जगन्नाथ जी की आरती – Jagannath Ji Ki Aarti
जगन्नाथ जी की आरती (Jagannath Ji Ki Aarti) में श्री हरि विष्णु के पूर्णकला अवतार भगवान श्री कृष्ण के जगन्नाथ रूप की स्तुति है। भगवान जगन्नाथ तो कृपा से परिपूर्ण है। आवश्यकता है अन्तःकरण को भक्तिभाव से ओतप्रोत करके उनकी शरण में जाने की। जगन्नाथ जी की आरती हृदय को भगवान के भक्ति-सिन्धु में डुबो देती है और फिर स्वयं जगन्नाथ जी ही अपने भक्त के संपूर्ण जीवन का परिचालन करते हैं। कहते हैं कि भगवान दीन-दुःखियों का सहारा हैं और दया के अगाध सागर हैं। अतः जगन्नाथ जी की आरती करने से निश्चय ही सभी कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। पढ़ें जगन्नाथ जी की आरती–
चतुर्भुज जगन्नाथ
कंठ शोभित कौसतुभः॥
पद्मनाभ, बेडगरवहस्य,
चन्द्र सूरज्या बिलोचनः
जगन्नाथ, लोकानाथ,
निलाद्रिह सो पारो हरि
दीनबंधु, दयासिंधु,
कृपालुं च रक्षकः
कम्बु पानि, चक्र पानि,
पद्मनाभो, नरोतमः
जग्दम्पा रथो व्यापी,
सर्वव्यापी सुरेश्वराहा
लोका राजो, देव राजः,
चक्र भूपह स्कभूपतिहि
निलाद्रिह बद्रीनाथशः,
अनन्ता पुरुषोत्तमः
ताकारसोधायोह, कल्पतरु,
बिमला प्रीति बरदन्हा
बलभद्रोह, बासुदेव,
माधवो, मधुसुदना
दैत्यारिः, कुंडरी काक्षोह, बनमाली
बडा प्रियाह, ब्रम्हा बिष्णु, तुषमी
बंगश्यो, मुरारिह कृष्ण केशवः
श्री राम, सच्चिदानंदोह,
गोबिन्द परमेश्वरः
बिष्णुुर बिष्णुुर, महा बिष्णुपुर,
प्रवर बिशणु महेसरवाहा
लोका कर्ता, जगन्नाथो,
महीह करतह महजतहह॥
महर्षि कपिलाचार व्योह,
लोका चारिह सुरो हरिह
वातमा चा जीबा पालसाचा,
सूरह संगसारह पालकह
एको मीको मम प्रियो॥
ब्रम्ह बादि महेश्वरवरहा
दुइ भुजस्च चतुर बाहू,
सत बाहु सहस्त्रक
पद्म पितर बिशालक्षय
पद्म गरवा परो हरि
पद्म हस्तेहु, देव पालो
दैत्यारी दैत्यनाशनः
चतुर मुरति, चतुर बाहु
शहतुर न न सेवितोह …
पद्म हस्तो, चक्र पाणि
संख हसतोह, गदाधरह
महा बैकुंठबासी चो
लक्ष्मी प्रीति करहु सदा।
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर जगन्नाथ जी की आरती (Jagannath Ji Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें जगन्नाथ जी की आरती रोमन में–
Jagannath Ji Ki Aarti
caturbhuja jagannātha
kaṃṭha śobhita kausatubhaḥ॥
padmanābha, beḍagaravahasya,
candra sūrajyā bilocanaḥ
jagannātha, lokānātha,
nilādriha so pāro hari
dīnabaṃdhu, dayāsiṃdhu,
kṛpāluṃ ca rakṣakaḥ
kambu pāni, cakra pāni,
padmanābho, narotamaḥ
jagdampā ratho vyāpī,
sarvavyāpī sureśvarāhā
lokā rājo, deva rājaḥ,
cakra bhūpaha skabhūpatihi
nilādriha badrīnāthaśaḥ,
anantā puruṣottamaḥ
tākārasodhāyoha, kalpataru,
bimalā prīti baradanhā
balabhadroha, bāsudeva,
mādhavo, madhusudanā
daityāriḥ, kuṃḍarī kākṣoha, banamālī
baḍā priyāha, bramhā biṣṇu, tuṣamī
baṃgaśyo, murāriha kṛṣṇa keśavaḥ
śrī rāma, saccidānaṃdoha,
gobinda parameśvaraḥ
biṣṇuura biṣṇuura, mahā biṣṇupura,
pravara biśaṇu mahesaravāhā
lokā kartā, jagannātho,
mahīha karataha mahajatahaha॥
maharṣi kapilācāra vyoha,
lokā cāriha suro hariha
vātamā cā jībā pālasācā,
sūraha saṃgasāraha pālakaha
eko mīko mama priyo॥
bramha bādi maheśvaravarahā
dui bhujasca catura bāhū,
sata bāhu sahastraka
padma pitara biśālakṣaya
padma garavā paro hari
padma hastehu, deva pālo
daityārī daityanāśanaḥ
catura murati, catura bāhu
śahatura na na sevitoha …
padma hasto, cakra pāṇi
saṃkha hasatoha, gadādharaha
mahā baikuṃṭhabāsī co
lakṣmī prīti karahu sadā।