सुपार्श्वनाथ चालीसा – Bhagwan Suparshvanath Chalisa
सुपार्श्वनाथ चालीसा में दिव्य शक्तियाँ निहित हैं। जो भी नियम से इसका पाठ करता है, उसके सारे संकट कट जाते हैं। जीवन में उसकी राह स्वतः ही आसान हो जाती है और काम बनने लगते हैं। जो मंदिर में जाकर सुपार्श्वनाथ चालीसा (Suparshvanath Chalisa) को पढ़ता अथवा गाता है, निश्चित ही उसकी सभी इच्छाएँ पूरी होती हैं। पढ़ें सुपार्श्वनाथ चालीसा–
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भगवान सुपार्श्वनाथ का चिह्न – स्वस्तिक
लोक शिखर के वासी हैं प्रभु,
तीर्थंकर सुपार्श्व जिननाथ।
नयन द्वार को खोल खड़े हैं,
आओ! विराजो! हे जगनाथा॥
सुन्दर नगर वाराणसी स्थित।
राज्य करें राजा सप्रतिष्ठित॥
पृथ्वीसेना उनकी रानी।
देखें स्वप्न सोलह अभिरामी॥
तीर्थंकर सुत गर्भ में आए।
सुरगण आकर मोद मनायें॥
शुक्ला ज्येष्ठ द्वादशी शुभ दिन।
जन्मे अहमिन्द्र योग में श्रीजिन॥
जन्मोत्सव की खुशी असीमित।
पुरी वाराणसी हुई सुशोभित॥
बढ़े सुपार्श्वजिन चन्द्र समान।
मुख पर बसे मन्द मुस्कान॥
समय प्रवाह रहा गतिशील।
कन्याएँ परणाई सुशील॥
लोक प्रिय शासन कहलाता।
पर दुष्टों का दिल दहलाता॥
नित प्रति सुन्दर भोग भोगते।
फिर भी कर्मबन्ध नहीं होते॥
तन्मय नहीं होते भोगों में।
दृष्टि रहे अन्तर-योगों में॥
एक दिन हुआ प्रबल वैराग्य।
राजपाट छोड़ा मोह त्याग॥
दृढ़ निश्चय किया तप करने का।
करें देव अनुमोदन प्रभु का॥
राजपाट निज सुत को देकर।
गए सहेतुक वन में जिनवर॥
ध्यान में लीन हुए तपधारी।
तपकल्याणक करें सुर भारी॥
हुए एकाग्र श्री भगवान।
तभी हुआ मनःपर्यय ज्ञान॥
शुद्धाहार लिया जिनवर ने।
सोमखेट भूपति के गृह में॥
वन में जा कर हुए ध्यानस्थ।
नौ वर्षों तक रहे छद्मस्थ॥
दो दिन का उपवास धार कर।
तर शिरीष तल बैठे जा कर॥
स्थिर हुए पर रहे सक्रिया।
कर्मशत्रु चतुः किये निष्क्रिया॥
क्षपक श्रेणी में हुए आरूढ़।
ज्ञान केवली पाया गूढ़॥
सुरपति ने ज्ञानोत्सव कीना।
धनपति ने समोशरण रचीना॥
विराजे अधर सुपार्श्वस्वामी।
दिव्यध्वनि खिरती अभिरामी॥
यदि चाहो अक्षय सुखपाना।
कर्माश्रव तज संवर करना॥
अविपाक निर्जरा को करके।
शिवसुख पाओ उद्यम करके॥
चतुः दर्शन-ज्ञान अष्ट बतायें।
तेरह विधि चारित्र सुनायें॥
बाह्माभ्यन्तर तप की महिमा।
तप से ही मिलती गुण गरिमा॥
सब देशों में हुआ विहार।
भव्यों को किया भव से पार॥
एक महीना उम्र रही जब।
शैल सम्मेद पे, किया उग्र तप॥
फाल्गुन शुक्ल सप्तमी आई।
मुक्ति महल पहुँचे जिनराई॥
निर्वाणोत्सव को सुर आये।
कूट प्रभास की महिमा गाये॥
‘स्वास्तिक’ चिन्ह सहित जिनराज।
पार करें भव सिन्धु-जहाज॥
जो भी प्रभु का ध्यान लगाते।
उनके सब संकट कट जाते॥
चालीसा सुपार्श्व स्वामी का।
मान हरे क्रोधी कामी का॥
जिनमन्दिर में जाकर पढ़ना।
प्रभु का मन से नाम सुमरना॥
‘अरुणा’ को है दृढ़ विश्वास।
पूरण होवे सबकी आस॥
जाप – ॐ ह्रीं अर्हं सुपार्श्वनाथाय नमः
