स्वामी विवेकानंद के पत्र – श्री आलसिंगा पेरूमल को लिखित (23 मार्च, 1896)
(स्वामी विवेकानंद का श्री आलासिंगा पेरुमल को लिखा गया पत्र)
बोस्टन,
२३ मार्च, १८९६
प्रिय आलासिंगा,
…तुम्हारे पत्र का जवाब मैं शीघ्र न दे सका; तथा अभी भी मुझे बहुत जल्दी करनी पड़ रही है। मेरे नये संन्यासियों में निश्चय ही एक स्त्री है। पहले ये मजदूरों की नेता थांी।… शेष सब पुरुष हैं। मैं इंग्लैण्ड में कुछ थोड़े से और संन्यासी बनाकर भारत अपने साथ लाऊँगा। भारत में इनके ‘सफ़ेद’ वर्ण का प्रभाव हिन्दुओं से भी अधिक होगा इसके अतिरिक्त ये फुर्तीले हैं, जब कि हिन्दू मृतप्राय हैं। भारत में आशा केवल साधारण जनता से है। उच्च श्रेणी के लोग शारीरिक और नैतिक दृष्टि से मृतवत् हैं।…
मेरी सफलता का कारण मेरी लोकप्रिय शैली है – गुरु की महानता उसकी सरल भाषा में निहित है।
…मैं अगले महीने इंग्लैण्ड जा रहा हूँ। मुझे प्रतीत होता है कि मैंने अत्यधिक काम किया है। इस दीर्घकाल तक लगातार काम से मेरी नसों की शक्ति नष्ट हो गयी। मैं तुमसे सहानुभूति नहीं चाहता ; परन्तु मैं इसलिए यह लिखता हूँ कि तुम मुझसे अब कुछ अधिक आशा न रखो। जितने अच्छे ढंग से तुम कार्य कर सको, उतना करो। अब मुझे बहुत कम आशा है कि मैं बड़े बड़े काम कर सकूँगा। परन्तु मुझे हर्ष है कि मेरे व्याख्यानों को सांकेतिक लिपि में लिख रखने से बहुत सा साहित्य उत्पन्न हुआ है। चार किताबें तैयार हैं। एक तो छप चुकी है; ‘पातंजल सूत्र’ के साथ ‘राजयोग’ पुस्तक छप रही है, ‘भक्तियोग’ पुस्तक तुम्हारे पास है, और ‘ज्ञानयोग’ पुस्तक के प्रकाशन की तैयारी चली है। इसके सिवाय रविवार में दिये गये व्याख्यान भी छप चुके हैं। स्टर्डी बहुत ही परिश्रमी व्यक्ति है, प्रत्येक कार्य में वह अग्रसर हो सकता है। मुझे सन्तोष है कि मैने भलाई करने का भरसक प्रयत्न किया है और जब मैं कार्य-विरत हो एकान्त सेवन के लिए गुफा में जाऊँगा, तब मेरा अन्तःकरण मुझे दोष न देगा।
सबको प्यार और आशीर्वाद के साथ –
विवेकानन्द