निबंध

परोपकार पर निबंध

“परोपकार पर निबंध” न केवल पाठ्यक्रम की दृष्टि से, बल्कि जीवन-विकास की दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज की प्रगति बिना आत्मत्याग और उपकार की भावना के असंभव है। वस्तुतः यह दैवीय गुण ही आत्म-विकास का सबसे मुख्य साधन है। पढ़ें परोपकार पर निबंध हिंदी में–

परोपकार का अर्थ

परोपकार का अर्थ है स्वार्थ-निरपेक्ष और दूसरों के हितार्थ किया गया कार्य। परपीड़ा-हरण परोपकार है। पारस्परिक विरोध की भावना घटाना, प्रेमभाव बढ़ाना परोपकार है। दीन, दुःखी, दुर्बल की सहायता परोपकार है। आवश्यकता पड़ने पर निःस्वार्थ भाव से दूसरों को सहयोग देना परोपकार है। मन, वचन, कर्म से परहित साधन परोपकार है।

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परोपकार में प्रवृत्त रहना जीवन की सफलता का लक्षण है (जीवितं सफल तस्य यः परार्थोद्यतः सदा)। महर्षि व्यास जी के कथनानुसार “परोपकारः पुण्याय” अर्थात्‌ परोपकार से पुण्य होता है। परोपकार करने का पुण्य सौ यज्ञों से बढ़कर है। आचार्य चाणक्य मानते हैं कि “जिनके हृदय में सदा परोपकार करने की भावना रहती है, उनकी विपत्तियाँ नष्ट हो जाती हैं और पग-पग पर सम्पत्ति प्राप्त होती है।” स्वामी विवेकानंद अपनी प्रसिद्ध पुस्तक कर्मयोग में कहते हैं कि परोपकार में वस्तुतः हमारा ही उपकार है

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प्रकृति, देवताओं और महापुरुषों द्वारा उपकार

सूर्य देव की किरणें जगत्‌ को प्रकाश और जीवन प्रदान करती हैं। रात्रि का राजा चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है। वृक्ष मानव-मात्र के लिए फल प्रदान करते हैं। खेती अनाज देती है। सरिताएँ जल अर्पित करती हैं। वायु निरन्तर बहकर जीवन देती है। समुद्र अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति वर्षा रूप में जन-कल्याण के लिए समर्पित करता है। इस प्रकार प्रकृति के सभी तत्त्व पर-हित के लिए समर्पित हैं, इनका निजी स्वार्थ कुछ नहीं। इससे सहज ही परोपकार का महत्व समझ आता है।

भगवान् शंकर ने देव-दानव कल्याणार्थ विष-पान किया। महर्षि दधीचि ने देवगण की रक्षार्थ अपनी हड्डियाँ दान कर दीं। दानवीर कर्ण ने अपने कवच-कुंडल विप्र रूपधारी इन्द्र को दान दे दिए। राजा शिवि ने कबूतर की प्राण-रक्षा के लिए अपना अंग-अंग काट कर दे दिया। राजा रन्तिदेव ने स्वयं भूखे होते हुए भी अपने भाग का भोजन एक भूखे ब्राह्मण को दे दिया। ईसा मसीह सूली पर चढ़े । सुकरात ने जहर पी लिया। भारत की एकता और अखंडता के लिए डॉ. श्यामाप्रसाद मुकर्जी कश्मीर में जाकर बलि हुए। महात्मा गाँधी जनहित के लिए संघर्ष करते रहे। आचार्य विनोबा भावे दरिद्र-नारायण के लिए भूदान माँगते रहे। गोस्वामी तुलसीदास का कथन है–”परहित सरिस धर्म नहिं भाई।” उन्होंने हिन्दू जाति, धर्म और संस्कृति के लिए सर्वस्व-न्यौछार कर अपना धर्म निभाया। उनका ‘ मानस’ हिन्दू जाति का रक्षक कवच बन गया, धर्म-प्रेरक बन गया, मोक्ष-मार्ग का पथ-प्रदर्शक बन गया।

