स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (15 फरवरी, 1900)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
कुमारी मिड् का मकान,
४४७, डगलस बिल्डिंग ,
लॉस एंजिलिस, कैलिफोर्निया,
१५ फरवरी, १९००
प्रिय निवेदिता,
तुम्हारा – का पत्र आज मुझे पॅसाडेना में प्राप्त हुआ। मालूम होता है कि ‘जो’ तुम्हें शिकागो में नहीं मिल सकी; किन्तु न्यूयार्क से उन लोगों का कोई समाचार मुझे अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है। इंग्लैण्ड से बहुत से अंग्रेजी समाचार-पत्र मुझे प्राप्त हुए है – लिफाफे पर एक पंक्ति में मेरे प्रति शुभेच्छा प्रकट की गयी है एवं उस पर एफ. एच. एम. के दस्तखत हैं। उनमें विशेष जरूरी चीज कुछ भी नहीं थी। कुमारी मूलर को मैं एक पत्र लिखना चाहता था; किन्तु मुझे उनका पता नहीं मालूम है। साथ ही मुझे यह डर भी हुआ कि कहीं पत्र लिखने से वे भयभीत न हो उठें!
इसी बीच श्रीमती लेगेट ने मेरी सहायता के लिए इस साल तक वार्षिक १०० डालर के हिसाब से अनुदान की योजना प्रारम्भ कर दी तथा सन् १९०० के लिए १०० डालर देकर उसने इस सूची में सबसे पहले अपना नाम लिखाया, दो व्यक्ति उन्होंने इसके लिए और भी ढूँढ़ें हैं। फिर मेरे सब मित्रों के पास उन्होंने इसमें सम्मिलित होने के लिए पत्र लिखना प्रारम्भ कर दिया। जब वे श्रीमती मिलर को लिखती रहीं, मैं शर्मिन्दा हो गया। किन्तु मेरे जानने के पहले उन्होंने लिखा था। एक बहुत ही नम्र किन्तु उत्साहहीन पत्र, मेरी के द्वारा लिखा हुआ, श्रीमती हेल के यहाँ से उसे मिला, जिसमें उसने मेरे प्रति अपने स्नेह का विश्वास दिलाते हुए अपनी असमर्थता प्रकट की थी। श्रीमती हेल एवं मेरी अप्रसन्न हैं, ऐसा मुझे डर है। लेकिन इसमें मेरा कुछ भी दोष नहीं है!!
श्रीमती सेवियर के पत्र से मुझे यह विदित हुआ कि कलकत्ते में निरंजन अत्यन्त बीमार पड़ गया है – पता नहीं, उसका शरीरान्त हो गया है या नहीं। अस्तु, निवेदिता, अब मैं नितान्त कठोर बन चुका हूँ – पहले की अपेक्षा मेरी दृढ़ता बहुत कुछ बढ़ चुकी है – मेरा हृदय मानो लोहे की पत्तियों से जड़ दिया गया है। अब मैं संन्यास जीवन के समीप पहुँचता जा रहा हूँ। दो सप्ताह से सारदानन्द के यहाँ से मुझे कोई भी समाचार नहीं मिला। मुझे प्रसन्नता है कि तुम कहानियाँ पा गयीं, अगर उचित समझो तो फिर से लिख डालो। उनको प्रकाशित करा दो, अगर कोई ऐसा मिल सके। उससे प्राप्त रकम अपने कार्य में लगाओं। मुझे कोई जरूरत नहीं है। मैं अगले सप्ताह में सैन फ़्रैसिस्को जा रहा हूँ; आशा है कि वहाँ पर मुझे सुविधाएँ प्राप्त होंगी। जब अगली बार मेरी से मिलो, तो उससे कहो कि श्रीमती हेल की सालाना १०० डालर की सहायता से मुझे कुछ नहीं करना है। उन लोगों का मैं बहुत कृतज्ञ हूँ।
डरने की कोई बात नहीं है – तुम्हारे विद्यालय के लिए धन अवश्य प्राप्त होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। और यदि कदाचित् धन न मिले तो, उससे हानि ही क्या है? ‘माँ’ जानती हैं कि किस रास्ते से वे ले जाना चाहती हैं। वे चाहे जिस रास्ते से ले जायें, सभी रास्ते समान हैं। मुझे यह पता नहीं है कि मैं शीघ्र ही पूर्व1 की ओर जाऊँगा अथवा नहीं। यदि जाने का सुयोग मिला तो मैं निश्चित ही इण्डियाना जाऊँगा।
इस प्रकार के अन्तर्जातीय मिलन का उद्देश्य महान् है – जैसे भी हो सके तुम उसमें अवश्य सम्मिलित हो; और यदि तुम माध्यम बनकर कुछ भारतीय महिलासमितियों को उसमें सम्मिलित कर सको, तो और भी अच्छा है।…
कुछ परवाह नहीं है, हमें सब कुछ सुविधाएँ प्राप्त होंगी। यह युद्ध ज्यों ही समाप्त हो जायेगा, तत्क्षण हम इंग्लैण्ड पहुँच जायेंगे एवं वहाँ जोरशोर से कार्य करने का प्रयत्न करेंगे – ठीक है न? ‘स्थिरा माता’ को क्या कुछ लिखा जाय? यदि उन्हें लिखना तुम्हें उचित प्रतीत हो, तो उनका पता मुझे भेज देना। उसके बाद क्या उन्होंने तुमको कोई पत्र लिखा है?
कठोर एवं कोमल, सभी लोग ठीक हो जायेंगे – धैर्य बनाये रखो। ये जो तुम्हें विविध अनुभव प्राप्त हो रहे हैं, मैं तो इसे ही पसन्द करता हूँ। मुझे भी शिक्षा मिल रही है। जिस समय हम कार्य करने के लिए उपयुक्त सिद्ध होंगे, ठीक उसी समय धन और लोग अपने आप हमारे समीप आ पहुँचेंगे! इस समय मेरी स्नायुप्रधान प्रकृति एवं तुम्हारी भावनाएँ आपस में मिल जाने से गड़बड़ी हो सकती है। इसीलिए माँ मेरी स्नायुओं को धीरे धीरे आरोग्य प्रदान कर रही हैं और तुम्हारी भावनाओं को भी शान्त करती जा रही हैं। फिर हम अग्रसर होंगे, इसमें सन्देह ही क्या है। अब अनेक महान् कार्य सम्पन्न होंगे – यह निश्चित जानना। अब हम प्राचीन देश यूरोप के मूलाधार तक को हिला डालेंगे।
मैं क्रमशः शान्त तथा धीर बनता जा रहा हूँ – चाहे जो भी कुछ क्यों न हो, मैं प्रस्तुत हूँ। अब की बार इस प्रकार से कार्य में जुट जायेंगे कि उसके पग-पग पर हमें सफलता प्राप्त होगी – एक भी प्रयास व्यर्थ नहीं होगा – यही मेरे जीवन का अग्रिम अध्याय है। मेरा स्नेह जानना।
विवेकानन्द
पुनश्च – तुम अपना वर्तमान पता लिखना।
विवेकानन्द
- पूर्व अथति न्थूयार्क की ओर।