कविता

ब्रज-महिमा

ब्रज-महिमा कविता में ब्रज के योगदान और इसकी महिमा का गायन है। स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया द्वारा रचित ब्रज भाषा की यह सुन्दर कविता आपके हृदय को ब्रज के रस से अवश्य सराबोर करेगी। पढ़ें यह ब्रज-महिमा कविता-

ब्रजभाषा के अमृत बोल दये,
ढप-ढोल दये अरु झाँझ मँजीरा।
रासदिये रसिया रस भींजे,
सुनें नियरें नहिं आवति पीरा॥
घूँघट घाट दईं गलियाँ–
सकरीनु में खूब रहै नित भीरा।
कुंज-करील-कदम्ब कालिन्दी–
हरे जहाँ गोपिन के हरि चीरा ॥


गोपी-गोपाल औ गौयें दईं,
दये छप्पन भोग औ माखन-रोटी।
बाँकी-सी झाँकी हिंडोरनि की,
छवि देख लजात हैं कामहु कोटी।
जोरी दई बरजोरी दई रंग होरी–
दई अरु पीरी कछोटी।
भक्ति दई अनुरक्ति दई–
मन-मोहिनी दीन्ही है बाँसुरी छोटी


पद-साखी, कवित्त-सवैया दये
दये छन्द-प्रबन्ध कथायें सुहावनी।
छप्पय सोरठे कुण्डलियाँ दईं–
नृत्य कला सिग के मन-भावनी।
ध्रुपद-धमार, मल्हार-ख़याल
चौबोले सु काफी नौटंकी औ लावनी।
रसखान, घनानन्द, ग्वाल-गोविन्द,
जयकाव्य दियौ अरु गीतासुपावनी॥


ब्रज संस्कृति कौं आधार दियौ
साहित्य कौं याने ही भक्ति दई।
दई सूर के सागर कौं गरिमा,
रस सिक्त मई पद भक्ति दई।
श्री राधा औ कृष्ण की लीला नु गायकैं,
भक्तनि कूँ अनुरक्ति दई।
रस-छन्द-प्रबन्ध अनेक दये,
कविकण्ठनि कौं अभिव्यक्ति दई॥

यह भी पढ़ें

नवल सिंह भदौरिया

स्व. श्री नवल सिंह भदौरिया हिंदी खड़ी बोली और ब्रज भाषा के जाने-माने कवि हैं। ब्रज भाषा के आधुनिक रचनाकारों में आपका नाम प्रमुख है। होलीपुरा में प्रवक्ता पद पर कार्य करते हुए उन्होंने गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, सवैया, कहानी, निबंध आदि विभिन्न विधाओं में रचनाकार्य किया और अपने समय के जाने-माने नाटककार भी रहे। उनकी रचनाएँ देश-विदेश की अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। हमारा प्रयास है कि हिंदीपथ के माध्यम से उनकी कालजयी कृतियाँ जन-जन तक पहुँच सकें और सभी उनसे लाभान्वित हों। संपूर्ण व्यक्तित्व व कृतित्व जानने के लिए कृपया यहाँ जाएँ – श्री नवल सिंह भदौरिया का जीवन-परिचय

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी पथ
error: यह सामग्री सुरक्षित है !!