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर सुपार्श्वनाथ चालीसा (Suparshvanath Chalisa) चालीसा को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें सुपार्श्वनाथ चालीसा रोमन में–
Read Suparshvanath Chalisa
loka śikhara ke vāsī haiṃ prabhu,
tīrthaṃkara supārśva jinanātha।
nayana dvāra ko khola khaḍa़e haiṃ,
āo ! virājo ! he jaganāthā॥
sundara nagara vārāṇasī sthita।
rājya kareṃ rājā sapratiṣṭhita॥
pṛthvīsenā unakī rānī।
dekheṃ svapna solaha abhirāmī॥
tīrthaṃkara suta garbha meṃ āe।
suragaṇa ākara moda manāyeṃ॥
śuklā jyeṣṭha dvādaśī śubha dina।
janme ahamindra yoga meṃ śrījina॥
janmotsava kī khuśī asīmita।
purī vārāṇasī huī suśobhita॥
baḍha़e supārśvajina candra samāna।
mukha para base manda muskāna॥
samaya pravāha rahā gatiśīla।
kanyāe~ paraṇāī suśīla॥
loka priya śāsana kahalātā।
para duṣṭoṃ kā dila dahalātā॥
nita prati sundara bhoga bhogate।
phira bhī karmabandha nahīṃ hote॥
tanmaya nahīṃ hote bhogoṃ meṃ।
dṛṣṭi rahe antara-yogoṃ meṃ॥
eka dina huā prabala vairāgya।
rājapāṭa choḍa़ā moha tyāga॥
dṛḍha़ niścaya kiyā tapa karane kā।
kareṃ deva anumodana prabhu kā॥
rājapāṭa nija suta ko dekara।
gae sahetuka vana meṃ jinavara॥
dhyāna meṃ līna hue tapadhārī।
tapakalyāṇaka kareṃ sura bhārī॥
hue ekāgra śrī bhagavāna।
tabhī huā mana:paryaya jñāna॥
śuddhāhāra liyā jinavara ne।
somakheṭa bhūpati ke gṛha meṃ॥
vana meṃ jā kara hue dhyānastha।
nau varṣoṃ taka rahe chadmastha॥
do dina kā upavāsa dhāra kara।
tara śirīṣa tala baiṭhe jā kara॥
sthira hue para rahe sakriyā।
karmaśatru catuḥ kiye niṣkriyā॥
kṣapaka śreṇī meṃ hue ārūḍha़।
jñāna kevalī pāyā gūḍha़॥
surapati ne jñānotsava kīnā।
dhanapati ne samośaraṇa racīnā॥
virāje adhara supārśvasvāmī।
divyadhvani khiratī abhirāmī॥
“yadi cāho akṣaya sukhapānā।
karmāśrava taja saṃvara karanā॥
avipāka nirjarā ko karake।
śivasukha pāo udyama karake॥
cata: darśana-jñāna aṣṭa batāyeṃ।
teraha vidhi cāritra sunāyeṃ॥
bāhmābhyantara tapa kī mahimā।
tapa se hī milatī guṇa garimā॥
saba deśoṃ meṃ huā vihāra।
bhavyoṃ ko kiyā bhava se pāra॥
eka mahīnā umra rahī jaba।
śaila sammeda pe, kiyā ugra tapa॥
phālguna śukla saptamī āī।
mukti mahala pahu~ce jinarāī॥
nirvāṇotsava ko sura āye।
kūṭa prabhāsa kī mahimā gāye॥
‘svāstika’ cinha sahita jinarāja।
pāra kareṃ bhava sindhu-jahāja॥
jo bhī prabhu kā dhyāna lagāte।
unake saba saṃkaṭa kaṭa jāte॥
cālīsā supārśva svāmī kā।
māna hare krodhī kāmī kā॥
jinamandira meṃ jākara paḍha़nā।
prabhu kā mana se nāma sumaranā॥
‘aruṇā’ ko hai dṛḍha़ viśvāsa।
pūraṇa hove sabakī āsa॥
jāpa:- oṃ hrīṃ arha supārśvanāthāya namaḥ