura caṃdrikani bīca aradha bidhu mānauṃ grasita phanī॥
saubhaga rasa sira stravata panārī piya sīmaṃta ṭhanī।
bhṛkuṭi kāma kodaṃḍa naiṃna sara kajjala rekha anī॥
tarala tilaka tāṃṭaka gaṃḍa para nāsā jalaja manī।
dasana kuṃda sarasādhara pallava prītama mana samanī॥
cibuka madhya ati cāru sahaja sakhi sā~vala biṃdu kanī।
prītama prāna ratana saṃpuṭa kuca kaṃcuki kasiba tanī॥
bhuja mṛnāla vala harata valaya juta parasa sarasa śravanī।
syāma sīsa taru manauṃ miḍavārī racī rucira ravanī॥
nābhi gambhīra mīna mohana mana khelata kauṃ hṛdanī।
kṛsa kaṭi pṛthu nitaṃba kiṃkini vṛta kadali khaṃbha jaghanī॥
pada aṃbuja jāvaka juta bhūṣana prītama ura avanī।
nava nava bhāi vilobhi bhāma ibha viharata vara kārinī॥
(jai śrī) hita harivaṃśa prasaṃsitā syāmā kīrati visada ghanī।
gāvata śravanani sunata sukhākara visva durita davanī॥ 29॥

dekhata nava nikuṃja sunu sajanī lāgata hai ati cāru।
mādhavikā ketakī latā le racyau madana āṃgāru॥
sarada māsa rākā nisi sītala maṃda sugaṃdha samīra।
parimala lubdha madhuvrata vithakita nadita kokilā kīra॥
vahu vidha raṅga mṛdula kisalaya dala nirmita piya sakhi seja।
bhājana kanaka vividha madhu pūrita dhare dharanī para heja॥
tāpara kusala kisora kisorī karata hāsa parihāsa।
prītama pāni uraja vara parasata priyā durāvati vāsa॥
kāmini kuṭila bhṛkuṭi avalokata dina pratipada pratikūla।
ātura ati anurāga vivasa hari dhāi dharata bhuja mūla॥
nagara nīvī bandhana mocata eṃcata nīla nicola।
badhū kapaṭa haṭha kopi kahata kala neti neti madhu bola॥
pariraṃbhana viparita rati vitarata sarasa surata niju keli।
iṃdranīla maninaya taru mānauṃ lasana kanaka kī belī॥
rati rana mithuna lalāṭa paṭala para śrama jala sīkara saṃga।
lalitādika aṃcala jhakajhorati mana anurāga abhaṃga॥
(jai śrī) hita harivaṃśa jathāmati baranata kṛṣṇa rasāmṛta sāra।
śravana sunata prāpaka rati rādhā pada aṃbuja sukumāra॥30॥

āju ati rājata dampati bhora।
surata raṃga ke rasa meṃ bhīneṃ nāgari navala kiśora॥
aṃsani para bhuja diyeṃ vilokata iṃdu vadana vivi ora।
karata pāna rasa matta parasapara locana tṛṣita cakora॥
chūṭī laṭani lāla mana karaṣyau ye yāke cita cora।
pariraṃbhana cuṃbana mili gāvata sura maṃdara kala ghora॥
paga ḍagamagata calata bana viharana rucira kuṃja ghana khora।
(jai śrī) hita harivaṃśa lāla lalanā mili hiyau sirāvata mora॥31॥

āju bana krīḍata syāmā syāma॥
subhaga banī nisi sarada cā~danī, rucira kuṃja abhirāma॥
khaṃḍata adhara karata pāriraṃbhana, aicata jaghana dukūla।
ura nakha pāta tirīchī citavana, daṃpati rasa sama tūla॥
ve bhuja pīna payodhara parasata, vāma dṛśā piya hāra।
vasanani pīka alaka ākaraṣata, samara śramita sata māra॥
palu palu pravala cauṃpa rasa laṃpaṭa, ati suṃdara sukumāra।
(jai śrī) hita harivaṃśa āju tṛna ṭūṭata hauṃ bali visada vihāra॥32॥

āju bana rājata jugala kisora।
naṃda na~dana vṛṣabhānu naṃdinī uṭhe unīdeṃ bhora॥
ḍagamagāta paga parata sithila gati parasata nakha sasi chora।
dasana basana khaṃḍita maṣi maṃḍita gaṃḍa tilaka kachu thora॥
durata na kaca karajani ke rokeṃ aruna naina ali cora।
(jai śrī) hita harivaṃśa sa~bhāra na tana mana surata samudra jhakora॥33॥

bana kī kuṃjani kuṃjani ḍolani।
nikasata nipaṭa sā~karī bīthinu, parasata nā~hi nicolani॥
prāta kāla rajanī saba jāge, sūcata sukha dṛga lolani।
ālasavaṃta aruna ati vyākula, kachu upajata gati golani॥
nirtani bhṛkuṭi vadana aṃbuja mṛdu, sarasa hāsa madhu bolani।
ati āsakta lāla ali laṃpaṭa, basa kīne binu molani॥
vilulita sithila śyāma chūṭī laṭa, rājata rucira kapolani।
rati viparita cuṃbana pariraṃbhana, cibuka cāru ṭaka ṭolani॥
kabahu~ śramita kisalaya sijyā para, mukha aṃcala jhakajholani।
dina harivaṃśa dāsi hiya sīṃcata, vāridhi keli kalolani॥34॥

