स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – भगिनी निवेदिता को लिखित (1 नवम्बर, 1899)

(स्वामी विवेकानंद का भगिनी निवेदिता को लिखा गया पत्र)

रिजली,
१ नवम्बर, १८९९

प्रिय मार्गट,

मुझे ऐसा मालूम हो रहा है कि मानो तुम्हारे हृदय में किसी प्रकार का विषाद है। घबड़ाओ मत, कोई भी चीज चिरस्थायी नहीं है। जो भी हो, जीवन तो अनन्त नहीं है। मैं उसके लिए अत्यन्त कृतज्ञ हूँ। जगत् में जो लोग सर्वश्रेष्ठ एवं परम साहसी होते हैं, उनके भाग्य में कष्ट ही लिखा होता है; किन्तु यद्यपि उसका प्रतिकार सम्भव है, फिर भी जब तक ऐसा न हो, तब तक के लिए इस प्रकार की घटना भावी अनेक युगों तक कम से कम स्वप्न दूर करने की शिक्षा के रूप में भी ग्रहण करने योग्य है। मैं तो स्वाभाविक दशा में अपनी वेदना-यातनाओं को आनन्द के साथ ग्रहण करता हूँ। इस जगत् में किसी-न-किसी को दुःख उठाना ही पड़ेगा, मुझे खुशी है कि प्रकृति के सम्मुख बलि के रूप में जिनको उपस्थित किया गया है, मैं भी उनमें से एक हूँ।

तुम्हारा,
विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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