स्वास्थ्य

नीम के 10 फायदे – Neem Ke 10 Fayde

इस लेख में जानते हैं क्या हैं नीम के 10 फायदे (Neem Khane Ke Fayde) और किस तरह नीम के पत्ती के फायदे (Neem ki Patti khane ke fayde) का भरपूर लाभ लिया जा सकता है। साथ ही किन रोगों में यह रामबाण सिद्ध होती है।

सुप्रसिद्ध सर्वविदित सर्वत्र पाया जाने वाला त्रिदोष (वात, पित्त, कफ) को दूर करने की अपार क्षमता से सुशोभित वृक्ष हैपुराणों में इसे अमृत तुल्य माना गया हैनीम वृक्ष का पान्चांग (फल, फूल, पत्ते, जड़ और छाल) का रेशा-रेशा अर्थात् जड़ से शिखर तक वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है यही इसके विशेष महत्त्व की बात है, ऐसा बहुत कम वृक्षों के साथ महत्व जुड़ा हुआ है इसकी कोपलें नेत्र रोग, गर्मी, कोढ़ और कफ नाशक होते हैं इसके पत्ते कृमि, विष, अरूचि और अजीर्ण नाशक होते हैंइसके सूखे हुए पत्ते मनुष्य और कपड़ों (दोनों) की रक्षा करते हैं तथा अनाज में रखने से उसे भी घुनने (कृमियों) से बचाते हैं। इस वृक्ष के फल (निबौली) बबासीर, प्रमेह, कोढ़, कृमि और गुल्म को शान्त करते हैंइसके पके फल (निबौली) रक्त, पित्त, कफ, नेत्र रोग, दमा नाशक है। इस खाँसी, बबासीर, प्रमेह और कृमिजन्य विकार नाशक गुणों से भरपूर है। निबौली वृक्ष का फूल (निबौली का फूल) कफ और कृमि नाशक है। इस वृक्ष का डन्ठल खाँसी, बबासीर, प्रेमह और कृमिजन्य विकार नाशक गुणों से भरपूर हैं। निबौली की गिरी कोढ़ में विशेष रूप से आरोग्यता प्रदान करने वाली है। नीम (निबौली) का तैल कृमि, कोढ़ और त्वचा रोग नाशक और दांत, मस्तक, स्नायु और छाती के दर्द को मिटाने के गुणों से भरपूर है। आइए, जानते हैं कि नीम के 10 फायदे जो सबसे मुख्य हैं वे क्या हैं–

नीम के 10 फायदे जानें

  1. नीम मूत्रल है यौनांगों को विकार मुक्त करके पुष्ट और सबल बनाता है। यह चेतना सर्जक है और दिमागी ताकत का असीम भंडार है। यह स्त्रियों के मासिक धर्म को नियमित भी करता है।
  2. नीम की निबौली खाने से अजीर्ण नष्ट हो जाता हैइसके सेवन से मल निष्कासित होकर रक्त स्वच्छ हो जाता है। रक्त संचार तीव्रता से होने के कारण जठराग्नि’ तीव्र हो जाती है। परिणामस्वरूप क्षुधा बढ़ जाती है।
  3. शरीर अथवा शरीर का कोई अंग विशेष यदि सुन्न हो गया हो तो नियमित 3-4 सप्ताह के नीम तैल की मालिश से सुन्न नसों में पूर्ण रूपेण चेतना आकर सुन्नपन नष्ट हो जाता है। नीम के बीजों का तैल निकलवाकर मालिश करें।
  4.  नीम पत्तियों का रस 1-1 चम्मच प्रतिदिन सुबह-शाम पीने से अफीम खाने की लत में कमी आकर धीरे-धीरे छूट जाती है यदि अफीम खाने की लत अधिक सताये तो भांग का अल्प मात्रा में सेवन कर लिया करें । अफीम के मुकाबले भांग कम हानिकारक है तथा इसका सेवन कभी भी छोड़ा जा सकता है।
  5. अरुचि खाने-पीने की हो अथवा काम धन्धे की, नीम के सूखे पत्तों का चूर्ण बनाकर 1-1 चुटकी प्रत्येक 2-2 घंटे पर दिन में 3-4 बार सेवन करने से नष्ट हो जाती है इस हेतु नीम की कोपलें भूनकर भी खाई जा सकती है।
  6. अन्डवृद्धि (हार्निया) में नीम, हुरहुर की पत्तियाँ और अमरबेल सभी सममात्रा में लेकर गोमूत्र में घोट-पीसकर अन्डकोषों पर लेप करते रहना अत्यन्त उपयोगी है।
  7. आँखे दुखने पर — नीम की पत्तियों का रस 1-1 बूँद आँखों में डालें। नोट – बच्चों की दुखती आंखों में न डालकर कानों में डालें तथा यदि 1 आँख – दुख रही हो तो विपरीत कान (बांयी आँख पर दुखने पर दांये कान में डालें।
  8. नीम की पत्तियों का रस और पठानी लोध (10-10 ग्राम पीसकर आँखों की पलकों पर लेप करने से आँखों की जलन और लालिमा नष्ट हो जाती है।
  9. आँखों में सूजन होने पर 10 ग्राम नीम की पत्तियों उबालकर 5 ग्राम फिटकरी में घोलकर दिन में तीन बार करना लाभप्रद है।
  10. आग से जल जाने पर नीम तेल लगाना उपयोगी है। नीम की 50 ग्राम कोंपलें तोड़कर 250 ग्राम खौलते तैल में इतना पकायें कि नीम की कोपलें जल जायें (किन्तु जलकर राख न हो) तदुपरान्त 1-2 बार छानकर सुरक्षित रखलें और लगायें।

नीम के 10 फायदे जो मुख्य-मुख्य हैं, वे तो आपने जान लिए हैं। लेकिन इसके अतिरिक्त भी नीम के अनेक लाभ हैं। आइए, जानें नीम के अन्य लाभ–

नीम के अन्य फायदे

नीम का मरहम — 250 ग्राम नीम के तैल में 125 ग्राम वैक्स (मोम), नीम की हरी पत्तियों का रस 1 किलो, नीम की जड़ की छाल का चूरा 50 ग्राम और नीम की पत्तियों की राख 25 ग्राम डालें । तैल और नीम का रस हल्की आग पर इतना पकायें कि तैल आधा या इससे भी कम रह जाए। फिर इसी में मोम डाल दें। जब तैल और मोम एकजान हो जाए तो छाल का चूरा और पत्तियों की राख भी मिला दें । यह प्रत्येक प्रकार का घाव भरने हेतु रामबाण मरहम तैयार हो गया।

