स्वामी विवेकानंद के पत्र – अपने गुरुभाइयों को लिखित (25 सितम्बर, 1894)
(स्वामी विवेकानंद का अपने गुरुभाइयों को लिखा गया पत्र)
न्यूयार्क,
२५ सितम्बर, १८९४
कल्याणीय,
तुम लोगों के कई पत्र मिले। शशि आदि जो तहलका मचाये हुए हैं, यह जानकर मुझे बड़ी खुशी होती है। हमें तहलका मचाना ही होगा, इससे कम में किसी तरह नहीं चल सकता। इस तरह सारी दुनिया भर में प्रलय मच जाएगी, वाह गुरु की फतह! अरे भाई, श्रेयांसि बहुविध्नानि – महान् कार्यों में कितने ही विध्न आते हैं – उन्हीं विघ्नों की रेल-पेल में आदमी तैयार होता है। चारु को अब मैं समझ गया हूँ। जब वह लड़का था, मैंने उसे देखा था, इसीलिए उसका मतलब नहीं भाँप सका था। उसे मेरा अनेक आशीर्वाद कहना। अरे, मोहन, यह मिशनरी-फिशनरी का काम थोड़े ही है, जो यह धक्का सँभाले?अब मिशनरियों के सर पर मानो विपत्ति आ गयी है, जो बड़े-बड़े पादरी बड़ी-बड़ी कोशिशें कर रहे हैं। लेकिन क्या इस ‘गिरि गोवर्द्धन’ को हिला सकते हैं भला? बड़े-बड़े वह गए, अब क्या वह गड़रिये का काम है, जो थाह ले? यह सब नहीं चलने का भैया, कोई चिन्ता न करना। सभी कामों में एक दल वाहवाही देता है, तो दूसरा नुक़्स निकालता है। अपना काम करते जाओ, किसी की बात का जवाब देने से क्या काम? सत्यमेव जयते नानूतं, सत्येनैव पन्था विततो देवयानः। (सत्य की ही विजय होती है, मिथ्या की नहीं, सत्य से ही देवयान मार्ग की गति मिलती है।) गुरुप्रसन्न बाबू को एक पत्र लिख रहा हूँ। मोहन, रुपये की फिक्र न करो। धीरे-धीरे सब होगा।
इस देश में ग्रीष्मकाल में सब समुद्र के किनारे चले जाते हैं, मैं भी गया था। यहाँ वालों को नाव खेने और ‘याट’ चलाने का रोग है। ‘याट’ एक प्रकार का हल्का जहाज होता है और यह यहाँ के लड़के, बूढ़े तथा जिस किसी के पास धन है, उसी के पास है। उसी में पाल लगाकर वे लोग प्रतिदिन समुद्र में डाल देते हैं ; और खाने-पीने और नाचने के लिए घर लौटते हैं ; और गाना-बजाना तो दिन-रात लगा ही रहता है। पियानो के मारे घर में टिकना मुश्किल हो जाता है।
हाँ, तुम जिन जी. डब्ल्यू. हेल पते पर चिट्ठियाँ भेजते हो, उनकी भी कुछ बातें लिखता हूँ। वे वृद्ध हैं और उनकी वृद्धा पत्नी हैं। दो कन्याएँ हैं, दो भतीजियाँ और एक लड़का। लड़का नौकरी करता है, इसलिए उसे दूसरी जगह रहना पड़ता है। लड़कियाँ घर पर रहती हैं। इस देश में लड़की का रिश्ता ही रिश्ता है। लड़के का विवाह होते ही वह और हो जाता है, कन्या के पति को अपनी स्त्री से मिलने के लिए प्रायः उसके बाप के घर जाना पड़ता है। यहाँवाले कहते हैं –
Son is son till he gets a wife;
The daughter is daughter all her life.1
