केदारनाथ मंदिर – Kedarnath Temple, Uttarakhand
केदारनाथ मंदिर (Kedarnath Temple, Uttarakhand) हिन्दुओं के प्रमुख तीर्थों में से एक है। उत्तराखंड राज्य में बर्फ की चादरों से घिरा यह भगवान शिव का अनुपम निवास लोगों की आस्था का विषय है। मंदिर का इतिहास बहुत प्राचीन है और इसके चमत्कारों की कहानी भी विश्व प्रसिद्ध है। यह धाम भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जो उत्तर भारत में स्थित है। साथ ही यह उत्तराखंड के छोटे चार धामों में से एक है। केवल उत्तर भारत से ही नहीं बल्कि भारत के कोने-कोने और पूरे विश्व से यहाँ पर दर्शनार्थी और श्रद्धालुगण भोले बाबा के पवित्र निवास के दर्शन करने आते हैं।
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शिव का यह पावन धाम अत्यधिक बर्फ जमा होने की वजह से शरद ऋतु में छः महीने के लिए बंद रहता है। परंतु यह एक चमत्कार और आश्चर्य बना हुआ है कि 6 महीने किसी के मौजूद न होने के बावजूद भी मंदिर में दीपक जलता रहता है। इसके पीछे के रहस्य को आज तक कोई जान नहीं पाया है। साथ ही आप सब 2013 में मंदिर और उसके आसपास के क्षेत्र में आई विशाल बाढ़ त्रासदी से परचित होंगे। इस बाढ़ में पूरा क्षेत्र तहस नहस हो गया परन्तु मंदिर की एक ईंट भी नहीं हिली। यह भी किसी आश्चर्य से कम नहीं है।
इस मंदिर से जुड़े अन्य कई रहस्य भी मशहूर हैं, ऐसा माना जाता है कि यह 400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था। और भी कई किस्से और कहानियाँ प्रचलित हैं। तो आईये जानते हैं इस अद्भुत धाम से जुड़े चमत्कारों और महिमा के साथ उसके निर्माण, इतिहास, वास्तुकला, मंदिर बंद होने, खुलने, आरती, पूजा का समय इत्यादि। और साथ ही जानेंगे कि कब और किस तरह से केदारनाथ धाम की यात्रा करें। तो चलिए हमारे साथ इस अत्यंत भावविभोर करने वाली यात्रा पर।
केदारनाथ मंदिर की भौगोलिक स्थिति (Geographical Location of Kedarnath Temple )
केदारनाथ धाम गढ़वाल हिमालय की विस्तृत पर्वतमाला की गोद में समुद्र तल से 3,583 मीटर की ऊँचाई पर स्थित बारह ज्योतिर्लिंगों और पंच केदारों में से एक है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित केदारनाथ धाम भगवान शिव को समर्पित है और शिव जी के उपासकों के लिए सबसे प्रमुख स्थानों में से एक है। हिमालय की निचली पर्वत शृंखला के बीच विशाल बर्फ से ढकी चोटियों, मनमोहक घास के मैदानों, और जंगलों के बीच हवा भी भगवान शिव के नाम से गूंजती हुई प्रतीत होती है।
चोराबाड़ी ग्लेशियर के पास और मंदाकिनी नदी के तट पर बर्फ से ढके पहाड़ों के बीच स्थित, केदारनाथ आसपास के पहाड़ों के दृश्य का एक अद्भुत नज़ारा प्रस्तुत करता है। ऊंचाई पर स्थित होने की वजह से यह यात्रा थोड़ी कठिन मानी जाती है। तीर्थयात्री केदारनाथ मंदिर तक ट्रेक कर सकते हैं या गौरीकुंड से टट्टू या पालकी द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते हैं।