  • नीम की हरी पत्तियां, भीमसेनी कपूर, जस्ता भस्म, लाल चन्दन का बुरादा , 10-10 ग्राम और शुद्ध रांगा 50 ग्राम को किसी लोहे के पात्र (कड़ाही में खूब , ) घोटकर सुरमा बनाकर आंखों में लगाने से पड़वाल जड़मूल से नष्ट हो जाता है।
  • आतशक में नीम की पत्तियों का रस 10 ग्राम अथवा नीम का तेल 5 ग्राम नित्य पियें और यौनांगों पर नीम तैल की मालिश करें। अति उपयोगी योग है।
  • नीम की पत्तियाँ, काली मिर्च और चावल 25-25 ग्राम घोट पीसकर नसवार बनालें सूरज निकलने से पूर्व ही 1-1 चुटकी यह नसवार लेकर नथुनों से ऊपर खींचें मात्र 1 सप्ताह के नित्य प्रयोग से पुराने से पुराना आधासीसी का रोग जड़ से भाग जाएगा।
  • आँव आने पर नीम पत्तियों का आधा कप काढ़ा अथवा पत्ती का 2 या ढाई ग्राम चूर्ण या पत्ती का दस ग्राम रस या छाल का चूर्ण डेढ़ से दो ग्राम तक अथवा फल, फूल छाल, डन्ठल और पत्ती अर्थात् पंचांग का चूर्ण हो तो मात्र टो ग्राम सेवन करने से लाभ हो जाता है ।
  • 20 ग्राम नीम की पत्तियाँ पीसकर आधा कप पानी में घोलकर 5 दाने काली मिर्च के भी मिलालें । इसे पीने से किसी भी कारण से उल्टियां (वमन या कै) आ रही हो, शर्तिया शान्त हो जाती हैं ।
  • नीम की छाल, मजीठ, पीपल की छाल, नीम वृक्ष पर चढ़ी गिलोय प्रत्येक 10-10 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर आधा-आधा कप सुबह-शाम पीने से एक्जिमा नष्ट हो जाता है । दो किलो नीम पत्ती का रस, 500 मि.ली.सरसों का तेल, आक का दूध, लाल कनेर की जड़ और काली मिर्च 5-5 ग्राम लेकर हल्की आग पर पकाकर तैल मात्र शेष रहने पर छानकर सुरक्षित रखलें । तैल को लगाने से एक्जिमा समूल नष्ट हो जाता है तथा त्वचा पर कोई दाग शेष नहीं रहता है । 
  • प्रातः (सूर्योदय से पूर्व) कुल्ला करके नीम की 10 ग्राम पत्तियाँ घोटकर पानी में मिलाकर पीने से कब्ज मिटकर पेट स्वच्छ हो जाता है।
  • महानिम्ब (बकायन) के पत्तों और छाल का काढ़ा पीने से और छाल की पुल्टिस बनाकर गले पर बांधने से कण्ठमाला रोग जड़ मूल से मिट जाता है”
  • कच्ची निबौली को चबाने से कर्णमूल (कनफोड़े) ठीक हो जाते हैं अथवा नीम के बीजों को नीम के ही तैल में पकाकर इसमें फुलाया हुआ नीला थोथा पीसकर मरहम बनाकर लगायें ।

नोट- नीला थोथा जहर है अतः प्रयोग के बाद हाथ अवश्य साबुन से खूब भली-भांति धोकर स्वच्छ करलें ।

कनखजूरे के विष में— नीम की पत्तियाँ घोटकर सैंधा नमक मिलाकर लेप करने से (जहाँ कनखजूरे ने काटा हो वहाँ लेप करें) विष नष्ट हो जाता है।

  • नीम पत्तियों का 25 ग्राम रस नमक मिलाकर गुनगुना करके कानों में टपकाने से कानों से समस्त कीड़े निकल जाते हैं। आवश्यकता पड़ने पर (कान में कीडे होने पर) यह क्रिया दूसरे दिन भी की जा सकती है ।
  • 50 ग्राम सरसों के तैल में 25-30 ग्राम नीम के पत्ते पकावें । (इसी में 5 ग्राम पिसी हल्दी डाल लें । तदुपरान्त इस तैल को छानकर 1 छोटा चम्मच शहद मिलाकर शीशी में सुरक्षित रखलें इस तैल को 3-4 दिनों कान में टपकाने से कानों का बहना और दुर्गन्ध निकलना शर्तिया दूर हो जाता है । अथवा नीम के तैल में शहद मिलाकर रूई की बत्ती से कान में फेरने मात्र से ही पीव आना और दुर्गन्ध निकलना, दर्द होना मिट जाता है।
  • नीम पत्ती 1 का रस चम्मच पीने से तथा 2-2 बूँद कानों में डालने से कान सुन्न पड़ जाने का रोग दूर हो जाता है।
  • नीम की फूल-पत्ती और निबौली पीसकर 40 दिन निरन्तर शर्बत बनाकर पीने से सफेद कोढ़ से मुक्ति मिल जाती है।
  • नीम का गोंद नीम के ही रस में ही पीस कर पीने से गलित कोद नष्ट हो जाता है । कोढ़ (लेप्रोसी) से ग्रसित रोगी को नीम वृक्ष के नीचे ही रहने, खाने, पीने और नीम की पत्तियां बिछावन की भांति बिछाकर सोना अत्यन्त ही लाभप्रद है घावों पर नीम का तैल लगाना अथवा शरीर पर मालिश करना, नीम की पत्तियों का रस पीना अथवा नीम से झरने वाला मद (50 ग्राम) तक पीना हितकर है। नीम की पत्ती का रस पानी में मिलाकर स्नान करना तथा बिस्तर से हटायी गयी नीम पत्तियों को जलाकर (धूनी लगाने से) वातावरण स्वच्छ रहता है। जली हुई पत्तियों की राख नीम के तैल में मिलाकर घावों पर लगाना भी लाभकारी है । नीम की सूखी पत्तियों के ढेर में गन्धक चूर्ण डालकर आग लगाने से खटमल और मच्छर भाग जाते हैं ।
  • पेट की खराबी के कारण होने वाले गले की दाह में नीम के रस में निबौली घोटकर शर्बत की भांति पीना लाभप्रद है।
  • बलगमी खाँसी में नीम के पत्तों की भस्म शहद में मिलाकर चाटना अत्यन्त लाभकारी है । नीम भस्म को सौंठ, अजवायन, काली मिर्च, पुदीना एवं अदरक रस में घोटकर चाटने से तुरन्त लाभ होता है। इस प्रयोग से श्वास नली के समस्त अवरोध और दूषण शान्त हो जाते हैं ।
  • 30 ग्राम नीम की कोपलों का रस तीन दिन पीने से खून की खराबी दूर हो जाती है ।
  • खुजली में नीम और मेंहदी के पत्तों को एक साथ रगड़कर रस निकाल कर 25 ग्राम की मात्रा में पीना तथा शेष बचे रस को नारियल के तैल में भूनकर छानकर शरीर पर मलना लाभकारी है । अथवा नीम का पंचांग (बीज, फूल, फल और पत्ते तथा जड़) समान मात्रा में पीसकर 4 चम्मच सरसों के तैल में उक्त चूरा हल्की आग पर तपाकर (नीम जलने की गन्ध फैलते ही और धुंआ उठते हुए ही) उतारकर, छानकर साफ-स्वच्छ शीशी में सुरक्षित रखलें । इस तैल की मालिश से मात्र खुजली ही नहीं, वरन् त्वचा सम्बन्धी समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं।
  • पतझड़ के मौसम में नीम छाल को पीसकर छानकर दो ग्राम की मात्रा में 3-3 घंटे पर ताजे पानी से सेवन करने से खूनी दस्त रुक जाते हैं। 
  • नीम तैल की निरन्तर काफी दिनों तक मालिश करते रहने से गंजापन नष्ट हो जाता है। 
  • 25 ग्राम सरसों के तैल को पकाकर (खूब खौलने तक पकायें) उसमें 10 ग्राम नीम की कोपलें डालकर काली पड़ने दें (जलने से पहले ही उतार लें) फिर इसवने छानकर तैल को पुनः गुनगुना करके गठिया से आक्रान्त अंगों पर मालिश करें तथा इसी तैल से शाक-भाजी बनाकर खायें। गठिया के लिए अक्सीर योग। अथवा महानिम्ब (बकायन) के बीज को पीसकर दो ग्राम की मात्रा में गुनगुने पानी के साथ सेवन करें। सुन्न पड़ गये अंगों को इस योग के सेवन करने. से चैतन्यता मिलती है।
  • नीम पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम पीने से शरीर (देह) की गर्मी (शरीर में गर्मी का जोर) शान्त हो जाता है ।

