स्वामी विवेकानंद

स्वामी विवेकानंद के पत्र – स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखित (20 अप्रैल, 1897)

(स्वामी विवेकानंद का स्वामी रामकृष्णानन्द को लिखा गया पत्र)

एम. एन. बनर्जी का मकान,
दार्जिलिंग
२० अप्रैल, १८९७

प्रिय शशि,

अब तक तुम लोग निश्चय ही मद्रास पहुँच चुके होंगे। विलगिरि अवश्य ही तुम लोगों की आवभगत करता होगा तथा सदानन्द सेवा में लगा होगा। मद्रास में पूर्ण सात्त्विकता के साथ अर्चनादि करने होंगे। रजोगुण उनमें लेश मात्र न हो। आलासिंगा शायद अब तक मद्रास पहुँच चुका होगा। किसी भी व्यक्ति के साथ वाद-विवाद न करना – सदा शान्त भाव अपनाना। इस समय विलगिरि के भवन में ही श्रीरामकृष्ण की स्थापना कर पूजादि करते रहो। किन्तु ध्यान रहे कि पूजा बहुत लम्बी तथा आडम्बरयुक्त न होने पाये। उस बचे हुए समय का उपयोग कक्षा चलाने तथा व्याख्यानादि में होना चाहिए। इस दिशा में जितना कर सको उतना ही अच्छा है। दोनों पत्रों की देख-रेख तथा जहाँ तक हो सके उनकी सहायता करते रहना। विलगिरि की दो विधवा कन्याएँ हैं। उनको शिक्षा प्रदान करना तथा इसका विशेष ध्यान रखना कि उनके द्वारा उसी प्रकार की और भी विधवाएँ अपने धर्म की पक्की जानकारी और थोड़ी-बहुत संस्कृत तथा अंग्रेजी की शिक्षा प्राप्त कर सकें। किन्तु यह काम अपने को सदा दूर रखते हुए ही करना। युवतियों के सम्मुख अत्यन्त सावधान रहना नितान्त आवश्यक है; क्योंकि एक बार पतन होने पर और कोई गति नहीं है तथा उस अपराध के लिए क्षमा भी नहीं है।

गुप्त (स्वामी सदानन्द) को कुत्ते ने काटा है – इस समाचार से अत्यन्त चिन्तित हूँ; किन्तु मैंने सुना है कि वह पागल कुत्ता नहीं है, अतः खतरे की कोई बात नहीं। जो कुछ भी हो, गंगाधर ने जो दवा भेजी है, उसका प्रयोग अवश्य होना चाहिए; प्रातःकाल पूजादि संक्षेप में सम्पन्न कर विलगिरि को सपरिवार बुलाकर कुछ गीता तथा अन्य धार्मिक पुस्तकों का पाठ करना। दिव्य राधा कृष्ण प्रेम सम्बन्धी किसी भी प्रकार की शिक्षा की कुछ भी आवश्यकता नहीं है। केवल सीता-राम तथा महादेवपार्वती विषयक शिक्षा प्रदान करना। इस विषय में किसी प्रकार की भूल न होनी चाहिए। याद रखो कि युवक-युवतियों के अपरिपक्व मन के लिए राधा कृष्ण के अपार्थिव सम्बन्ध की लीला एकदम अनुपयुक्त है। खासकर विलगिरि तथा अन्य रामानुजी लोग रामोपासक हैं, उनके विशुद्ध भाव नष्ट न होने पावें।

अपराह्न में साधारण लोगों के लिए उसी प्रकार कुछ आध्यात्मिक प्रवचन देते रहना। इसी तरह धीरे-धीरे पर्वतमपि लङ्घयेत्।

परम विशुद्ध भावों की सदा रक्षा होनी चाहिए। किसी भी तरह से ‘वामाचार’ का प्रवेश न हो। आगे प्रभु स्वयं ही बुद्धि प्रदान करेंगे – डरने का कोई कारण नहीं है। विलगिरि को मेरा सादर नमस्कार तथा सप्रेम अभिवादन कहना। अन्यान्य भक्तों से भी मेरा नमस्कार कहना।

मेरा रोग पहले की अपेक्षा अब कुछ शान्त है – एकदम दूर भी हो सकता है – प्रभु की इच्छा पर ही सब कुछ निर्भर है। तुम्हें मेरा प्यार, नमस्कार तथा आशीर्वाद।

किमधिकमिति।
विवेकानन्द

पुनश्च – डॉक्टर नन्जुन्दा राव को मेरा विशेष प्रेमाभिवादन तथा आशीर्वाद कहना तथा जहाँ तक हो सके उनकी सहायता करना। ब्राह्मणेतर जाति में संस्कृत के अध्ययन को प्रोत्साहित करने के लिए अपनी पूरी चेष्टा करना।

वि.

सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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