चारों कन्याएँ युवती और अविवाहित हैं। विवाह होना इस देश में महा कठिन काम है। पहले तो, मन के लायक वर हो दूसरे धन हो! लड़के यारी में तो बड़े पक्के हैं, परन्तु पकड़ में आने के वक्त नौ दो ग्यारह! लड़कियाँ नाच-कूदकर किसी को फँसाने की कोशिश करती हैं, लड़के जाल में पड़ना नहीं चाहते। आखिर इस तरह ‘लव’ हो जाता है, तब शादी होती है। यह हुई साधारण बात, परन्तु हेल की कन्याएँ रूपवती हैं, बड़े आदमी की कन्याएँ हैं, विश्वविद्यालय की छात्राएँ हैं, नाचने, गाने और पियानो बजाने में अद्वितीय हैं। कितने ही लड़के चक्कर मारते हैं, लेकिन उनकी नजर में नहीं चढ़ते। जान पड़ता है, वे विवाह नहीं करेंगी, तिस पर अब मेरे साथ रहने के कारण महावैराग्य सवार हो गया है। वे इस समय ब्रह्मचिन्ता में लगी रहती हैं।
दोनों कन्याओं के बाल सुनहले हैं, और दोनों भतीजियों के काले। ये ‘जूते सीने से चंडी पाठ’ तक सब जानती हैं। भतीजियों के पास उतना धन नहीं है, उन्होंने एक किंडरगार्टेन स्कूल खोला है, लेकिन कन्याएँ कुछ नहीं कमातीं। कोई किसी के भरोसे नहीं रहता। करोड़पतियों के पुत्र भी रोजगार करते हैं, विवाह करके अलग किराये का मकान लेकर रहते हैं। कन्याएँ मुझे दादा कहती हैं, मैं उनकी माँ को माँ कहता हूँ। मेरा सब सामान उन्हीं के घर में है। मैं कहीं भी जाऊँ, वे उसकी देखभाल करती हैं। यहाँ के सब लड़के बचपन से ही रोजगार में लग जाते हैं और लड़कियाँ विश्वविद्यालय में पढ़ती-लिखती हैं, इसलिए यहाँ की सभाओं में ६० फीसदी स्त्रियाँ रहती हैं, उनके आगे लड़कों की दाल नहीं गलती।
इस देश में पिशाच-विद्या के पंडित बहुत हैं। माध्यम (medium) उसे कहते हैं, जो भूत बुलाता है। वह एक पर्दे की आड़ में जाता है और पर्दे के भीतर से भूत निकलते रहते हैं, बड़े-छोटे हर रंग के! मैंने भी कई भूत देखे, परन्तु यह मुझे झाँसापट्टी ही जान पड़ती है। और भी कुछ देखने के बाद मैं निश्चित रूप से निर्णय लूँगा। उस विद्या के पण्डित मुझ पर बड़ी श्रद्धा रखते हैं।
दूसरा है क्रिश्चियन सायन्स – यहाँ आजकल सबसे बड़ा दल है, सर्वत्र इसका प्रभाव है। ये खूब फैल रहे हैं और कट्टरतावादियों की छाती में शूल से चुभ रहे हैं। वे वेदान्ती हैं, अर्थात् अद्वैतवाद के कुछ मतों को लेकर उन्हीं को बाइबिल में घुसेड़ दिया है और ‘सोऽहम् सोऽहम्’ कहकर रोग अच्छा कर देते हैं – मन की शक्ति से। ये सभी मेरा बड़ा आदर करते हैं।
आजकल यहाँ कट्टरपंथी ईसाई ‘त्राहि माम्’ मचाये हुए हैं। प्रेतोपासना ( devil worship)2 की अब जड़ सी हिल गयी है। वे मुझे यम जैसा देखते हैं। और कहते हैं, “यह पापी कहाँ से टपक पड़ा, देश भर की नर-नारियाँ इसके पीछे लगी फिरती हैं – यह कट्टरपंथियों की जड़ ही काटना चाहता है।” आग लग गयी है भैया, गुरु की कृपा से जो आग लगी है, वह बुझने की नहीं। समय आयेगा, जब कट्टरपंथियों का दम निकल जाएगा। अपने यहाँ बुलाकर बेचारों ने एक मुसीबत मोल ले ली है, ये अब यह महसूस करने लगे हैं!