उत्तराखंड के प्रमुख और सुन्दर स्थानों से सुसज्जित, केदारनाथ मंदिर की ओर जाने वाला मोटर योग्य मार्ग गौरी कुंड तक फैला हुआ है। उसके बाद केदारनाथ मंदिर की ओर 14 किमी की पैदल यात्रा करनी होती है। पोनी और पालकी (डोली) आसानी से उपलब्ध हैं; यात्रा के व्यस्ततम मौसम में कोई भी हेलीकॉप्टर सेवाओं का लाभ उठा सकता है।
केदारनाथ मंदिर की प्रकृति (Nature of Kedarnath Temple)
केदारनाथ मंदिर पहाड़ों और नदियों से घिरा हुआ है। इसके एक तरफ लगभग 22000 फुट ऊँचा केदार पर्वत, एवं दूसरी और तीसरी तरफ 21600 फुट ऊँचा खर्चकुंड का पहाड़ और 22700 फुट ऊँचा भरतकुंड का पहाड़ है। यही नहीं बल्कि इस मंदिर के आसपास 5 नदियों का संगम भी है। इन नदियों में मन्दाकिनी, स्वर्णगौरी, सरस्वती, छीरगंगा, और मधुगंगा शामिल हैं, जिनमे से मन्दाकिनी नदी आज भी मंदिर के बाजु से बहती हैं। यहाँ पर प्रकृति का प्रकोप कभी भी आ जाता है और बादल फटने और भारी बाढ़ का खतरा हमेशा बना रहता है।
बारह ज्योतिर्लिंगों में से है एक (One of the Twelve Jyotirlingas)
केदारनाथ धाम ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। परंतु इस ज्योतिर्लिंग का आधा भाग नेपाल के पशुपतिनाथ में स्थित है। मान्यता है की केदारनाथ में शिव के बैल अवतार का पीठ का भाग है और पशुपतिनाथ में मुख भाग है। पंच केदार की कथा के अनुसार जब बैल रूप में जब भगवान शिव पांडवों से भागते हुए ज़मीन के नीचे चले गए थे तब भीम ने उनकी पूँछ और कूबड़ पकड़ लिए थे। तब केदारनाथ मंदिर से उनका पीठ वाला भाग बाहर आया था तो वहीं पशुपतिनाथ में स्थित मंदिर से उनका मुख भाग ज़मीन के बाहर आया था। इसीलिए केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की यात्रा पशुपतिनाथ की यात्रा भी करने के बाद ही पूरी होती है।
400 सालों तक बर्फ में दबा रहा था मंदिर (Temple Remains Buried in Snow for 400 Years)
ऐसा कहा जाता है कि 400 सालों तक यह मंदिर बर्फ में दबा रहा था और जब इसे बाहर निकाला गया तो यह पूर्णतः सुरक्षित था। देहरादून के वाडिया इंस्टीट्यूट के हिमालयन जियोलॉजिकल वैज्ञानिकों की शोध के अनुसार 13वीं से 17वीं सदी के मध्य 400 वर्षों के लिए एक छोटा हिम युग आया था। इस युग में हिमालय का एक विशाल क्षेत्र बर्फ में लुप्त हो गया था। यह मंदिर भी इस क्षेत्र में शामिल था। वैज्ञानिकों का कहना है कि आज भी मंदिर के पत्थरों और दीवारों पर इसके साक्ष्य पाए जाते हैं।
केदारनाथ मंदिर का इतिहास और किंवदंतियाँ (History and Legends of Kedarnath Temple)
केदारनाथ मंदिर बुराई का नाश करने वाले और मानव जाति के रक्षक भगवान शंकर का निवास है। यह हिंदुओं के सबसे पवित्र धार्मिक स्थानों में से एक है। केदारनाथ का इतिहास काफी अद्भुत एवं रोचक है। इसके बारे में कई किवदंतियां प्रचलित हैं। पहली कहानी इस प्रकार से है: पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्री हरि विष्णु के अवतार और महान तपस्वी ऋषि नर और नारायण केदार पर्वत पर भगवान शंकर की तपस्या किया करते थे। उनकी कठिन तप से प्रसन्न होकर शिव जी उनके सामने प्रकट हुए और उनकी प्रार्थना अनुसार उस स्थान पर हमेशा के लिए ज्योतिर्लिंग रूप में निवास करने का आशीर्वाद प्रदान किया।
