मंगल कवच – Mangal Kavach
मंगल कवच अपनी अनूठी शक्ति के लिए प्रसिद्ध है। मंगल देव जब कुंडली में नकारात्मक स्थिति में बैठे होते हैं तो विवाह से लेकर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बाधा का सामना जातक को करना पड़ता है। अतः पंडितों का मानना है कि मंगल ग्रह को शांत करने के लिए प्रतिदिन तीन बार मंगल कवच का पाठ करना चाहिए। ऐसा करने से मंगल देव प्रसन्न होते हैं और जीवन में चहुँमुखी उन्नति होती है। शास्त्रों के अनुसार मंगल को भूमि का पुत्र माना जाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, वे जीवन में हर प्रकार का मंगल संपादित करने में सक्षम हैं। मंगल कवच का पाठ जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मंगल-ही-मंगल की वर्षा करता है।
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मंगल कवच पढ़ें
अस्य श्री मंगलकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः।
अनुष्टुप् छन्दः। अङ्गारको देवता।
भौम पीड़ापरिहारार्थं जपे विनियोगः।
रक्ताम्बरो रक्तवपुः किरीटी चतुर्भुजो मेषगमो गदाभृत्।
धरासुतः शक्तिधरश्च शूली सदा ममस्याद्वरदः प्रशान्तः॥१॥
अंगारकः शिरो रक्षेन्मुखं वै धरणीसुतः।
श्रवौ रक्तांबरः पातु नेत्रे मे रक्तलोचनः॥२॥
नासां शक्तिधरः पातु मुखं मे रक्तलोचनः।
भुजौ मे रक्तमाली च हस्तौ शक्तिधरस्तथा॥३॥
वक्षः पातु वरांगश्च हृदयं पातु लोहितः।
कटिं मे ग्रहराजश्च मुखं चैव धरासुतः॥४॥
जानुजंघे कुजः पातु पादौ भक्तप्रियः सदा।
सर्वण्यन्यानि चांगानि रक्षेन्मे मेषवाहनः॥५॥
या इदं कवचं दिव्यं सर्वशत्रु निवारणम्।
भूतप्रेतपिशाचानां नाशनं सर्व सिद्धिदम्॥६॥
सर्वरोगहरं चैव सर्वसंपत्प्रदं शुभम्
भुक्तिमुक्तिप्रदं नृणां सर्वसौभाग्यवर्धनम्।
रोगबंधविमोक्षं च सत्यमेतन्न संशयः॥७॥
॥ इति श्रीमार्कण्डेयपुराणे मंगलकवचम् संपूर्णं ॥
॥ श्री मार्कण्डेय पुराण का मंगल कवच संपूर्णं हुआ ॥
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विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर मंगल कवच (Mangal Kavach) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें मंगल कवच रोमन में–
Read Mangal Kavach
asya śrī maṃgalakavacastotramaṃtrasya kaśyapa ṛṣiḥ।
anuṣṭup chandaḥ। aṅgārako devatā।
bhauma pīड़āparihārārthaṃ jape viniyogaḥ।
raktāmbaro raktavapuḥ kirīṭī caturbhujo meṣagamo gadābhṛt।
dharāsutaḥ śaktidharaśca śūlī sadā mamasyādvaradaḥ praśāntaḥ ॥1॥
aṃgārakaḥ śiro rakṣenmukhaṃ vai dharaṇīsutaḥ।
śravau raktāṃbaraḥ pātu netre me raktalocanaḥ ॥2॥
nāsāṃ śaktidharaḥ pātu mukhaṃ me raktalocanaḥ।
bhujau me raktamālī ca hastau śaktidharastathā ॥3॥
vakṣaḥ pātu varāṃgaśca hṛdayaṃ pātu lohitaḥ।
kaṭiṃ me graharājaśca mukhaṃ caiva dharāsutaḥ ॥4॥
jānujaṃghe kujaḥ pātu pādau bhaktapriyaḥ sadā।
sarvaṇyanyāni cāṃgāni rakṣenme meṣavāhanaḥ ॥5॥
yā idaṃ kavacaṃ divyaṃ sarvaśatru nivāraṇam।
bhūtapretapiśācānāṃ nāśanaṃ sarva siddhidam ॥6॥
sarvarogaharaṃ caiva sarvasaṃpatpradaṃ śubham
bhuktimuktipradaṃ nṛṇāṃ sarvasaubhāgyavardhanam।
rogabaṃdhavimokṣaṃ ca satyametanna saṃśayaḥ ॥7॥
॥ iti śrīmārkaṇḍeyapurāṇe maṃgalakavacam saṃpūrṇaṃ ॥
॥ śrī mārkaṇḍeya purāṇa kā maṃgala kavaca saṃpūrṇaṃ huā ॥