स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्रीमती ओलि बुल को लिखित (29 दिसम्बर, 1898)
(स्वामी विवेकानंद का श्रीमती ओलि बुल को लिखा गया पत्र)
वैद्यनाथ, देवधर
२९ दिसम्बर, १८९८
प्रिय धीरा माता,
यह आपको पहले ही विदित हो गया है कि मैं आपका साथ देने में समर्थ नहीं हो सकूँगा। आपके साथ जाने लायक शारीरिक शक्ति मैं संचय नहीं कर पा रहा हूँ। छाती में जो सर्दी जम चुकी थी, वह अभी तक विद्यमान है, और उसका फल यह है कि उसने मुझे भ्रमण के योग्य नहीं रखा है। सच बात यह है कि यहाँ पर क्रमशः मैं आरोग्य प्राप्त कर लूँगा, ऐसी मुझे आशा है।
मुझे यह पता चला है कि मेरी बहन विगत कुछ वर्षों से किसी विशेष संकल्प को लेकर अपनी मानसिक उन्नति के लिए प्रयत्नशील है। बंगला साहित्य के द्वारा जितना जाना जा सकता है – खासकर तत्त्वज्ञान के विषय में – उसने उसको अधिगत कर लिया है और उसका परिणाम भी विशेष कम नहीं है। इस बीच में उसने अपना नाम अंग्रेजी तथा रोमन अक्षरों में लिखना सीख लिया है। इस समय उसे विशेष शिक्षा प्रदान करना मानसिक परिश्रम-सापेक्ष है; अतः उस कार्य से मैं विरत हूँ। कोई कार्य किये बिना मैं समय बिताना चाहता हूँ एवं बलपूर्वक विश्राम ले रहा हूँ।
अब तक मैंने आप पर केवल श्रद्धा ही की है, किन्तु वर्तमान घटनाओं से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महामाया ने आपको मेरी दैनिक जीवनचर्या पर दृष्टि रखने के लिए नियुक्त किया है; अतः प्रेम के साथ ही प्रगाढ़ विश्वास हो गया है। इसके आगे मैं अपने जीवन तथा कार्यप्रणाली के बारे में यह सोचूँगा कि आपको माँ की आज्ञा मिल चुकी है, अतः सारा उत्तरदायित्व मेरे कन्धे से हटाकर आपके द्वारा महामाया जो निर्देश देंगी, उसे ही मैं मानता रहूँगा।
यूरोप अथवा अमेरिका में शीघ्र ही मैं आपसे मिल सकूँगा,
आपकी स्नेहास्पद सन्तान,
विवेकानन्द