jhūlata doū navala kisora।
rajanī janita raṃga sukha sucata aṃga aṃga uṭhi bhora॥
ati anurāga bhare mili gāvata sura maṃdara kala ghora।
bīca bīca prītama cita corati priyā naiṃna kī kora॥
abalā ati sukumāri ḍarata mana vara hiṃḍora jha~kora।
pulaki pulaki prītama ura lāgati de nava uraja a~kora॥
arujhī vimala māla kaṃkana sauṃ kuṃḍala sauṃ kaca ḍora।
vepatha juta kyoṃ banai vivecata āna~da baढ़yau na thora॥
nirakhi nirakhi phūlatīṃ lalitādika vivi mukha caṃda cakora।
de asīsa harivaṃśa prasaṃsata kari aṃcala kī chora॥35॥

āju bana nīkau rāsa banāyau।
pulina pavitra subhaga jamunā taṭa mohana baiṃnu bajāyau॥
kala kaṃkana kiṃkini nūpura dhuni suni khaga mṛga sacu pāyau।
juvatinu maṃḍala madhya syāma ghana sāra~ga rāga jamāyau॥
tāla mṛdaṅga upaṃga muraja ḍapha mili rasasiṃdhu baढ़āyau।
vividha viśada vṛṣabhānu naṃdinī aṃga sughaṃga dikhāyau॥
abhinaya nipuna laṭaki laṭa locana bhṛkuṭi anaṃga nacāyau।
tātā theī tātheī dharata nautana gati pati brajarāja rijhāyau॥
sakala udāra nṛpati cūड़āmani sukha vārida varaṣāyau।
pariraṃbhana cuṃbana āliṃgana ucita juvati jana pāyau॥
varasata kusuma mudita nabha nāika indra nisāna bajāyau।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasika rādhā pati jasa vitāna jaga chāyau॥ 36॥

calahi kina mānini kuṃja kuṭīra।
to binu ku~vari koṭi banitā juta, mathata madana kī pīra॥
gadagada sura virahākula pulakita, sravata vilocana nīra।
kvāsi kvāsi vṛṣabhānu naṃdinī, vilapata vipina adhīra॥
baṃsī visikha, vyāla mālāvali, paṃcānana pika kīra।
malayaja garala, hutāsana māruta, sākhā mṛga ripu cīra ॥
(jai śrī) hita harivaṃśa parama komala cita, capala calī piya tīra।
suni bhayabhīta baja ko paṃjara, surata sūra rana vīra ॥37॥

calahi uṭhi gaharu karati kata, nikuṃja bulāvata lāla।
hā rādhā rādhikā pukārata, nirakhi madana gaja ḍhāla॥
karata sahāi sarada sasi māruta, phuṭi milī ura māla।
durgama takata samara ati kātara, karahi na piya pratipāla॥
(jai śrī) hita harivaṃśa calī ati ātura, śravana sunata tehi kāla।
lai rākhe giri kuca bica suṃdara, surata – sūra braja bāla॥ 38॥

khelyo lāla cāhata ravana।
raci raci apane hātha sa~vārayau nikuṃja bhavana॥
rajanī sarada maṃda saurabha sauṃ sītala pavana।
to binu ku~vari kāma kī bedana meṭaba kavana॥
calahi na capala bāla mṛganainī tajiba mavana।
(jai śrī) hita harivaṃśa milaba pyāre kī ārati davana॥39॥

baiṭhe lāla nikuṃja bhavana।
rajanī rucira mallikā mukulita trividha pavana॥
tū~ sakhī kāma keli mana mohana madana davana।
vṛthā gaharu kata karati kṛsodarī kārana kavana॥
capala calī tana kī sudhi bisarī sunata śravana।
(jai śrī) hita harivaṃśa mile rasa laṃpaṭa rādhikā ravana॥40॥

prīti kī rīti raṃgiloi jānai।
jadyapi sakala loka cūड़āmani dīna apanapau mānai॥
jamunā pulina nikuṃja bhavana meṃ māna māninī ṭhānai।
nikaṭa navīna koṭi kāmini kula dhīraja manahiṃ na ānai॥
nasvara neha capala madhukara jyoṃ ā~na ā~na sauṃ bānai।
(jai śrī) hita harivaṃśa catura soī lālahiṃ chāड़i maiṃḍa pahicānai॥41॥

prīti na kāhu kī kāni bicārai।
māraga apamāraga vithakita mana ko anusarata nivārai॥
jyauṃ saritā sā~vana jala umagata sanamukha siṃdhu sidhārai।
jyauṃ nādahi mana diyeṃ kuraṃgani pragaṭa pāradhī mārai॥
(jai śrī) hita harivaṃśa hilaga sāra~ga jyauṃ salabha sarīrahi jārai।
nāika nipūna navala mohana binu kauna apanapau hārai॥42॥

