धर्म

मंगल प्रदोष व्रत कथा

मंगल प्रदोष व्रत कथा पढ़ने से सभी बीमारियों का विनाश हो जाता है और शिवावतार हनुमान जी की कृपा सहज की प्राप्त हो जाती है। अन्य प्रदोष व्रत कथाओं के लिए कृपया यहाँ जाएँ – प्रदोष व्रत कथा

सूत जी बोले – अब मैं मंगल त्रयोदशी प्रदोष व्रत का विधि विधान और मंगल प्रदोष व्रत कथा कहता हूँ। मंगलवार का दिन व्याधियों का नाशक है। इस व्रत में एक समय व्रती को गेहूँ और गुड़ का भोजन करना चाहिये। देव प्रतिमा पर लाल रंग का फूल चढ़ाना और स्वयं लाल वस्त्र धारण करना चाहिये। इस व्रत के करने से मनुष्य सभी पापों व रोगों से मुक्त हो जाता है इसमें किसी प्रकार का संशय नहीं है। अब मैं आपको उस मंगल प्रदोष व्रत कथा सुनाता हूँ जिसने यह व्रत किया व मोक्ष को प्राप्त हुई।

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अत्यन्त प्राचीन काल की घटना है। एक नगर में एक बुढ़िया रहती थी। उसके मंगलिया नाम का एक पुत्र था। वृद्धा को हनुमान जी पर बड़ी श्रद्धा थी। वह प्रत्येक मंगलवार को हनुमान जी का व्रत रखकर यथाविधि उनका भोग लगाती थी। इसके अलावा मंगलवार को न तो घर लीपती थी और न ही मिट्टी ही खोदती थी ।

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इसी प्रकार से व्रत रखते हुए जब उसे काफी दिन बीत गए तो हनुमान जी ने सोचा कि चलो आज इस वृद्धा की श्रद्धा की परीक्षा करें। वे साधु का वेष बनाकर उसके द्वार पर जा पहुंचे और पुकारा “है कोई हनुमान का भक्त जो हमारी इच्छा पूरी करे।”

वृद्धा ने यह पुकार सुनी तो बाहर आई और पूछा कि महाराज क्या आज्ञा है? साधु वेषधारी हनुमान जी बोले कि मैं बहुत भूखा हूँ, भोजन करूँगा। तू थोड़ी सी जमीन लीप दे।

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वृद्धा बड़ी दुविधा में पड़ गई। अन्त में हाथ जोड़कर प्रार्थना की — हे महाराज! लीपने और मिट्टी खोदने के अतिरिक्त जो काम आप कहें वह मैं करने को तैयार हूँ।

मंगलवार प्रदोष व्रत कथा के अनुसार साधु ने तीन बार परीक्षा कराने के बाद कहा, “तू अपने बेटे को बुला। मैं उसे औंधा लिटाकर, उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन बनाऊँगा।” वृद्धा ने सुना तो पैरों तले की धरती खिसक गई, मगर वह वचन हार चुकी थी। उसने मंगलिया को पुकारकर साधु महाराज के हवाले कर दिया। मगर साधु ऐसे ही है मानने वाले न थे। उन्होंने वृद्धा के हाथों से ही मंगलिया को ओंधा लिटाकर उसकी पीठ पर आग जलवाई।

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आग जलाकर, दुःखी मन से वृद्धा अपने घर के अन्दर जा घुसी। साधु जब भोजन बना चुका तो उसने वृद्धा को बुला कर कहा कि वह मंगलिया को पुकारे ताकि वह भी आकर भोग लगा ले। वृद्धा आँखों में आँसू भरकर कहने लगी कि अब उसका नाम लेकर मेरे हृदय को और न दुःखाओ, लेकिन साधु महाराज न माने तो वृद्धा को भोजन के लिए मंगलिया को पुकारना पड़ा।

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पुकारने की देर थी कि मंगलिया बाहर से हँसता हुआ घर में दौड़ा आया। मंगलिया को जीता जागता देखकर वृद्धा को सुखद आश्चर्य हुआ। वह साधु महाराज के चरणों में गिर पड़ी। साधु महाराज ने उसे अपने असली रूप के दर्शन दिए। हनुमान जी को अपने आँगन में देखकर वृद्धा को लगा कि जीवन सफल हो गया।