थियोसॉफिस्टों का ऐसा कुछ दबदबा नहीं है, किन्तु वे भी कट्टरवादियों के पीछे पड़े हुए हैं।
यह क्रिश्चियन सायन्स ठीक हमारे देश के कर्ताभजा3 सम्प्रदाय की तरह है। कहो कि रोग नहीं है – बस, अच्छे हो गए, ओर कहो, ‘सोऽहम’ – बस, तुम्हें छुट्टी, खाओ, पिओ और मौज करो। यह देश घोर भौतिकवादी है। ये किश्चियन देश के लोग बीमारी अच्छी करो, करामात दिखलाओ, पैसे कमाने का रास्ता बताओ, तब धर्म मानते हैं, इसके सिवा और कुछ नहीं समझते। परन्तु कोई-कोई अच्छे हैं। जितने बदमाश, लुच्चे, पाखंडी, मिशनरी हैं, उन्हें ठगकर पैसे कमाते हैं और इस तरह उनका पाप-मोचन करते हैं। यहाँ के लोगों के लिए मैं एक नये प्रकार का आदमी हूँ। कट्टरतावादियों तक की अक्ल गुम है। और लोग अब मुझे श्रद्धा की दृष्टि से देखने लगे हैं। ब्रह्मचर्य, पवित्रता से बढ़कर क्या और शक्ति है!
मैं इस समय मद्रासियों के अभिनन्दन का, जिसे छापकर यहाँ के समाचार-पत्र वालों ने ऊधम मचा दिया था, जवाब लिखने में लगा हूँ। अगर सस्ते में ही हो जाए, तो छपवाकर भेजूँगा। यदि महँगा होगा, तो टाइप करवाकर भेजूँगा। तुम्हारे पास भी एक कापी भेजूँगा, ‘इंडियन मिरर’ में छपा देना। इस देश की अविवाहित कन्याएँ बड़ी अच्छी हैं। उनमें आत्म-सम्मान है।… ये विरोचन के वंशज हैं। शरीर ही इनका धर्म है, उसीको माँजते-धोते हैं, उसी पर सारा ध्यान लगाते हैं। नख काटने के कम से कम हजार औजार हैं, बाल काटने के दस हजार और कपड़े,पोशाक, तेल-फुलेल का तो ठिकाना ही नहीं!… ये भले आदमी, दयालु और सत्यवादी हैं। सब अच्छा है, परन्तु ‘भोग’ ही उनके भगवान् हैं, जहाँ धन की नदी, रूप की तरंग, विद्या की वीचि, और विलास का जमघट है।
कांक्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः।
क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा॥
– ‘कर्म की सिद्धि की आकांक्षा करके इस लोक में देवताओं का यजन किया जाता है। कर्मजनित सिद्धि मनुष्य लोक में बहुत जल्दी मिलती है।4
यहाँ अुद्भत चरित्र, बल और शक्ति का विकास है – कितना बल, कैसी कार्यकुशलता, कैसी ओजस्विता! हाथी जैसे घोड़े बड़े बड़े मकान जैसी गाड़ियाँ खींच रहे हैं। इस विशालकाय पैमाने को तुम दूसरी चीजों में भी नमूने के तौर पर ले सकते हो। यहाँ महाशक्ति का विकास है – ये सब वाममार्गी हैं। उसी की सिद्धि यहाँ हुई, और क्या है? खैर – इस देश की नारियों को देखकर मेरे तो होश उड़ गए हैं। मुझे बच्चे की तरह घर-बाहर, दूकान-बाजार में लिये फिरती हैं। सब काम करती हैं। मैं उसका चौथाई का चौथाई हिस्सा भी नहीं कर सकता! ये रूप में लक्ष्मी और गुण में सरस्वती हैं – ये साक्षात् जगदम्बा हैं, इनकी पूजा करने से सर्वसिद्धि मिल सकती है। अरे, राम भजो, हम भी भले आदमी हैं? इस तरह की माँ जगदम्बा अगर अपने देश में एक हजार तैयार करके मर सकूँ, तो निश्चिन्त होकर मर सकूँगा। तभी तुम्हारे देश के आदमी आदमी कहलाने लायक हो सकेंगे। तुम्हारे देश के पुरुष इस देश की नारियों के पास भी आने योग्य नहीं हैं – तुम्हारे देश की नारियों की बात तो अलग रही! हरे हरे, कितने महापापी हैं! दस साल की कन्या का विवाह कर देते हैं। हे प्रभु! हे प्रभु! किमधिकमिति।
