स्वामी विवेकानंद जी का पत्र (मई, 1895)
(स्वामी विवेकानंद का लिखा गया पत्र)
५४ पश्चिम ३३, न्यूयार्क
मई, १८९५
प्रिय–,
मैं आपको लिख ही रहा था कि मेरे विद्यार्थी सहायता लेकर मेरे पास आ गये। और अब कक्षाएँ निस्सन्देह सुचारू रूप से चला करेंगी।
मैं इससे बहुत खुश हुआ, क्योंकि शिक्षण मेरे जीवन का एक अंग बन गया है – भोजन करने और साँस लेने के समान ही मेरे जीवन के लिए आवश्यक हो गया है।
आपका,
विवेकानन्द
पुनश्च – मैंने–के विषय में बहुत सारी बातें अंग्रेजी के एक समाचारपत्र ‘बॉर्डरलैण्ड’ में देखीं। – भारत में अच्छा कार्य कर रहे हैं, उससे हिन्दू अपने ही धर्म को भली प्रकार समझने लगे हैं।…मुझे – के लेखन में कोई विद्वत्ता नहीं दिखायी देती…न ही उसमें मुझे कोई आध्यात्मिकता ही दीखती है। फिर भी जो संसार के हित के लिए कार्य करना चाहते हैं, ईश्वर उन्हें सफलता दे।
दुनिया को किस सरलता से मक्कार लोग उल्लू बना सकते हैं, और सभ्यता के उदय से बिचारी मानवता के सिर पर कितनी कितनी प्रवंचनाओं की राशि लद चुकी है!
वि.