ati nāgari vṛṣabhānu kisorī।
suni dūtikā capala mṛganainī, ākaraṣata citavana cita gorī॥
śrīphala uraja kaṃcana sī dehī, kaṭi kehari guna siṃdhu jhakorī।
baiṃnī bhujaṃga candra sata vadanī, kadali jaṃgha jalacara gati corī॥
suni ‘harivaṃśa’ āju rajanī mukha, bana milāi merī nija jorī।
jadyapi māna sameta bhāminī, suni kata rahata bhalī jiya bhorī॥43॥

cali suṃdari bolī vṛṃdāvana।
kāmini kaṃṭha lāgi kina rājahi, tū~ dāmini mohana nautana ghana॥
kaṃcukī suraṃga vividha ra~ga sārī, nakha juga ūna bane tare tana॥
ye saba ucita navala mohana kauṃ, śrīphala kuca jovana āgama dhana॥
atisai prīti hutī aṃtaragata, (jaiśrī) hita harivaṃśa calī mukulita mana।
niviड़ nikuṃja mile rasa sāgara, jīte sata rati rāja surata rana॥44॥

āvati śrīvṛṣabhānu dulārī।
rūpa rāsi ati catura siromani aṃga aṃga sukumārī॥
prathama ubaṭi majjana kari sajjita nīla barana tana sārī।
guṃthita alaka tilaka kṛta suṃdara saiṃdūra mā~ga sa~vārī॥
mṛgaja samāna naiṃna aṃjana juta rucira rekha anusārī।
jaṭita lavaṃga lalita nāsā para dasanāvali kṛta kārī॥
śrīphala uraja ka~sūbhī kaṃcuki kasi ūpara hāra chabi nyārī।
kṛsa kaṭi udara ga~bhīra nābhi puṭa jaghana nitaṃbani bhārī॥
manauṃ mṛnāla bhūṣana bhūṣita bhuja syāma aṃsa para ḍārī।
(jai śrī) hita harivaṃśa jugala karinī gaja viharata vana piya pyārī॥45॥

vipina ghana kuṃja rati keli bhuja meli rūci,
syāma syāmā mile sarada kī jaminī।
hṛdai ati phūla samatūla piya nāgarī,
karini kari matta manauṃ vivadha guna rāminī॥
sarasa gati hāsa parihāsa āvesa basa,
dalita dala madana bala koka rasa kāminī।
(jai śrī) hita harivaṃśa suni lāla lāvanya bhide,
priyā ati sūra sukha surata saṃgrāminī॥46॥

vana kī līlā lālahiṃ bhāvai।
patra prasūna bīca pratibiṃbahiṃ nakha sikha priyā janāvai॥
sakuca na sakata prakaṭa pariraṃbhana ali laṃpaṭa duri dhāvai।
saṃbhrama deti kulaki kala kāmini rati rana kalaha macāvai॥
ulaṭī sabai samajhi naiṃnani meṃ aṃjana rekha banāvai।
(jai śrī) hita harivaṃśa prīti rīti basa sajanī syāma kahāvai॥47॥

banī vṛṣabhānu naṃdinī āju।
bhūṣana vasana vividha pahire tana piya mohana hita sāju॥
hāva bhāva lāvanya bhṛkuṭi laṭa harati juvati jana pāju।
tāla bheda aughara sura sūcata nūpura kiṃkini bāju॥
nava nikuṃja abhirāma syāma sa~ga nīkau banyau samāju।
(jai śrī) hita harivaṃśa vilāsa rāsa juta jorī avicala rāju॥48॥

dekhi sakhī rādhā piya keli।
ye dou khori kharika giri gahavara, viharata ku~vara kaṃṭha bhuja meli॥
ye dou navala kisora rūpa nidhi, viṭapa tamāla kanaka manau beli।
adhara adana cuṃbana pariraṃbhana, tana pulakita āna~da rasa jheli॥
paṭa baṃdhana kaṃcuki kuca parasata, kopa kapaṭa nirakhata kara peli।
(jai śrī) hita harivaṃśa lāla rasa laṃpaṭa, dhāi dharata ura bīca sa~keli॥49॥

navala nāgari navala nāgara kisora mili, kuñja kauṃmala kamala dalani sijyā racī।
gaura syāmala aṃga rucira tāpara mile, sarasa mani nīla manauṃ mṛdula kaṃcana khacī॥
surata nībī nibaṃdha heta piya, māninī – priyā kī bhujani meṃ kalaha moṃhana macī।
subhaga śrīphala uraja pāni parasata, roṣa – huṃkāra garva dṛga bhaṃgi bhāmini lacī॥
koka koṭika rabhasa rahasi ‘harivaṃśa hita’, vividha kala mādhurī kimapi nā~hina bacī।
pranayamaya rasika lalitādi locana caṣaka, pivata makaraṃda sukha rāsi aṃtara sacī॥50॥

dāna dai rī navala kisorī।
mā~gata lāla lāड़ilau nāgara, pragaṭa bhaī dina dina kī corī॥
nava nāraṃga kanaka hīrāvali, vidruma sarasa jalaja mani gorī।
pūrita rasa pīyūṣa jugala ghaṭa, kamala kadali khaṃjana kī jorī॥
topaiṃ sakala sauṃja dāmini kī, kata satarāti kuṭila dṛga bhorī।
nūpura rava kiṃkinī pisuna ghara, ‘hita harivaṃśa’ kahata nahiṃ thorī॥51॥