गर्मी से बुखार होने पर— नीम की छाल, गिलोय, लाल चन्दन, धनिया और कुटकी सम मात्रा में लेकर जौकुट कर काढ़ा बनाकर 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन (तीन दिन में तीन खुराकें) लें इससे अधिक सेवन कदापि न करें । यह ‘गडुच्यादि क्वाथ’ कहलाता है। मात्र इतने सेवन से ही बुखार भाग जाता है और प्यास भी शान्त हो जाती है । यह उपचार रक्त को ठण्डा करता है।

  • नीम की पत्तियों का रस निकालकर हल्का गर्म करके (इसमें 5-7 बूँद शहद भी मिला सकते हैं) गरारें (कुल्ला) करने से गले की जलन शान्त हो जाती है तथा कफ को हटाने में तो यह योग लाभप्रद

नीम के पत्ती के फायदे – Neem Ke Patte Ke Fayde

 गिल्टियों और सूजन में— नीम की पत्तियों को दरड़ लें (बारीक न पीसें) और नमक डालकर कड़वे तैल में पकायें, इसमें एक चुटकी पिसी हल्दी मिलाकर पुल्टिस तैयार कर किसी कपड़े में पोटली बनाकर गिल्टियों और सूजन पर हल्की- हल्की टकोर (सेंक) करें। दो दिन में ही आराम मिलने लगेगा।

नोट—टकोर करने पर पहले तो सूजन बढ़ती हुई लगेगी, ऐसा खून संचार की क्रिया के कारण होता है मगर बाद में शर्तिया लाभ होगा । अतः घबरायें नहीं और प्रयोग जारी रखें।

