स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (20 जून, 1897)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)
अल्मोड़ा,
२० जून, १८९७
अभिन्नहृदय,
तुम्हारा स्वास्थ्य पहले की अपेक्षा ठीक है, यह जानकर खुशी हुई। योगेन भाई की बातों पर ध्यान देना बेकार है। वे शायद ही कभी कोई ठीक बात कहते हों। मैं अब पूर्ण स्वस्थ हूँ। शरीर में ताकत भी खूब है; प्यास नहीं लगती तथा रात में पेशाब के लिए उठना भी नहीं पड़ता।… कमर में कोई दर्द-वर्द नहीं है; लीवर की क्रिया भी ठीक है। शशि की दवा से मुझे कोई खास असर होने का पता नहीं चला; अतः वह दवा लेना मैंने बन्द कर दिया है। पर्याप्त मात्रा में आम खा रहा हूँ। घोड़े की सवारी का अभ्यास भी विशेष रूप से चालू है – लगातार बीस-तीस मील तक दौड़ने पर भी किसी प्रकार के दर्द अथवा थकावट का अनुभव नहीं होता। पेट बढ़ने की आशंका से दूध लेना कतई बन्द है।
कल अल्मोड़ा पहुँचा हूँ। पुनः बगीचे में लौटने का विचार नहीं है। अब से मिस मूलर के अतिथि-रूप में अंग्रेजी कायदे के अनुसार दिन में तीन बार भोजन किया करूँगा। किराये पर मकान लेने की व्यवस्थादि जो कुछ आवश्यक हो, करना! इस बारे में मुझसे इतनी पूछ-ताछ क्यों की जा रही है?
शुद्धानन्द ने लिखा है कि Ruddock’s Practice of Medicine या ऐसा ही कुछ पढ़ाया जा रहा है। कक्षा में ऐसी बेकार की चीजों की पढ़ाई की क्या सार्थकता है? एक सेट भौतिकशास्त्र तथा रसायनशास्त्र के साधारण यन्त्र के एवं एक दूरबीन तथा एक अणुवीक्षण यन्त्र की व्यवस्था १५० से २०० रुपये में हो सकती है। शशि बाबू सप्ताह में एक दिन प्रायोगिक रसायन के विषय में तथा हरिप्रसन्न भौतिकशास्त्र के विषय में लेक्चर दे सकते हैं। साथ ही बंगला में विज्ञान सम्बन्धी जितनी भी अच्छी पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, उन्हें खरीदना तथा उनकी पढ़ाई की व्यवस्था करना। किमधिकमिति।
सस्नेह,
विवेकानन्द