भगवान कुंथुनाथ की आरती – Bhagwan Kunthunath Ki Aarti
भगवान कुंथुनाथ की आरती (Bhagwan Kunthunath Ki Aarti) के निरंतर पाठ से मानसिक शक्ति और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती हैI भगवान श्री कुंथुनाथ जैन धर्म के सत्रहवें तीर्थंकर हुएI इनका जन्म हस्तिनापुर में हुआ तथा बिहार राज्य में पारसनाथ पर्वत के सम्मेद शिखर पर इन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई थी। मान्यताओं के अनुसार भगवान कुंथुनाथ की आरती सिद्धिदात्री, वैभव प्रदियिनी तथा पाप बन्धनों से मुक्ति दिलाने वाली हैI भक्तों द्वारा सभी इच्छाओं की पूर्ति एवं पुण्य फलों की प्राप्ति के लिए भगवान कुंथुनाथ की आरती का गायन किया जाता हैI भगवान कुंथुनाथ की आरती पढ़ें तथा न्याय, मैत्री और दया भावना जैसे गुणों से अपने चरित्र को सुसज्जित करेंI
यह भी पढ़ें – कुंथुनाथ चालीसा
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं,
आरति करके जनम-जनम के पाप विनशते हैं,
सांसारिक सुख के संग आत्मिक सुख भी मिलते हैं,
श्री कुंथुनाथ प्रभु की, हम आरति करते हैं॥टेक.॥
जब गर्भ में प्रभु तुम आए-हां आए,
पितु सूरसेन श्रीकांता माँ हरषाए।
सुर वन्दन करने आए-हां आए,
श्रावण वदि दशमी गर्भकल्याण मनाएं।
हस्तिनापुरी की उस पावन, धरती को नमते हैं,
आरति करके ……………….॥१॥
वैशाख सुदी एकम में-एकम में,
जन्मे जब सुरगृह में बाजे बजते थे।
सुरशैल शिखर ले जाकर-ले जाकर,
सब इन्द्र सपरिकर करें न्हवन जिनशिशु पर।
जन्मकल्याणक से पावन, उस गिरि को जजते हैं,
आरति करके ……………….॥२॥
फिर बारह भावना भाई-हां भाई,|
वैशाख सुदी एकम दीक्षा तिथि आई।
लौकान्तिक सुरगण आए-हां आए,
वैराग्य प्रशंसा द्वारा प्रभु गुण गाएं।
उन मनपर्ययज्ञानी मुनि को, शत-शत नमते हैं,
आरति करके ……………….॥३॥
केवलरवि था प्रगटा-हां प्रगटा,
प्रभु समवसरण रच गया अलौकिक जो था।
दिव्यध्वनि पान करे जो-हां करे जो,
भववारिधि से तिर निज कल्याण करे वो।
चार कल्याणक भूमि हस्तिनापुर को नमते हैं,
आरति करके ……………….॥४॥
वैशाख सुदी एकम तिथि- हां एकम तिथि,
मुक्तिश्री नामा इक प्रियतमा वरी थी।
सम्मेदशिखर गिरि पावन-हां पावन,
प्रभुवर ने पाया मोक्षधाम मनभावन॥
उसी धाम की चाह चंदनामति, हम करते हैं।
आरति करके ……………….॥५॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर भगवान कुंथुनाथ की आरती (Bhagwan Kunthunath Ki Aarti) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें भगवान कुंथुनाथ की आरती रोमन में–
śrī kuṃthunātha prabhu kī, hama ārati karate haiṃ,
ārati karake janama-janama ke pāpa vinaśate haiṃ,
sāṃsārika sukha ke saṃga ātmika sukha bhī milate haiṃ,
śrī kuṃthunātha prabhu kī, hama ārati karate haiṃ॥ṭeka.॥
jaba garbha meṃ prabhu tuma āe-hāṃ āe,
pitu sūrasena śrīkāṃtā mā~ haraṣāe।
sura vandana karane āe-hāṃ āe,
śrāvaṇa vadi daśamī garbhakalyāṇa manāeṃ।
hastināpurī kī usa pāvana, dharatī ko namate haiṃ,
ārati karake ……………….॥1॥
vaiśākha sudī ekama meṃ-ekama meṃ,
janme jaba suragṛha meṃ bāje bajate the।
suraśaila śikhara le jākara-le jākara,
saba indra saparikara kareṃ nhavana jinaśiśu para।
janmakalyāṇaka se pāvana, usa giri ko jajate haiṃ,
ārati karake ……………….॥2॥
phira bāraha bhāvanā bhāī-hāṃ bhāī,|
vaiśākha sudī ekama dīkṣā tithi āī।
laukāntika suragaṇa āe-hāṃ āe,
vairāgya praśaṃsā dvārā prabhu guṇa gāeṃ।
una manaparyayajñānī muni ko, śata-śata namate haiṃ,
ārati karake ……………….॥3॥
kevalaravi thā pragaṭā-hāṃ pragaṭā,
prabhu samavasaraṇa raca gayā alaukika jo thā।
divyadhvani pāna kare jo-hāṃ kare jo,
bhavavāridhi se tira nija kalyāṇa kare vo।
cāra kalyāṇaka bhūmi hastināpura ko namate haiṃ,
ārati karake ……………….॥4॥
vaiśākha sudī ekama tithi- hāṃ ekama tithi,
muktiśrī nāmā ika priyatamā varī thī।
sammedaśikhara giri pāvana-hāṃ pāvana,
prabhuvara ne pāyā mokṣadhāma manabhāvana॥
usī dhāma kī cāha caṃdanāmati, hama karate haiṃ।
ārati karake ……………….॥5॥