  • महानीम (बकायन) के पत्तों का रस पानी में मिलाकर पीने और छाल को पीसकर लेप करने से गृधसी रोग (कमर से निचले जोड़ों में दर्द और जकड़न) नष्ट हो जाता है। 
  • नीमरस में जरा सा नमक (सम्भव हो तो पांचों पिसे हुए नमक) मिलाकर दिन में 4 बार पीते रहने से घमौरियाँ नष्ट हो जाती हैं तथा गर्मी, खुश्की नहीं होती है और पित्ती भी नहीं निकलती है ।
  • नीम के तैल में कपूर की टिकिया घोलकर ठण्डी हवा और छांव में बैठकर (धूप के असर से होने वाली पित्ती निकलने पर) मालिश करना तथा आधा घंटे के पश्चात् स्नान करना अत्यधिक लाभप्रद है।
  • नीम की पत्तियों का रस और सरसों का तैल 10-10 ग्राम लेकर आग पर इतना पकायें कि रस जल जाए, तेल मात्र शेष रहे । इस तैल को घाव पर लगाना इतना अधिक गुणकारी है कि ऐलोपैथी की कीमती से कीमती घाव भरने का आयन्टमैन्ट (मलहम) इसका मुकाबला नहीं कर सकता है।
  • 40 दिनों तक निरन्तर नीम क्वाथ पीने से और त्वचा पर नीम का तेल लगाते रहने से चम्बल रोग (सोरायसिस ) जड़ से नष्ट हो जाता है।
  • बहार के मौसम में प्रतिदिन नीम की 5 कोपलें चबाते रहने से अथवा 1 हफ्ता तक बेसन की रोटी में नीम की कोपलें कुतरकर मिला दें तथा घी में खूब तर करके खाने से 1 साल तक त्वचा रोगों से बचाव हो जाता है।
  • नीम की 7 लाल पत्तियाँ और 7 काली मिर्च के दानें प्रतिदिन चबाने से अथवा नीम और बहेड़े के बीज तथा हल्दी 5-5 ग्राम पीसकर ताजा पानी में घोलकर 1 सप्ताह पीने से 1 साल तक चेचक रोग से बचाव हो जाता है।
  • हरड़, बहेड़ा, आँवला का छिलका, सौंठ, पीपल, अजवायन, सैंधा और काला नमक प्रत्येक 10-10 ग्राम, काली मिर्च 1 ग्राम नीम के पत्ते आधा किलो और जौ क्षार 20 ग्राम को कूट पीस छानकर सुरक्षित रखलें । 3 से 5 ग्राम की मात्रा में फँकी मारकर गुनगुने पानी या चाय के साथ पीने से चौथैया बुखार भाग ही जाता है इसका सेवन प्रत्येक प्रकार की ज्वरों में भी उपयोगी है ।
  • सुबह-सुबह नीम की छाल का रस निकालकर 25 ग्राम की मात्रा में पीने के दो घंटे बाद घी की चूरी (परांठे की चूरी बनाकर घी में सानकर) 1 सप्ताह तक निरन्तर खाने (पानी न पियें अथवा कम से कम पियें) से जलोदर रोग नष्ट हो जाता है।
  • जवानी के कील मुँहासे मुरझाकर दाग छोड़ गए हों तो नीम के बीज सिरके में पीसकर 5-7 दिन दागों पर लेप करने से लाभ हो जाता है।
  • नीम का मद (गोंद) दो प्रतिदिन खाने जहरवाद नष्ट हो जाता है।
  • नीम का तैल सिर में मालिश करने से जुऐं लीखें नष्ट हो जाती हैं।
  • नये जूते के काटे हुए जख्म में नीम तैल या नीम तैल में वैसलीन मिलाकर लगाना लाभप्रद है। नीम की पत्तियों की राख भी नीम तैल के साथ लगावें ।
  • 25 ग्राम नीम के पत्ते 250 ग्राम पानी में उबालकर 25-25 ग्राम की मात्रा में प्रति दो-दो घंटे पर पीने से यकृत की कमजोरी (शराब इत्यादि सेवन करने से लीवर डीमेज होना) दूर हो जाती है। यह प्रयोग लीवर टानिक का कार्य करता है।
  • नीम वृक्ष की अन्दर वाली छाल को खूब बारीक (चन्दन की भांति) घिसकर जोड़ों के दर्द से आक्रान्त अंग पर गाढ़ा-गाढ़ा लेप करें (लेप सूख जाने • पर पुनः करें) अत्यधिक लाभप्रद योग है ।
  • नीम की पत्तियों, अनार का बक्कल, हरड़ का बक्कल, पठानी लोध, आम का छिलका (प्रत्येक 10-10 ग्राम) पानी में पीसकर मुखमण्डल की झाइयों पर लगाना अत्यन्त उपयोगी है। मुख के स्याह धब्बे दूर होकर त्वचा का प्राकृतिक रंग उभर आता है।
  • टायफाइड बुखार में नीम के बीज पीसकर दो-दो घंटे पर पिलाने से ज्वर झरता है । मल निकलकर शरीर में ताजा खून बनकर नवस्फूर्ति और शक्ति का संचार होता है।
  • निबौली, अजवायन एवं नौशादर सममात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर सुरक्षित रखलें। प्रतिदिन प्रातः काल तीन ग्राम की मात्रा में ताजे पानी से खाने से तिल्ली बढ़ने का रोग ठीक हो जाता है ।
  • नीम के 5 नग बीजों की गिरी पीसकर दिन में तीन बार खाने से द रुक जाते हैं।
  • पान में नीम तैल की 10 बूंदें डालकर दिन में ऐसे 5-6 बार पान खाये अर्थात् नीम तैल की दिन भर में 50-60 बूंदें पेट में चली जाऐं) निरन्तर 2-3 माह के सेवन से पुराने से पुराना दमा जड़ मूल से पीछा छोड़ जाता है।
  • नीम, बबूल, मौलश्री की छाल, सिरस के बीज, जली हुई सुपारी, जले हुए बादाम के छिलके प्रत्येक 50 ग्राम, खड़िया मिट्टी 100 ग्राम, बहेड़ा 20 ग्राम, काली मिर्च 3 ग्राम, लौंग 5 ग्राम, पिपरमेन्ट आधा ग्राम लेकर सभी को पीस छानकर सुरक्षित रखलें। इस मंजन को प्रयोग करने से दांतों की समस्त बीमारियां नष्ट हो जाती हैं।
  • नीम के पत्ते दही में पीसकर लगाने से दाद जड़मूल से नष्ट हो जाता है। नीम की छाल का काढ़ा पीना तथा निबौली का तैल विशेषतः बकायन का तैल दाद में लगाना भी उपयोगी है।
  • नीम के छाया शुष्क फूल और कलमी शोरा 10-10 ग्राम पीस छानकर (कपड़े से छानें) सुरक्षित रखें। इस सुरमा को सुबह-शाम 1-1 सलाई लगाते रहने- से दिन प्रतिदिन आँखों की ज्योति (नजर) बढ़ती चली जाती है ।
  • नीम की पत्तियों के रस में जीरा, पोदीना और काला नमक मिलाकर पीने से दिल की जलन दूर हो जाती हैयह शर्बत दिल को ताकत देता है और हृदय को ठण्डक से भर देता है।
  • नीम की पत्तियाँ दीमक की दुश्मन हैं। नीम की मींगी (निबौली) की खाद इस हेतु कृषि भूमि हेतु उपयोगी है। वहीं पुरानी पुस्तकों की रक्षार्थ बीच-बीच में सूखे पत्ते लगाना लाभप्रद है ।
  • दो मुट्ठी नीम के पत्ते, दो टिकिया कपूर, थोड़ा सा अगर और चन्दन की घर-आंगन या कमरे में धूनी देने से संक्रामक रोगों से बचाव हो जाता है क्योंकि इस धूनी के प्रभाव से वायुमण्डल साफ-स्वच्छ हो जाता है।
  • नीम की छाल का अन्दर वाला हिस्सा बारीक पीसकर (पानी डालकर) सिर पर लेप करने से नकसीर बन्द हो जाती है । अथवा नीम की पत्तियां और अजवायन पानी में पीसकर कनपटियों पर लेप करना भी अत्यन्त लाभप्रद है । गर्मी के मौसम में नीम की पत्तियों का रस निकालकर नमकीन शरबत की भांति सेवन करने से शरीर की गर्मी का उबाल शान्त हो जाता है जिसके परिणामवरूप नकसीर फूटने की नौबत ही नहीं आती है।
  • नीम का तेल 250 ग्राम, शुद्ध मोम और बिरोजा 50-50 ग्राम लें। पहले बिरोजा को दड़दड़ा करके पीसकर तैल में गरम कर पिघलाकर बाद में मोम डालदें जब तीनों मिलकर 1 जान हो जाऐं तो शीशी में रखलें । यह नासूर नाशक अति उत्तम ‘मरहम बन जाएगा प्रतिदिन नासूर को नीम रस में रुई भिगोकर साफ करके उक्त मरहम लगायें। यह नासूर हेतु शर्तिया व रामबाण प्रयोग है।
  • नेहरूआ अथवा नहारू रोग में त्वचा के अन्दर 1 बाल की भांति कीड़ा होता है इसे निकालने के लिए नीम की पत्तियां पीसकर गरम करके त्वचा पर | लगाना अत्यन्त ही उपयोगी है । इस प्रयोग से नहारू अपने आप स्वयं ही फूट जायेगा, उसे वहीं धागे से बाँध दें। मात्र दो या तीन बार के उक्त प्रयोग से नहारू पूर्णरूपेण बाहर निकल आता है। अति सरल प्रयोग है।
  • नीम की कोपलें एवं जस्ता 10-10 ग्राम, मिश्री 10 ग्राम, लौंग और छोटी इलायची 3-3 नग को खूब बारीक पीसकर शीशी में सुरक्षित रखें । इस सुरमें को प्रतिदिन रात्रि में लगाकर सो जाने से नेत्रों का दर्द, सूजन, लालिमा, धुन्ध और जाला इत्यादि नेत्र विकार नष्ट होकर मात्र 1 पखवाडे के नित्य प्रयोग से नेत्रों की ज्योति दुगुनी हो जाती है। 
  • नीम के तैल का दीपक जलाने से दीपक पर पतंगे नहीं आते का मुँह ढक दें ताकि भाप न निकल सके । फिर 3-4 घन्टे के बाद इसे काम • छायाशुष्क नीम के पत्ते किसी बरतन में जलावें । जल जाने पर बरतन में लें)। यह नीम पत्ती की भस्म हुई। इसे 5-6 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन ताजा पानी से सेवन करने से गर्दा और मत्राशय की पथरी कट-कट कर निकल जाती है। शान्त हो जाती है तथा गर्मी के मौसम में अधिक प्यास भी नहीं लगती है। 
  • नीम की पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर पीने से बदन की समस्त गर्मी शांत हो जाती है तथा गर्मी के मौसम में अधिक प्यास भी नहीं लगती है।
  • नीम की कोमल सींकें काली मिर्च के साथ मिश्री डालकर पीसकर पीने से प्यास की भड़की (अधिकता) मिट जाती है।
  • प्लेग रोग में गिल्टियों पर मिट्टी का तेल रुई की फुरैरी से लगायें तथा 11 नीम की सींकें और 5-7 नग काली मिर्च 50 ग्राम गुलाब अर्क में पीसकर प्रत्येक दो घन्टे पर देना सर्वोत्तम एवं लाभकारी है अथवा नीम के पत्ते और काली मिर्च पीसकर सेवन करायें। इससे भी प्लेग नष्ट हो जाता है।
  • नीम का तैल गोदुग्ध में मिलाकर पीने से श्वेत प्रदर रोग नष्ट हो जाता है नीम की छाल के रस में सफेद जीरा मिलाकर पीना भी श्वेत प्रदर (ल्यूकोरिया) नाशक है ।
  • पुरुषों के प्रमेह रोग में नीम की छाल का काढ़ा प्रतिदिन प्रात: काल में पीना लाभकारी है नीम पत्ती के रस में मिश्री मिलाकर पीना भी प्रमेह नाशक है। अथवा महानिम्ब (बकायन) के बीजों को चावलों के साथ पीसकर घी में मिलाकर चाटें। यह योग सर्वोत्तम प्रमेह नाशक है ।
  • नीम की पत्तियों को हल्की आंच में तपाकर रस निकालकर सीना और बगलों में हल्के हाथ से मालिश करने से पसली चलना (हब्बा-डब्बा) रोग मिटता है। 
  • नीम के पत्तों का रस गुनगुना करके प्रसव कष्ट के समय जच्चा को पिला देने से गर्भाशय में संकुचन होकर प्रसव जल्द और बिना कष्ट के हो जाता है अथवा नीम की छोटी सी जड़ लेकर गर्भिणी की कमर के साथ बाँध दें, यह योग भी लाभकारी है ।

