स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखित (26 अक्टूबर, 1893)

(स्वामी विवेकानंद का प्रोफेसर जॉन हेनरी राइट को लिखा गया पत्र)

द्वारा जे. लायन्,
२६२, मिशिगन एवेन्यू, शिकागो,
२६ अक्टूबर, १८९३

प्रिय अध्यापक जी,

आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि मै यहाँ सकुशल हूँ और कुछ घोर पुराणपंथियों के अतिरिक्त सभी लोग मेरे प्रति अतिशय कृपालु हैं। दूर देशों से यहाँ आकर बसे लोगों की अपनी योजनाएँ, विचार एवं जीवन-व्रत हैं, जिन्हें वे पूरा करना चाहते हैं; और यह अमेरिका ही एक ऐसी जगह है, जहाँ हर चीज की सफलता की संभावना है।

किन्तु मैंने इसी को उचित समझ कर अपनी योजना पर भाषण देना एकदम समाप्त कर दिया है, क्योंकि मुझे दृढ़ विश्वास हो गया है कि यह विधर्मी अपनी योजना से अधिक आकर्षक प्रतिपन्न हो रहा है। अतएव, मैं अपनी योजना को पृष्ठभूमि में ही रखकर, अन्य सभी वक्ताओं के सदृश काम करते हुए अपनी योजना के निमित्त अध्यवसायपूर्वक कार्य करना चाहता हूँ।

जो मुझे यहाँ लाया है, और जिसने अब तक मेरा साथ नहीं छोड़ा है, जब तक मैं यहाँ रहूँगा, तब तक वह मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेगा। आप यह जानकर खुश ही होंगे कि मैं अपने कार्य में बहुत सफलता प्राप्त कर रहा हूँ और जहाँ तक धन की बात है, तो उसमें और अधिक सफल होने की आशा है। यद्यपि इस ढंग के व्यवसाय में मैं एकदम अनुभवहीन हूँ, फिर भी शीघ्र ही सीख जाऊँगा। शिकागो में तो मैं बहुत लोकप्रिय हूँ। इसलिए मैं और कुछ दिन ठहरना और धन-संग्रह करना चाहता हूँ।

कल मैं महिलाओं के पाक्षिक क्लब में बौद्ध धर्म पर भाषण दूँगा। शहर में यह सर्वाधिक प्रभावशाली क्लब है। मेरे मित्र, किस प्रकार मैं आपको धन्यवाद दूँ या उस परम पिता को, जिन्होंने मुझे आप तक पहुँचाया, क्योंकि मेरे विचार से योजना का साफल्य सम्भव है, और आप ही ने, उसे संभव किया है।

विश्व में आपकी प्रगति का हर पग आनन्द एवं मंगल से स्नात हो! आपके बच्चों के लिए मेरा प्यार एवं आशीर्वाद!

आपका चिरस्नेही,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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