दूसरी कथा कुछ इस प्रकार है: कहा जाता है कि यह जगह उन महत्वपूर्ण स्थानों में से एक है जहाँ कुरुक्षेत्र की लड़ाई के बाद पांडव भगवान शिव का आशीर्वाद पाने के लिए गए थे। ऐसा माना जाता है कि वे अपने भाइयों और रिश्तेदारों को मारने के अपराध बोध से ग्रस्त थे और शिव की कठिन तपस्या कर और उनका आशीर्वाद पाकर इस बोझ को कम करना चाहते थे। इस जगह की लोकप्रियता के पीछे इससे जुड़ी कहानियाँ प्रचलित है।
मान्यता अनुसार भगवान शिव शुरू में पांडवों से मिलने में आनाकानी कर रहे थे, इसलिए वे गुप्तकाशी में छिप गए। फिर भोले शंकर ने बैल का रूप ले लिया और गढ़वाल हिमालय में घूमने लगे ताकि कोई उन्हें पहचान न सके। परंतु पांडवों ने शंकर जी को पहचान कर उन्हें ढूंढ ही लिया। इस पर भगवान भोलेनाथ ने हमेशा के लिए भूमिगत होने का फैसला किया और ज़मीन के नीचे गोता लगा दिया। पांडवों में से एक भीम ने बैल के रूप में शिव जी को पकड़ने की कोशिश की परन्त्तु वे केवल कूबड़ और पूँछ ही पकड़ पाए। इसलिए आज भी केदारनाथ में भगवान शंकर के रूप में बैल के कूबड़ की पूजा की जाती है।
मंदिर का निर्माण एवं वास्तुकला (Construction and Architecture of Temple)
केदारनाथ मंदिर की सही उम्र के बारे में कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। परन्तु ऐसा माना जाता है कि यह जगह लगभग एक हज़ार वर्षों से हिंदुओं का एक महत्वपूर्ण तीर्थ है। इस मंदिर के निर्माण के पीछे भी अलग-अलग कथा प्रचलित हैं। राहुल सांकृत्यायन के अनुसार मौजूदा लिखित प्रमाण के अनुसार इसका निर्माण 12वीं से 13वीं शताब्दी के मध्य हुआ था। एक कथा के अनुसार इसका निर्माण पांडवों के वंशज महाराज जन्मेजय ने करवाया था। परंतु ग्वालियर से प्राप्त हुए सबूतों के अनुसार 10वीं शताब्दी के लगभग मालवा के राजाभोज ने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। तत्पश्चात 8वीं शताब्दी के आसपास आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। 32 वर्ष की आयु में इस मंदिर के समीप ही शंकराचार्य ने महासमाधि ली थी और मंदिर के पीछे भाग में उनकी समाधि स्थित है।
केदारनाथ मंदिर का निर्माण भूरे रंग के कटवां पत्थरों के मजबूत एवं विशाल शिलाखंडों के द्वारा किया गया है। पत्थर की बड़ी-बड़ी पट्टियों को इंटरलॉकिंग तकनीक के द्वारा जोड़ा गया है। यह मंदिर 6 फुट ऊँचे चबूतरे पर निर्मित किया गया है जिसकी ऊंचाई लगभग 85 फुट, लंबाई 187 फुट, और चौड़ाई 80 फुट है तो वहीं मंदिर की दीवारें 12 फुट मोटी हैं। केदारनाथ मंदिर का प्रमुख आकर्षण शिवलिंग बेलनाकार आकर में हैं जिसकी परिधि 3.6 मीटर/ 12 फ़ीट और ऊँचाई 3.6 मीटर/ 12 फ़ीट है। मंदिर के सामने स्थित छोटे हॉल में पार्वती माता के साथ-साथ पांच पांडवों की प्रतिमा बनी हुई है। मंदिर के प्रवेश द्वार के सामने स्थित कमरे में भगवान कृष्ण, पांडव, द्रौपदी, नंदी, वीरभद्र के साथ-साथ हिन्दू धर्म के अन्य देवी-देवताओं की प्रतिमायें भी हैं। मंदिर के द्वार के सामने नंदी की बड़ी सी मूर्ति विराजमान है।
