स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखित (12 फरवरी, 1902)
(स्वामी विवेकानंद का स्वामी ब्रह्मानन्द को लिखा गया पत्र)
गोपाल लाल विला,
वाराणसी छावनी,
१२ फरवरी, १९०२
कल्याणीय,
तुम्हारे पत्र से सविशेष समाचार जानकर ख़ुशी हुई। निवेदिता के स्कूल के बारे में मुझे जो कुछ कहना था, मैंने उनको लिख दिया है। इतना ही कहना है कि उनकी दृष्टि में जो अच्छा प्रतीत हो, तदनुसार वे कार्य करें।
और किसी विषय में मेरी राय न पूछना। उससे मेरा दिमाग़ ख़राब हो जाता है। तुम मेरे लिए केवल यह कार्य कर देना – बस, इतना ही। रुपये भेज देना ; क्योंकि इस समय मेरे समीप दो-चार रुपये ही शेष हैं।
कन्हाई मधुकरी के सहारे जीवित है, घाट पर जप-तप करता रहता है तथा रात में यहाँ आकर सोता है; नैदा गरीब आदमियों का कार्य करता है; रात में आकर सोता है। चाचा1 (Okakura) तथा निरंजन आ गये हैं; आज उनका पत्र मिलने की सम्भावना है।
प्रभु के निर्देशानुसार कार्य करते रहना। दूसरों के अभिमत जानने के लिए भटकने की क्या आवश्यकता है? सबसे मेरा स्नेह कहना तथा बच्चों से भी। इति।
सस्नेह त्वदीय,
विवेकानन्द
- ओकाकुरा (Okakura) को प्रेमपूर्वक ऐसा सम्बोधित किया गया है। ‘कुरा’ शब्द का उच्चारण बंगला ‘खुड़ा’ (अर्थात् चाचा) के निकट है, इसीलिए स्वामी जी मजाक में उनको चाचा कहते थे। स.