dekhau māī suṃdaratā kī sīvā~।
vraja nava taruni kadaṃba nāgarī, nirakhi karatiṃ adhagrivā~॥
jo kou koṭi koṭi kalapa lagi jīvai rasanā koṭika pāvai।
taū rucira vadanārabiṃda kī sobhā kahata na āvai॥
deva loka bhūloka rasātala suni kavi kula mati ḍariye।
sahaja mādhurī aṃga aṃga kī kahi kāsauṃ paṭatariye॥
(jai śrī) hita harivaṃśa pratāpa rūpa guna vaya bala syāma ujāgara।
jākī bhrū vilāsa basa pasuriva dina vithakita rasa sāgara॥52॥

dekhau māī abalā ke bala rāsi।
ati gaja matta nirakuṃsa mohana ; nirakhi ba~dhe laṭa pāsi॥
abahīṃ paṃgu bhaī mana kī gati ; binu udyama aniyāsa।
tabakī kahā kahauṃ jaba priya prati ; cāhati bhṛkuṭi bilāsa॥
kaca saṃjamana vyāja bhuja darasati ; musakani vadana vikāsa।
hā harivaṃśa anīti rīti hita ; kata ḍārati tana trāsa॥53॥

nayau neha nava raṃga nayau rasa, navala syāma vṛṣabhānu kisorī।
nava pītāṃbara navala cūnarī; naī naī bū~dani bhīṃjata gorī॥
nava ‘vṛṃdāvana harita manohara nava cātaka bolata mora morī।
nava muralī ju malāra naī gati; śravana sunata āye ghana ghorī॥
nava bhūṣana nava mukuṭa virājata; naī naī urapa leta thorī thorī।
(jai śrī) hita harivaṃśa asīsa deta mukha cirajīvau bhūtala yaha jorī॥54॥

āju dou dāmini mili bahasīṃ।
vica lai syāma ghaṭā ati nauṃtana, tāke raṃga rasīṃ॥
eka camaki cahu~ ora sakhī rī, apane subhāi lasī।
āī eka sarasa gahanī meṃ, duhu~ bhuja bīca basī॥
aṃbuja nīla umai vidhu rājata, tinakī calana khasī।
(jai śrī) hita harivaṃśa lobha bheṭana mana, pūrana sarada sasī॥55॥

hauṃ bali jāū~ nāgarī syāma।
aisauṃ hī raṃga karau nisi vāsara, vṛṃdā virpina kuṭī abhirāma॥
hāsa vilāsa surata rasa siṃcana, pasupati dagdha jivāvata kāma।
(jai śrī) hita harivaṃśa lola locana alī, karahu na saphala sakala sukha dhāma॥56॥

prathama jathāmati pranaū~ (śrī) vṛṃdāvana ati ramya।
śrīrādhikā kṛpā binu sabake manani agamya॥
vara jamunā jala sīṃcana dinahīṃ sarada basaṃta।
vividha bhā~ti sumanasi ke saurabha alikula maṃta॥
aruna nūta pallava para kū~jata kokila kīra।
nirtani karata sikhī kula ati ānaṃda adhīra॥
bahata pavana ruci dāyaka sītala maṃda sugaṃdha।
aruna nīla sita mukulita jaha~ taha~ pūṣana baṃdha ।
ati kamanīya virājata maṃdira navala nikuṃja।
sevata sagana prītijuta dina mīnadhvaja puṃja॥
rasika rāsi jaha~ khelata syāmā syāma kisora।
ubhe bāhu pariraṃjita uṭhe unīṃde bhora॥
kanaka kapisa paṭa sobhita subhaga sā~vare aṃga।
nīla vasana kāmini ura kaṃcuki kasu~bhī suraṃga।॥।
tāla rabāba muraja upha bājata madhura mṛdaṃga।
sarasa ukati gati sūcata vara ba~surī mukha caṃga॥
dou mili cā~cari gāvata gaurī rāga alāpi।
mānasa mṛga bala vedhata bhṛkuṭi dhanuṣa dṛga cāpi॥
doū kara tārinu paṭakata laṭakata ita uta jāta।
ho ho horī bolata ati ānaṃda kulakāta॥
rasika lāla para melati kāmini baṃdhana dhūri।
piya picakārinu chirakata taki taki kuṃkuma pūri॥
kabahu~ kabahu~ caṃdana taru nirmita tarala hiṃḍola।
caḍha़i doū jana jhūlata phūlata karata kilo॥
vara hiṃḍora jha~koranī kāmini adhika ḍarāta।
pulaki pulaki vepatha a~ga prītama ura lapaṭāta॥
hita ciṃtaka niju cerinu ura āna~da na samāta।
nirakhi nipaṭa naiṃnani sukha tṛna toratiṃ vali jāta॥
ati udāra vivi suṃdara surata sūra sukumāra।
(jai śrī) hita harivaṃśa karau dina doū acala vihāra॥57॥

