25 जातक कथाएँ – Jatak Katha In Hindi
जातक कथाएँ भगवान बुद्ध के पूर्व-जन्म की कहानियाँ हैं। मूल जातक में 550 कहानियाँ हैं।
यहाँ 25 जातक कथाएं आपके सामने प्रस्तुत की जा रही हैं, जिन्हें श्री चन्द्रिकाप्रसाद मिश्र की पुस्तक “जातक कथाएँ” से लिया गया है। प्रत्येक कहानी तीन भागों में विभक्त है–गाथा, वर्तमान कथा और अतीत कथा। वस्तुतः गाथा कहानी का सार या शिक्षा है। वर्तमान कथा भगवान बुद्ध के जीवन की कोई घटना है। वहीं अतीत कथा में भगवान के पूर्व-जन्म का वृत्तांत होता है, जिससे वर्तमान कथा जुड़ती है। जातक कथाओं का वास्तविक लेखक कौन है, यह कह सकना कठिन है। ऐसा प्रतीत होता है कि भगवान बुद्ध के परिनिर्वाण के ५०० वर्षों के भीतर ये कथाएँ लिपिबद्ध की गयी हैं। इन कहानियों का उद्देश्य भगवान बुद्ध की शिक्षाओं को कथाओं के माध्यम से जन-साधारण तक पहुँचाना है। पंचतंत्र और अकबर-बीरबल की कहानियों की ही तरह जातक कथाएँ भी बहुत रोचक और शिक्षापूर्ण हैं।
जातक कथाओं की सूची
- हिरनी की प्राण-रक्षा – The Story Of A Pregnant Doe
- मघ का मंत्र – The Story Of Magha’s Mantra
- धूर्त बगुले और केकड़े की कहानी – The Tale Of Sly Heron & A Crab
- लालची चोरों की कहानी – The Tale Of Greedy Thieves
- आशावान राजा की कहानी – The Tale Of A Hopeful King
- माली और मूर्ख बंदर – The Gardner & Foolish Monkeys
- ब्राह्मण और दुष्ट राजा – The Tale Of Brahmin & A Wicked King
- पाप को रोको – The Tale Of A Dream
- कंजूस सेठ की कहानी – The Tale Of A Miser Businessman
- लालची व्यापारी की कथा – The Tale Of A Greedy Trader
- क्रूर राजपुत्र का हृदय-परिवर्तन – The Tale Of A Change Of Heart
- बुद्ध की शरण में अजातशत्रु – The Tale Of King Ajatashatru
- सच्चा गुणी कौन? – The Story Of Real Merits
- उदर देव के दूत – The Messenger Of Stomach
- सत्य का प्रभाव – The Effect Of Truth
- सोने के चंगुल की कहानी – The Tale Of Golden Clutches
- शूकर का साहस – The Tale Of A Wild Boar
- चार अक्षर वाली चीख – The Tale Of Four Letters
- अंगुलिमाल डाकू की कहानी – The Tale Of Bendit Angulimal
- राम कहानी – Ram Kahani
- दिट्ठ मांगलिका का पुत्र – The Tale Of Dittha Mangalika’s Son
- शिवि का नेत्र-दान – The Tale Of Shivi’s Eye
- पुत्र की सीख – The Tale Of An Intelligent Son
- आशा का फल – The Tale Of Buddha’s Daughter
- वासुदेव के शोक की कहानी – The Tale Of Vasudev’s Greif
यदि आप जातक कथाएं पीडीएफ रूप में डाउनलोड करके पढ़ना चाहते हैं, तो नीचे दी गयी कड़ी से मुफ्त डाउनलोड कर सकते हैं–
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कथा वस्तु
बहुत-से विद्वानों का मत है कि इन कथाओं में से बहुत-सी किसी न किसी रूप में भगवान बुद्ध के पूर्व से ही मौजूद थीं। यदि लिखित रूप में नहीं तो लोक कथाओं अथवा जनश्रुतियों के रूप में इनका अस्तित्व अवश्य था। इन्हीं कथाओं के आधार पर कुछ हेर-फेर के साथ जातक कथाओं की रचना की गई है । कुछ कथाएँ हिन्दू पुराणों में भी पाई जाती हैं, यद्यपि उनका रूप कुछ भिन्न है।