नोट- प्रसव हो जाने पर इस जड़ को खोलकर अवश्य फेंक दें।

  • नीम की छाल का उबाला हुआ पानी प्रसूता (जच्चा) को एक सप्ताह तक देते रहने से इसे प्यास नहीं सताती है तथा स्वास्थ्य उत्तम रहता है और स्तनों में शिशुपान हेतु दूध भी पौष्टिक बनता है।
  • पक्षाघात में नीम बीजों के तैल की निरन्तर मालिश करना अचूक एवं शर्तिया लाभकारी उपचार है । जितना अधिक तैल त्वचा में पहुँचेगा उतने ही शीघ्र रक्त संचार में प्रवाह उत्पन्न होकर चैतन्यता आ जाएगी।
  • नीम की पत्तियाँ पीसकर पानी और शक्कर मिलाकर एक छोटा गिलास भर कर गरम करके सेवन करने से पीलिया रोग नष्ट हो जाता है ।

पुराने बुखार में— नीम की पत्तियाँ और काली मिर्च (21-21) लेकर पोटली में बाँधकर आधा किलो पानी में डालकर खौलायें, जब खौलने लगे तब ढक्कन से ढक दें। इसे ठण्डा होने पर सुबह-शाम 125-125 ग्राम पीने से पुराना बुखार हड्डियों से निकल जाता है। मात्र दो दिन में ही असर दिखलाता है।

पुराने असाध्य घावों में— नीम के पत्ते और छाल के काढ़े से घाव को धोयें और टकोर (संक) करें तत्पश्चात् नीम की छाल के अन्दरूनी हिस्से को सिल पर रगड़ कर घाव पर लेप कर दें। इस प्रयोग के निरन्तर करते रहने से असाध्य घाव भी ठीक हो जाते हैं।