मैं इस देश की महिलाओं को देखकर आश्चर्यचकित हो जाता हूँ। माँ जगदम्बा की यह कैसी कृपा है! ये क्या महिलाएँ हैं? बाप रे! मर्दों को एक कोने में ठूँस देना चाहती हैं। मर्द गोते खा रहे हैं। माँ, तेरी ही कृपा है। गोलाप माँ जैसा कर रही हैं, उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ। गोलाप माँ या गौरी माँ उनको मंत्र क्यों नहीं दे रही हैं? स्त्री-पुरुष-भेद की जड़ नहीं रखूँगा। अरे, आत्मा में भी कहीं लिंग का भेद है? स्त्री और पुरुष का भाव दूर करो, सब आत्मा है। शरीराभिमान छोड़कर खड़े हो जाओ। अस्ति अस्ति कहो, नास्ति नास्ति करके तो देश गया! सोऽहम्, सोऽहम्, शिवोऽहम! कैसा उत्पात! हरेक आत्मा में अनंत शक्ति है! अरे अभागे, नहीं नहीं करके क्या तुम कुत्ता-बिल्ली हो जाओगे? कौन नहीं है? क्या नहीं है? किसके नहीं है? शिवोऽहम् शिवोऽह्म्! नहीं नहीं सुनने पर मेरे सिर पर वज्त्रपात होता है। राम! राम! बकते बकते मेरी जान चली गयी। यह जो दीन-हीन भाव है, वह एक बीमारी है – क्या यह दीनता है? – यह गुप्त अहंकार है। न लिंग धर्मकारणं, समता सर्वभूतेषु एतन्मुक्तस्य लक्षणम्। अस्ति, अस्ति, अस्ति; सोऽहम् ; चिदानन्दरूप : शिवोऽहम् शिवोऽहम्। निर्गच्छति जगज्जालात् पिंजरादिव केसरी।5 बुजदिली करोगे, तो हमेशा पिसते रहोगे। नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः।6 शशि! बुरा मत मानना, कभी कभी मैं नर्वस हो जाता हूँ। तब दो-चार शब्द कह देता हूँ। तुम तो मुझे जानते ही हो। तुम कट्टर नहीं हो, इसकी मुझे खुशी है। बर्फ की चट्टान र्(रीन्रीतीहम्प) की तरह दुनिया पर टूट पड़ो – दुनिया चट चट करके फट जाए – हर हर महादेव! उद्धरेदात्मनात्मानम् (अपने ही सहारे अपना उद्धार करना पड़ेगा)।
रामदयाल बाबू ने मुझे एक पत्र लिखा है, और तुलसीदास बाबू का एक पत्र मिला। राजनीति में भाग मत लेना। तुलसीराम बाबू राजनीति विषयक पत्र न लिखें। जनता के आदमी को अनावश्यक रूप से शत्रु नहीं बनना चाहिए। इस तरह का दिन क्या कभी आयेगा कि परोपकार के लिए जान जाएगी। दुनिया बच्चों का खिलवाड़ नहीं है और बड़े आदमी वे हैं, जो अपने हृदय के रक्त से दूसरों का रास्ता तैयार करते हैं – अनन्त काल से यही होता आया है – एक आदमी अपना शरीर पात करके एक सेतु का निर्माण करता है, और हजारों आदमी उसके ऊपर से नदी पार करते हैं। एवमस्तु एवमस्तु, शिवोऽहम् शिवोहम्। रामदयाल बाबू के कथनानुसार सौ फोटोग्राफ भेज दूँगा। वे बेचना चाहते हैं। रुपया मुझे भेजने की आवश्यकता नहीं। उसे मठ को देने को कहो। यहाँ मेरे पास प्रचुर धन है, कोई कमी नहीं!… वह यूरोप-यात्रा तथा पुस्तक-प्रकाशन के लिए है। यह पत्र प्रकाशित न करना।
आशीर्वाद
नरेन्द्र
पुनश्च –
मुझे मालूम होता है कि अब काम ठीक चलेगा। सफलता से ही सफलता मिलती है। शशि! दूसरों में जागृति उत्पन्न करो, यही तुम्हारा काम है। काली विषय-बुद्धि में बड़ा पक्का है। काली को प्रबन्धक बनाओ। माता जी7 के लिए एक निवास-स्थान का प्रबन्ध कर सकने पर मैं बहुत कुछ निश्चिन्त हो जाऊँगा। समझे? दो-तीन हजार रुपये तक खरीदने लायक कोई जमीन देखो। जमीन थोड़ी बड़ी होनी चाहिए। पहले कम से कम मिट्टी का मकान तैयार करो, बाद में वहाँ एक भवन निर्मित हो जाएगा। शीघ्र ही जमीन ढूँढ़ो। मुझे पत्र लिखना। कालीकृष्ण बाबू से पूछना कि मैं किस तरह रकम भेजूँ – कुक कम्पनी के द्वारा, किस तरह? यथाशीघ्र यह काम करो। यह होने पर मैं बहुत कुछ निश्चिन्त हो जाऊँगा। जमीन बड़ी होनी चाहिए, बाकी सब बाद में देखा जाएगा। हम लोगों के लिए कोई फ्रिक नहीं, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। कलकत्ता के जितने समीप होगी, उतना ही अच्छा। एक बार निवास-स्थान ठीक हो जाने पर माता जी को केन्द्र बनाकर गौरी माँ, गोलाप माँ को भी कार्य की धूम मचा देनी होगी।