tere hita laiṃna āī, bana te syāma paṭhāī: harati kāmini ghana kadana kāma kau।
kāhe kauṃ karata bādhā, suni rī catura rādhā; bhaiṃṭi kaiṃ maiṃṭi rī māī pragaṭa jagata bhauṃ॥
dekha rajanī nīkī, racanā rucira pī kī; pulina nalina nava udita rauṃhinī dhau।
tū tau aba sayānī; taiṃ merī ekau na mānī; hauṃ tosauṃ kahata hārī juvati jugati sauṃ॥
moṃhanalāla chabīlau, apane raṃga raṃgīlau; mohata vihaṃga pasu madhura muralī rau।
ve to aba ganata tana jīvana jauvana taba; (jai śrī) hita harivaṃśa hari bhajahi bhāmini jau॥58॥

yaha ju eka mana bahuta ṭhaura kari, kahu kauneṃ sacu pāyau।
jaha~ taha~ vipati jāra juvatī lauṃ, pragaṭa piṃgalā gāyau।
dvai turaṃga para jori caḍha़ta haṭhi, parata kauna pai dhāyau।
kahidhauṃ kauna aṃka para rākhai, jo ganikā suta jāyau॥
(jai śrī) hita harivaṃśa prapaṃca baṃca saba kāla vyāla kau khāyau।
yaha jiya jāni syāma syāmā pada kamala saṃgi sira nāyau॥59॥

kahā kahauṃ ina nainani kī bāta।
ye ali priyā vadana aṃbuja rasa aṭake anata na jāta॥
jaba jaba rukata palaka saṃpuṭa laṭa ati ātura akulāta।
laṃpaṭa lava nimeṣa aṃtara te alapa kalapa sata sāta॥
śruti para kaṃja dṛgaṃjana kuca bica mṛga mada havai na samāta।
(jai śrī) hita harivaṃśa nābhi sara jalacara jā~cata sā~vala gāta॥60॥

āju sakhī bana meṃ ju bane praṃbhu nācate haiṃ braja maṃḍana।
vaisa kisora juvati aṃsuna para diyaiṃ vimala bhuja daṃḍana॥
koṃmala kuṭila alaka suṭhi sobhita abalaṃbita juga gaṃḍana।
mānahu madhupa thakita rasa laṃpaṭa nīla kamala ke khaṃḍana॥
hāsa vilāsa harata sabakau mana kāma samūha vihaṃḍana।
।śrī) hita harivaṃśa karata apanau jasa prakaṭa akhila brahmaṃḍana॥61॥

khelata rāsa dulahinī dūlahu।
sunahu na sakhī sahita lalitādika, nirakhi nirakhi naiṃnani kina phūlahu॥
ati kala madhura mahā mauṃhana dhuni, upajata haṃsa sutā ke kūlahu।
theī theī vacana mithuna mukha nisarata, suni suni deha dasā kina bhulahu॥
mṛdu pada nyāsa uṭhata kuṃkuma raja, adabhūta bahata samīra dukūlahu।
kabahu~ syāma syāmā dasanāṃcala- kaca kuca hāra chuvata bhuja mūlahu॥
ati lāvanya, rūpa, abhinaya, guna, nāhina koṭi kāma samatūlahu।
bhṛkuṭi vilāsa hāsa rasa baraṣata (jai śrī) hita harivaṃśa prema rasa jhūlahu॥62॥

mohana madana tribhaṃgī। mohana muni mana raṃgī॥
mohana muni saghana pragaṭa paramāna~da guna gaṃbhīra gupālā।
sīsa kirīṭa śravaṇa mani kuṃḍala ura maṃḍita bana mālā॥
pītāṃbara tana dhātu vicitrita kala kiṃkini kaṭi caṃgī।
nakha mani tarani carana sarasīrūha mohana madana tribhaṃgī॥
mohana baiṃnu bajāvai। ihiṃ rava nāri bulāvai॥
āīṃ braja nāri sunata baṃsī rava gṛha pati baṃdhu visāre।
darasana madana gupāla manohara manasija tāpa nivāre॥
haraṣita badana baiṃka avalokana sarasa madhura dhuni gāva।
madhumaya śyāma samāna adhara dhare mohana baiṃnu bajāve॥
rāsa racā bana mā~hī। vimala kalapa taru chā~hīṃ॥
vimala kalapataru tīra supeśala sarada raiṃna vara caṃdā।
sītala maṃda sugaṃdha pavana bahai tahā~ khelata naṃda naṃdā॥
adabhuta tāla mṛdaṃga manohara kiṃkini śabda karāhīṃ।
jamunā pulina rasika rasa sāgara rāsa racyo bana mā~hi॥
dekhata madhukara kelī। mohe khaga mṛga belī॥
mohe mṛgadhaiṃnu sahita sura suṃdari prema magana paṭa chūṭe।
uḍagana cakita thakita sasi maṃḍala koṭi madana mana lūṭe॥
adhara pāna pariraṃbhana ati rasa āna~da magana sahelī।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasika sacu pāvata dekhata madhukara kelī॥63॥

