सर्प सूक्त स्तोत्र – Sarpa Sukta Stotra
सर्प सूक्त स्तोत्र का बड़ा महत्व माना जाता है। कुछ ज्योतिषियों की मान्यता है कि सर्प सूक्त स्तोत्र का पाठ करने से कुंडली में स्थित काल सर्प दोष का दुष्प्रभाव समाप्त हो जाता है। साथ ही कई ज्योतिष शास्त्र के जानकार कहते हैं कि सर्प सूक्त स्तोत्र नित्य पढ़ने से पितृ दोष का शमन भी संभव है। जिन्हें नागों से भय का अनुभव होता हो या दुःस्वप्न में सर्प दिखते हों, उन्हें भी इस स्तोत्र को पढ़ने से सर्पों के भय से मुक्ति मिलती है। नाग पंचमी के दिन सर्प सूक्त स्तोत्र का पाठ विशेष महत्वपूर्ण है। ऐसा करने से जीवन के सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ठ फलों की प्राप्ति होती है। पढ़ें सर्प सूक्त स्तोत्र–
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विष्णु लोके च ये सर्पा: वासुकी प्रमुखाश्च ये।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदश्च॥
रुद्र लोके च ये सर्पा: तक्षक: प्रमुखस्तथा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा॥
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॥ इति श्री सर्प सूक्तम् स्तोत्र ॥
विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर सर्प सूक्त स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें सर्प सूक्त स्तोत्र रोमन में–
Read Sarpa Sukta Stotra
viṣṇu loke ca ye sarpā: vāsukī pramukhāśca ye।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadaśca॥
rudra loke ca ye sarpā: takṣaka: pramukhastathā।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
brahmalokeṣu ye sarpā śeṣanāga parogamā:।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
indralokeṣu ye sarpā: vāsuki pramukhādya:।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
kadraveyaśca ye sarpā: mātṛbhakti parāyaṇā।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
indralokeṣu ye sarpā: takṣakā pramukhādya।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
satyalokeṣu ye sarpā: vāsukinā ca rakṣitā।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
malaye caiva ye sarpā: karkoṭaka pramukhādya।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
pṛthivyāṃ caiva ye sarpā: ye sāketa vāsitā।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
sarvagrāmeṣu ye sarpā: vasaṃtiṣu saṃcchitā।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
grāme vā yadi vāraṇye ye sarpapracaranti।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
samudratīre ye sarpāye sarpā jaṃlavāsina:।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
rasātaleṣu ye sarpā: anantādi mahābalā:।
namostutebhya: sarpebhya: suprīto mama sarvadā॥
॥ iti śrī sarpa sūktam stotra ॥
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