भगवान संभवनाथ की आरती – Sambhavnath Aarti
भगवान संभवनाथ की आरती (Sambhavnath Aarti) असंभव को संभव करने का स्रोत है। इसमें अनन्त शक्ति विद्यमान है। जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्ति पाने के लिए भगवान संभवनाथ की आरती पढ़ना सबसे उत्तम माना गया है। यही नहीं यदि सच्चे मन से भगवान संभवनाथ की आरती को पढ़ा जाए तो यह मनवांछित फल देने वाली मानी गई है। जीवन के सारे दुःख दूर करने के लिए यहां पढ़ें यह आरती।
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मैं तो आरती उतारूं रे,
सम्भव जिनेश्वर की,
जय जय जिनेन्द्र प्रभु,
जय जय जय-२॥टेक.॥
इस युग के तृतीय प्रभू,
तुम्हीं तो कहलाए, तुम्हीं……
पिता दृढ़रथ सुषेणा मात,
पा तुम्हें हरषाए, पा………
अवधपुरी धन्य-धन्य,
इन्द्रगण प्रसन्नमन, उत्सव मनाएं रे
हो जन्म उत्सव मनाएँ रे॥मैं…………..॥१॥
मगशिर सुदी पूनो तिथी,
हुए प्रभु वैरागी, हुए………..
सिद्ध प्रभुवर की ले साक्षी,
जिनदीक्षा धारी, जिन…….
श्रेष्ठ पद की चाह से, मुक्ति पथ की राह ले,
आतम को ध्याया रे
प्रभू ने आतम को……॥मैं………….॥२॥
वदि कार्तिक चतुर्थी तिथि,
केवल रवि प्रगटा, केवल…..
इन्द्र आज्ञा से धनपति ने,
समवसरण को रचा, समवसरण……
दिव्यध्वनि खिर गई, ज्ञानज्योति जल गई,
शिवपथ की ओर चले,
अनेक जीव शिवपथ की ओर चले॥मैं……॥३॥
चैत्र सुदि षष्ठी तिथि को,
मोक्षकल्याण हुआ, मोक्ष…….
प्रभू जाकर विराजे वहाँ,
सिद्धसमूह भरा, सिद्ध………..
सम्मेदगिरिवर का, कण-कण भी पूज्य है,
मुक्ति जहां से मिली,
प्रभू को मुक्ति जहाँ से मिली॥मैं………॥४॥
स्वर्ण थाली में रत्नदीप ला,
आरति मैं कर लूँ, आरति……
करके आरति प्रभो तेरी,
मुक्तिवधू वर लूँ, मुक्ति………
त्रैलोक्य वंद्य हो, काटो जगफंद को,
‘चंदनामती’ ये कहे
प्रभूजी ‘‘चंदनामती’’ ये कहे॥मैं…….॥५॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर भगवान संभवनाथ की आरती (Sambhavnath Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें भगवान संभवनाथ की आरती रोमन में–
maiṃ to āratī utārūṃ re,
sambhava jineśvara kī,
jaya jaya jinendra prabhu,
jaya jaya jaya-2॥ṭeka.॥
isa yuga ke tṛtīya prabhū,
tumhīṃ to kahalāe, tumhīṃ……
pitā dṛḍha़ratha suṣeṇā māta,
pā tumheṃ haraṣāe, pā………
avadhapurī dhanya-dhanya,
indragaṇa prasannamana, utsava manāeṃ re
ho janma utsava manāe~ re॥maiṃ…………..॥1॥
magaśira sudī pūno tithī,
hue prabhu vairāgī, hue………..
siddha prabhuvara kī le sākṣī,
jinadīkṣā dhārī, jina…….
śreṣṭha pada kī cāha se, mukti patha kī rāha le,
ātama ko dhyāyā re
prabhū ne ātama ko……॥maiṃ………….॥2॥
vadi kārtika caturthī tithi,
kevala ravi pragaṭā, kevala…..
indra ājñā se dhanapati ne,
samavasaraṇa ko racā, samavasaraṇa……
divyadhvani khira gaī, jñānajyoti jala gaī,
śivapatha kī ora cale,
aneka jīva śivapatha kī ora cale॥maiṃ……॥3॥
caitra sudi ṣaṣṭhī tithi ko,
mokṣakalyāṇa huā, mokṣa…….
prabhū jākara virāje vahā~,
siddhasamūha bharā, siddha………..
sammedagirivara kā, kaṇa-kaṇa bhī pūjya hai,
mukti jahāṃ se milī,
prabhū ko mukti jahā~ se milī॥maiṃ………॥4॥
svarṇa thālī meṃ ratnadīpa lā,
ārati maiṃ kara lū~, ārati……
karake ārati prabho terī,
muktivadhū vara lū~, mukti………
trailokya vaṃdya ho, kāṭo jagaphaṃda ko,
‘caṃdanāmatī’ ye kahe
prabhūjī ‘‘caṃdanāmatī’’ ye kahe॥maiṃ…….॥5॥