वाल्मीकि रामायण से पूर्व की रचना
जातक की रचना संभवत: पुराणों के वर्तमान रूप से भी पहले हो चुकी थी। उस समय कथा साहित्य में किसी अन्य ग्रंथ का होना भी पाया नहीं जाता। बृहत्कथा तथा कथासरित्सागर आदि ग्रन्थ बहुत बाद में लिखे गए। वाल्मीकि रामायण भी उस समय नहीं बनी थी। दशरथ जातक की कथा में दशरथ को काशी का राजा कहना, उनकी केवल दो पटरानियों का उल्लेख, कौशल्या की मृत्यु, भरत और लक्ष्मण का भाई होना, शत्रुघ्न का उल्लेख न होना तथा सीता को राम की बहन लिखना यह सिद्ध करता है कि रामायण से पूर्व लोक कथाओं में राम की कहानी कुछ भिन्न रूप में ही प्रचलित थी। जातक में उसे बदलने की चेष्टा नहीं की गई है।
शिवि की कहानी का भिन्न रूप
शिवि की कथा भी पुराणों से कुछ भिन्नता रखती है। पुराणों में गजराज और ग्राह की कथा मिलती है, जो यहाँ कर्कट और गजराज की कथा के रूप में दिखाई देती है। सब देशों की लोक कथाओं में समान रूप से पाई जाने वाली भूत, प्रेत, यक्षादि की कहानियाँ भी इनमें मिलती हैं। इन्द्र और ब्रह्मा का देव रूप में उल्लेख जातक में मिलता है।
उपदेश से परिपूर्ण जातक कथाएँ
इन कहानियों का मुख्य उद्देश्य त्याग, वैराग्य, मन, वचन और कर्म की पवित्रता, अहिंसा, लोकहित तथा बुद्धि द्वारा निर्धारित कर्ममार्ग की महत्ता स्थापित करना तथा भगवान द्वारा प्रचारित पंचशील और दशशील की ओर लोगों को अधिकाधिक आकर्षित करना है। इस उद्देश्य की पूर्ति में जातक कथाएं बहुत सफल रही हैं। बौद्ध धर्म में ईश्वर के विषय में कुछ नहीं कहा गया। आचरण की पवित्रता ही द्वारा निर्वाण सम्भव माना गया है। इसीलिये इन कथाओं का रूप पुराणों की कथाओं से भिन्न होना अनिवार्य है।
जातक कथाएँ – बुद्ध की यात्रा की कहानी
पुराण ईश्वर की कृपा पर बल देता है। जातक की प्रत्येक कथा में वास्तविक ज्ञान की प्राप्ति से ही कल्याण मार्ग का प्रशस्त होना सिद्ध किया है। इन कथाओं में भगवान बुद्ध के दो नाम विशेष अर्थो में प्रयुक्त हुए हैं। बोधिसत्व का अर्थ है बुद्धपद की प्राप्ति के लिये प्रयत्नशील। प्रथम बुद्ध श्री दीपंकर के समय से ही भगवान बुद्ध की साधना प्रारंभ हो गई थी।
तब से बुद्धत्व प्राप्ति के लिये उन्होंने लाखों वर्ष में अनेक जन्म ग्रहण किये और अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिये एक-एक क्षण का सदुपयोग किया। इसीलिये गौतम बुद्ध के रूप में बुद्धत्व पाने से पूर्व जन्म-वृत्तांतों में सर्वत्र उन्हें ‘बोधिसत्व’ ही कहा गया है। बोध हो जाने पर लोग उन्हें श्रद्धापूर्वक अनेक नामों से सम्बोधित करते थे, परन्तु जो नाम उन्हें सब से प्रिय था वह था ‘तथागत’। तथागत का अर्थ है उसी मार्ग पर चलकर मंजिल पर पहुँचने वाला। इस प्रकार दोनों ही नाम भगवान बुद्ध की कठोर यात्रा की याद दिलाते हैं–एक साधना काल की और दूसरा फल प्राप्ति के बाद की।