शिक्षा पर निबंध
शिक्षा पर निबंध इस विषय के विभिन्न पहलुओं जैसे कि शिक्षा का उद्देश्य, आवश्यक तत्त्व और लोगों के इसपर विचार आदि की चर्चा करता है। वस्तुतः शिक्षा मनुष्य-निर्माण की कला है। यह जीवन को संस्कारित और पल्लवित करने का मार्ग है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य पशुतुल्य हो जाता है और उसकी प्रगति नष्ट हो जाती है। किसी भी व्यक्ति और राष्ट्र के लिए शिक्षा मे महत्व को समझना और उसे जीवन में सम्मिलित करना बहुत आवश्यक है। आइए, पढ़ते हैं शिक्षा पर निबंध–
शिक्षा के बारे में विद्वानों के विचार
शिक्षा पर निबंध में सर्वप्रथम यह समझने की आवश्यकता है कि “शिक्षा” शब्द का क्या अर्थ है। यह प्राचीन संस्कृत शब्द है और उपनिषदों इसका एक रूप “शीक्षा” के तौर पर भी मिलता है। ‘शिक्षा’ शब्द ‘शिक्ष्’ धातु से भाव में ‘ अ’ तथा ‘टाप्’ प्रत्यय जोड़ने पर बनता है। अतः वस्तुतः शिक्षा का अर्थ है–अधिगम, अध्ययन तथा ज्ञानाभिग्रहण। शिक्षा के लिए वर्तमान युग में शिक्षण, ज्ञान, विद्या, एजूकेशन आदि अनेक पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग होता है।
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एजुकेशन (Education) शब्द की उत्पत्ति लेटिन भाषा के Educare तथा Educere शब्दों से मानी जाती है। Educare शब्द का अर्थ है “to educate, to bring up, to raise” अर्थात शिक्षित करना, पालन-पोषण करना तथा ऊपर उठाना।
शिक्षा-शास्त्री टी. रेमांट का विचार है, शिक्षा विकास का वह क्रम है, जिससे व्यक्ति अपने को धीरे- धीरे विभिन्न प्रकार से अपने भौतिक, सामाजिक तथा आध्यात्मिक वातावरण के अनुकूल बना लेता है। जीवन ही वास्तव में शिक्षा है। प्रोफेसर ड्यूबी के मत में शिक्षा एक प्रक्रिया है, जिसमें तथा जिसके द्वारा विद्यार्थी के ज्ञान, चरित्र तथा व्यवहार को एक विशेष साँचे में ढाला जाता है।
स्वामी विवेकानन्द के अनुसार शिक्षा का महत्व सर्वोपरि है। उनका कथन है, “शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं, बल्कि मनुष्य में जो सम्पूर्णता गुप्त रूप से विद्यमान है, उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है।” वहीं प्लेटो ने भी शिक्षा के सम्बन्ध में इसी तरह के भाव व्यक्त किए हैं, “शरीर और आत्मा में अधिक-से-अधिक जितने सौंदर्य और जितनी सम्पूर्णता का विकास हो सकता है, उसे सम्पन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।” हर्बर्ट स्पेन्सर शिक्षा का महान उद्देश्य कर्म को मानते हुए कहते हैं, “लोगों को पूर्ण जीवन व्यतीत करने के लिए प्रस्तुत करना ही शिक्षा का उद्देश्य है।”
शिक्षा के लिए साफ़ सोच और अनुशासन भी महत्वपूर्ण है। डॉ. राधाकृष्णन के अनुसार, “इसमें केवल बुद्धि का प्रशिक्षण ही नहीं, बल्कि हृदय की शुद्धता और आत्मा का अनुशासन भी सम्मिलित होना चाहिए।”
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मनुष्य का सर्वांगीण विकास
भारतीय संस्कृति में भगवान शिव के तृतीय नेत्र की तरह ज्ञान को मनुष्य का तृतीय नेत्र (ज्ञानं तृतीय मनुजस्य नेत्रम्) बताया गया है। विद्या ही मानवी शील का शृंगार है। यही विवेक का मूल है। शिक्षा राष्ट्र की आन्तरिक सुरक्षा है, जीवन की सफलता का दिव्य साधन है।
विद्या (शिक्षा) ही वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्यता का विकास होता है। शिक्षा-शून्य व्यक्ति तो पशु-समान ही होता है। उक्ति प्रसिद्ध है–”विद्या-विहीनः पशुः।” इतना ही नहीं, शिक्षा मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष के समान है। उसके द्वारा मनुष्य के जीवन का सर्वांगीण विकास होता है–’किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या।’