केदारनाथ धाम कैसे पहुँचे (How to Reach Kedarnath Temple)
यहाँ हम जानकारी देंगे कि किस तरह से अलग-अलग वाहन एवं मार्गों द्वारा केदारनाथ मंदिर पहुँचा जा सकता है।
सड़क मार्ग से (Via Roadways): केदारनाथ जाने के लिए सड़कें सबसे पसंदीदा साधन हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश से आपको सोनप्रयाग/गुप्तकाशी के लिए आसानी से बस मिल जाएँगी। एक बार आप यहाँ पहुँच जायें फिर गौरीकुंड के लिए आप कोई भी स्थानीय परिवहन ले सकते हैं और वहाँ से आप 18 किलोमीटर का ट्रैक करके केदारनाथ पहुँच सकते हैं।
रेल मार्ग से (Via Railways): केदारनाथ का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है जो लगभग 215 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह स्टेशन देश के अधिकतर महत्वपूर्ण रेल मार्ग से कनेक्ट होता है। ऋषिकेश से केदारनाथ के लिए टैक्सी, बस, इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जातीं हैं।
हवाई मार्ग से (Via Airways): जॉली ग्रांट हवाई अड्डा केदारनाथ का निकटतम हवाई अड्डा है, जो लगभग 240 किलोमीटर की दूरी पर है। इस हवाई अड्डे तक पहुँच कर आप किराये पर बस या टैक्सी लेकर केदारनाथ जा सकते हैं।
गौरीकुंड केदार घाटी का आखिरी पड़ाव है जहाँ तक कोई भी परिवहन वाहन जा सकता है। और गौरीकुंड से केदारनाथ पहुँचने के लिए आपको 16 किलोमीटर की ट्रेकिंग करनी होगी। यदि आप ट्रेकिंग से बचना चाहते हैं तो आप एक टट्टू भी किराए पर ले सकते हैं या दूसरा विकल्प यह है कि आप गुप्तकाशी/फाटा/गौरीकुंड आदि से हेलीकॉप्टर उड़ान ले सकते हैं।
केदारनाथ मंदिर के खुलने और बंद होने की तिथियाँ (Opening and Closing Dates of Kedarnath Temple)
केदारनाथ मंदिर के कपाट पिछले साल भक्तों के लिए 6 मई 2022 को खुले थे। जबकि मंदिर के कपाट बंद होने की तिथि 24 अक्टूबर 2022 थी। मंदिर के खुलने या उद्घाटन का डेट और टाइम अक्षय तृतीया के शुभ दिन पर निर्भर करता है और महा शिवरात्रि पर इसे घोषित किया जाता है। हालांकि, मंदिर के बंद होने की तारीख आम तौर पर हर साल भाई दूज (अक्टूबर-नवंबर) के अवसर पर पड़ती है।
यह श्रद्धेय ज्योतिर्लिंग साल भर में सिर्फ 6 महीने खुला रहता है, जबकि भारी हिमपात के कारण यह बाकी के 6 महीने बंद रहता है। ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर के पुजारी हिंदू कैलेंडर के पंचांग के आधार पर केदारनाथ मंदिर के पट खुलने की तारीख तय करते हैं। केदारनाथ जी की पंचमुखी डोली ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर से अपनी यात्रा शुरू करती है और चौथे दिन समाप्त होती है जब केदारनाथ मंदिर के कपाट तीर्थयात्रियों के लिए खुलते हैं। जुलूस में बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं।
मंदिर के पट बंद होने के दिन, मंदिर के पुजारी केदारनाथ मंदिर की मूर्ति को ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में स्थानांतरित करते हैं। तीर्थयात्री वहाँ जाकर भी भगवान का आशीर्वाद ले सकते हैं।
