स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखित (24 मई, 1893)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती इन्दुमती मित्र को लिखा गया पत्र)
बम्मई,
२४ मई, १८९३
माँ,
तुम्हारा और प्रिय हरिपद बाबाजी का पत्र पाकर बड़ी प्रसन्नता हुई। बराबर तुमको पत्र न लिख सका, इससे दुःख न मानो। मैं सदैव परमात्मा से तुम्हारे कल्याण की प्रार्थना करता हूँ। ३१ तारीख को मेरी अमेरिका-यात्रा निश्चित हो चुकी है, इसीलिए मैं अब बेलगाँव न जा सकूँगा। ईश्वर ने चाहा, तो अमेरिका और यूरोप से लौटने के बाद मैं तुमसे मिलूँगा। सदा श्री कृष्ण के चरणों में आत्म-समर्पण करती रहना। सदा इस बात का ध्यान रखना कि हम सब प्रभु के हाथ की कठपुतली हैं। सदा पवित्र रहना। मनसा वाचा कर्मणा पवित्र रहने की चेष्टा करती रहना और यथासाध्य दूसरों की भलाई करना। याद रखना, कि मनसा वाचा कर्मणा पति-सेवा करना ही स्त्री का मुख्य धर्म है नित्य यथाशक्ति गीता-पाठ करती रहना। तुमने अपने को इन्दुमती ‘दासी’ क्यों लिखा है? ‘दास’ और ‘दासी’ वैश्य अथवा शूद्र लिखा करते हैं; ब्राह्मण और क्षत्रिय को ‘देव’ या ‘देवी’ लिखना चाहिए। और फिर यह जाति-भेद तो आजकल के ब्राह्मण महात्माओं का किया हुआ है। कौन किसका दास है? सब हरि के दास हैं। अतएव प्रत्येक महिला को अपने पति का गोत्र नाम देना चाहिए, यही पुरानी वैदिक प्रथा है, जैसे इन्दुमती ‘मित्र’ इत्यादि। अधिक क्या लिखूँ; माँ, यह हमेशा याद रखना कि तुम लोगों के कल्याण के लिए मैं सर्वदा प्रार्थना कर रहा हूँ, प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि तुम शीघ्र पुत्रवती हो जाओ। अमेरिका जाकर वहाँ की आश्चर्यजनक बातें मैं तुमको बीच-बीच में पत्रों द्वारा लिखता रहूँगा। मैं इस समय बम्बई में हूँ और ३१ तारीख तक यहीं रहूँगा। खेतड़ी नरेश के प्राइवेट सेक्रेटरी मुझे यहाँ तक पहुँचाने आये हैं। किमधिकमिति।
आशीर्वादक,
सच्चिदानन्द