सोने वालो जागो
“सोने वालो जागो” स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया ‘नवल’ द्वारा हिंदी खड़ी बोली में रचित कविता है। इसमें आलस्य और निद्रा को छोड़कर देश व समाज के नवनिर्माण का आह्वान किया गया है। पढ़ें यह कविता–
कब का हुआ प्रभात अरे ओ सोने वालो जागो
देखो तो कब की पूरब में अरुणाई फूटी है।
अन्धकार पर रवि की किरणें वज्र सदृश छूटी हैं।।
कब की धरा हँस उठी, देखो अम्बर मुस्काया है।
विजय गर्व में झूम-झूम कर सागर लहराया है।।
कोटि-कोटि कंठों में पंछी कब के जय गाते हैं।
इन्द्र धनुष से कोटि-कोटि जय के तन लहराते हैं।।
अमर प्रेम की बेला में तुम भी निद्रा को त्यागो।
कब का हुआ प्रभात अरे ओ सोने वालो जागो।।
है कब का शासक बदल गया युग भी बदल गया है।
छोड़ो चाल पुरानी अब तो पथ भी बदल गया है। ।
कब का अम्बर बदल गया है धरती बदल गई है।
गंगा-यमुना की धारा भी देखो आज नई है।।
पर जीवन की धार तुम्हारी अब तक वही पुरानी।
बतलाओ कब तक बदलेगी यह मदहोश जवानी।।
उठो कर्म की बेला है तुम भी आलस को त्यागो।
कब का हुआ प्रभाव अरे ओ सोने वालो जागो। ।
उठो! बदल दो जीर्ण पुरातन, नवयुग को आने दो।
नई चेतना, नए विचारों को अवसर पाने दो।।
उठो ! बदल दो जीत, पुराने स्वर-लय नये रचाओ।
जननी का अभिनन्दन करने को नव थाल सजाओ ॥
अभिशापों को आज बदल करके वरदान बनाओ।
पाषाणों को छोड़ मनुज को ही भगवान बनाओ ॥
यही आज वरदान मुक्त जननी से तुम सब माँगो।
कब का हुआ प्रभात अरे ओ सोने वालो जागो॥

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय।