भगवान पुष्पदंत की आरती – Pushpdant Aarti
भगवान पुष्पदंत की आरती (Pushpdant Aarti) भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाली हैI जैन धर्म के नौवें तीर्थंकर भगवान पुष्पदंत की आरती के पठन से समस्त पीड़ाओं, कष्टों और पापों का नाश होता हैI कई लोगों के अनुसार श्री पुष्पदंतनाथ की आरती स्वयं के अन्दर स्थित कुरीतियों को समाप्त करने के लिए की जाती हैI पुष्पदंतनाथ प्रभु निर्मलता, धैर्य, आत्मीयता और क्षमा के साक्षात् प्रतीक हैं इसलिए पुष्पदंत की आरती को सभी के द्वारा अत्यंत कल्याणकारी माना जाता हैI पढ़ें भगवान पुष्पदंत की आरती–
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ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी, प्रभु जय पुष्पदन्त स्वामी।
काकन्दी में जन्में, त्रिभुवन में नामी॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
फाल्गुन कृष्णा नवमी, गर्भकल्याण हुआ। स्वामी……
जयरामा सुग्रीव मात-पितु, हर्ष महान हुआ॥१॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
मगशिर शुक्ला एकम, जन्मकल्याणक है। स्वामी…..
तपकल्याणक से भी, यह तिथि पावन है॥२॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
कार्तिक शुक्ला दुतिया, घातिकर्म नाशा। स्वामी…….
पुष्पकवन में केवल-ज्ञान सूर्य भासा॥३॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
भादों शुक्ला अष्टमि, सम्मेदाचल से। स्वामी……
सकल कर्म विरहित हो, सिद्धालय पहुँचे॥४॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
हम सब घृतदीपक ले, आरति को आए। स्वामी…..
यही ‘‘चंदनामती’’ कहे, भव आरत नश जाए॥५॥
ॐ जय पुष्पदन्त स्वामी…
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर पुष्पदंत की आरती (Pushpdant Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें भगवान पुष्पदंत की आरती रोमन में–
oṃ jaya puṣpadanta svāmī, prabhu jaya puṣpadanta svāmī।
kākandī meṃ janmeṃ, tribhuvana meṃ nāmī॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…
phālguna kṛṣṇā navamī, garbhakalyāṇa huā। svāmī……
jayarāmā sugrīva māta-pitu, harṣa mahāna huā॥1॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…
magaśira śuklā ekama, janmakalyāṇaka hai। svāmī…..
tapakalyāṇaka se bhī, yaha tithi pāvana hai॥2॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…
kārtika śuklā dutiyā, ghātikarma nāśā। svāmī…….
puṣpakavana meṃ kevala-jñānasūrya bhāsā॥3॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…
bhādoṃ śuklā aṣṭami, sammedācala se। svāmī……
sakala karma virahita ho, siddhālaya pahu~ce॥4॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…
hama saba ghṛtadīpaka le, ārati ko āe। svāmī…..
yahī ‘‘caṃdanāmatī’’ kahe, bhava ārata naśa jāe॥5॥
oṃ jaya puṣpadanta svāmī…