दशहरे पर निबंध
दशहरे पर निबंध प्रस्तुत करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। दशहरा वस्तुतः बुराई पर अच्छाई की जीत का और शक्ति-पूजा का उत्सव है। विजयदशमी की इसी भावना को जीवन में धारण करने की आवश्यकता है, क्योंकि अन्तर्निहित सत् तत्त्व ही हमारे आन्तरिक और बाह्य जीवन को नवसृजित कर सकता है। पढ़ें दशहरे पर निबंध हिंदी में (Dussehra Par Nibandh in Hindi)–
दशहरा शक्ति पर्व के रूप में
दशहरा शक्ति-पर्व है। शक्ति की अधिष्ठात्री देवी दुर्गा के नव स्वरूपों की नवरात्र पूजन के पश्चात् आश्विन शुक्ल दशमी को इसका समापन “मधुरेण समापयेत्” के कारण ‘दशहरा’ नाम से प्रसिद्ध हुआ। इस प्रकार नवरात्रि पाप-प्रक्षालन और आत्म-शक्ति संचय कर आत्म-विजय प्राप्त्यर्थ शक्ति-पूजन का पर्व है। दशमी, उस अनुष्ठान की सफलतापूर्वक समाप्ति की उपासना का प्रतीक है, आत्म-विजय का द्योतक है।
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दस संख्याओं का महत्त्व
डॉ. सीताराम झा ‘श्याम ‘ का मानना है, “जैसे वैदिक अनुष्ठान में ‘तीन’ (त्रिक) की प्रधानता है, वैसे ही आदि शक्ति की उपासना में ‘दस’ संख्या का महत्त्व अधिक है। इसी से ‘दशहरा’ नाम से यह अनुष्ठान विख्यात है। निम्न विवरण से यह बात और अधिक स्पष्ट हो जायेगी–
तत्त्वतः दसों दिशाओं ऊर्ध्व, अधः, पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, अग्निकोण, ईशानकोण, वायुकोण और नैऋत्यकोण में आदिशक्ति का ही प्राबल्य है।
इसके अतिरिक्त शक्ति-उपासना के क्रम में दस महाविद्याओं–काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमलात्मिका का ध्यान सिद्धि में परम सहायक होता है। इनमें से किसी एक रूप की आराधना से ही दसों प्रकार के पाप–कायरता, भीरुता, दारिद्र्य, शैथिल्य, स्वार्थपरता, परमुखापेक्षिता, निष्क्रियता, असावधानी, असमर्थता एवं वंचकता का नाश तत्काल हो जाता है।
रामायण कथा के अनुसार दस मस्तक वाले रावण का संहार भगवान राम ने शक्ति को महती साधना से ही किया था।
इसी प्रकार दस इंद्रियों–आँख, कान, नाक, जीभ, त्वचा (ज्ञानेन्द्रियाँ), हाथ, पैर, जिह्वा, गुदा, उपस्थ (कर्मेन्द्रियाँ) को वश में करना भी शक्ति-अर्चना से ही संभव होता है।
दशमी की विजय-यात्रा दुर्गा के जिन नौ रूपों–शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कूष्माण्डा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री की आराधना के पश्चात् आयोजित की जाती है, उनमें महान संकटों को दूर करने के अमोघ उपायों का शाश्वत निर्देश है।
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दशहरे से संबंधित घटनाएँ
दशहरे पर निबंध में इस पर्व से जुड़ी घटनाओं का उल्लेख अत्यावश्यक है। दशहरे के पावन दिन देवराज इन्द्र ने महादानव वृत्रासुर पुर विजय प्राप्त की। मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने राक्षसी संस्कृति के प्रतीक लंका-नरेश रावण से युद्ध के लिए इसी दिन प्रस्थान किया था। श्रीराम ने इस दिन रावण पर विजय प्राप्त की थी यह धारणा अब समाप्त हो रही है, क्योंकि वाल्मीकि रामायण में इसका कहीं उल्लेख नहीं है।
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महाभारत की कथा के अनुसार इसी दिन पांडवों ने अपने प्रथम अज्ञातवास (एकचक्रा नगरी में ब्राह्मण वेश में रहने के उपरान्त) की अवधि समाप्त कर देवी द्रौपदी का वरण किया था। महाभारत का युद्ध भी इसी दिन आरम्भ हुआ था।