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दोस्तो, यह तो हमने जाना मंगल प्रदोष व्रत कथा (Mangal Pradosh Vrat Katha)। आइये अब जानते हैं इस व्रत को करने की विधि, महत्व, और उद्यापन विधि। 

मंगल प्रदोष व्रत की विधि

मंगल या भौम प्रदोष के व्रत की विधि कुछ इस प्रकार है- व्रत करने वाले जातक को इस दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर शिव जी का पूजन करना चाहिए। दिन भर मानसिक रूप से “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते रहें। इस व्रत की पूजा का उचित समय शाम 4:30 बजे से शाम 7:00 बजे तक रहता है। 

पूजा से पहले आपको पुनः स्नान करना चाहिए और स्वच्छ एवं सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करना चाहिए। पूजा के स्थान को भी स्वच्छ एवं शुद्ध कर लें। रंगोली से स्थान को सजाकर उसके ऊपर मंडप तैयार कर लें एवं पूजन की अन्य सामग्री एकत्र कर लें। 

अब एक कलश लेकर, उसमें शुद्ध जल भरकर रख दें। बैठने के लिए कुश के आसन का इस्तेमाल करें। अब मानसिक रूप से ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवजी का विधि विधान से पूजन करें। अब कथा पढ़ें एवं आरती करके प्रसाद वितरण करें। 

इस व्रत का महत्व 

मंगलवार का दिन हनुमान जी की पूजा एवं उपासना के लिए महत्वपूर्ण होता है। अगर किसी जातक की कुंडली में मंगल दोष होता है तो उसे भौम या मंगल प्रदोष का व्रत अवश्य करना चाहिए। मान्यता अनुसार मंगल प्रदोष व्रत वाले दिन हनुमान जी के समक्ष घी की नौ बाती वाला दीपक जलाने से हर प्रकार के क़र्ज़ से मुक्ति मिलती है। जो भी पूर्ण श्रद्धा एवं विधि विधान से इस व्रत को करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती हैं। इस व्रत को करने वाले पर हनुमान जी के साथ-साथ भगवान शिव की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है। 

व्रत की उद्यापन विधि 

स्कन्द पुराण के अनुसार व्रत की इच्छा रखने वाले को कम से कम 11 या 26 त्रयोदशी पर यह व्रत करके ही उद्यापन करना चाहिए। उद्यापन की नियत तिथि के एक दिन पहले गणेश जी का विधि विधान से षोडशोपचार से पूजन करें। रात भर गणेश जी और शिव पार्वती का भजन एवं जागरण करें। 

उद्यापन वाले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि कर्मों से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के स्थान को साफ़ एवं स्वच्छ कर लें। रंगोली एवं रंगीन वस्त्रों के उपयोग से पूजा स्थल को सजाएँ एवं मंडप बनाएँ। मंडप में एक चौकी पर शिव-पार्वती की मूर्ति अथवा प्रतिमा स्थापित करें। तत्पश्चात् विधि विधान के साथ शिव जी एवं पार्वती माता की पूजा करें और भोग लगाएँ। भौम प्रदोष व्रत कथा सुनें और सुनाएँ। 

अब हवन कुंड तैयार करें। उसके लिए सवा किलो आम की लकड़ी लेकर हवन कुंड पर लगाएँ। गाय के दूध की खीर बनाकर रखें। हवन कुंड का पूजन कर उन्हें प्रणाम कर अग्नि प्रज्वलित करें। तत्पश्चात ‘ॐ उमा सहित शिवाय नमः’, इस मंत्र का उच्चारण करते हुए 108 आहुति दें। हवन के बाद शिव जी की आरती करें। यथाशक्ति ब्राह्मणों को दान दें एवं भोजन कराएँ। इसके पश्चात प्रसाद वितरण करें। 

इस प्रकार विधि विधान से मंगल प्रदोष व्रत कथा (Mangal Pradosh Vrat Katha) करने वाले को पुत्र-पौत्रादि एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और शिवलोक की प्राप्ति होती है। 

सूत जी बोले- हे ऋषियो, यह मंगल प्रदोष व्रत कथा बहुत पुण्यदायक है। अब मैं आपको बुध त्रयोदशी प्रदोष की कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनिये।

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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