स्वामी विवेकानंद के पत्र – कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखित (अप्रैल, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का कुमारी जोसेफिन मैक्लिऑड को लिखा गया पत्र)
१७१९, टर्क स्ट्रीट,
सैन फ़्रांसिस्को,
कैलिफोर्निया,
अप्रैल, १९००
प्रिय ‘जो’,
तुम्हारे फ़्रांस जाने के पूर्व तुमसे एक बात कहनी है। क्या तुम इंग्लैण्ड होते हुए वहाँ जा रही हो? मुझे श्रीमती सेवियर का एक सुन्दर सा पत्र मिला था, जिससे मुझे पता चला कि कुमारी मूलर ने काली को, जो कि उनके साथ दार्जिलिंग में रह चुका था, बिना कुछ और लिखे मात्र एक अख़बार भेजा है।
कांग्रीव उनके भतीजे का नाम है और वह ट्रान्सवाल के युद्ध में है। यही कारण है कि उन्होंने अख़बार की उन पंक्तियों को रेखांकित कर दिया था, यह दिखाने के लिए कि उनका भाई ट्रान्सवाल में बोअरों से लड़ रहा है। बस। जितना कुछ मैं पहले समझा था, उससे अधिक कुछ और नहीं समझ सका हूँ।
शारीरिक दृष्टि से लॉस एंजिलिस की अपेक्षा यहाँ मेरी तन्दुरूस्ती अधिक . खराब है, पर मानसिक दृष्टि से अधिक अच्छा, सशक्त तथा शान्त हूँ। आशा है कि यह ऐसा ही रहेगा।
अपने पत्र के उत्तर में तुम्हारा कोई पत्र मुझे नहीं मिला, हालाँकि उसके पाने की मुझे शीघ्र ही उम्मीद थी।
भारत से आनेवाला मेरा एक पत्र भूल से श्रीमती हीलर के पते पर भेज दिया गया था, पर अन्त में वही सही-सलामत मुझे मिल गया। सारदानन्द के कई सुन्दर पत्र मिले, वे सब वहाँ अच्छा काम कर रहे हैं। लड़के काम में जुट गये हैं। इस तरह तुम देखती हो न, डाँट-फटकार का एक दूसरा पहलू भी है, वह उकसाकर उनसे काम भी करवाती है।
हम भारतवासी इतने लम्बे समय से परापेक्षी रहे हैं, कि मुझे यह कहते हुए दुःख होता है कि उन्हें कर्मठ बनाने के लिए पर्याप्त भर्त्सना की आवश्यकता है। इस वर्ष वार्षिकोत्सव का कार्य-भार एक महा सुस्त व्यक्ति ने लिया था और उसने उसे ठीक प्रकार से सम्पन्न भी कर दिया। वे योजना बनाकर सफलतापूर्वक दुर्भिक्षकार्य बिना मेरी सहायता के अपने आप कर रहे हैं।… इसमें संदेह नहीं कि यह सब मेरी बराबर भर्त्सना करते रहने का परिणाम है!
वे आपने पाँवों पर खड़े हैं। मैं बहुत ख़ुश हूँ। देखो न ‘जो’ यह सब जगन्माता ही कर रही हैं।
मैंने कुमारी थर्सबी का पत्र श्रीमती हीयर्स्ट के पास भेज दिया। उन्होंने अपने संगीत के कार्यक्रम का एक निमंत्रण-पत्र मुझे भेजा था। मैं नहीं जा सका। मुझे बहुत जोर का जुकाम था। बात यहीं ख़त्म हो गयी। एक दूसरी महिला जो ओकलैण्ड की हैं और जिनके लिए मेरे पास कुमारी थर्सबी का पत्र था, उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। मैं नहीं जानता कि मैं शिकागो जाने भर के लिए फ़्रिस्को में काफी पैसा कमा भी सकूँगा या नहीं! ओकलैण्डवाला काम सफल रहा है। ओकलैण्ड से मुझे सौ डालर प्राप्त होने की आशा है, और कुछ नहीं। कुल मिला कर मैं सन्तुष्ट हँ। यह अच्छा ही हुआ कि मैंने कोशिश की थी… यहाँ तक कि उस चुम्बकीय रोगनिवारक (magnetic healer) के पास भी मुझे देने को कुछ नहीं था। ख़ैर, मेरा काम यूँही चलता रहेगा, मुझे इसकी चिन्ता नहीं कि कैसे?…मैं बड़ी शान्ति में हूँ। लॉस एंजिलिस से मुझे सूचना मिली है कि श्रीमती लेगेट की हालत फिर ख़राब हो गयी। मैंने इसकी सचाई जानने के लिए न्यूयार्क तार भेजा है। उम्मीद है कि जल्दी ही मुझे कोई उत्तर मिलेगा।
लेगेट-परिवार के देश के दूसरे भाग में चले जाने के बाद, बताओ तुम मेरी डाक का क्या प्रबन्ध करोगी? क्या तुम ऐसा प्रबन्घ कर दोगी कि वह मुझे सहीसलामत मिलती रहे?
अब अधिक क्या लिखूँ; तुम्हारे प्रति मेरे मन में स्नेह और कृतज्ञता है, इसे तुम जानती ही हो। जितने का मैं पात्र नहीं था, उससे अधिक तुमने मेरे लिए किया। मैं नहीं जानता कि मैं पेरिस जाऊँगा या नहीं, पर इतना निश्चित है कि मई में मैं इँग्लैण्ड अवश्य जाऊँगा। इंग्लैण्ड में कुछ हफ़्ते तक और प्रयत्न किये बिना मैं घर हरगिज वापस नहीं जाऊँगा। प्यार सहित।
प्रभुपदाश्रित सदैव तुम्हारा,
विवेकानन्द
पुनश्च – श्रीमती हैन्सबॉरो तथा श्रीमती अपेनल ने एक महीने के लिए १७१९, टर्क स्ट्रीट में ही एक फ़्लैट ले लिया है। मैं उन्ही लोगों के साथ हूँ और कुछ हप्ते तक रहूँगा।
वि.