6 महीने तक नहीं बुझता है मंदिर का दीपक (Temple Deepak Does Not Extinguish for 6 Months)
जैसा की हमने पहले बताया कि जब भारी हिमपात की वजह से 6 महीनों के लिए मंदिर के पट बंद किये जाते हैं तो मंदिर के पुजारी ससम्मान केदार बाबा की मूर्ति को ऊखीमठ में स्थानांतरित करते हैं। कपाट बंद करते वक़्त मंदिर में दीपक प्रज्वलित किया जाता है। और ये आश्चर्य से कम नहीं कि 6 महीने मंदिर के आसपास किसी के न रहने के बावजूद भी मंदिर का दीपक जलता रहता है और पूजा भी होती रहती है। 6 महीनों के बाद जब मंदिर के पट खोलकर भगवान को ऊखीमठ से वापस केदारनाथ लाया जाता है, तो दीपक भी उसी प्रकार जलता हुआ मिलता है और मंदिर की साफ सफाई भी उसी प्रकार रहती है।
केदारनाथ मंदिर आरती का समय (Aarti Timings of Kedarnath Temple)
मंदिर में पूजा अनुष्ठान सुबह 4:00 बजे महा अभिषेक एवं केदारनाथ जी की आरती के साथ शुरू होता है और शाम 7:00 बजे शयन आरती के साथ समाप्त होता है। मंदिर के कपाट तीर्थयात्रियों के लिए सुबह 6:00 बजे खुलते हैं। फिर यह दोपहर 3:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक दो घंटे के लिए बंद रहते हैं। फिर शाम 5:00 बजे मंदिर पुनः भक्तों के लिए खोल दिया जाता है। तत्पश्चात रात्रि 7:30 से 8:30 बजे तक शिवजी की शृंगार आरती की जाती है और रात्रि 8:30 मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं। केदार मंदिर में ऑनलाइन पूजा भी करवाई जाती है जिसमें भक्तों की भौतिक उपस्थिति की आवश्यकता नहीं होती है।
केदारनाथ मंदिर में होने वाली पूजा का क्रम इस प्रकार है: प्रातः कालीन पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रुद्राभिषेक, षोडशोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पांडव पूजा, गणेश पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती पूजा, शिव सहस्त्रनाम, इत्यादि।
केदारनाथ मंदिर के आसपास घूमने की जगह (Places to Visit Near Kedarnath Temple)
केदारनाथ मंदिर के आसपास घूमने के लिए बहुत सारे स्थान हैं जिनका पौराणिक अर्थ है, विशेष रूप से महाभारत महाकाव्य से। ये स्थान बेहतरीन प्राकृतिक दृश्यों के साथ तीर्थयात्रियों को आध्यात्मिक आनंद में डुबो देते हैं। केदारनाथ के पास घूमने के स्थान इस प्रकार हैं:
1. गांधी सरोवर: केदारनाथ और कीर्ति स्तम्भ शिखर की तलहटी में स्थित यह एक छोटी सी झील है जो एक हिमनद द्वारा संरक्षित है। समुद्र तल से 3900 मीटर की ऊँचाई पर स्थित गांधी सरोवर को चोराबाड़ी ताल के नाम से भी जाना जाता है। चोराबाड़ी बामक ग्लेशियर के मुहाने पर स्थित होने की वजह से झील का नाम चोराबाड़ी ताल पड़ा।
2. फाटा: केदारनाथ के रास्ते में स्थित फाटा उत्तराखंड का एक विशिष्ट गाँव है जो पहाड़ों की सुंदरता से समृद्ध है। जो तीर्थयात्री केदारनाथ की यात्रा नहीं कर सकते हैं, उनके लिए गाँव में एक हेलीपैड है जो केदारनाथ के साथ-साथ अन्य चार धामों के लिए भी हेलीकॉप्टर सेवायें प्रदान करते हैं।
