मारुती स्तोत्र – Maruti Stotra
मारुती स्तोत्र एक सिद्ध स्तोत्र है जो हनुमान जी को समर्पित है। कहते हैं कि सत्रहवीं शताब्दी में इसकी रचना छत्रपति श्री शिवाजी महाराज के गुरु समर्थ गुरु रामदास ने की थी। यद्यपि इसे लेकर विद्वानों में मतभेद है क्योंकि मारुती स्तोत्र के नाम से ही एक मराठी स्तोत्र भी उपलब्ध है। कई लोगों का विचार है कि वह स्तोत्र समर्थ गुरु रामदास रचित है। चाहे जो हो, इसकी महिमा का बखान शब्दों में करना असम्भव-सा है। साधु-सन्त इसे तुरन्त सिद्धि प्रदान करने में सक्षम स्तोत्र मानते हैं। इस मारुती स्तोत्र के पाठ से प्रेत-बाधा समाप्त हो जाती है तथा सभी नौ ग्रह शान्त होकर अच्छा फल देने लगते हैं। ऐसा कोई भी कार्य नहीं जो बजरंगबली महाराज की कृपा से यह मारुती स्तोत्र सिद्ध न कर देता हो। पढ़ें सिद्ध श्री मारुती स्तोत्र–
मूल संस्कृत में मारुती स्तोत्र – Maruti Stotra Lyrics in Sanskrit
॥ श्रीगणेशाय नमः॥
ॐ नमो भगवते विचित्रवीरहनुमते प्रलयकालानलप्रभाप्रज्वलनाय।
प्रतापवज्रदेहाय। अंजनीगर्भसंभूताय।
प्रकटविक्रमवीरदैत्यदानवयक्षरक्षोगणग्रहबंधनाय।
भूतग्रहबंधनाय। प्रेतग्रहबंधनाय। पिशाचग्रहबंधनाय।
शाकिनीडाकिनीग्रहबंधनाय। काकिनीकामिनीग्रहबंधनाय।
ब्रह्मग्रहबंधनाय। ब्रह्मराक्षसग्रहबंधनाय। चोरग्रहबंधनाय।
मारीग्रहबंधनाय। एहि एहि। आगच्छ आगच्छ। आवेशय आवेशय।
मम हृदये प्रवेशय प्रवेशय। स्फुर स्फुर। प्रस्फुर प्रस्फुर। सत्यं कथय।
व्याघ्रमुखबंधन सर्पमुखबंधन राजमुखबंधन नारीमुखबंधन सभामुखबंधन
शत्रुमुखबंधन सर्वमुखबंधन लंकाप्रासादभंजन। अमुकं मे वशमानय।
क्लीं क्लीं क्लीं ह्रुीं श्रीं श्रीं राजानं वशमानय।
श्रीं हृीं क्लीं स्त्रिय आकर्षय आकर्षय शत्रुन्मर्दय मर्दय मारय मारय
चूर्णय चूर्णय खे खे श्रीरामचंद्राज्ञया मम कार्यसिद्धिं कुरु कुरु ॐ हृां हृीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः फट् स्वाहा
विचित्रवीर हनुमत् मम सर्वशत्रून् भस्मीकुरु कुरु।
हन हन हुं फट् स्वाहा॥
एकादशशतवारं जपित्वा सर्वशत्रून् वशमानयति नान्यथा इति॥
॥इति श्रीमारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥
॥श्री मारुती स्तोत्र संपूर्ण हुआ॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर मारुती स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें यह स्तोत्र रोमन में–
Read Maruti Stotra Lyrics in Sanskrit
oṃ namo bhagavate vicitravīrahanumate pralayakālānalaprabhāprajvalanāya।
pratāpavajradehāya। aṃjanīgarbhasaṃbhūtāya।
prakaṭavikramavīradaityadānavayakṣarakṣogaṇagrahabaṃdhanāya।
bhūtagrahabaṃdhanāya। pretagrahabaṃdhanāya। piśācagrahabaṃdhanāya।
śākinīḍākinīgrahabaṃdhanāya। kākinīkāminīgrahabaṃdhanāya।
brahmagrahabaṃdhanāya। brahmarākṣasagrahabaṃdhanāya। coragrahabaṃdhanāya।
mārīgrahabaṃdhanāya। ehi ehi। āgaccha āgaccha। āveśaya āveśaya।
mama hṛdaye praveśaya praveśaya। sphura sphura। prasphura prasphura। satyaṃ kathaya।
vyāghramukhabaṃdhana sarpamukhabaṃdhana rājamukhabaṃdhana nārīmukhabaṃdhana sabhāmukhabaṃdhana
śatrumukhabaṃdhana sarvamukhabaṃdhana laṃkāprāsādabhaṃjana। amukaṃ me vaśamānaya।
klīṃ klīṃ klīṃ hruīṃ śrīṃ śrīṃ rājānaṃ vaśamānaya।
śrīṃ hṛīṃ klīṃ striya ākarṣaya ākarṣaya śatrunmardaya mardaya māraya māraya
cūrṇaya cūrṇaya khe khe śrīrāmacaṃdrājñayā mama kāryasiddhiṃ kuru kuru oṃ hṛāṃ hṛīṃ hrūṃ hraiṃ hrauṃ hraḥ phaṭ svāhā
vicitravīra hanumat mama sarvaśatrūn bhasmīkuru kuru।
hana hana huṃ phaṭ svāhā॥
ekādaśaśatavāraṃ japitvā sarvaśatrūn vaśamānayati nānyathā iti॥
॥ iti śrīmārutistotraṃ saṃpūrṇam॥
॥ śrī mārutī stotra saṃpūrṇa huā॥
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