शिक्षा रूपी सम्पत्ति संसार के सब धनों में विलक्षण है। अन्य धन नष्ट हो सकते हैं, चुराए जा सकते हैं, शासन द्वारा जब्त किए जा सकते हैं, किन्तु शिक्षा रूपी धन इन विपदाओं से मुक्त है। इसे न चोर चुरा सकता है, न राजा छीन सकता है और न भाई-बन्धु बाँट सकते हैं। इस धन की सबसे बड़ी विलक्षणता तो यह है कि ज्यों-ज्यों व्यय किया जाता है, त्यों- त्यों यह बढ़ता ही जाता है। स्पष्ट है कि मनुष्य स्वयंगृहीत शिक्षा को जितना ही दूसरों को देगा, उतना ही उसका ज्ञान बढ़ेगा। किसी कवि ने ठीक ही कहा है–
सरस्वती के भंडार की बड़ी अपूरब बात।
-ज्यों खरचे त्यों बढ़े, बिन खरचे घटि जात॥
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मानव जीवन के लिए शिक्षा का उद्देश्य
शिक्षा मानव-जीवन के लिए वैसी ही है, जैसे संगमरमर के टुकड़े के लिए शिल्पकला | फलतः शिक्षा केवल ज्ञान-दान ही नहीं करती, वह संस्कार और सुरुचि के अंकुरों का पोषण भी करती है। हिन्दी के प्रसिद्ध कवि श्री सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” ने शिक्षा को संसार की सभी प्रकार की प्राप्तियों में श्रेष्ठतम बताया है। इसी प्रकार होरसमैन विद्या को भवन के प्रजातन्त्र की किलेबन्दी मानता है।
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शिक्षा-प्राप्ति के लिए अनिवार्य गुण
शिक्षा पर निंबध तक तक पूर्ण नहीं हो सकता, जब तक इसके सही उद्देश्य पर चर्चा न की जाए। शिक्षा के उद्देश्य को व्यक्त करते हुए प्रेमचन्द जी अपनी एक कथा में लिखते हैं कि ‘यह ठीक है कि शिक्षा और सम्पत्ति का प्रभुत्व सदा ही रहा है, किन्तु जो शिक्षा हमें निर्बलों को सताने के लिए तैयार करे, जो हमें धरती और धन का गुलाम बनाए, जो हमें भोग- विलास में डुबाए, जो हमें दूसरों का रक्त पीकर मोटा होने का इच्छुक बनाए, वह शिक्षा नहीं, भ्रष्टता है।’
एक शिक्षाविद् का कथन है कि जिस शिक्षा में समाज और देश के कल्याण-चिन्तन के तत्त्व नहीं हैं, वह कभी सच्ची शिक्षा नहीं कही जा सकती है। डॉ. हरिशंकर शर्मा ने शिक्षा के आदर्श का उद्घाटन इन पंक्तियों में किया है–
जो शिक्षा मानवता का मार्ग दिखाए,
मन, वचन, कर्म में शुचिता, समता लाए।|
तन, मन, आत्मा को विमल-बलिष्ठ बनाए,
विज्ञान, ज्ञान का मर्म महत्व बताए॥
सामवेद संहिता में ‘पावका नः सरस्वती’ (हमारी विद्या पवित्र विचारों को फैलाने वाली हो) कहकर शिक्षा के महत्त्व का सार ही प्रस्तुत कर दिया है।
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उपसंहार – शिक्षा पर निबंध
शिक्षा-प्राप्ति के लिए आत्म-संयम, कर्तव्य-निष्ठा, धैर्य, सहनशीलता, सत्य तथा अपरिग्रह अनिवार्य गुण हैं। इन गुणों के लिए अपेक्षित है अतुल शक्ति, पारदर्शी बुद्धि तथा आचरण की शुचिता | स्वाध्याय, स्मृति और विवेकशक्ति उसकी रीढ़ है, आधार स्तम्भ है। शिक्षा के अभाव में मनुष्य का जीवन अत्यन्त दूषित एवं पाशविक बन जाता है। इस स्थिति पर प्रकाश डालते हुए किसी कवि ने लिखा है–
विद्या बिना अब देख लो हम दुर्गुणों के दास हैं।
हैं तो मनुज हम, किन्तु रहते दनुजता के पास हैं॥
दायें तथा बायें सदा सहचर हमारे चार हैं।
अविचादर, अन्धाचार औ’ व्यभिचार, अत्याचार हैं॥
शिक्षा पर निबंध में हमने मुख्य बिंदुओं की चर्चा करने का यत्न किया है। शिक्षा एक बहुत विस्तृत विषय है। यदि आपको लगता है कि इस निबंध में कोई मुख्य बिंदु छूट गया है, तो कृपया टिप्पणी करके हमें अवश्य बताएँ।
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