baiṃnu māī bājai baṃsīvaṭa।
sadā basaṃta rahata vṛṃdāvana pulina pavitra subhaga yamunā taṭa॥
jaṭita krīṭa makarākṛta kuṃḍala mukhāraviṃda bha~vara mānauṃ laṭa।
dasanani kuṃda kalī chavi lajjita lajjita kanaka samāna pīta paṭa॥
muni mana dhyāna dharata nahiṃ pāvata karata vinoda saṃga bālaka bhaṭa।
dāsa ananya bhajana rasa kārana hita harivaṃśa prakaṭa līlā naṭa॥64॥
mūla-madana madana dhana nikuṃja khelata hari, rākā rucira sarada rajanī।
yamunā pulina taṭa surataru ke nikaṭa, racita rāsa cali mili sajanī॥
vājata mṛdu mṛdaṃga nācata sabai sudhaṃga; taiṃ na śravana sunyau baiṃnu bajanī।
(jai śrī) hita harivaṃśa prabhu rādhikā ramana, mokauṃ bhāvai māī jagata bhagata bhajanī॥65॥

viharata doū prītama kuṃja।
anupama gaura syāma tana sobhā vana varaṣata sukha puṃja॥
adbhuta kheta mahā manamatha kau duṃdubhi bhūṣana rāva।
jūjhata subhaṭa paraspara a~ga a~ga upajata koṭika bhāva॥
bhara saṃgrāma amita ati abalā nidrāyata kāle naina।
piya ke aṃka nisaṃka taṃka tana ālasa juta kṛta saiṃna
lālana misa ātura piya parasada uru nābhi ūrajāta।
adbhuta chaṭā viloki avani para vithakita vepatha gāta॥
nāgari nirakhi madana viṣa vyāpita diyau sudhādhara dhīra।
satvara uṭhe mahāmadhu pīvata milata mīna miva nīra॥
avahīṃ maiṃ mukha madhya viloke biṃbādhara su rasāla।
jāgṛta tyauṃ bhrama bhayau parayau mana sata manasija kula jāla॥
sakṛdapi mayi adharāmṛta mupanaya suṃdari sahaja saneha।
tava pada paṃkaja ko niju maṃdira pālaya sakhi mama deha॥
priyā kahati kahu kahā~ hute piya nava nikuṃja vara rāja।
suṃdara vacana vacana kata vitarata rati laṃpaṭa binu kāja॥
itanauṃ śravana sunata mānini mukha aṃtara rahayau na dhīra।
mati kātara virahaja dukha vyāpita bahutara svāsa samīra॥
(jai śrī) hita harivaṃśa bhujani ākaraṣe lai rākhe ura mā~jha।
mithuna milata jū kachuka sukha upajyau truṭi lava miva bhaī sā~jha॥66॥

rucira rājata vadhū kānana kisorī।
sarasa ṣoḍasa kiyeṃ, tilaka mṛgamada diyeṃ,
mṛgaja locana ubaṭi aṃga sira khorī॥
gaṃḍa paṃḍīra maṃḍita cikura caṃdrikā,
medini kabari guṃthita suraṃga ḍorī।
śravaṇa tāṭaṃka kai. cibuka para biṃdu dai,
kasū~bhī kaṃcukī durai uraja phala korī॥
valaya kaṃkana doti, nakhana jāvaka joti,
udara guna rekha paṭa nīla kaṭi thorī।
subhaga jaghana sthalī kvanita kiṃkini bhalī,
koka saṃgīta rasa siṃdhu jhaka jhorī॥
vividha līlā racita rahasi harivaṃśa hita;
rasika siramaura rādhā ramana jorī।
bhṛkuṭi nirjita madana maṃda sasmita vadana,
kiye rasa vivasa ghana syāma piya gorī॥67॥

rāsa meṃ rasika mohana bane bhāminī।
subhaga pāvana pulina sarasa saurabha nalina,
matta madhukara nikara sarada kī jāminī॥
trividha rocaka pavana tāpa dinamani davana,
tahā~ ṭhāḍha़e ramana saṃga sata kāminī।
tāla bīnā mṛdaṃga sarasa nācata sudhaṃga;
eka te eka saṃgīta kī svāminī॥
rāga rāgini jamī vipina varasata amī,
adhara biṃbani ramī murali abhirāminī।
lāga kaṭṭara urapa sapta sura sauṃ sulapa
leti suṃdara sughara rādhikā nāminī॥
tatta theī theī karata gāṃva nautana dharata,
palaṭi ḍagamaga ḍharati matta gaja gāminī।
dhāi navaraṃga dharī urasi rājata kharī;
ubhaya kala haṃsa harivaṃśa ghana dāminī॥68॥

mohinī mohana raṃge prema suraṃga,
maṃtra mudita kala nācata sudhage।
sakala kalā pravīna kalyāna rāginī līna,
kahata na banai mādhurī aṃga aṃge॥
tarani tanayā tīra trividha sakhī samīra।
mānauṃ munī vrata dharayau kapotī kokilā kīra॥
nāgari nava kiśora mithuna manasi cora।
sarasa gāvata doū maṃjula maṃdara ghora॥
kaṃkana kiṃkini dhuni mukhara nūpurani suni।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasa varaṣata nava tarunī ॥69॥

