स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (1 नवम्बर, 1899)
(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)
रिजली,
१ नवम्बर, १८९९
प्रिय मार्गट,
मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि मानो तुम्हारे हृदय में किसी प्रकार का विषाद है। घबड़ाओ मत, कोई भी चीज चिरस्थायी नहीं है। जो भी हो, जीवन तो अनन्त नहीं है। मैं उसके लिए अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। जगत् में जो लोग सर्वश्रेष्ठ एवं परम साहसी होते हैं, उनके भाग्य में कष्ट ही लिखा होता है; किन्तु यद्यपि उसका प्रतिकार सम्भव है, फिर भी जब तक ऐसा न हो, तब तक के लिए इस प्रकार की घटना भावी अनेक युगों तक कम से कम स्वप्न दूर करने की शिक्षा के रूप में भी ग्रहण करने योग्य है। मैं तो स्वाभाविक दशा में अपनी वेदना-यातनाओं को आनन्द के साथ ग्रहण करता हूँ। इस जगत् में किसी-न-किसी को दुःख उठाना ही पड़ेगा, मुझे खुशी है कि प्रकृति के सम्मुख बलि के रूप में जिनको उपस्थित किया गया है, मैं भी उनमें से एक हूँ।
तुम्हारा,
विवेकानन्द