कृषिप्रधान भारत में भारतीय किसान खेत में नवधान्य प्राप्ति रूपी विजय के रूप में भी इसे मनाते हैं। कारण, क्वार या आश्विन की फसल इन्हीं दिनों काटी जाती है।
उत्तर भारत में विजयदशमी ‘नौरते’ टाँगने का पर्व भी है। बहिनें भाइयों के टीका कर कानों में नौरते टाँगती हैं । नौरते टाँगने की प्रथा कब शुरू हुई यह कहना कठिन है, परन्तु इसकी पृष्ठभूमि में नवरात्र पूजन की सफलता और कृषि की उपज की विजय-श्री का भाव लगता है। बहनें नवरात्र-पूजन को विधिविधान से सम्पन्न करने के उपलक्ष्य में अपने भाइयों को बधाई रूप में नवरात्र में बोए ‘जौ’ (अल) के अंकुरित रूप नौरतों को कानों में टाँगती हैं। कुमकुम का तिलक करती हैं। दुर्गा-पूजा की प्रसादी रूप में पाती हैं मुद्रा।
शक्ति के प्रतीक शस्त्रों का शास्त्रीय-विधि से पूजन विजयदशमी का अंग है। प्राचीन काल में वर्षा काल में युद्ध का निषेध था। अतः वर्षा के चतुर्मास में शस्त्र शस्त्रागारों में सुरक्षित रख दिए जाते थे। दशहरे पर उन्हें शस्त्रागारों से निकालकर उनका पूजन होता था। “शस्त्र पूजन” के पश्चात शत्रु पर आक्रमण और युद्ध किया जाता था। इसी दिन क्षत्रिय राजा सीमोल्लंघन भी करते थे।
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विभिन्न राज्यों में महत्त्व – दशहरे पर निबंध
कालांतर में सीमोल्लंघन का रूप बदल गया। महाराष्ट्र में दशहरा ‘सिलंगन’ अर्थात सीमोल्लंघन रूप में मनाई जाती है। सायंकाल गाँव के लोग नव-वस्त्रों से सुसज्जित होकर गाँव की सीमा पारकर शमी वृक्ष के पत्तों के रूप में ‘सोना’ लूटकर गाँव लौटते हैं और उस सुवर्ण का आदान-प्रदान करते हैं। इस वृक्ष में ऋषियों-मुनियों का तपस्तेज माना जाता है।
बंगाल में विजयादशमी का रूप दुर्गा-पूजा का है। वहाँ अनास्थावादी, नास्तिक तथा नक्सलवादी भी माँ दुर्गा की कृपा और आशीष चाहते हैं। बंगालियों की धारणा है कि आसुरी शक्तियों का संहार कर दशमी के दिन माँ दुर्गा कैलास पर्वत को प्रस्थान करती हैं अतः वे दशहरे के दिन दुर्गा की प्रतिमा की बड़ी धूमधाम से शोभा-यात्रा निकालते हुए पवित्र नदी, सरोवर अथवा किसी महानद में विसर्जित कर देते हैं।
दशहरे पर निबंध में यह बताना भी रोचक रहेगा कि हिन्दी भाषी प्रांतों में नवरात्रों में रामलीला मंचन की प्रथा है। आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से मंचन आरम्भ कर दशमी के दिन रावण-वध दर्शाकर विजयपर्व मनाया जाता है। भव्य शोभा-यात्रा रामलीला मंचन का विशिष्ट आकर्षण होता है। लाखों लोग श्रद्धा व भक्तिभाव से ‘रामलीला’ का आनन्द लेते हैं।
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना
दशहरे के दिन ही सन 1925 में भारत राष्ट्र की हिन्दू राष्ट्रीय अस्मिता, उसके अस्तित्व, उसकी पहचान और उसके गौरवशाली अतीत से प्रेरित एक परम वैभवशाली राष्ट्र के पुनर्निमाण हेतु परम पूज्य डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की।
दशहरा धार्मिक दृष्टि से आत्म-शुद्धि का पर्व है। पूजा, अर्चना, आराधना और तपोमय जीवन-साधना उसके अंग हैं। राष्ट्रीय दृष्टि से सैन्य-शक्ति संवर्धन का दिन है। शक्ति के उपकरण शस्त्रों की सुसज्जा, लेखा-जोखा तथा परीक्षण का त्यौहार है। आत्मा को आराधना और तप से उन्नत करें, राष्ट्र को शस्त्र और सैन्यबल से सुदृढ़ करें, यही दशहरे का संदेश है। दशहरे पर निबंध से हमें यह संदेश जीवन में धारण करने की शिक्षा मिलती है।
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