āju sa~bhārata nā~hina gorī।
phūlī phira matta karinī jyauṃ surata samudra jhakorī॥
ālasa valita aruna dhūsara maṣi pragaṭa karata dṛga corī।
piya para karuna amī rasa baraṣata adhara arunatā thorī॥
bā~dhata bhṛṃgaṃ uraja aṃbuja para alakani baṃdha kisorī।
saṃgama kiraci kiraci kaṃcuki ba~dha sithila bhaī kaṭi ḍorī॥
deti asīsa nirakhi juvatī jana jinakeṃ prīti na thorī।
(jai śrī) hita harivaṃśa vipina bhūtala para saṃtata avicala jorī॥70॥

syāma sa~ga rādhikā rāsa maṃḍala banī।
bīca naṃdalāla brajavāla caṃpaka varana,
jyauṃva ghana taḍita bica kanaka marakata manī॥
leti gati māna tatta theī hastaka bheda,
sa re ga ma pa dha ni ye sapta sura naṃdinī।
nirta rasa pahira paṭa nīla pragaṭita chabī,
vadana janu jalada meṃ makara kī caṃdinī॥
rāga rāgini tāna māna saṃgīta mata,
thakita rākeśa nāma sarada kī jāminī।
(jai śrī) hita harivaṃśa prabhu haṃsa kaṭi keharī,
dūri kṛta madana mada matta gaja gāminī॥71॥

suṃdara pulina subhaga sukha dāika।
nava nava ghana anurāga paraspara khelata ku~vara nāgarī nāṃika।
sītala haṃsa sutā rasa bicinu parasi pavana sīkara mṛdu varaṣata।
vara maṃdāra kamala caṃpaka kula saurabha sarasi mithuna mana haraṣata।
sakala sudhaṃga vilāsa parāvadhi nācata navala mile sura gāvata।
mṛgaja mayūra marāla bhramara pika adabhuta koṭi madana sira nāvata।
nirmita kusuma saiṃna madhu pūrita bhajana kanaka nikuṃja virājata।
rajanī mukha sukha rāsi paraspara surata samara doū dala sājata॥
viṭa kula nṛpati kisorī kara dhṛta, budhi bala nībī baṃdhana mocata।
‘neti neti’ vacanāmṛta bolata pranaya kopa prītama nahiṃ socata ।
(jai śrī) hita harivaṃśa rasika lalitādika latā bhavana raṃdhrani avalokata।
anupama sukha bhara bharita vivasa asu āna~da vāri kaṃṭha dṛga rokata॥72॥

khaṃjana mīna mṛgaja mada meṃṭata, kahā kahauṃ nainaniṃ kī bātaiṃ।
sanī suṃdarī kahā~ lauṃ sikhaīṃ, mohana basīkarana kī ghātaiṃ।
baṃka nisaṃka capala aniyāre, aruna syāma sita race kahā~ taiṃ।
ḍarata na harata parayau sarvasu mṛdu madhumiva mādika dṛga pātaiṃ॥
naiṃku prasanna dṛṣṭi pūrana kari, nahiṃ motana citayau pramadā taiṃ।
(jai śrī) hita harivaṃśa haṃsa kala gāmini, bhāvai so karahu prema ke nātaiṃ॥73॥

kāhe kauṃ māna baḍha़āvatu hai bālaka mṛga locani।
hauṃba ḍarani kachu kahi na sakati ika bāta sa~kocanī ।
matta muralī aṃtara tava gāvata jāgṛta saiṃna tavākṛti socani।
(jai śrī) hita harivaṃśa mahā mohana piya ātura viṭa virahaja dukha mocani ॥74॥

hauṃ ju kahati ika bāta sakhī, suni kāhe kauṃ ḍārata?
prānaramana sauṃ kyauṃ’ba karata, āgasa binu ārata॥
piya citavata tuva caṃda vadana tana, tū~ adhamukha niju carana nihārati।
ve mṛdu cibuka praloi prabodhata, tū~ bhāmini kara sauṃ kara ṭārati॥
vibasa adhīra viraha ati katara sara ausara kachuvai na vicārati।
(jai śrī) hita harivaṃśa rahasi prītama mili, tṛṣita naiṃna kāhe na pratipārati॥75॥

nāgarīṃ nikuṃja aiṃna kisalaya dala racita saiṃna,
koka kalā kusala ku~vari ati udāra rī।
surata raṃga aṃga aṃga hāva bhāva bhṛkuṭi bhaṃga,
mādhurī taraṃga mathata koṭi māra rī।
mukhara nūpurani subhāva kiṃkanī vicitra rāva,
virami virami nātha vadata vara vihāra rī।
lāḍa़ilī kiśora rāja haṃsa haṃsinī samāja,
sīṃcata harivaṃśa naiṃna surasa sāra rī॥76॥