  • नीम की छाल का अन्दर वाला छिलका तवे पर भूनकर (राख बनाकर) 10 ग्राम की मात्रा में दही के साथ सेवन करने से पेचिश जल्द ही ठीक हो जाती है।
  • नीम पत्ती के रस में शहद मिलाकर चाटने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं । अथवा नीम का ‘तैल 8-10 बूँद (बच्चों को 5 बूँद) चाय के कप में डालकर पीने से भी पेट के कीड़े मर जाते हैंया नीम की पत्तियां 5 ग्राम लेकर जरा सी हींग के साथ पीस कर चाटें। इस प्रयोग मे भी उदर कृमि नष्ट हो जाते हैं।
  • नीम की पत्तियों वाली हरी सींकों को 50 ग्राम वजन में लेकर इनका रस निकालकर 100 ग्राम उन्नाव का शर्बत में मिलाकर पीने से पेशाब में जलन और रुकावट दूर हो जाती हैं।
  • नीम की छाल और खैरसार 10-10 ग्राम गाय के मूत्र में पीसकर 5 ग्राम शहद मिला कर निरन्तर सेवन करते रहने से फील पांव, (हाथी पांव) का रोग ठीक हो जाता है। इस प्रयोग के साथ में आक्रान्त पैर पर नीम तैल की करें अथवा पोटली में हल्दी का चूरा बांधकर प्रतिदिम नीम के तैल में डुबोकर टकोर . खूब मालिश (संक) करें तथा आक्रान्त पैर को शरीर से ऊँचा रखकर रात्रि में सोने की आदत डालें ताकि रक्त आसानी से पलटने लगे।
  • साधारण फोड़े-फुन्सियों में नीम की छाल घिसकर लगाना उपयोगी है। • अधिक फुन्सियाँ निकलने पर नीम पत्तियों का रस पीना लाभकारी है। 

इस प्रयोग से रक्त शुद्ध हो जाता है।

  •  नीम, सेम, भांगरा का रस 50-50 ग्राम, बबूल और मेंहदी के पत्तों का रस 75-75 ग्राम में सरसों का तैल 500 ग्राम और 1 किलो पानी को धीमी आग पर इतना पकायें की पानी जल जाये। मोम डालकर मरहम बनाकर सुरक्षित रखलें । यह मरहम इतना अधिक प्रभावशाली असरकारक) है कि साधारण फोड़े-फुन्सियाँ तोक्या जड़ों वाले फोड़ा को भी सुखा डलता है।
  • नीम की तोड़ी (मद) या गोंद प्रतिदिन थोड़ी-थोड़ी मात्रा में पुरुष के सेवन करने से दो महीनों में उसकी बच्चा उत्पन्न करने की शक्ति कम होने लगती है।

(नोटइस प्रयोग से पुरुष नपुंसक कदापि नहीं होता है, कामेच्छा में कमी होती है) तथा नीम रस का अथवा गोंद (मद) ताड़ी का सेवन छोड़कर नीम तैल का सेवन प्रारम्भ कर देने से शरीर में शीतलता का स्थान उष्णता लेकर सैक्स पावर बढ़ा देती है।)

  • 10 ग्राम नीम रस, पिसी हींग और हल्दी 3-3 ग्राम लेकर 10 ग्राम पानी में काढ़ा बनायें । तत्पश्चात् इसमें सरसों का तैल 10 ग्राम डालकर इतना गरम करलें कि पानी जल जाए तदुपरान्त इसमें अफीम और कपूर 1-1 ग्राम डालकर सुरक्षित रखलें । बच्चों के कान बहने के रोग में यह तैल 2-2 बूंद कान साफ करके डालना अत्यधिक उपयोगी है । इस तैल के प्रयोग से कान के समस्त प्रकार के विकार नष्ट हो जाते हैं।
  • हाई ब्लड प्रैशर में प्रारम्भ में नीम पत्ती का रस प्रतिदिन 25 ग्राम पीते रहें एक सप्ताह के बाद दो दिन बीच में छोड़कर 1 सप्ताह तक पियें तथा लो ब्लड प्रैशर में नीम तैल को पियें तथा शरीर पर मलें। अति उपयोगी घरेलू योग है।
  • बलगमी खांसी में नीम पत्ती, सूखी भांग, कच्चे चने सूखे चने रात को पानी में भिगोकर कच्चे चने बना लें) अडुसा और सांभर नमक प्रत्येक 50-50 ग्राम की मात्रा में लेकर पीसकर (आलू की टिक्की) की भांति मिट्टी के (दिये) दो ढक्कनों के बीच रखकर गीली मिट्टी से मुंह बन्द कर (जोड़कर) 5 किलो उपलों के बीच में रखकर तपने दें। ठण्डा होने पर ढक्कन अलग कर इस औषधि (भस्म) को एक साफ स्वच्छ शीशी में सुरक्षित रखलें। आधा ग्राम यह औषधि 1 चम्मच शहद में घोलकर चाटें।

नोट—इस प्रयोग से यदि सीने में जलन हो तो इसकी दूसरी खुराकें आधा ग्राम से कम करलें ।) बलगम छंटकर सीना साफ और स्वच्छ हो जाएगा ।

बबासीर में—नीम की अन्दर वाली छाल तीन ग्राम और गुड़ 5 ग्राम को पीसकर प्रतिदिन (रोग के समूल नष्ट होने तक) सेवन करें । खूनी बबासीर में 3- 4 निबौली प्रतिदिन पानी में मलकर खाना भी अत्यधिक लाभप्रद है। मूली के रस में निबौली का गूदा सेवन करना भी उपयोगी है। नीम तैल प्रतिदिन 5 बूंद पीना तथा मस्सों पर लगाना भी बबासीर का शर्तिया उपचार है ।

  • 100 ग्राम नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर ठण्डा करके सिर धोने से (मात्र 1 सप्ताह के प्रयोग से) बाल झड़ना बन्द हो जाते हैं नीम और बेर की पत्तियों को उबालकर सिर में लेप करने से बाल झड़ना बन्द होकर नये बाल उग आते हैं। नीम पत्तियों को उबालकर सिर धोने से सफेद बाल काले हो जात है। 1 माह के निरन्तर प्रयोग से लाभ स्पष्ट दृष्टिगोचर होने लगेगा।
  • बिच्छू दंश में नीम के पत्ते मसलकर काटे हुए स्थान पर कुछ देर तक मलने से डंक गलकर बिच्छू का विष शान्त पड़ जाता है। नीम की छाल अथवा नीम की सूखी पत्तियां या निबौलियों को चिलम में भरकर कश खींचने से भी बिच्छू दंश का विष उतर जाता है। यह सभी अचूक उपचार में है।

भगन्दर में— आधा किलो नीम रस और 250 ग्राम बूरा की हल्की आग पर गाढ़ी (करछुली अथवा कलुछी चिपकने लगे ऐसी) चाशनी बनाकर चित्रक, हल्दी प्रत्येक 10-10 ग्राम, नागरमोथा, काला जीरा, अजवायन, निर्गुन्डी बीज, पीपल, सौंठ, काली मिर्च, दन्ती मूल, नीम और बाबची के बीज, अनन्त मूल और वायविंडग प्रत्येक 25-25 ग्राम पीस छानकर चाशनी में मिलाकर सुरक्षित रखलेंइसे 10-10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से भगन्दर शर्तिया नष्ट हो जाता है।

