गुरुवार व्रत कथा – Guruvar Vrat Katha
गुरुवार व्रत कथा का पाठ करने से नवग्रहों के गुरु बृहस्पति देव की कृपा से सभी मनोकामनाएँ पूर्णता को प्राप्त होती हैं। घर में धन-धान्य की हर तरह से वृद्धि होती है और गुरुवार व्रत कथा पढ़ने-सुनने से सुख-समृद्धि की वर्षा होने लगती है। पढ़ें गुरुवार की कथा–
गुरुवार व्रत कथा
मान्यता है कि गुरुवार व्रत कथा (Guruvar Vrat Katha) सभी सुखों को देने में समर्थ है। आवश्यकता है तो हृदय में श्रद्धा की ज्योति जलाकर गुरुवार व्रत रखने और इस कथा को पढ़ने की। इस व्रत से जुड़े नियम आदि सविस्तार यहाँ पढ़ें जा सकते हैं – बृहस्पतिवार के व्रत की विधि।
किसी गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके घर में अन्न, वस्त्र और धन किसी की कोई कमी नहीं थी, परन्तु उसकी स्त्री बहुत ही कृपण थी। किसी भिक्षार्थी को कुछ नहीं देती, सारे दिन घर के कामकाज में लगी रहती।
एक समय एक साधु-महात्मा गुरुवार के दिन उसके द्वार पर आये और भिक्षा की याचना की। स्त्री उस समय घर के आंगन को लीप रही थी, इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो मैं घर लीप रही हूं आपको कुछ नहीं दे सकती, फिर किसी अवकाश के समय आना। साधु महात्मा खाली हाथ चले गए।
कुछ दिन के पश्चात् वही साधु महाराज आये, उसी तरह भिक्षा मांगी। साहूकारनी उस समय लड़के को खिला रही थी। कहने लगी-महाराज मैं क्या करूँ? दान देने के लिए अवकाश नहीं है। इसलिए आपको भिक्षा नहीं दे सकती। तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह से टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि यदि तुमको बिल्कुल ही अवकाश हो जाए तो मुझको भिक्षा दोगी? साहूकारनी कहने लगी कि हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी।
साधु-महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मैं एक उपाय बताता हूँ। तुम गुरुवार को दिन चढ़ने पर उठो और सारे घर में झाड़ लगाकर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो। घर में चौका इत्यादि मत लगाओ। फिर स्नान आदि करके घर वालों से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवायें। रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी न रखो। सायंकाल को अन्धेरा होने के बाद दीपक जलाया करो तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजों का भोजन करो। यदि ऐसा करोगी तो तुमको घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा।
साहूकारनी ने ऐसा ही किया। गुरुवार को दिन चढ़े उठी, झाडू लगाकर कूड़े को घर में जमा कर दिया। पुरुषों ने हजामत बनवाई। भोजन बनवाकर चूल्हे के पीछे रखा। वह सब बृहस्पतिवारों को ऐसा ही करती रही। अब कुछ काल बाद उसके घर में खाने को दाना न रहा।
थोड़े दिनों में महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगी परन्तु सेठानी ने कहा महाराज मेरे घर में खाने को अन्न नहीं है, आपको क्या दे सकती हूँ। तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी तुम कुछ नहीं देती थीं। अब पूरा-पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो? तब सेठानी ने हाथ जोड़कर प्रार्थना की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ कि मेरे पहले जैसा धन-धान्य हो जाय। अब मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव जैसा आप कहेंगे वैसा ही करूंगी।
तब महात्माजी ने कहा, “गुरुवारवार को प्रातःकाल उठकर स्नानादि से निवृत्त हो घर को गौ के गोबर से लीपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवायें। भूखों को अन्न-जल देती रहा करो। गुरुवार व्रत कथा (Guruvar Ki Katha) का पाठ करो। ठीक सायंकाल दीपक जलाओ। यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी सब मनोकामनाएं देव गुरु बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी। सेठानी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य वैसा ही हो गया जैसा कि पहले था। इस प्रकार देव गुरु की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घकाल तक जीवित रही।