सुग्रीव की कथा रामायण के अनुसार
सुग्रीव और बाली दोनों सगे भाई थे। दोनों भाइयों में बड़ा प्रेम था। बाली बड़ा था, इसलिये वही वानरों का राजा था। एक बार एक राक्षस रात्रि में किष्किन्धा में आकर बाली को युद्ध के लिये चुनौती देते हुए घोर गर्जना करने लगा। बलशाली बाली अकेला ही उससे युद्ध करने के लिये निकल पड़ा। भ्रातृ-प्रेम के वशीभूत होकर उनके छोटे भाई उनकी सहायता के लिये बाली के पीछे-पीछे चल पड़े।
रामायण की कथा के अनुसार वह राक्षस एक बड़ी भारी गुफा में प्रविष्ट हो गया। बाली अपने छोटे भाई को गुफा के द्वार पर अपनी प्रतीक्षा करने का निर्देश देकर राक्षस को मारने के लिये गुफा के भीतर चला गया। एक मास के बाद गुफा के द्वार से रक्त की धारा निकली। उन्होंने अपने बड़े भाई बाली को राक्षस के द्वारा मारा गया जानकर गुफा के द्वार को एक बड़ी शिला से बन्द कर दिया और किष्किन्धा लौट आये।
बाली सुग्रीव की लड़ाई
मन्त्रियों ने राज्य को राजा से विहीन जानकर सुग्रीव (Sugriv) को किष्किन्धा का राजा बना दिया। राक्षस को मारकर किष्किन्धा लौटने पर जब बाली ने सुग्रीव को राज्यसिंहासन पर राजा के रूप में देखा तो उसके क्रोध का ठिकाना न रहा। बाली ने उनके ऊपर प्राण-घातक मुष्टिक प्रहार किया। सुग्रीव और बाली का भयंकर युद्ध हुआ। इसके पश्चात प्राण रक्षा के लिये वे ऋष्यमूक पर्वत पर जाकर छिप गये। बाली ने अपने छोटे भाई का धन-स्त्री आदि सब कुछ छीन लिया। धन-स्त्री आदि के हरण होने पर सुग्रीव दुःखी होकर अपने हनुमान जी आदि चार मन्त्रियों के साथ ऋष्यमूक पर्वत पर रहने लगे।
राम सुग्रीव मित्रता
सीता जी का हरण हो जाने पर भगवान् श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ उन्हें खोजते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर आये। श्रीहनुमानजी श्रीराम-लक्ष्मण को आदर पूर्वक सुग्रीव के पास ले आये और अग्नि के साक्षित्व में श्रीराम जी की उनसे मित्रता हुई। भगवान श्रीराम ने एक ही बाण से बाली का वध करके सुग्रीव को निर्भय कर दिया।
बाली के मरने पर सुग्रीव किष्किन्धा के राजा बने और अंगद को युवराज पद मिला। तदनन्तर सुग्रीव ने असंख्य वानरों को सीता जी की खोज में भेजा। श्री हनुमान जी ने सीता जी का पता लगाया। समस्त वानर-भालु श्रीराम के सहायक बने। लंका में वानरों और राक्षसों का भयङ्कर युद्ध हुआ। उस युद्ध में उन्होंने अपनी वानरी सेना के साथ विशेष शौर्य का प्रदर्शन करके सच्चे मित्र धर्म का निर्वाह किया। अन्त में भगवान् श्रीराम के हाथों रावण की मृत्यु हुई और भगवान श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण, पत्नी सीता और मित्रों के साथ अयोध्या लौटे, जहाँ भरत जी उनकी पादुकाएँ सिंहासन पर रख राजकाज चला रहे थे। रामायण मनका 108 में वर्णन आता है–
सुग्रीव से करी मिताई, अपनी सारी कथा सुनाई।
बाली पहुँचाया निज धाम, पतितपावन सीता राम॥
सिंहासन सुग्रीव बिठाया, मन में वह अति हर्षाया।
वर्षा ऋतु आई हे राम, पतितपावन सीता राम॥
हे भाई लक्ष्मण तुम जाओ, वानरपति को यूँ समझाओ।
सीता बिन व्याकुल हैं राम, पतितपावन सीता राम॥
देश-विदेश वानर भिजवाए, सागर के सब तट पर आए।
सहते भूख प्यास और घाम, पतितपावन सीता राम॥
अयोध्या में भगवान् श्रीराम ने गुरुदेव वसिष्ठ को अपने मित्र आदि का परिचय देते हुए कहा–
ए सब सखा सुनहु मुनि मेरे। भए समर सागर कहँ बेरे॥
मम हित लागि जन्म इन्ह हारे। भरतहु ते मोहि अधिक पिआरे॥
(मानस ७ १ ४)
भगवान श्री राम का यह कथन उनके हृदय में सुग्रीव के प्रति अगाध स्नेह और आदर का परिचायक है। थोड़े दिनों तक अयोध्या में रखने के बाद भगवान ने सुग्रीव को विदा कर दिया। उन्होंने भगवान की लीलाओं का चिन्तन और कीर्तन करते हुए बहुत दिनों तक राज्य किया और जब भगवान ने अपनी लीला का संवरण किया, तब सुग्रीव भी उनके साथ साकेत पधारे।
प्रश्नोत्तरी
सुग्रीव की पत्नी का नाम रूमा और बाली की पत्नी का नाम तारा था।
उनकी मित्रता हनुमान जी के माध्यम से हुई थी।
बाली किसका पुत्र था?
बाली को देवराज इन्द्र और स्त्रीरूपी अरुण का पुत्र माना जाता है। उनका पालन-पोषण अहिल्या ने किया था।