यह खुशी की बात है कि मद्रास में खूब तहलका मचा हुआ है।
सुना था, तुम लोग एक मासिक पत्रिका निकालना चाहते हो, उसकी क्या खबर है? सबके साथ मिलना होगा, किसीके पीछे पड़ने से काम नहीं होगा। All the powers of good against all the powers of evil. (अशुभ शक्तियों के विरुद्ध शुभ शक्तियों का प्रयोग करना होगा) – असल बात यही है।
विजय बाबू का यथासंभव आदर-यत्न करना। Do not insist upon everybody’s believing in your Guru. हमारे गुरु पर जबरदस्ती विश्वास करने के लिए लोगों से मत कहना। गोलाप माँ को मैं अलग से एक चिट्टी लिख रहा हूँ, उसे पहुँचा देना। अभी इतना समझ लो – शशि को घर छोड़कर बाहर नहीं जाना है। काली को प्रबन्ध-कार्य देखना है और पत्र-व्यवहार करना है। सारदा, शरत् या काली, इनमें से एक न एक मठ में जरूर रहे। जो बाहर जाएँ, उन्हें चाहिए कि मठ से सहानुभूति रखने वालों को मठ से सम्पर्क स्थापित करा दें। काली, तुम लोगों को एक मासिक पत्रिका का सम्पादन करना होगा। उसमें आधी बंगला रहेगी, आधी हिन्दी और हो सके तो, एक अंग्रेजी में भी। ग्राहकों को इकट्ठा करने में कितना दिन लगता है? जो मठ से बाहर हैं, उन्हें पत्रिका का ग्राहक बनाने के लिए प्रयत्न करना चाहिए। गुप्त से हिन्दी भाग सँभालने को कहो, नहीं तो हिन्दी में लिखने वाले बहुत लोग मिल जाएँगे। केवल घूमते रहने से क्या होगा? जहाँ भी जाओ, वहीं तुम्हें एक स्थायी प्रचार-केन्द्र खोलना होगा। तभी व्यक्तियों में परिवर्तन आयेगा। मैं एक पुस्तक लिख रहा हूँ। इसके समाप्त होते ही बस, एक ही दौड़ में घर आ जाऊँगा। अब मैं बहुत नर्वस हो गया हूँ। कुछ दिन शान्ति से बैठने की जरूरत है। मद्रास वालों से हमेशा पत्र-व्यवहार करते रहना। जगह-जगह संस्कृत पाठशालाएँ खोलने का प्रयत्न करना। शेष भगवान् के ऊपर है। सदा याद रखो कि श्रीरामकृष्ण संसार के कल्याण के लिए आए थे – नाम या यश के लिए नहीं। वे जो कुछ सिखाने आए थे, केवल उसीका प्रसार करो। उनके नाम की चिन्ता न करो – वह अपने आप ही होगा। ‘हमारे गुरुदेव को मानना ही पड़ेगा,’ इस पर जोर देते ही दलबन्दी पैदा होगी और सब सत्यानाश हो जाएगा, इसलिए सावधान! सभी से मधुर भाषण करना, गुस्सा करने से ही सब काम बिगड़ता है। जिसका जो जी चाहे, कहे, अपने विश्वास में दृढ़ रहो – दुनिया तुम्हारे पैरों तले आ जाएगी, चिन्ता मत करो। लोग कहते हैं – “इस पर विश्वास करो, उस पर विश्वास करो”, मैं कहता हूँ – “पहले अपने आप पर विश्वास करो।” यही सही रास्ता है। Have faith in yourself, all power is in you – be conscious and bring it out. (अपने पर विश्वास करो – सब शक्ति तुममें है – इसे जान लो और उसे विकसित करो।) कहो, “हम सब कुछ कर सकते हैं।” “नहीं नहीं कहने से साँप का विष भी नहीं हो जाता है।” खबरदार, No ‘नहीं नहीं’, कहो, ‘हाँ हाँ,’ ‘सोऽहम् सोऽहम्।’
किन्नाम रोदिषि सखे त्वयि सर्वशक्तिः
आमन्त्रयस्व भगवन् भगदं स्वरूपम्।
त्रैलोक्यमेतदखिलं तव पादमूले
आत्मैव हि प्रभवते न जडः कदाचित्॥8
अप्रतिहत शक्ति के साथ कार्य का आरम्भ कर दो। भय क्या है? किसकी शक्ति है, जो बाधा डाले? कुर्मस्तारकचर्वणम् त्रिभुवनमुत्पाटयामो बलात्। किं भो न विजानास्यस्मान् – रामकृष्णदासा वयम्।9 भय? किसका भय? किन्हें भय?