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परोपकार का महत्व

परोपकार करते हुए कष्ट तो सहना ही पड़ता है, परन्तु इसमें भी परोपकारी को आत्म संतोष और विशेष सुख मिलता है। प्रत्येक कर्म का चरित्र पर प्रभाव पड़ता है और परोपकार के लिए किया गया कर्म चरित्र को महान बना देता है। कर्म को कर्मयोग में रूपांतरित कर देता है। किरार्तार्जुनीय में कहा गया है, “परोपकार में लगे हुए सज्जनों की प्रवृत्ति पीड़ा के समय भी कल्याणमयी होती है।” माँ कष्ट न उठाए, तो शिशु का कल्याण नहीं होगा। वृक्ष पुराने पत्तों का मोह त्यागें नहीं, तो नव-पल्लवों के दर्शन असम्भव हैं।

परोपकार करने से आत्मा प्रसन्‍न होती है। परोपकारी दूसरों की सहानुभूति का पात्र बनता है। समाज के दीन-हीन पीड़ित वर्ग को जीवन का अवसर देकर समाज में सम्मान प्राप्त करता है। समाज के विभिन्‍न वर्गों में शत्रुता, कटुता और वैमनस्य दूर कर शांति दूत बनता है। धर्म के पथ पर समाज को प्रवृत्त कर ‘मुक्तिदाता’ कहलाता है। राष्ट्र-हित जनता में देश-भक्ति की चिंगारी फूँकने वाला ‘देश-रत्न’ की उपाधि से अलंकृत होता है।

उपकार से कृतज्ञ होकर किया गया प्रत्युपकार परोपकार नहीं। वह सज्जनता का द्योतक हो सकता है। उपकार के बदले अपकार करने वाला न सज्जनता से परिचित है, न परोपकार से। इनसे तो पशु ही श्रेष्ठ हैं, जिनका चमड़ा मानव की सेवा करता है। भगवान्‌ सूर्य की आत्मा कितनी निर्मल है। धरती के जल को कर रूप में जितना ग्रहण करते हैं उसको हजार गुना बनाकर वर्षा के रूप में धरती के कल्यार्थ लौटा देते हैं। उपकार करके प्रत्युपकार की आशा न रखना, “नेकी कर दरिया में डाल देना” परोपकार की सच्ची भावना है।

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सज्जनता और सहानुभूति – परोपकार पर निबंध

परोपकार पर निबंध तब तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक हम आज की स्थिति का विश्लेषण न करें। आज परोपकार के मानदंड बदल गये हैं; परिभाषा में परिवर्तन आ गया है। धार्मिक नेता धर्म के नाम पर मठाधीश बन स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान हैं! सामाजिक नेता समाज को खंड-खंड कर रहे हैं। राजनीतिक नेता ‘ग़रीबी हटाओ’ के नाम पर अपना घर भर रहे हैं। बाढ़ पीड़ितों के दान से अपना उद्धार कर रहे हैं। ‘अन्त्योदय’ के कार्यक्रम से ग़रीबों का अन्त कर रहे हैं।

रेल के डिब्बे में लेट हुआ यात्री जब बाहर खड़े यात्री को कहता है ‘आगे डिब्बे खाली पड़े हैं’, तो वह कितना उपकार करता है? जब सड़क पर खड़े दुर्घटनाग्रस्त असहाय व्यक्ति से जनता मुख मोड़कर आगे बढ़ जाती है, तो उपकार की वास्तविकता का पता लगता है। आग की लपटों से बचे घर या दुकान के सामान को दर्शक उठाकर ले जाते हैं, तो परोपकार की परिभाषा समझ में आती है। इसीलिए शास्त्रों का कथन है–“जिस शरीर से धर्म न हुआ, यज्ञ न हुआ और परोपकार न हो सका, उस शरीर को धिक्कार है, ऐसे शरीर को पशु-पक्षी भी नहीं छूते।” कबीर परोपकार का महत्व बताते हुए और ऐसे व्यक्तियों को धिक्कारते हुए कहते हैं–

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंछी को छाया नहीं, फल लागत अति दूर॥

राष्ट्रववि मैथिलीशरण गुप्त ने परोपकार और परोपकारी भावना की कैसी सुन्दर व्याख्या की है–

मरा वही नहीं कि जो जिया न आपके लिए।
वही मनुष्य है कि जो, मरे मनुष्य के लिए॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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