स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (मार्च, 1898)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)

(सम्भवतः) मार्च १८९८

प्रिय शशि,

तुम्हें दो बातें लिखना मैं भूल गया था।

(१) गुडविन से संकेत-लिपि – कम से कम तत्सम्बन्धी प्रारम्भिक बातें – तुलसी को सीख लेना चाहिए। (२) जब मैं भारत से बाहर था, तब प्रायः प्रत्येक डाक में मद्रास के लिए मुझे पत्र लिखना पड़ता था। उन पत्रों की प्रतिलिपि भेजने के लिए मैं बार-बार पत्र लिखकर हैरान हो चुका हूँ। उन पत्रों को मेरे पास भेज देना। मैं अपना भ्रमण-वृत्तान्त लिखना चाहता हूँ। उन्हें भेजना न भूलना। कार्य समाप्त होते ही मैं उन्हें लौटा दूँगा। ‘डान’ (Dawn) पत्रिका की प्रति संख्या के लिए ४० रुपये खर्च होंगे तथा दो सौ ग्राहक मिलते ही उसका नियमित प्रकाशन हो सकेगा – यह समाचार उल्लेखनीय है। ‘प्रबुद्ध भारत’ की स्थिति अव्यवस्थित है, ऐसा मुझे प्रतीत हो रहा है; उसकी सुव्यवस्था के लिए यथासाध्य प्रयत्न करते रहो। बेचारे आलासिंगा के लिए मैं अत्यन्त दुःखी हूँ। उसके लिए मैं केवल इतना ही कर सकता हूँ कि एक वर्ष तक अपने सांसारिक उत्तरदायित्व से वह छुटकारा पा सके, जिससे कि ‘ब्रह्मवादिन्’ के लिए वह अपनी सारी शक्ति का प्रयोग कर सके। उससे कहना कि वह चिन्तित न हो। मुझे सर्वदा उसका ख्याल है। मेरे प्रिय वत्स, उसकी भक्ति का प्रतिदान मैं कभी नहीं दे सकूँगा।

श्रीमती बुल एवं कुमारी मैक्लिऑड के साथ पुनः काश्मीर जाने की मैं सोच रहा हूँ। तदुपरान्त कलकत्ता लौटकर वहाँ से अमेरिका रवाना होना है।

कुमारी नोबल जैसी नारी वास्तव में दुर्लभ है। मेरा विश्वास है कि भाषण देने में वह शीघ्र ही श्रीमती बेसेंट से भी आगे बढ़ जाएँगी।

आलासिंगा पर थोड़ा ध्यान रखना। मुझे ऐसा मालूम होता है कि कार्य में निमग्न होकर वह अपने स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। उससे कहना कि श्रम के बाद विश्राम और विश्राम के बाद श्रम करने से ही भली भाँति कार्य हो सकता है, उससे मेरा हार्दिक प्यार कहना। कलकत्ते को जनता के लिए हम लोगों के दो भाषण हुए थे – एक तो कुमारी नोबल ने तथा दूसरा शरत् ने दिया था। वास्तव में उन दोनों ने ही अत्यन्त सुन्दर भाषण दिये। श्रोताओं में प्रबल उत्साह देखने को मिला था। इससे मालूम होता है कि कलकत्ते की जनता हमें भूली नहीं है। मठ के कुछ लोगों को जुकाम एवं ज्वर हो गया था। इस समय वे सभी अच्छे हैं। कार्य सुचारु रूप से चल रहा है। श्रीमाँ यहीं पर हैं। यूरोपियन और अमेरिकन महिलाएँ उस दिन उनके दर्शन करने गयी थीं। सोचो तो सही, माँ ने उनके साथ मिलकर भोजन किया! क्या यह एक अद्भुत घटना नहीं है? हम लोगों पर प्रभु की दृष्टि है; कोई डर नहीं है; साहस न खोओ, स्वास्थ्य की ओर ख्याल रखना तथा किसी विषय के बारे में चिन्तित न होना। कुछ देर तक तेजी से नाव चलाने के बाद विश्राम लेना चाहिए – यही सदा की परम्परा है। नयी जमीन तथा मकान के कार्य में राखाल लगा हुआ है। इस वर्ष के महोत्सव से मैं सन्तुष्ट नहीं हो पाया हूँ। प्रत्येक महोत्सव में यहाँ की भावधारा का एक अपूर्व समावेश होना चाहिए। आगामी वर्ष में हम इसके लिए प्रयास करेंगे और उसकी पूरी व्यवस्था मैं ठीक कर दूँगा। तुम लोग मेरा प्यार तथा आशीर्वाद जानना। इति।

विवेकानन्द

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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