3. सोनप्रयाग: बासुकी और मंदाकिनी, दो पवित्र नदियों का संगम स्थल सोनप्रयाग केदारनाथ धाम के रास्ते में धार्मिक महत्व का स्थान है। ‘प्रयाग’ का अर्थ है संगम और माना जाता है कि सोनप्रयाग में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
4. गौरीकुंड: देवी पार्वती अर्थात गौरी माता को समर्पित गौरीकुंड मंदिर तीर्थयात्रियों के लिए परमात्मा का आशीर्वाद लेने के लिए एक धार्मिक पड़ाव है। यह मंदिर गौरीकुंड में स्थित है, जो केदारनाथ यात्रा का प्रारंभिक बिंदु है। किंवदंतियों की मानें तो यह वह स्थान है जहाँ देवी पार्वती ने भगवान शिव का दिल जीतने के लिए ध्यान और तपस्या की थी। इसके अलावा गौरीकुंड में गर्म पानी के झरने हैं।
5. वासुकी ताल: समुद्र तल से 4,135 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए मशहूर वासुकी ताल एक मनमोहक हिमनद झील है। यह शांत और सुरम्य झील फूलों की एक विशाल श्रृंखला का घर है, विशेष रूप से ब्रह्म कपाल नमक फूल। ऊँची-ऊँची चोटियों से घिरा वासुकी ताल बेहद खूबसूरत प्रतीत होता है परंतु यह ट्रेक आसान नहीं है।
6. शंकराचार्य समाधि: महान दार्शनिक और हिंदू धर्म के धर्म शास्त्री आदि शंकराचार्य का अंतिम विश्राम स्थल केदारनाथ के श्रद्धेय स्थलों में से एक है। संत शंकराचार्य ने बहुत कम उम्र में मोक्ष प्राप्त कर अपने विश्राम स्थल को समाधि का रूप दिया था। यहाँ बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।
7. त्रियुगीनारायण मंदिर – समुद्र तल से 1,980 मीटर की ऊँचाई पर स्थित, त्रियुगीनारायण मंदिर सुंदर गढ़वाल क्षेत्र के बर्फ से ढके पहाड़ों के मनोरम दृश्यों से घिरा हुआ है। मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिन्हें त्रिजुगी नारायण जी के नाम से जाना जाता है।
किंवदंतियों के अनुसार, यह मंदिर वह जगह है जहाँ भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। मंदिर की एक और विशेषता इसके सामने जलती हुई एक सतत आग है, और ऐसा माना जाता है कि यह अग्नि दिव्य विवाह के समय से जलती आ रही है। इस प्रकार, मंदिर को अखंड धूनी मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।
8. भैरव मंदिर: भैरवनाथ मंदिर या भैरो बाबा मंदिर केदारनाथ के दर्शनीय स्थलों में से एक है। यह मंदिर भगवान भैरव को समर्पित है जो सर्दियों में केदार बाबा के जोशीमठ चले जाने पर केदारनाथ मंदिर और घाटी के रक्षक माने जाते हैं। ऊँचे हिमालय के आकर्षक और मनोरम दृश्यों को प्रस्तुत करता हुआ भैरव मंदिर उत्तराखंड के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। भक्त इस मंदिर के दर्शन कर केदारनाथ मंदिर की यात्रा पूरी करते हैं।
केदारनाथ में मनाये जाने वाले त्योहार (Festivals Celebrated in Kedarnath)
अगर आप किसी विशेष अवसर पर केदारनाथ की यात्रा करना चाहते हैं तो आपको यहाँ मनाए जाने वाले प्रमुख त्योहारों के बारे में जान लेना आवश्यक है।
- बद्री केदार उत्सव: यह उत्सव जून के महीने में मनाया जाता है।