क्षीणा स्म दीनाः सकरुणा जल्पन्ति मूढ़ा जनाः
नास्तिक्यन्त्विदन्तु अहह देहात्मवादातुराः।
प्राप्ताःस्म वीरा गतभया अभयं प्रतिष्ठां यदा
आस्तिक्यन्त्विदन्तु चिनुमः रामकृष्णदासा वयम॥
पीत्वा पीत्वा परमपीयूषं वीतसंसाररागाः
हित्वा हित्वा सकलकलहप्रापिणीं स्वार्थसिद्धिम्।
ध्यात्वा ध्यात्वा श्रीगुरुचरणं सर्वकल्याणरूपं
नत्वा नत्वा सकलभुवनं पातुमामन्त्रयामः॥
प्राप्तं यद्वै त्वनादिनिधनं वेदादधिं मथित्वा
दत्तं यस्य प्रकरणे हरिहरब्रह्मादिदेवैर्बलम्।
पूर्णं यत्तु प्राणसारैभौमनारायणानां
रामकृष्णस्तनुं धत्ते तत्पूर्णपात्रमिदं भोः॥10
अंग्रेजी पढ़े-लिखे युवकों के साथ हमें कार्य करना होगा। त्यागेनैकेन अमृतत्वमानशुः – ‘एकमात्र त्याग के द्वारा अमृतत्व की प्राप्ति होती है। त्याग, त्याग – इसीका अच्छी तरह प्रचार करना होगा। त्यागी हुए बिना तेजस्विता नहीं आने की। कार्य आरम्भ कर दो। यदि तुम एक बार दृढ़ता से कार्यारम्भ कर दो, तो मैं कुछ विश्राम ले सकूँगा। आज मद्रास से अनेक समाचार प्राप्त हुए हैं। मद्रासवाले तहलका मचा रहे हैं। मद्रास में हुई सभा का समाचार ‘इंडियन मिरर’ में छपवा दो।…
बाबूराम और योगेन इतना कष्ट क्यों भोग रहे हैं? शायद दीन-हीन भाव की ज्वाला से। बीमारी-फीमारी सब झाड़ फेंकने को कहो – घण्टे भर के भीतर सब बीमारी हट जाएगी। आत्मा को भी कभी बीमारी जकड़ती है? कहो कि घण्टा भर बैठकर सोचे, मैं आत्मा हूँ – फिर मुझे कैसा रोग? सब दूर हो जाएगा। तुम सब सोचो, हम अनन्त बलशाली आत्मा हैं, फिर देखो, कैसा बल मिलता है। कैसा दीन भाव? मैं ब्रह्ममयी का पुत्र हूँ। कैसा रोग, कैसा भय, कैसा अभाव? दीनहीन भाव फूँक मारकर विदा कर दो। सब अच्छा हो जाएगा। No negative, all positive, affi rmative. I am, God is and everything is in me. I will manifest health, purity, knowledge, whatever I want (‘नास्ति’ का भाव न रहे, सबमें ‘अस्ति’ का भाव चाहिए। कहो, मैं हूँ, ईश्वर है, और सब कुछ मुझमें है। मेरे लिए जो कुछ चाहिए – स्वास्थ्य, पवित्रता, ज्ञान – सब मैं अवश्य अपने भीतर से अभिव्यक्त करूँगा।) अरे, ये विदेशी मेरी बातें समझने लगे और तुम लोग बैठे बैठे दीनता-हीनता की बीमारी में कराहते हो? किसकी बीमारी? – कैसी बीमारी? झाड़ फेंको। दीनता-हीनता की ऐसी-तैसी! हमें यह नहीं चाहिए। वीर्यमसि वीर्यं, बलमसि बलम्, ओजोऽसि ओजो, सहोऽसि सहो मयि धेहि। ‘तुम वीर्यस्वरूप हो, मुझे वीर्य दो; तुम बलस्वरूप हो, मुझे बल दो; तुम ओजःस्वरूप हो, मुझे ओज दो; तुम सहिष्णुतास्वरूप हो, मुझे सहिष्णुता दो।’ प्रतिदिन पूजा के समय यह जो आसन-प्रतिष्ठा है – आत्मानं अच्छिद्रं भावयेत् – ‘आत्मा को अच्छिद सोचना चाहिए’ – इसका क्या अर्थ है?… कहो – हमारे भीतर सब कुछ है – इच्छा होने ही से प्रकाशित होगा। तुम अपने मन को मन कहो – बाबूराम, योगेन आत्मा हैं – वे पूर्ण हैं, उन्हें फिर रोग कैसा? घण्टे भर के लिए दो-चार दिन तक कहो तो सही, सब रोग-शोक छूट जाएँगे। किमधिकमिति।
साशीर्वाद
नरेन्द्र
- लड़का तभी तक लड़का है, जब तक उसका विवाह नहीं होता, परन्तु कन्या जीवन भर कन्या ही है।
- प्रेतोपासना : कट्टरपंथी ईसाई लोग हिन्दू तथा अन्य धर्मावलम्बी लोगों को प्रेतोपासक कहकर घृणा करते हैं।
- यह पतनशील वैष्णव मत की एक शाखा है। इसके अनुयायी ईश्वर को ‘कर्त्ता’ कहते हैं और झाड़फूँक द्वारा रोग दूर करने के लिये प्रसिद्ध हैं।
- गीता ॥४।१२॥
- बाहरी चिह्न धर्म के कारण नहीं हैं। सर्वभूतों में समता रखना ही मुक्त पुरुषों का लक्षण है। (कहो) अस्ति अस्ति, वह मैं ही हूँ, वह मैं ही हूँ, मैं चिदानन्दस्वरूप शिव हूँ। जिस तरह सिंह पिंजरे से निकलता हूँ, उसी तरह जगज्जाल से वे भी निकल पड़ते हैं।
- दुर्बल मनुष्य इस आत्मा को प्राप्त नहीं कर सकता।
- श्रीरामकृष्ण देव की लीलासहधर्मिणी परमाराध्या श्री माँ सारदा देवी।
- हे सखे, तुम क्यों रो रहे हो ? सब शक्ति तो तुम्हीं में है। हे भगवन् अपना ऐश्वर्यमय स्वरूप विकसित करो। ये तीनों लोक तुम्हारे पैरों के नीचे हैं। जड़ की कोई शक्ति नहीं–प्रबल शक्ति आत्मा की ही है।
- हम तारों को अपने दाँतों से पीस सकते हैं, तीनों लोकों को बलपूर्वक उखाड़ सकते हैं। हमें नहीं जानते ? हम श्रीरामकृष्ण के दास हैं।
- जो लोग देह को आत्मा मानते हैं वे ही करुण कण्ठ से कहते हैं–हम क्षीण हैं, हम दीन हैं; यह नास्तिकता है। हम लोग जब अभयपद पर स्थिर हैं, तो हम भयरहित वीर क्यों न हों, यही आस्तिकता है। हम रामकृष्ण के दास हैं।
संसार में आसक्ति से रहित होकर, सब कलहों की जड़ स्वार्थ का त्याग करके परम अमृत का पान करते हुए, सर्वकल्याणस्वरूप श्री गुरु के चरणों का ध्यान कर, समस्त संसार को नतमस्तक होकर उस अमृत का पान करने के लिए बुला रहे हैं।
अनादि अनन्त वेदरूप समुद्र का मन्थन करके जो कुछ मिला है, ब्रह्मा–विष्णु–महेश आदि देवताओं ने जिसमें अपनी शक्ति का नियोग किया है, जिसे पार्थिव नारायण कहना चाहिये अर्थात् जो भगवदवतारों के प्राणों के सार पदार्थ द्वारा पूर्ण है, श्रीरामकृष्ण ने अमृत के पूर्ण पात्रस्वरूप उसी देह को धारण किया है।