धर्म

भगवान धर्मनाथ की आरती – Dharmnath Aarti

भगवान धर्मनाथ की आरती (Dharmnath Aarti) सत्य, धर्म और अहिंसा का मार्ग प्रशस्त करने वाली हैI धर्मनाथ प्रभु जैन धर्म के पन्द्रहवें तीर्थंकर हैं और वज्रदंड उनका चिन्ह हैI इनका जन्म रेवती नक्षत्र में रत्नपुरी नगरी में हुआ थाI अपने नाम के समान ही भगवान धर्मनाथ की आरती मन को निष्पाप बनाती हैI सांसारिक बन्धनों से मुक्ति दिलवाने वाली भगवान धर्मनाथ जी की आरती सुखप्रदायिनी और मनवांछित फल देने वाली मानी गई हैI पढ़ें भगवान धर्मनाथ की आरती–

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जय धर्म, करूणासिन्धू की मंगल दीप प्रजाल के
मैं आज उतारूं आरतिया ॥टेक.॥

पन्द्रहवें तीर्थंकर जिनवर, धर्मनाथ सुखकारी।
तिथि वैशाख सुदी तेरस, गर्भागम उत्सव भारी॥
प्रभू गर्भागम उत्सव भारी………..

सुप्रभावती, माता हरषीं, पितु धन्य भानु महाराज थे,
मैं आज उतारूँ आरतिया॥जय धर्म…..॥१॥

रत्नपुरी में रत्न असंख्यों, बरसे प्रभु जब जन्मे।|
गिरि सुमेरु की पांडुशिला पर, इन्द्र न्हवन शुभ करते॥
प्रभू जी इन्द्र …………………

कर जन्मकल्याणक का उत्सव, महिमा गाएं जिननाथ की,
मैं आज उतारूँ आरतिया॥जय धर्म…..॥२॥

वैरागी हो जब प्रभु ने, दीक्षा की मन में ठानी।
लौकान्तिक सुर स्तुति करके, कहें तुम्हें शिवगामी॥
प्रभू जी कहें………………….

कह सिद्ध नम:, दीक्षा धारी, मुनियों में श्रेष्ठ महान थे,
मैं आज उतारूँ आरतिया॥जय धर्म…..॥३॥

केवलज्ञान प्रगट होने पर, अर्हत् प्रभु कहलाए।
द्वादश सभा रची सुर नर मुनि, ज्ञानामृत को पाएं॥
प्रभू जी ज्ञानामृत को पाएं…………

केवलज्ञानी, अन्तर्यामी, कैवल्यरमापति नाथ की
मैं आज उतारूँ आरतिया॥जय धर्म…..॥४॥

ज्येष्ठ सुदी शुभ आई चतुर्थी, शिवपद प्राप्त किया था।
श्री सम्मेदशिखर गिरिवर से, शिवपद प्राप्त किया था॥
प्रभू जी शिवपद…………

चंदनामती तव चरण नती, कर पाऊँ सुख साम्राज्य भी
मैं आज उतारूँ आरतिया॥ जय धर्म…..॥५॥

विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर भगवान धर्मनाथ की आरती (Dharmnath Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें भगवान धर्मनाथ की आरती रोमन में–

jaya dharma, karūṇāsindhū kī maṃgala dīpa prajāla ke
maiṃ āja utārūṃ āratiyā ॥ṭeka.॥

pandrahaveṃ tīrthaṃkara jinavara, dharmanātha sukhakārī।
tithi vaiśākha sudī terasa, garbhāgama utsava bhārī॥
prabhū garbhāgama utsava bhārī………..

suprabhāvatī, mātā haraṣīṃ, pitu dhanya bhānu mahārāja the,
maiṃ āja utārū~ āratiyā॥jaya dharma…..॥1॥

ratnapurī meṃ ratna asaṃkhyoṃ, barase prabhu jaba janme।|
giri sumeru kī pāṃḍuśilā para, indra nhavana śubha karate॥
prabhū jī indra …………………

kara janmakalyāṇaka kā utsava, mahimā gāeṃ jinanātha kī,
maiṃ āja utārū~ āratiyā॥jaya dharma…..॥2॥

vairāgī ho jaba prabhu ne, dīkṣā kī mana meṃ ṭhānī।
laukāntika sura stuti karake, kaheṃ tumheṃ śivagāmī॥
prabhū jī kaheṃ………………….

kaha siddha nama:, dīkṣā dhārī, muniyoṃ meṃ śreṣṭha mahāna the,
maiṃ āja utārū~ āratiyā॥jaya dharma…..॥3॥

kevalajñāna pragaṭa hone para, arhat prabhu kahalāe।
dvādaśa sabhā racī sura nara muni, jñānāmṛta ko pāeṃ॥
prabhū jī jñānāmṛta ko pāeṃ…………

kevalajñānī, antaryāmī, kaivalyaramāpati nātha kī
maiṃ āja utārū~ āratiyā॥jaya dharma…..॥4॥

jyeṣṭha sudī śubha āī caturthī, śivapada prāpta kiyā thā।
śrī sammedaśikhara girivara se, śivapada prāpta kiyā thā॥
prabhū jī śivapada…………

caṃdanāmatī tava caraṇa natī, kara pāū~ sukha sāmrājya bhī
maiṃ āja utārū~ āratiyā॥ jaya dharma…..॥5॥

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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