- समाधी पूजा: यह पूजा उस दिन होती है जिस दिन केदारनाथ मंदिर के पट छः महीने के लिए बंद किये जाते हैं।
- श्रावणी अन्नकूट मेला: यह मेला रक्षाबंधन से एक दिन पहले लगाया जाता है।
सभी त्योहारों से बढ़कर केदारनाथ की दिवाली काफी अविश्वश्नीय अनुभव होता है। शिव भक्त इस त्यौहार में यहाँ की यात्रा करके अपनी यात्रा का फल और आनंद दो गुना कर लेते हैं। इस समय पूरे मंदिर के साथ-साथ अन्य आसपास के क्षेत्रों को भी रंग बिरंगे फूलों और लाइटों से सजाया जाता है। इसके लिए एक एन.आई.एम टीम नियुक्त की गई है जो यह सुनिश्चित करती है कि सारी व्यवस्था ठीक से की गई है। इस दिन मंदिर का सबसे अंधेरा कोना भी 6000 से अधिक दीपों से जगमगाया जाता है।
केदारनाथ यात्रा के लिए पंजीकरण (Registration for Kedarnath Yatra)
केदारनाथ की यात्रा करने के इच्छुक यात्रियों को पंजीकरण करके उसकी पर्ची लेना आवश्यक होता है। यात्रा के पंजीकरण के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों विकल्प उपलब्ध हैं। ऑनलाइन पास उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड (यूसीडीडीएमबी) की आधिकारिक वेबसाइट से प्राप्त किया जा सकता है।
ऑफलाइन पंजीकरण के लिए, आप फोटो आईडी प्रूफ दिखाकर हरिद्वार रेलवे स्टेशन, ऋषिकेश बस स्टैंड, जानकी चट्टी, गुप्तकाशी, फाटा, उत्तरकाशी, या सोनप्रयाग से पर्ची प्राप्त कर सकते हैं। यात्रा सफलतापूर्वक पूरी करने के लिए पंजीकरण पर्ची अपने साथ ले जाना अनिवार्य है।
केदारनाथ की यात्रा करने से पहले जान लें ये आवश्यक बातें (Know These Essential Things Before Traveling to Kedarnath)
- यात्रा को सफलतापूर्वक पूरी करने के लिए टिकट, नकद रुपए, और फोटो पहचान पत्र अपने साथ अवश्य रखें।
- ठहरने के लिए होटल आदि की बुकिंग एडवांस में करवा लें क्योंकि पीक सीज़न में ऑन द स्पॉट अनुकूल कीमत पर अच्छा आवास मिलना थोड़ा मुश्किल होता है।
- इस क्षेत्र में केवल बीएसएनएल सिम ही काम करती है, इसलिए अपने परिवार आदि से संपर्क बनाए रखने के लिए अपने साथ बीएसएनएल की सिम अवश्य रखें।
- कैमरा, पावर बैंक, टॉर्च, इत्यादि के लिए आवश्यकतानुसार एक्स्ट्रा बैटरी अवश्य रखें।
- ट्रैकिंग करने के लिए आरामदायक कपड़े और मज़बूत जूते पहने।
- पेन रिलीफ और एंटीसेप्टिक क्रीम जैसे फर्स्ट एड किट अपने साथ ज़रूर रखें। बुखार, सर्दी, खांसी, और ऊँचाई से संबंधित बीमारी के लिए गोलियाँ रखना ना भूलें।
- अगर आप मानसून में ये यात्रा कर रहे हैं तो अपने साथ छाता और रेनकोट अवश्य रखें।
- गर्मी में यात्रा करते वक़्त भी अपने साथ हलके ऊनी कपडे रखें तो वहीं सर्दी के मौसम में भारी ऊनी कपड़े रखें।
- सनबर्न से बचने के लिए सनस्क्रीन और सनग्लासेस ले जाना न भूलें।
तो दोस्तो आशा है कि इस लेख को पढ़कर आपको केदारनाथ धाम से सम्बंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। शिव के हर भक्त और प्रकृति के प्रेमी को एक बार इस तीर्थ की यात्रा अवश्य करनी चाहिए। बोलो भगवान भोले शंकर की जय!