  • बर्र के काटने पर भी नीम की पत्तियां पीसकर रगड़ना अत्यधिक उपयोगी है, जहाँ इसके छत्ते लगे हों वहाँ नीम के सूखे पत्ते, सींकें, निबोलियों का ढेर लगाकर आग लगादें । इस धूनी के प्रभाव से भिड़ें (बर्र) ही भाग जायेंगी ।
  • नीम के 50 ग्राम पत्तों में 5-5 काली मिर्च पीसकर सौ ग्राम पानी में छानकर पीने से मलेरिया बुखार मिट जाता है ।
  • मन्दाग्नि में पकी हुई 10 निबोलियां प्रतिदिन खाने से भूख बढ़ जाती है तथा रक्त भी साफ और शुद्ध हो जाता है अथवा 10 ग्राम नीम रस में अदरक, पुदीना, अजवायन, जीरा 5-5 ग्राम घोट पीसकर पांचो नमक मिलाकर पीने से जठराग्नि प्रदीप्त हो जाती है और अजीपण दूर होकर रोगी स्वस्थ हो जाता है ।
  • मधुमक्खी के डंक मारने पर नीम की पत्तियां रगड़ें। यदि छत्ते में लगी मधुमक्खियों ने सामूहिक रूप से आक्रमण कर काटा हो तो नीम की पत्तियां, काली मिर्च और सैंधानमक साथ-साथ पीसकर गोघृत में मिलाकर चाटना अतीव गुणकारी है। यदि रोगी अधिक बेचैन हो तो यह नीम की पत्तियाँ मुँह बन्द करके चबायें।
  • नीम की गन्ध और रस विष को शर्तिया ठण्डा कर देता है ।
  • मधुमेह में नीम की छाल का काढ़ा पीना और करेला की भुर्जी का नाश्ता करना उपयोगी है । कुल्ला और गरारे करने से मसूढ़ों की टीसें और दाँतों का दर्द शर्तिया मिट जाती है.
  • नीम के फल. निबौली, पत्ते, जड़ और डन्ठल का काढ़ा तैयार करके व ने से मसूढ़ों की टीसें और दाँतों का दर्द शर्तिया मिट जाता है । 
  •  नीम के पत्ते गरम करके स्त्रियों के नाभि के नीचे बाँधने से मासिकधर्म में होने वाला दर्द और कमरदर्द इत्यादि विकार नष्ट हो जाते हैं।
  • नीम की 5-7 पत्तियाँ अदरक के रस में पीसकर पीने से और नीम की पत्तियाँ गर्म करके नाभि के नीचे बाँधने से स्त्रियों का बन्द मासिकधर्म खुलकर आ जाता है । या 20 ग्राम नीम की छाल, सौंठ और गुड़ 5-5 ग्राम का काढ़ा बनाकर पीने से भी मासिकधर्म की रुकावट दूर होती है।
  • यदि किसी स्त्री के मासिकधर्म का स्राव न रुक रहा हो तो बकायन (महानीम) की कोपलों का रस पिलायें । अतीव गुणकारी एवं उपयोगी घरेलू उपचार है। 
  • बकायन के पत्तों का काढ़ा पिलाने से मिर्गी की मूर्च्छा दूर हो जाती है।
  • नीम की पत्तियाँ सरसों के तैल में गरम करके, चुटकी भर हल्दी डालकर इसे किसी कपड़े में बांधकर पुल्टिस की भांति मोच से आक्रान्त भाग पर टकोर (सेंक) करने से मोच व सूजन, दर्द तथा त्वचा की अन्य टूट-फूट मिट जाती है।
  • निबौली को सुरमें की भांति पीसकर दो सलाई प्रतिदिन आँखों में लगाने से मोतियबिन्दु का जाला अपने आप (बिना आप्रेशन के) कटकर निकल जाता है। 
  • मीठे आम अथवा किसी भी एरन्ड के बीज और नीम की पत्तियाँ चबाने से मुख की बदबू दूर हो जाती है। 
  • निबौली, एरन्ड के बीज और नीम की पत्तियाँ 50-50 ग्राम लें । एरन्ड के बीजों और निबौलियों का गूदा निकालकर पत्तियों के रस में मिलाकर योनि पर लेप करने से योनि के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं ।
  • प्रसवोपरान्त योनि-द्वार के किनारे कट-फट जाते हैं, यह योनि विदीर्णता कहलाता है इसमें नीम पत्तों का उबाला हुआ पानी (हल्का गरम रह जाने पर) (दिन में तीन बार) योनि को धोना उपयोगी हैइस प्रयोग से योनि में टांके लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी और नई त्वचा कटावों को स्वयं जोड़ देगी।
  • रक्तपित्त में खून में उबाल आने (गर्मी होने से) विभिन्न प्रकार के त्वचा रोग उत्पन्न हो जाते हैं इस हेतु नीम पत्तियों का रस 1 डेढ़ चम्मच पीना अत्यन्त उपयोगी हैत्वचा को अन्दर की गर्मी से बचाने हेतु नीम पत्तियां डालकर पानी गरम करके फिर ठण्डे पानी से स्नान करना परम लाभकारी है ।
  • रक्त विकारों में रक्त शुद्ध करने हेतु नीम की टक्कर किसी से नहीं है। यह सर्वोत्तम रक्त शोधक है। इस हेतु नीम छाल का काढ़ा सेवन करना अथवा छाल को को पीसकर चूर्ण बनाकर सेवन करना अथवा बहार की ऋतु में नाजुक कोमल कोपलें 20-25 तोड़कर 5-7 काली मिर्च सहित पीसकर इस पिट्ठी को बेसन छाल की रोटी में पकाकर घी से खूब भली-भांति तर करके एक सप्ताह तक खावें ।
  • रतौंधी में दूधिया (कच्ची) 3-4 निबौली फोड़कर उसमें सलाई घुमाकर आँखों में आँजने से पतली के समस्त आवरण हट जाते हैं और दृष्टि गोलक ज्योति से भरने लगते हैं अथवा नीम तैल आँखों में आँजने से भी रात को सामान्य रूप से दिखलाई देने लगता है ।
  • नीम वृक्ष की मोटे तने का टुकड़ा काटकर पानी में घिसकर मोटा-मोटा रसौली के ऊपर लेप (लगातार महीना दो महीना) चढ़ाते रहने से रसौली सिमट कर त्वचा का अस्वाभाविक फुलाव को समतल होता है।
  • लिंग में घाव होने पर नीम के पत्ते घिसकर टिकिया बनाकर तवे पर सेंक कर (आलू की टिक्की की भाँति) खा जायेंलिंग के घाव भरने में उपयोगी है। वातरोग में 5 निबौलियां प्रतिदिन खाने से वात रोग नष्ट हो जाते हैं।
  • नीम की पत्तियाँ और काली मिर्च सैंधा नमक मिलाकर शहद और गोघृत में घोलकर चाटने से विषैलापन मिटता है। यह प्रयोग शरीर को आरोग्यता प्रदान करने वाला श्रेष्ठ उपचार है ।
  • वीर्यपतन में 20 ग्राम नीम की पत्तियां 50 ग्राम घी में भूनकर जला दें। यह घी वीर्य की कमी की पूर्ति कर देता है तथा कामवासना को भी शान्त रखेगा।
  • यदि दुर्भाग्य से किसी माँ को दुग्धपान करने वाला शिशु स्वर्ग सिधार जाए तो स्तनों से दूध निकलकर वस्त्रों को खराब करता है तथा मृत शिशु की याद नहीं भूलने देता है । इस हेतु निबौलियों की गिरी पीसकर स्तनों पर लेप करने से दूध अपने आप सूखने लगता है ।
  • नीम की पत्तियाँ खिलाने से सर्प विष तो शान्त होता ही है, यह भी परीक्षण हो जाता है कि विष चढ़ा भी है अथवा नहीं ।