laṭakati phirati juvati rasa phūlī।
latā bhavana meṃ sarasa sakala nisi, piya sa~ga surata hiṃḍore jhūlī॥
jaddapi ati anurāga rasāsava pāna vivasa nāhiṃna gati bhūlī।
ālasa valita naiṃna vigalita laṭa, ura para kachuka kaṃcukī khūlī॥
maragajī māla sithila kaṭi baṃdhana, citrita kajjala pīka dukūlī।
(jai śrī) hita harivaṃśa madana sara jarajara , vithakita syāma sa~jīvana mūlī॥77॥

sudhaṃga nācata navala kisorī।
theī theī kahati cahati prītama disi, vadana caṃda manauṃ triṣita cakorī॥
tāna baṃdhāna māna meṃ nāgari dekhata syāma kahata ho ho horī।
(jai śrī) hita harivaṃśa mādhurī a~ga a~ga, baravasa liyau mohana cita corī॥78॥

rahasi rahasi mohana piya ke saṃga rī, laḍa़aitī ati rasa laṭakati।
sarasa sudhaṃga aṃga meṃ nāgari, theī theī kahati avani pada paṭakati॥
koka kalā kula jāni siromani, abhinaya kuṭila bhṛkuṭiyani maṭakati।
vivasa bhaye prītama ali laṃpaṭa, nirakhi karaja nāsā puṭa caṭakati ॥
guna ganu rasika rāi cūḍa़āmani rijhavati padika hāra paṭa jhaṭakati।
(jai śrī) hita harivaṃśa nikaṭa dāsījana, locana caṣaka rasāsava gaṭakati॥79॥

vallavī su kanaka vallarī tamāla syāma saṃga,
lāgi rahī aṃga aṃga manobhirāminī।
vadana joti manauṃ mayaṃka alakā tilaka chabi kalaṃka,
chapati syāma aṃka manauṃ jalada dāminī॥
vigata vāsa hema khaṃbha manauṃ bhuvaṃga vainī daṃḍa,
piya ke kaṃṭha prema puṃja kuṃja kāminī।
(jai śrī) sobhita harivaṃśa nātha sātha surata ālasa vaṃta,
uraja kanaka kalasa rādhikā sunāminī॥80॥

vṛṣabhānu naṃdinī madhura kala gāvai।
vikaṭa auṃghara tāna carcarī tāla sauṃ, naṃdanaṃdana manasi moda upajāvai॥
prathama majjana cāru cīra kajjala tilaka, śravaṇa kuṃḍala vadana caṃdani lajāvai।
subhaga nakabesarī ratana hāṭaka jarī, adhara baṃdhūka dasana kuṃda camakāvai॥
valaya kaṃkana cāru urasi rājata hāru, kaṭiva kiṃkinī carana nūpura bajāvai।
haṃsa kala gāminī mathati mada kāminī, nakhani madayaṃtikā raṃga ruci dyāve ॥
nirtta sāgara rabhasi rahasi nāgari navala, caṃda cālī vividha bhedani janāvai।
koka vidyā vidita bhāi abhinaya nipuna, bhū vilāsani makara ketani nacāvai॥
niviḍa़ kānana bhavana bāhu raṃjita ravana, sarasa ālāpa sukha puṃja barasāvai।
ubhai saṃgama siṃdhu surata pūṣana badhu, dravata makaraṃda harivaṃśa alī pāvai॥81॥

nāgaratā kī rāśi kisorī।
nava nāgara kula mauli sā~varī, vara basa kiyo citai mukha morī॥
rūpa rucira aṃga aṃga mādhurī, vinu bhūṣana bhūṣita braja gorī।
china china kusala sudhaṃga aṃga meṃ, koka ramasa rasa siṃdhu jhakorī।
caṃcala rasika madhupa mauṃhana mana. rākhe kanaka kamala kuca korī।
prītama naiṃna jugala khaṃjana khaga, bā~dhe vividha nibaṃdha ḍorī।
avanī udara nābhi sarasī meṃ, manauṃ kachuka madika madhu ghorī।
(jai śrī) hita harivaṃśa pivata suṃdara vara, sīṃva sudṛḍha़ nigamani kī torī॥82॥

chā~ḍa़idaiṃ māninī māna mana dharibau।
pranata suṃdara sughara prānavallabha navala,
vacana ādhīna sauṃ itau kata karibauṃ। ।
japata hari vivasa tava nāma pratipada vimala,
manasi tava dhyāna te nimiṣa nahiṃ ṭaribau।
ghaṭati palu palu subhaga sarada kī jāmīnī,
bhāminī sarasa anurāga disi ḍharibau॥
hauṃ ju kahati niju bāta suno mani sakhi,
sumukhi binu kāja ghana viraha dukha bharī vai।
milata harivaṃśa hita’ kuṃja kisalaya sayana,
karata kala keli sukha siṃdhu meṃ tiribau॥83॥

ājuba dekhiyata hai ho pyārī raṃga bharī।
mopai na durati corī vṛṣabhānu kī kiśorī;
sithila kaṭi kī ḍorī,naṃda ke lālana sauṃ surata larī॥
motiyana lara ṭūṭī cikura caṃdrikā chūṭī
rahasi rasika lūṭī gaṃḍani pīka parī।
nainani ālasa basa adhara biṃba nirasa;
pulaka prema parasa hita harivaṃśa rī rājata kharī॥84॥

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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