नोट- नीम की पत्तियां विष का प्रभाव होने अथवा रहने तक कड़वी नहीं लगती हैं। आयुर्वेद क अनुसार यदि कोई व्यक्ति 5-7 नीम की पत्तियां प्रतिदिन चबाता रहे तो वह “नील कण्ठ” हो जाता है। ऐसे व्यक्ति को यदि सांप काट ले तो उल्टा सांप ही अपनी जान से हाथ धो बैठेगा। 

  • नीम पत्तों का अधिक मात्रा में काढ़ा तैयार कर किसी खुले बड़े चौड़े बरतन में रोगी को नंगा बैठाने की क्रिया करने से सुजाक मिट जाता है। 
  •  नीम का पंचांग पीसकर मेंहदी की भाँति हाथों की हथेलियों और पैरों के तलुवों में लगाने से दह (जलन अथवा निकलना) दूर हो जाता है 
  • महानीम (बकायन) की सींकें, लौंग, बड़ी इलायची 5-5 लेकर 50 ग्राम पानी में थोड़ा तपाकर (यह 1 मात्रा है) प्रत्येक 2-2 घंटे बाद सेवन कराने से हैजा खड़ा होता है। रोगी की शारीरिक ऐंठन एवं अन्य कष्टों से निजात हेतु नीम तैल की मालिश कर दें। यदि रोगी का पेशाब बन्द हो तो नीम के फूल पानी में पीसकर पेड़ पर लेप कर दें। अवश्य लाभ होगा।
  • हृदय रोगों में नीम बीजों का चूर्ण आधा-आधा ग्राम की मात्रा में सेवन करना लाभप्रद है। नोट—अधिक मात्रा में सेवन करने से नशा चढ़ जाता है। 
  • चेचक निकलने पर रोगी के बिस्तर पर नीम पत्तियाँ सुबह-शाम बिछायें तथा बदलते रहें और दरवाजों और खिड़कियों पर भी इसी प्रकार वन्दनवार की भांति नीम पत्ते बांधे और ताजे बदलते रहें। रोगी को मुनक्के का उबाला हुआ पानी पिलायें और यही (उबला हुआ मुनक्का खिलायें।
  • चेचक में असहनीय जलन होने पर नीम की पत्तियां घोट छान कर से बिलोकर (जब झाग बनने लगें तो) यही झाग रोगी के बदन पर मलें नीम को कोपलों को पीसकर चेचक के फफोलों पर पतला-पतला (गाढ़ा हर्गिज नहीं) लेप करना भी उपयोगी है इस प्रयोग से चेचक के दानों (फफोलों में) आग कम हो जाती है।
  • चेचक के रोगी को ठण्डा पानी कदापि न दें। नीम की छाल जलायें और जल भरी कटोरी छाल के अंगारे में बुझाकर यही पानी पिलायें । मुनक्के डालकर उबाला हुआ जल भी अन्दर की गर्मी निकालने में सहायक है। नीम की पत्तियां डालकर उबाला हुआ पानी भी उत्तम है क्योंकि इसके सेवन से प्यास भी बुझ जाती है और बुखार भी भागता है (चेचक के बुखार को उतारने की कोशिश न करें क्योंकि इसी के कारण चेचक के दानें बाहर फूटते हैं, यदि यह शरीर में अन्दर ही रह जाऐं तो जीवन में कभी भी इसका बुरा फल खसरा या चेचक के पूर्णरूपेण बाहर न निकलने पर) क्रानिक ब्रोकाइटिस के रूप में भागना पड़ सकता है । इसलिए चेचक जितनी अधिक और जल्दी बाहर निकल आये, उतना ही अच्छा होता है।
  • नीम की पत्तियों का रस गुनगुना करके सुबह, दोपहर, शाम पिलाते रहने से चेचक के दाने खुलकर निकलने में मदद मिलती है ।
  • चेचक के दाने सूख जाने पर नीम पत्तियों को पानी में उबालकर, करके रोगी को स्नान करायें तथा नीम पत्तियों में तपाकर छाना हुआ सरसों आदि का तैल रोगी के बदन पर लगायें।
  • चेचक का उबाल शान्त पड़ते ही नीम का तैल गढ़ो वाली त्वचा पर लगाना प्रारम्भ कर दें । इससे नयी-पुरानी त्वचा इकसार, इकरंग और समतल होने लगती है। रोगी के सिर पर भी नीम का तेल लगायें ताकि उसके बाल न झड़ें। यदि झड़ रहे हों तो रुक जायें। 

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सन्दीप शाह

सन्दीप शाह दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक हैं। वे तकनीक के माध्यम से हिंदी के प्रचार-प्रसार को लेकर कार्यरत हैं। बचपन से ही जिज्ञासु प्रकृति के रहे सन्दीप तकनीक के नए आयामों को समझने और उनके व्यावहारिक उपयोग को लेकर सदैव उत्सुक रहते हैं। हिंदीपथ के साथ जुड़कर वे तकनीक के माध्यम से हिंदी की उत्तम सामग्री को लोगों तक पहुँचाने के काम में लगे हुए हैं। संदीप का मानना है कि नए माध्यम ही हमें अपनी विरासत के प्रसार में सहायता पहुँचा सकते हैं।

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